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सीलबंद रिपोर्ट, CBI जांच के आदेश पर रोक- कलकत्ता हाईकोर्ट के जजों के बीच क्यों है असहमति

न्यायमूर्ति अभिजीत गंगोपाध्याय ने ‘घोटाले’ के संदिग्ध को विस्तृत ब्यौरा जमा करने का आदेश दिया लेकिन बेंच ने उसे ये रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में देने के लिए कहा. इसी बेंच ने इससे पहले गंगोपाध्याय के आदेशों पर रोक लगा दी थी.

कोलकत्ता हाई कोर्ट | Wikimedia Commons

कोलकाता: भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना और एक अन्य सुप्रीम कोर्ट जज द्वारा, कोर्ट में सीलबंद लिफाफों के इस्तेमाल की आलोचना के दो सप्ताह के बाद ही, इस प्रथा ने कलकत्ता हाईकोर्ट में एक विवाद खड़ा कर दिया है.

एक ‘दोहरे मानदंड’ की निंदा करते हुए, जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय ने एक बेंच के आदेश पर सख़्त ऐतराज़ जताया है, जिसमें एक संदिग्ध को एक रिपोर्ट को सीलबंद लिफाफे में पेश करने की अनुमति दी गई है. उन्होंने मौखिक रूप से कोर्ट महासचिव से अपनी शिकायत को, सीजेआई और कलकत्ता हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस तक पहुंचाने के लिए कहा है.

जज ने जस्टिस हरीश टंडन और जस्टिस रबींद्रनाथ सामंता के खिलाफ, बुधवार को उस समय आवाज़ उठाई, जब वो पश्चिम बंगाल स्कूली शिक्षा विभाग में कथित अनियमितताओं पर एक याचिका की सुनवाई कर रहे थे. इससे पहले, उसी बेंच ने इस मामले में सीबीआई जांच के उनके आदेशों पर कई बार रोक लगाई या उन्हें रद्द किया है.

25 मार्च को, जस्टिस गंगोपाध्याय ने पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग के पूर्व सलाहकार, एसपी सिन्हा को अपनी संपत्तियों का ब्यौरा उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था. वो निर्देश तब जारी किया गया था जब जज को कुछ ‘आपत्तिजनक साक्ष्य’ मिले थे, कि आयोग ने अधिक योग्य उम्मीदवारों को दरकिनार करते हुए, ऐसे उम्मीदवारों की नियुक्ति की अनुमति दे दी थी, जिनके अंक कम थे.

आयोग ने इस आदेश को चुनौती दी और उसकी अपील सुनवाई के लिए न्यायमूर्तियों टंडन और सामंता की बेंच के सामने आई, जिन्होंने एकल न्यायाधीश के निर्देश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया.

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लेकिन, मंगलवार को दो सदस्यीय बेंच ने सिन्हा को अपनी रिपोर्ट, सीलबंद लिफाफे में पेश करने की अनुमति नहीं दी, जिससे कि ब्यौरे को दूसरे वादियों से बचाया जा सके.

अगले दिन डिवीज़न बेंच के आदेश पर प्रतिक्रिया देते हुए, जस्टिस गंगोपाध्याय ने कहा, ‘मुझे नहीं मालूम कि ये आदालत अपनी कार्यवाही में, एक सीलबंद लिफाफे का क्या करेगी जब इस अपील कोर्ट के हाथ पहले ही बांध दिए गए हैं. मुझे संपत्तियों के उक्त हलफनामे को देखकर, कोई भी परिणामी क़दम उठाने से रोक दिया गया है’.

दिप्रिंट से बात करते हुए, रिटायर्ड सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस अशोक गांगुली ने कहा, ‘ऐसी कार्यवाही में जो विवादित हो, जब हलफनामे बंद लिफाफे में पेश किए जाते हैं तो ये दूसरे पक्ष के लिए अन्यायी होता है क्योंकि उसे नहीं पता होता कि लिफाफे के अंदर क्या है. विभागीय कार्यवाही से जुड़े मामलों, या कहें तो राफेल सौदे जैसे केस में, जानकारी सीलबंद लिफाफे में पेश की जाती है, लेकिन कुल मिलाकर इससे पारदर्शिता में बाधा पहुंचती है’.


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मुझे नहीं मालूम कि एक अकेले जज के हाथ बांधकर किसे फायदा पहुंचेगा

2016 में, पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग ने, सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में क़रीब 13,000 गैर-शिक्षण स्टाफ की भर्ती के लिए, एक पैनल का गठन किया था. पिछले साल पैनल को भंग किए जाने के बाद, भर्ती में अनियमितताओं के आरोप सामने आए थे.

मामला पिछले साल हाईकोर्ट पहुंच गया था, जब उम्मीदवारों के एक ग्रुप ने जिन्हें नियुक्ति-पत्र नहीं मिले थे, कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया. लेकिन उसके बाद से, न्यायमूर्तियों टंडन और सामंता की बेंच लगातार, एकल जज बेंच के आदेशों पर रोक लगाती आ रही है.

पिछले साल 6 दिसंबर को, इसी डिवीज़न बेंच ने जस्टिस गंगोपाध्याय के कथित अनियमितताओं की सीबीआई जांच के आदेश पर रोक लगा दी थी. फरवरी 2022 में इसने ऐसी जांच के उनके एक और आदेश पर रोक लगा दी.

हालांकि बुधवार को जस्टिस गंगोपाध्याय ने, पिछले आदेशों पर टिप्पणी नहीं की, लेकिन उन्होंने सीलबंद लिफाफे में रिपोर्ट दाख़िल किए जाने की अनुमति की आलोचना की.

उन्होंने कहा, मुझे दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि अपील कोर्ट ने, दोहरे मानदंड की उच्चतम डिग्री का मुज़ाहिरा किया है, जिसके कारण उसे ही पता हैं. मैं नहीं समझ सकता कि एकल जज के हाथ बांधकर किसे फायदा पहुंचेगा, जबकि 25.03.2022 के आदेश में स्पष्ट किया गया है कि इस कोर्ट ने पाया है कि इस मामले में गंभीर अनियमितताएं हुई हैं’.

जज ने आश्चर्य व्यक्त किया कि अंतिम निर्णय के समय, बंद लिफाफे से उपयुक्त तरीक़े से कैसे निपटा जाएगा. जज ने कहा कि इसकी जानकारी से निपटने के लिए, जिसमें सिन्हा की संपत्ति का ब्यौरा दिया गया है, न्यायिक निर्णय पर पहुंचने के लिए उन्हें कुछ दूसरे क़दम उठाने होंगे जिन्हें उठाने से ये सीलबंद रिपोर्ट फिलहाल उन्हें रोक रही है.

दिप्रिंट ने एक अभिवक्ता से बात की, जो इस केस में एक याचिकाकर्त्ता की ओर से वकालत कर रहे थे, लेकिन उन्होंने ये कहते हुए कुछ भी कहने से मना कर दिया, कि मामला कोर्ट के विचाराधीन है.

2 सप्ताह पहले CJI ने SC में सीलबंद रिपोर्टस के खिलाफ आवाज़ उठाई थी

दो सप्ताह पहले, सीजेआई एनवी रमन्ना की अध्यक्षता में एक तीन-सदस्यीय बेंच ने बिहार सरकार के खिलाफ दायर एक अपराधिक अपील की सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट में सीलबंद रिपोर्ट्स पेश किए जाने की आलोचना की थी. उसी दिन, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने भी सीजेआई की भावनाओं से सहमति जताई, जब वो एक मलयालम चैनल पर केंद्र के प्रतिबंध के खिलाफ, एक अपील की सुनवाई कर रहे थे.

जो रिपोर्ट बहुत संवेदनशील नेचर की होती हैं, वो अकसर सीलबंद लिफाफे में कोर्ट के सामने रखी जाती हैं. इससे न केवल मीडिया को इनमें रखी जानकारी पर टिप्पणी करने का अवसर नहीं मिलता, बल्कि इसका अर्थ ये भी होता है कि केवल संबंधित जज ही रिपोर्ट देख पाता है दूसरे याचिकाकर्त्ता उसे नहीं देख सकते.

भारतीय जनता पार्टी नेता और वकील प्रियंका टेबरीवाल ने कहा, ‘जांच के दौरान, सारी जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकती और यही कारण है कि अदालतें सीलबंद रिपोर्ट्स का निर्देश देती हैं’. प्रियंका पिछले साल असेंबली चुनावों के पश्चात, पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा के मामले में याचिकाकर्त्ताओं में से एक थीं.

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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