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शिवराज चौहान का महिला सशक्तीकरण का पैंतरा- हर सरकारी आयोजन से पहले करनी होगी कन्या पूजा

बुधवार को जारी एक सर्क्युलर में, मध्यप्रदेश सरकार ने सभी ज़िला मजिस्ट्रेटों, मेयरों, और विभाग प्रमुखों को निर्देश दिया है, कि किसी भी सरकारी आयोजन से पहले कन्या पूजन अवश्य कराएं.

File photo of Shivraj Singh Chouhan | ANI

नई दिल्ली: मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान सरकार ने हर विभाग को निर्देश दिया है कि हर सरकारी कार्यक्रम एक कन्या पूजा के साथ शुरू किया जाए. सरकार का कहना है कि इस क़दम से महिला सशक्तीकरण सुनिश्चित किया जा सकेगा.

कन्या पूजा एक हिंदू अनुष्ठान है, जिसमें किसी नाबालिग़ कन्या की पूजा की जाती है, जिसे कुछ भी नया शुरू करने से पहले, शुभ समझा जाता है.

बुधवार को जारी एक सर्क्युलर में, मध्य प्रदेश सरकार ने सभी ज़िला मजिस्ट्रेटों, मेयरों और विभाग प्रमुखों को निर्देश दिया है कि किसी भी सरकारी आयोजन से पहले कन्या पूजन अवश्य कराएं.

मुख्यमंत्री के नाते अपने पिछले कार्यकाल में चौहान ने अधिकारियों को निर्देश दिया था कि किसी भी सरकारी आयोजन से पहले नाबालिग़ कन्याओं के पैर धोकर उनकी पूजा की जाए. कमलनाथ के सत्ता में आने के बाद ये प्रथा बंद कर दी गई थी. चौहान सरकार के पिछले सर्क्युलर पर कभी अमल नहीं हुआ लेकिन इस बार सरकार ने कहा है कि हालिया आदेशों का संपूर्णता के साथ पालन होना चाहिए.

बीजेपी प्रवक्ता और वरिष्ठ पार्टी नेता गोविंद मालू ने कहा, कि इस संकेत से ये संदेश देने में कामयाबी मिलेगी कि सरकार महिला सशक्तीकरण को लेकर गंभीर है.

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मालू ने कहा, ‘शिवराज जी पुरुषों से ज़्यादा महिलाओं में लोकप्रिय हैं. महिलाएं उन्हें राखी बांधती हैं और वो लगातार उनकी चिंता करते हैं. उनकी हर रैली में महिलाओं की काफी संख्या रहती है और यही कारण है कि उन्होंने भारी संख्या में शिवराज को वोट दिया है’.

उन्होंने आगे कहा, ‘ये बहुत स्वाभाविक है कि ऐसे प्रतीकात्मक संकेतों के ज़रिए महिलाओं को सशक्त किया जाए. हर मुख्यमंत्री को इस प्रथा को अपनाना चाहिए; इससे महिलाएं अच्छा और सुरक्षित महसूस करेंगी’.


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‘लॉजिस्टिक्स के मसले, प्रतीकवाद’

लेकिन सरकारी अधिकारी सर्क्युलर के पालन में, लॉजिस्टिक्स के मसले उठा रहे हैं.

मध्य प्रदेश गृह विभाग के एक सीनियर सिविल सर्वेंट ने कहा, ‘नीयत अच्छी है कि समाज को एक संदेश दिया जाए, लेकिन फंक्शन के लिए बुलाई गई कन्या की सुरक्षा का ज़िम्मा कौन लेगा’. उन्होंने आगे कहा, ‘कन्या को कैसे चुना जाएगा? ये कुछ ऐसे मसले हैं जो संबंधित विभागों के लिए चुनौती बन जाएंगे. प्रतीकवाद अच्छा है, लेकिन पूरे प्रदेश में इसे लागू करना मुश्किल हो जाएगा’.

विपक्ष ये कहते हुए इस क़दम की आलोचना कर रहा है कि सरकार को प्रदेश में महिलाओं की सुरक्षा पर ध्यान देना चाहिए. पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ट्वीट किया, ‘महिलाओं के सशक्तीकरण और उनकी सुरक्षा के लिए सिर्फ कन्या पूजन पर्याप्त नहीं है. शहडोल में 30 बच्चों की मौत हो चुकी है, जो अपने आप में महिला सुरक्षा की कहानी सुनाती है. उन्हें सुरक्षा की ज़रूरत है, पूजा की नहीं’.

एक ‘महिला-मित्र सीएम’

चौहान की छवि एक महिला-मित्र मुख्यमंत्री की है. 2006 में लाडली लक्ष्मी स्कीम शुरू करने के बाद उन्होंने ख़ुद को ‘मामाजी’ की उपाधि दे दी थी. उस स्कीम के तहत राज्य सरकार, हर कन्या के जन्म के समय, उसके नाम पर 1.8 लाख रुपए जमा करती है. इस राशि को नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट के रूप में रखा जाता है, जिसे लड़कियों की शिक्षा और शादी की ज़रूरतों के लिए, उनके माता-पिता को दे दिया जाता है.

चौहान ने महिलाओं के लिए, स्थानीय निकाय चुनावों में 50 प्रतिशत और पुलिस भर्ती में 30 प्रतिशत आरक्षण को भी लागू किया है. वो पहले मुख्यमंत्री थे जिन्होंने लैंगिक बजट को एक अलग बजट के तौर पर शुरू किया, जिसे विधान सभा में अलग से पारित किया जाता है.

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