होम देश संवेदनशील अरावली, ‘भू-माफिया’, अवैध गांव—खोरी में घरों को ढहाने के पीछे की...

संवेदनशील अरावली, ‘भू-माफिया’, अवैध गांव—खोरी में घरों को ढहाने के पीछे की कहानी बहुत उलझी हुई है

11 साल चली कानूनी लड़ाई के बाद 7 जून को आए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पर फरीदाबाद नगर निगम खोरी गांव में हजारों घरों को ध्वस्त कर रहा है.

खोरी गांंव के बहुत सारे निवासियों घर गिराए जाने के बाद वे बिना छत के इस एरिया में बने हुए हैं. शुभांगी मिश्रा | ThePrint

खोरी (फरीदाबाद) : अरावली के जंगलों में अवैध ढंग से कब्जा करके बसे फरीदाबाद के खोरी गांव को देखकर ऐसा लग रहा है कि जैसे अभी-अभी कोई तूफान यहां से गुजरा हो. हर तरफ टूटे घरों की ईंटें बिखरी पड़ी हैं, जिनमें बीच-बीच में खिलौने, फटी किताबें, टूटे टीवी और कांच के टुकड़े झांक रहे हैं. टूटे-फूटे दोपहिया वाहन भी मलबे के बीच नजर आ रहे हैं, और यहां रहने वाले परिवार इस कोशिश में लगे हैं कि वह मलबे से अपना क्या-क्या सामान निकाल सकते हैं.

फरीदाबाद नगर निगम (एमसीएफ) ने 7 जून के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद खोरी गांव में हजारों घरों को ध्वस्त करने में जुटा है, जहां अतिक्रमण हटाने के लिए छह सप्ताह की समयसीमा तय की गई है.

मुख्य तौर पर प्रवासी श्रमिकों की इस बस्ती में घरों की सही संख्या को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है.

जिला प्रशासन के अनुसार, एक ड्रोन सर्वेक्षण से पता चला कि इलाके में 5,100 घर थे. हालांकि, एक निवासी की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में दायर एक जनहित याचिका में यह आंकड़ा 10,000 के करीब बताया गया है.

खोरी गांव को लेकर दो अलग तरह कथानक सामने रखे जाते हैं. सुप्रीम कोर्ट और जिला प्रशासन के मुताबिक, इन लोगों ने संवेदनशील वन क्षेत्र वाली सरकारी भूमि का अतिक्रमण कर रखा है. वे करीब एक दशक से अतिक्रमण हटाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यहां रहने वालों से संघर्ष छेड़ रखा है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

वहीं स्थानीय लोग खुद को निर्दोष बताते हैं, और उनका दावा किया कि उन्हें भू माफिया ने यहां बसा दिया है जिन्होंने उनसे पैसे लिए और नकली दस्तावेजों का उपयोग करके जमीन उन्हें ‘बेची’ दी है.

वे पुलिस पर भी कथित माफिया के साथ मिले होने का आरोप लगाते हैं, और यह जगह छोड़ने के लिए उनकी दो शर्तें हैं: उनको कहीं और बसाया जाए और कथित तौर पर उन्हें ठगने वालों की गिरफ्तारी हो.

हरियाणा पुलिस इन नागरिकों के आरोपों को पूरी तरह खारिज तो नहीं कर रही है, लेकिन उसका कहना है कि उनके आरोपों की जांच की जा रही है, लेकिन इस पर जोर दिया है कि निवासियों को इस मामले में पुलिस में शिकायत दर्ज करानी चाहिए थी.

इस बीच खोरी में स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है. लोगों की तरफ से किए जा रहे विरोध को देखते हुए जिला प्रशासन ने 14 जून को गांव में सीआरपीसी की धारा 144—लोगों के एकत्र होने पर रोक—लागू कर दी.

दो दिन पहले सूरजकुंड में धरना प्रदर्शन करने और यातायात बाधित करने पर 12 लोगों को गिरफ्तार किया गया था. उन पर आईपीसी की धारा 114 (घातक हथियारों के साथ गैरकानूनी रूप से एकत्र होने), 147 (दंगा), 149 (समान उद्देश्य को अंजाम देने का अपराध), 186 (सार्वजनिक अधिकारियों के काम में बाधा डालना), 188 (लोक सेवकों के कर्तव्य निर्वहन में बाधा डालना), 269 (संक्रामक रोग फैलाना), 285 (मानव जीवन के लिए खतरा), और 341 (गलत तरीके से रोकने) के तहत मामला दर्ज किया गया है.

इस मामले में हरियाणा सरकार का कहना है कि वह पुनर्वास के विकल्पों पर विचार कर रही है, लेकिन केवल उन लोगों के लिए जो इस राज्य से संबंधित हैं. हालांकि, जिस नीति के तहत उनके पुनर्वास की संभावना है, उसे स्थानीय लोगों ने यह कहते हुए अदालत में चुनौती दी है कि इसमें कट-ऑफ डेट 2003 की रखे जाने से उनमें से अधिकांश लोग इससे बाहर हो जाएंगे.

पुनर्वास के मुद्दे से संबंधित अन्य लंबित याचिकाओं के साथ मामले की सुनवाई 27 जुलाई को होगी.


यह भी पढ़ें: प्रदर्शनकारी किसान कहते हैं- कोविड हमें छू नहीं सकता, हरियाणा के गांवों में मौत के आंकड़े अलग कहानी बता रहे हैं


पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र

गुजरात, राजस्थान, दिल्ली और हरियाणा तक फैली अरावली की पहाड़ियां एक संवेदनशील पारिस्थितिक क्षेत्र में आती हैं. दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक माना जाने वाला यह क्षेत्र खनिजों के मामले में काफी समृद्ध है, जिसने इसे खनन का एक प्रमुख क्षेत्र बना दिया है.

ग्राउंडवाटर रिचार्ज के लिहाज से यह सीमावर्ती काफी अहम हैं और इसे प्रदूषण प्रभावित दिल्ली-एनसीआर का ‘ग्रीन लंग’ तक कहा जाता है. इसे पश्चिमी रेगिस्तान के उत्तर प्रदेश में गंगा के किराने बसे अनाज का कटोरा कहे जाने वाले क्षेत्रों तक पहुंचने में आखिरी अवरोध भी माना जाता है.

सुप्रीम कोर्ट की तरफ से पिछले कुछ वर्षों में पारित आदेशों के तहत यहां खनन पर तो रोक लगी हुई है, लेकिन अवैध अतिक्रमण और निर्माण के साथ गैरकानूनी तरीके से खनन लगातार यहां के लिए एक बड़ा संकट बना हुआ है.

इस पर्वत श्रृंखला के अत्यधिक दोहन ने स्थानीय पारिस्थितिक परिवर्तनों को लेकर चिंता बढ़ा दी है.

खोरी गांव अरावली पहाड़ियों के बीच स्थित है, जहां कभी एक खदान होती थी. कोर्ट के आदेश पर 2009 में फरीदाबाद, गुरुग्राम और मेवात के अरावली पहाड़ी क्षेत्रों में सभी खनन गतिविधियों पर रोक लग गई थी.

खोरी गांव का एक नजारा | शुभांगी मिश्रा, दिप्रिंट

खोरी में बस्तियां बसने की शुरुआत 1990 के दशक में हुई. शुरू में यहां खदान श्रमिक रहते थे, लेकिन बाद में और लोगों के आने से इसका दायरा बढ़ गया.

मेलबर्न यूनिवर्सिटी की पीएचडी स्कॉलर आर्किटेक्ट इशिता चटर्जी, जो खोरी गांव पर अध्ययन कर रही हैं, ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि यहां बसे लोगों में मुख्य रूप से हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और बिहार के रहने वाले शामिल हैं.

उन्होंने कहा, ‘2000 के दशक की शुरुआत में दिल्ली में रह रहे तमाम लोग अपनी बस्तियां ढहाए जाने या बहुत सघन हो जाने के कारण अथवा वहां महंगा किराया देने में सक्षम न होने पर शहर के बाहरी इलाके में आ बसे थे. यही नहीं, खदानें बंद होने के बाद इन खदानों में काम करने वे लोग भी यही रह गए जो कर्ज के बोझ से दबे थे.

जब यह जांच के दायरे में आया

जब खनन पर प्रतिबंध लग गया तो वह क्षेत्र जहां खोरी गांव बसा हुआ है, पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम (पीएलपीए, जो पंजाब के विभाजन से पहले लागू है और अब हरियाणा पर भी लागू होता है) के तहत आ गया.

कानूनन यहां पर वन संरक्षण अधिनियम के तहत केंद्र सरकार की अनुमति के बिना किसी भी निर्माण की अनुमति नहीं है.

इस मामले में स्थानीय निवासियों की ओर से पक्ष रख रही ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क की वकील अनुप्रदा सिंह ने बताया कि चूंकि ये एक अवैध बस्ती है इसलिए पिछले कुछ सालों में खोरी को कई बार एमसीएफ की अतिक्रमण विरोधी कार्रवाई का सामना करना पड़ा है.

उन्होंने कहा, ‘पिछले कुछ सालों में कई बार अतिक्रमण ढहाया गया है. कभी-कभी 100 से 300 तक घर गिराए जाते थे, तो कभी-कभी केवल सात-आठ.

2010 में पहली बार यह मामला अदालत पहुंचा, जब खोरी गांव वेलफेयर एसोसिएशन नामक समूह ने अतिक्रमण ढहाने की कवायद के खिलाफ पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का रुख किया. 2012 में स्थानीय निवासियों के खोरी गांव कॉलोनी कल्याण समिति नामक एक अन्य समूह ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में एक रिट याचिका दायर कर अपने घरों को नियमित करने या वैकल्पिक रूप से पुनर्वास की मांग रखी. हाईकोर्ट ने दोनों याचिकाओं पर फैसला 2016 में सुनाया.

उन्होंने आगे कहा, ‘2016 में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार को इन झुग्गीवासियों के भविष्य और उनके पुनर्वास पर फैसला करने का निर्देश दिया. उसी फैसले में अदालत ने भारत सरकार को आवास के अधिकार पर एक राष्ट्रव्यापी नीति बनाने का निर्देश भी दिया.

अदालती सुनवाई के दौरान यह बात सामने आई कि इस क्षेत्र के 10 में से 4 अतिक्रमण 2010 के बाद हुए थे और इसलिए अतिक्रमण करने वाले तमाम सारे लोग हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण पुनर्वास नीति के तहत पुनर्वास के पात्र नहीं थे, जिस नीति में पहली अप्रैल 2003 को कट-ऑफ तिथि माना गया है.

2017 में एमसीएफ ने 2016 के हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. इसका तर्क था कि खोरी के ग्रामीण अतिक्रमणकारी हैं और इसलिए ये पुनर्वास के पात्र नहीं हैं.

अनुप्रदा सिंह ने बताया कि 19 फरवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपने पहले फैसले में वन भूमि से सभी अतिक्रमणकारियों को हटाने का आदेश दिया. इस आदेश के बाद सितंबर 2020 में 1,700 घरों को ध्वस्त कर दिया गया.

जनवरी 2021 में हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण पुनर्वास नीति, जिसके तहत यहां के लोगों के पुनर्वास की उम्मीद थी, की पुनर्वास संबंधी कट-ऑफ तिथि को चुनौती देते हुए अधिवक्ता कोलिन गोंजाल्विस ने पांच निवासियों की तरफ से एक जनहित याचिका दायर की थी.

गोंजाल्विस ने अनुरोध किया कि कट-ऑफ तिथि को 2003 से बढ़ाकर 2015 किया जाए, ताकि अधिक से अधिक निवासी इसके पात्र हो सकें.

अदालत ने अप्रैल और जून में अतिक्रमण ढहाने के आदेश को दोहराया. इसमें छह सप्ताह की समयसीमा निर्धारित थी, और सुप्रीम कोर्ट ने निवासियों की तरफ से उनके पुनर्वास का मसला सुलझने तक अतिक्रमण रोधी अभियान पर रोक लगाने के लिए दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने अतिक्रमण ढहाने के मामले में कड़ा रुख अपनाया और अधिकारियों से अनुपालन रिपोर्ट मांगी. अदालत ने यहां रहने वालों को भूमि कब्जाने वाला करार दिया है, और इस मामले में उदार रुख अपनाने के वकीलों के आग्रह को यह कहते हुए खारिज कर दिया है कि पुनर्वास के लिए आवेदन करने के लिए उनके पास फरवरी से अब तक एक लंबा समय था.

कोर्ट कट-ऑफ की तारीख बढ़ाने के अनुरोध पर 27 जुलाई को विचार करेगा.

पिछले पांच सालों से खोरी गांव में काम कर रहे आवास अधिकार कार्यकर्ता निर्मल गोराना ने ग्रामीणों को बेदखल किए जाने की जरूरत पर सवाल उठाया है.

उनका कहना है, ‘आदिवासी या ग्रामीण जंगलों को नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं. वास्तव में तो वे अरावली को अवैध खनन से बचा ही रहे हैं. यहां के घरों को गिराकर आप किन जंगलों को बचाएंगे? यह भूमि बंजर हो जाएगी किसी भी वृक्षारोपण के लिए अनुपयुक्त होगी. यह सिर्फ अमीरों का रास्ता खोलने के लिए गरीबों का शोषण है.’


यह भी पढ़ें: ग्रामीण भारत: घूंघट के भीतर से कैसी दिखती है डिजिटल दुनिया


‘माफिया ने ठगा’

पिछले सप्ताह तक जिला प्रशासन ने दावा किया था कि 50 प्रतिशत घर पहले ही खाली कर दिए गए थे, जबकि एमसीएफ ने कहा कि वो सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पूरी तरह पालन करेगा.

उनके घर भले ही ध्वस्त हो चुके हों लेकिन इन्हें बचाने के लिए निवासियों ने अपनी एड़ी-चोटी का जोर लगा रखा है. एक महामारी के बीच बेघर हो चुके ये लोग अपना सुनिश्चित पुनर्वास और धोखा देने वालों के लिए सजा चाहते हैं.

गणेशी लाल नामक एक 70 वर्षीय व्यक्ति ने कथित तौर पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आत्महत्या कर ली, और ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि अगर हरियाणा सरकार ने उनके पुनर्वास की व्यवस्था न की तो ऐसे और मामले सामने आ सकते हैं.

एक दशक से अधिक समय से खोरी में रहने का दावा करने वाले घनश्याम पदेराम का कहना है कि उनकी तो जिंदगी अधर में फंस गई है.

पहले आतिथ्य उद्योग में काम करते रहे और अब बेरोजगार हो चुके पदेराम का कहना है, ‘मैंने यह जमीन 3 लाख रुपये में खरीदी और इस घर की नींव अपने हाथों से बनाई. यह घर मेरे पूरे जीवन की जमा-पूंजी है. यह एकमात्र घर ही मेरा सब कुछ है. कृपया ये बताइए कि मुझे यहां से क्यों जाना चाहिए और अगर जाऊं भी तो मैं कहां जाऊं?’

अवैध कॉलोनी होने के कारण खोरी को सरकार की तरफ से कभी बिजली और पानी मुहैया नहीं कराया गया. यहां के निवासी कथित तौर पर कटिया लगाकर बिजली इस्तेमाल करते रहे हैं और पानी की जरूरतों को टैंकरों के जरिये पूरी करते थे.

ढहाए जाने के बाद एक निवासी अपने घर बचे हिस्से में सोता हुआ | शुभांगी मिश्रा | दिप्रिंट

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बिजली आपूर्ति वाली लाइन काट दी गई है, और निवासियों का आरोप है कि पुलिस टैंकरों को यहां आने से रोक रही है.

एक महिला ने अपना नाम ने बताने की शर्त पर कहा, ‘मोदी जी कहते हैं ‘घर के अंदर रहो.’ लेकिन अब सरकार चाहती है कि हम अपना घर-बार अपनी छत छोड़ दें. क्या अब हमें कोविड से मरने का खतरा नहीं है? मोदी जी भी स्वच्छ भारत की बात करते हैं, लेकिन हमारी जलापूर्ति रोककर राज्य हमें खुले में शौच के लिए मजबूर कर रहा है. इस गर्मी में मुझे बूंद-बूंद पानी को तरसना पड़ रहा है.’

लोगों का कहना है कि वैकल्पिक आवास के वादे के बिना वे यहां से जाने के बजाय मरना पसंद करेंगे.

वेल्डिंग का काम करने वाले एक दिहाड़ी मजदूर जीतेंद्र विश्वकर्मा ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट के ये जज हमसे कभी नहीं मिले. वे हकीकत से कोसों दूर रहकर अपने एसी कमरों में बैठे आदेश पारित कर रहे हैं. मैं उनसे कहना चाहता हूं, अगर आप चाहते हैं कि हम चले जाएं, तो कम से कम हमें रहने का कोई और ठिकाना तो दिलाइए.’

उन्होंने आगे कहा, ‘अगर ऐसा नहीं हो सकता तो वे यहां परमाणु बम गिरा दें और हम हिलेंगे तक नहीं, हम अपने बच्चों को जहर दे देंगे और फिर यहीं अपने घरों में दफन हो जाएंगे.’

विश्वकर्मा ने आरोप लगाया कि इन संदिग्ध भूमि सौदों में अधिकारियों की भी पूरी मिलीभगत रही है, जिसके कारण ही उन्हें यह स्थिति झेलनी पड़ रही है

उन्होंने कहा, ‘वन विभाग, पुलिस और सरकार सभी ने हमें बेची गई संदिग्ध जमीन से पैसा कमाया. अब बाकी दुनिया को यह देखने दें कि खोरी के निवासियों की हत्या की जा रही है.’

अनुराधा ने कहा, ‘इस जगह पर भू-माफिया काफी सक्रिय था.’

उन्होंने कहा, ‘लोग ग्रामीणों को जमीन बेचने के लिए फर्जी पावर ऑफ अटॉर्नी का इस्तेमाल कर रहे थे. यहां बसने वाले ज्यादातर गरीब हैं और यह जमीन उन्हें सस्ती दरों पर, आसान किस्तों में और कम ब्याज दर पर दी गई थी. इसलिए उन्होंने इसे खरीद लिया. इन पतों पर उनके पास राशन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र भी हैं.

पुलिस का कहना है कि वे यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि यह सरकारी जमीन ग्रामीणों को किसने बेची.

फरीदाबाद पुलिस के जनसंपर्क अधिकारी (पीआरओ) सूबे सिंह ने कहा, ‘निश्चित तौर पर स्थानीय निवासियों ने 1,000 रुपये प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से जमीन खरीदी है. डीलरों ने उन्हें कच्चे बिल और जमीन के फर्जी कागजात मुहैया कराए. हम यह रैकेट चलाने वाले विभिन्न डीलरों का पता लगा रहे हैं.’

एनआईटी फरीदाबाद के पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) अंशु सिंगला ने जांच संबंधी कोई भी ब्यौरा साझा करने से इनकार कर दिया.

उन्होंने कहा, ‘मैं केवल यही कह सकता हूं कि हम इस मामले में जांच कर रहे हैं और जल्द ही संबंधित लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेंगे और प्राथमिकी दर्ज करेंगे.’

माफिया और पुलिसकर्मियों के बीच कथित मिलीभगत के ग्रामीणों के आरोपों के बारे में पूछे जाने पर पीआरओ सूबे सिंह ने कहा, ‘मैं ये तो नहीं कहता कि हर पुलिसकर्मी ईमानदार होता या उनके आरोप झूठे हैं. हालांकि, अगर वे (ग्रामीणों) पुलिस के हाथों ऐसे भ्रष्टाचार का सामना कर रहे थे, तो उन्हें हमारे पास शिकायत दर्ज करानी चाहिए. उनकी तरफ से अब तक ऐसी कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई गई है.’

कॉलोनी के अनियंत्रित ढंग से विस्तार के बारे में उन्होंने कहा, ‘यदि मेरी राय पूछे तो यह सब फरीदाबाद नगर निगम की नाकामी है.’

इस मामले में जब दिप्रिंट ने एमसीएफ आयुक्त गरिमा मित्तल से फरीदाबाद स्थित उनके कार्यालय में मुलाकात की तो उनके पास ‘खोरी गांव के बारे में कहने के लिए सिर्फ और सिर्फ एक ही बात है.’

उन्होंने कहा, ‘मैं सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पूरी तरह से लागू कराऊंगी. मैं सिर्फ यही कहना चाहती हूं. इससे फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या जानना चाहते हैं.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: भारत को मरुस्थल घटाने हैं तो महान प्रधानमंत्रियों को इसपर अपने मासूम विचार छोड़ने पड़ेंगे


 

Exit mobile version