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SC ने केंद्र से मांगा जवाब, विधेयकों को लटकाने पर गवर्नर के खिलाफ केरल सरकार की याचिका पर उठाया कदम  

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिका पर केंद्र और केरल के राज्यपाल के अतिरिक्त मुख्य सचिव को नोटिस जारी किया है.

सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया की फाइल फोटो । एएनआई

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केरल सरकार की याचिका पर केंद्र और अन्य को नोटिस जारी किया, जिसमें राज्य विधानमंडल द्वारा पारित 8 विधेयकों पर राज्यपाल की निष्क्रियता पर जवाब मांग है. ये विधेयक राज्यपाल को उनकी सहमति के लिए भेजा गये हैं लेकिन राज्य के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान इस पर निष्क्रिय बने हुए हैं जिसको लेकर उचित आदेश पारित करने का आग्रह किया गया है.

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिका पर केंद्र और केरल के राज्यपाल के अतिरिक्त मुख्य सचिव को नोटिस जारी किया है. अदालत ने मामले को 22 नवंबर को सूचीबद्ध किया और अटॉर्नी जनरल या सॉलिसिटर जनरल से मामले में सहयोग करने को कहा है.

वरिष्ठ अधिवक्ता केके वेणुगोपाल, जो भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल हैं, ने इस मामले पर केरल सरकार का प्रतिनिधित्व किया. उन्होंने अदालत को बताया कि करीब 8 विधेयक हैं, जो कई महीनों से उनकी सहमति को लेकर विचाराधीन हैं.

केरल सरकार ने राज्य विधानमंडल द्वारा पारित किए गए और राज्यपाल की सहमति के लिए राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किए गए आठ विधेयकों के संबंध में राज्यपाल की ओर से निष्क्रियता के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत उचित आदेश पारित करने का आग्रह करते हुए उच्चतम न्यायालय का रुख किया है.

केरल सरकार ने राज्य विधानमंडल द्वारा पारित आठ विधेयकों के संबंध में राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान की ओर से निष्क्रियता दिखाने पर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की और संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल से उन पर सहमति मांगी है.

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याचिकाकर्ता ने कहा, “इनमें से तीन बिल 2 साल से अधिक समय से राज्यपाल के पास लंबित हैं, और तीन बिल पूरे 1 साल से अधिक समय से लंबित हैं.”

केरल सरकार ने कहा कि राज्यपाल का आचरण, जैसा कि वर्तमान में सामने आया है, राज्य के लोगों के लिए विधेयकों के जरिए कल्याणकारी उपायों को लागू करने की मांग की है, याचिका में लोगों के अधिकारों को विफल करने के अलावा, कानून के शासन और लोकतांत्रिक सुशासन समेत हमारे संविधान के मूल सिद्धांतों और बुनियादी नींव को नष्ट करने वाला है.

लंबित विधेयकों में विश्वविद्यालय कानून संशोधन विधेयक, केरल सहकारी सोसाइटी संशोधन विधेयक, केरल लोकायुक्त संशोधन विधेयक और सार्वजनिक स्वास्थ्य विधेयक शामिल हैं.

याचिका में कहा गया है, “संविधान का अनुच्छेद 200 किसी राज्य के राज्यपाल पर एक गंभीर जिम्मेदारी डालता है कि राज्य विधायिका द्वारा पारित किसी भी विधेयक को उनके सामने प्रस्तुत करने पर, वह घोषणा करेगा कि वह विधेयक पर सहमति देता है या वह उस पर सहमति रोकता है या वह विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रखता है.

याचिका में कहा गया है, “जितनी जल्दी हो सके’ शब्दों का अनिवार्य रूप से मतलब यह है कि न केवल लंबित बिलों को उचित समय के भीतर निपटाया जाना चाहिए, बल्कि इसके अलावा इन बिलों को बिना किसी देरी के तत्काल और शीघ्रता से निपटाया जाना चाहिए. यह संविधान की स्पष्ट भावना को जाहिर करता है संविधान में कहा गया है कि राज्यपाल को उनके समक्ष प्रस्तुत विधेयक को बिना नजरंदाज किए देखना होगा. अर्जेंसी का मतलब आम तौर पर कुछ सप्ताह होना चाहिए और इससे अधिक नहीं, क्योंकि राज्य विधानमंडल ने अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से एक विधेयक पर बहस की है और अंततः निर्णय लिया है कि जनहित के लिए, राज्य के शासन के एक हिस्से के तौर पर, इनको जल्द से जल्द कानून बनाना जरूरी है.”

इसमें कहा गया है, “राज्यपाल द्वारा विधेयकों को लंबे समय तक लंबित रखकर राज्य के लोगों के साथ-साथ इसके प्रतिनिधि लोकतांत्रिक संस्थानों (यानी राज्य विधानमंडल और कार्यपालिका) के साथ भी गंभीर अन्याय किया जा रहा है, जिसमें 3 विधेयकों को 2 साल से अधिक समय तक लंबित रखना शामिल है. ऐसा प्रतीत होता है कि राज्यपाल का मानना है कि विधेयकों को सहमति देना या अन्यथा उनसे निपटना उनके पूर्ण विवेक पर सौंपा गया मामला है, जैसे कि वह जब भी चाहें निर्णय लें. यह संविधान का पूरी तरह से उल्लंघन है.”

याचिका में आगे कहा गया, “राज्यपाल के पास लंबित प्रत्येक विधेयक केरल के लोगों के सार्वजनिक हित में हैं, अन्य बातों के अलावा, संचारी रोगों से निपटने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे की स्थिति में सुधार करके (कोविड के दौरान सबक को लागू करके), समान राष्ट्रीय मानक बनाने के लिए राज्य विश्वविद्यालय कानूनों को केंद्रीय कानूनों के अनुरूप बनाने वाले हैं.”

याचिका में कहा गया है, “इस प्रकार, कार्य करने में राज्यपाल की विफलता, राज्य के लोगों को मिलने वाले अधिकारों को प्रभावित करती है. विधेयकों को लंबे और अनिश्चित काल तक लंबित रखने का राज्यपाल का आचरण भी स्पष्ट रूप से मनमाना है और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है. इसके अतिरिक्त, यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत केरल राज्य के लोगों को राज्य विधानसभा द्वारा अधिनियमित कल्याणकारी कानून के लाभों से वंचित करके उनके अधिकारों को को विफल करता है.”

याचिका में, केरल सरकार ने यह घोषित करने का आग्रह किया है कि राज्यपाल लोकतांत्रिक प्रक्रिया और लोगों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए कल्याणकारी उपाय और जनहित को प्रभावित करने वाले अन्य कानून पर उचित समय के भीतर उनके समक्ष पेश किए गए प्रत्येक विधेयक का निपटान करने के लिए बाध्य हैं, जिसका मतलब है ‘तुरंत’ या बिना किसी देरी के निपटारा किया जाना.

याचिकाकर्ता ने शीर्ष अदालत से यह घोषित करने का आग्रह किया कि ऊपर बताई गई संवैधानिक स्थिति है, इस मामले में राज्यपाल अपनी संवैधानिक शक्तियों और कर्तव्यों का पालन करने में विफल रहे हैं.

याचिकाकर्ता ने लंबित बिलों को बिना किसी देरी के निपटाने के लिए राज्यपाल को निर्देश जारी करने की मांग की है.


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