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SC ने अर्णब मामले में कहा- निजी स्वतंत्रता का हनन न्याय पर आघात होगा

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, 'यदि कोई राज्य किसी व्यक्ति को टारगेट करता है, तो बाहर एक मजबूत संदेश देने की आवश्यकता है... हमारा लोकतंत्र असाधारण रूप से लचीला है.'

पुलिस वैन में अर्णब गोस्वामी | फोटो: पीटीआई

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अर्णब गोस्वामी की याचिका पर सुनवाई करते हुए व्यक्तिगत स्वतंत्रता को राज्य द्वारा कंट्रोल किए जाने पर कड़ी टिप्पणी की.

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘अगर हम एक संवैधानिक अदालत के रूप में कानून का पालन नहीं करते हैं और स्वतंत्रता की रक्षा नहीं करते हैं, तो कौन करेगा?… यदि कोई राज्य किसी व्यक्ति को टारगेट करता है, तो एक मजबूत संदेश बाहर देने की आवश्यकता है… हमारा लोकतंत्र असाधारण रूप से लचीला है.’

 

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि हमारा लोकतंत्र असाधारण रूप से लचीला है, महाराष्ट्र सरकार को इन सब (टीवी पर अर्नब के तानों) को अनदेखा करना चाहिए.

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उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र से पूछा क्या अर्नब गोस्वामी के मामले में हिरासत में लेकर पूछताछ किए जाने की जरूरत है, कहा, ‘हम व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मुद्दे से निपट रहे हैं’

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अगर किसी की निजी स्वतंत्रता का हनन हुआ तो वह न्याय पर आघात होगा.

उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकारों द्वारा विचारधारा, मतभेदों के आधार पर लोगों को निशाना बनाए जाने को लेकर चिंता व्यक्त की.

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अगर संवैधानिक अदालत हस्तेक्षप नहीं करती तो, ‘हम निश्चित रूप से विनाश की राह पर चल रहे हैं’.

वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे अर्णब गोस्वामी की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में मामले में सीबीआई जांच की मांग की. अदालत 9 नवंबर को बाम्बे हाईकोर्ट के आदेश के चुनौती देने वाली अर्णब गोस्वामी की अपील पर सुनवाई कर रही है जिसमें उन्हें 2018 के आत्महत्या के उकसावे के लिए एक मामले में अंतरिम जमानत देने से मना कर दिया है.

दवे ने अर्णब की याचिका को ‘चयनित तरीके से सूचीबद्ध’ किये जाने को लेकर आपत्ति जताई

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के अध्यक्ष दुष्यंत दवे ने मंगलवार को शीर्ष अदालत के सेक्रेटरी जनरल को पत्र लिखकर 2018 में एक इंटीरियर डिजाइनर को कथित तौर पर आत्महत्या के लिए उकसाने से संबंधित मामले में रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्णब गोस्वामी की अंतरिम जमानत याचिका को ‘चयनित तरीके’ से 11 नवम्बर को एक अवकाशकालीन पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किये जाने पर ‘कड़ी आपत्ति’ जाहिर की है.

दवे ने स्पष्ट किया कि वह व्यक्तिगत रूप से गोस्वामी के खिलाफ नहीं है और वह किसी के अधिकार में हस्तक्षेप करने के लिए भी यह पत्र नहीं लिख रहे है क्योंकि सभी नागरिकों की तरह रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक को भी उच्चतम न्यायालय से न्याय पाने का अधिकार है.

उन्होंने अपने पत्र में कहा कि यहां गंभीर मुद्दा मामलों का चयनित तरीके से सूचीबद्ध करने का है. उन्होंने कहा कि हजारों नागरिक लंबे समय से जेलों में हैं, और उनके मामलों को हफ्तों और महीनों तक सूचीबद्ध नहीं किया जाता है, लेकिन जब भी गोस्वामी उच्चतम न्यायालय का रुख करते हैं तो उनका मामला कैसे और क्यों तुरंत सूचीबद्ध हो जाता है.

दवे ने कहा कि बम्बई उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ गोस्वामी की याचिका कल दायर हुई और उसे तुरंत डायरी नंबर मिला, हालांकि अंतिम नहीं है, और इसे कल (11 नवंबर) के लिए सूचीबद्ध किया गया है.

उन्होंने सेक्रेटरी जनरल से न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष उनके पत्र को रखे जाने का अनुरोध किया जो गोस्वामी की याचिका पर सुनवाई करेगी.

1 टिप्पणी

  1. अगर यह शेखर गुप्ता का चैनल या venture है तो इसके निष्पक्ष हो पाने की उम्मीद कर पाना व्यर्थ है। मैंने पहले कितनी ही बार नोट किया है कि गुप्ताजी अपने आपको महान बताने या दिखाने के चक्कर में हिन्दुओं की आलोचना को या सरकार की आलोचना को बड़ी भारी क्रांतिकारी पत्रकारिता मानने लगते हैं जो कि अनुचित है।

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