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आंध्र में सेक्स ट्रैफिकिंग, रेप का खौफ: दलित किशोरी के मामले ने 65 पुरुषों,15 महिलाओं के रैकेट का भंडाफोड़

पुलिस ने कृष्णा जिले स्थित गुंटुपल्ली गांव में एक घर से 13 वर्षीय लड़की को मुक्त कराया. इसके बाद शुरू हुई तलाश 80 संदिग्धों पर जाकर टिकी और इसमें से 74 को गिरफ्तार किया गया है.

प्रतीकात्मक तस्वीर | रमनदीप कौर का चित्रण | दिप्रिंट

हैदराबाद: आंध्र प्रदेश में हाल में एक 13 वर्षीय दलित लड़की के लापता होने के मामले में धीरे-धीरे खुलती परतों ने जब एक चौंकाने वाला सेक्स ट्रैफिकिंग रैकेट का भंडाफोड़ कर दिया तो राज्य पुलिस ने 80 संदिग्धों की धर-पकड़ के लिए व्यापक स्तर पर अभियान छेड़ दिया.

गुंटूर की सहायक पुलिस अधीक्षक के. सुप्रजा ने दिप्रिंट को बताया कि करीब 65 लोगों ने गुंटूर के मेडिकोंडुरु गांव की इस किशोरी के साथ कथित तौर पर 6 महीने से अधिक समय तक बलात्कार किया है, जिसमें न केवल ग्राहक बल्कि इस रैकेट को चलाने वाले लोग भी शामिल हैं. सुप्रजा ने बताया कि 80 संदिग्धों की सूची में 15 महिलाएं शामिल हैं.

गुंटूर पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की मानव तस्करी से जुड़ी धाराओं 370 और 370-ए के साथ-साथ यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण अधिनियम) के तहत मामला दर्ज किया है.

सुप्रजा ने बताया, ‘बच्ची की उम्र का फायदा उठाकर, यह देखते हुए कि उसकी उम्र की वजह से ग्राहकों से अधिक पैसा मिलेगा, नाबालिग को हैदराबाद सहित आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के कई वेश्यालयों में भेजा गया. नाबालिग को नशीला पदार्थ दिया गया ताकि पुरुष उसका शोषण कर सकें. इस दौरान उसके प्राइवेट पार्ट में गंभीर इन्फेक्शन भी हो गया.’

असिस्टेंट एसपी ने बताया कि 14 महिलाओं सहित 74 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है, जबकि छह फरार हैं. सुप्रजा ने कहा कि संदिग्धों में सॉफ्टवेयर कर्मचारी, बी.टेक. छात्र, और यहां तक कि लंदन का एक छात्र भी शामिल है, जो अभी फरार है. उसके खिलाफ लुकआउट नोटिस पहले ही जारी किया जा चुका है.

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यह घटना ऐसे समय सामने आई है जबकि आंध्र प्रदेश ने भारत में मानव तस्करी के लिए कुख्यात शीर्ष राज्यों में जगह बनाई है, और राज्य में विजयवाड़ा मानव तस्करों की आवाजाही का प्रमुख रास्ता बनकर उभरा है.


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कैसे हुआ अपहरण

दलित किशोरी की मुश्किलें पिछले साल मई-जून में कोविड महामारी की दूसरी लहर के दौरान उस समय शुरू हुईं जब उसकी मां गुंटूर जनरल हॉस्पिटल में भर्ती थी. तभी स्वर्ण कुमारी नाम एक महिला ने कथित तौर पर पीड़िता और उसके परिवार के साथ दोस्ती बढ़ाई.

सहायक एसपी सुप्रजा ने कहा कि स्वर्ण कुमारी को सेक्स वर्कर के पेशे के लिए युवा लड़कियों की तलाश थी. कुमारी ने जून में मां के निधन के बाद इस लड़की को अपने साथ रखने के लिए पिता को राजी कर लिया. और वादा किया कि इस दुख की घड़ी में वो लड़की को सहारा देगी.

सुप्रजा ने कहा कि किशोरी को अपने साथ रखने के तीसरे दिन ही उस महिला ने उसे वेश्यावृत्ति में धकेल दिया, लेकिन उसके पिता के समक्ष भेद खुल जाने से डरती थी.

उन्होंने कहा, ‘लड़की भी अपने पिता को इस बारे में कुछ बताने से डरती थी. वह उसका हाल-चाल जानने के लिए नियमित तौर पर फोन करता था और स्वर्ण कुमारी उसे बताती थी कि लड़की गांव में उसके पास सुरक्षित हैं.’

जुलाई या अगस्त में स्वर्ण कुमारी ने लड़की के पिता से कहा कि वह उसे बी. आनंदैया को दिखाने के लिए नेल्लोर ले जा रही है, जो एक नीम हकीम है, और कोविड के इलाज की कथित दवा के कारण जिन्होंने आंध्र प्रदेश में खासी लोकप्रियता हासिल की थी.

सहायक एसपी ने बताया कि इसके बजाय, वह लड़की को हैदराबाद और विजयवाड़ा और आंध्र के अन्य स्थानों पर ले गई और उसे वेश्यालयों में रखा गया.

सुप्रजा ने कहा कि किशोरी आखिरकार अक्टूबर में गुंटूर के नल्लापाडु में उसके चंगुल से छूटकर भागने में सफल रही, लेकिन एक दलाल के जाल में फंस गई जिसने कथित तौर पर उसकी मदद करने का झांसा दिया था. वह लड़की को कृष्णा जिले में दो महिलाओं जेशिंथा और उसकी बेटी हेमलता के पास लेकर गया.

एक और जाल में उलझी

जेशिंदा युवतियों को अपने झांसे में फंसाने के लिए खुद को एक महिला अधिकार कार्यकर्ता बताती थी और फिर उन्हें वेश्यावृत्ति के लिए मजबूर कर देती थी. सुप्रजा ने कहा कि वह पूर्व में होमगार्ड में थी लेकिन पांच साल की सेवा के बाद 1988 में इसे छोड़ दिया था.

सुप्रजा ने बताया कि एक बार जब लड़की जेशिंथा के पास पहुंच गई तो उसने उसे कृष्णा जिले के गुंटुपल्ली गांव में एक अलग घर में रखा, जहां कई पुरुष उसका यौन शोषण करने वाले थे.

असिस्टेंट एसपी ने बताया कि इसी घर से उसे बचाया गया था. चूंकि लड़की के पिता को स्वर्ण कुमारी के गोलमोल जवाबों से उस पर शक होने लगा था. तो उसने आखिरकार 16 दिसंबर को अपनी बेटी के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज कराई. मानव तस्करी को लेकर आंध्र की कुख्याति को देखते हुए दो दिन बाद यानी 18 दिसंबर को यह मामला सुप्रजा को सौंपा गया था.

इस मामले में पहले दौर में 22 दिसंबर को 22 लोगों को गिरफ्तारी किया गया. लेकिन रैकेट की जड़ें कहां-कहां तक फैली हैं, इसका पता लगाने में पुलिस को महीनों लग गए.

सुप्रजा ने बताया, ‘उनके (जिन्हें सबसे पहले गिरफ्तार किया गया) माध्यम से मिली जानकारी के आधार पर हमने तमाम पहलुओं की जांच शुरू की और एक-एक कड़ी जोड़ते हुए पूर्वी गोदावरी, पश्चिम गोदावरी, नेल्लोर और यहां तक कि हैदराबाद के रहने वाले लोगों और दलालों तक पहुंचे. हमने पता लगाया कि पूरा रैकेट कैसे चल रहा है, कितने लोग शामिल हैं, और उनके नेटवर्क को तोड़ा गया.’

उन्होंने बताया गिरफ्तार किए गए लोगों में से कई सशर्त जमानत पर हैं. ‘लेकिन उन सभी ने कम से कम 100 दिन जेल में बिताए हैं, हमने सुनिश्चित किया कि सूची में नाम जोड़ने से पहले हमारे पास पुख्ता सबूत हों.’

सुप्रजा ने कहा कि इसमें किसी अन्य नाबालिग के बारे में पता नहीं चला और किसी अन्य वेश्यालय पर छापा भी नहीं मारा गया.’

उन्होंने कहा, ‘हम पूरी तरह से नाबालिग दलित लड़की की शिकायत पर ध्यान केंद्रित कर इस रैकेट का भंडाफोड़ किया.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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