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हिरासत केंद्र के हालात के लिए मुझे आर्मी की पोस्टिंग भी तैयार नहीं कर पाई: सनाउल्लाह

सेवानिवृत्त सेना के सूबेदार मोहम्मद सनाउल्लाह को विदेशी घोषित कर 10 दिनों के लिए एक नजरबंदी शिविर में रखा गया. उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि हत्या के दोषी की दुर्दशा भी इससे बेहतर है.

sanaullah | special arrangement
सनाउल्लाह| स्पेशल अरेंजमेंट

नई दिल्ली: सेवानिवृत्त सेना के सूबेदार मोहम्मद सनाउल्लाह को विदेशी घोषित किए जाने के बाद असम के एक डिटेंशन कैंप में रखा गया था. शनिवार को जमानत पर रिहा होने के बाद सनाउल्लाह ने कहा कि उनके पास कई सालों तक सेना में अपनी सेवा के दौरान कई कठिन पोस्टिंग मिली थी. लेकिन किसी भी चीज ने डिटेंशन कैंप की कठिन जिंदगी के लिए उन्हें तैयार नहीं किया था.

उन्होंने फोन पर दिप्रिंट को बताया मैंने मणिपुर और कश्मीर के कुपवाड़ा जैसे कठिन स्थानों पर सेवा की है. लेकिन किसी भी चीज ने मुझे डिटेंशन कैंप में जीने के लिए तैयार नहीं किया. वे इसे केंद्र कहते हैं लेकिन यह एक जेल है. यहां तक कि खतरनाक स्थानों में सेवा करने और कठिन परिस्थितियों में रहने के वर्षों तक मुझे शिविर में इन 10 विषम दिनों के लिए तैयार नहीं किया जा सकता था.

52 साल के सनाउल्लाह अगस्त 2017 में कॉर्प्स ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड मैकेनिकल इंजीनियर्स (ईएमई) के साथ एक सूबेदार के रूप में सेवानिवृत्त हुए हैं.

उन्हें राज्य में एक विदेशी ट्रिब्यूनल द्वारा एक ‘अवैध अप्रवासी’ घोषित किया गया था और 28 मई को असम के गोलपारा में एक डिटेंशन कैंप में भेजा गया था. सनाउल्लाह की गिरफ्तारी से राष्ट्र में आक्रोश फैल गया था और गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने उन्हें पिछले सप्ताह अंतरिम जमानत दे दी थी.

सनाउल्ला मई 1987 में सेना में शामिल हुए थे. उन्होंने डिटेंशन कैंप को ‘चिंता पैदा करने वाली गुफा’ के रूप में बताया है.

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उन्होंने कहा ‘हमने अपने दिन की शुरुआत एक प्रार्थना के साथ की – अल्लाह तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम – नाश्ता जिसमें रोटियां शामिल थीं. जो कि कठोर थीं और चाय बुरी तरह से बनाई गई थी. भोजन की गुणवत्ता बहुत खराब थी. एक कमरे में लगभग 40-45 लोग थे और शाम 4 बजे के बाद हमें बंद कर दिया जाता था. एक ही बाथरूम हम सभी के बीच साझा किया जाता था.

डिटेंशन कैंपों की स्थिति राज्यभर में समान है- दयनीय आवास लाइफ और साथ में रहने वाले चिंतित लोग.

सनाउल्लाह ने कहा कि उन्होंने महसूस किया था कि उनके खिलाफ एक जांच 2008 में शुरू की गई थी और 2018 में उनका नाम नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिज़न्स (एनआरसी) में नहीं आया था.

उन्होंने कहा हत्या के दोषी को भी पता है कि वह कब जेल से बाहर आएगा. हर कोई जानता है कि उसे किसी विशेष अपराध के लिए कितने साल की सजा काटनी होगी. लेकिन, डिटेंशन कैंपो में उन लोगों को पता नहीं है कि उन्हें कब छोड़ा जाएगा या उनका भाग्य क्या होगा. ये कैंप चिंता फैलाने वाली गुफाओं की तरह हैं.

सनाउल्लाह ने यह भी बताया कि डिटेंशन कैंप के अंदर उनसे मिलने वालों के किस्से अक्सर ‘उन्हें आंसू बहाने को’ मज़बूर करते हैं.

उन्होंने कहा लोग सालों से कैंपो के अंदर ठहरे हुए हैं और वे सभी वास्तविक नागरिक हैं, विदेशी नहीं है. ज्यादातर आधिकारिक दस्तावेजों में तकनीकी त्रुटियों के कारण मुख्य रूप से अंदर हैं.

उम्मीद का दामन नहीं छोड़ रहा

हालांकि, सेवानिवृत्त सूबेदार ने कहा कि उन्होंने कभी उम्मीद नहीं छोड़ी है.

‘मैं एक भारतीय हूं और ऐसा ही रहूंगा. सनाउल्लाह ने कहा कि हमें अपनी अदालतों पर 100 फीसदी यकीन है कि हमें न्याय मिलेगा.

उनके बड़े भाई और भतीजों के नाम एनआरसी सूची में दिखाई दिए हैं, वहीं उनका पूरा परिवार जिसमें दो बेटियां और एक बेटा शामिल है, उनका नाम लिस्ट में नहीं है.

उन्होंने पूछा, ‘जब मैं सेना में शामिल हुआ, तभी सारे सत्यापन करा लिए गए थे. इसमें मेरे स्कूल जाने वाले अधिकार सत्यापित किए गए जिसमें सब कुछ शामिल था. मैं अचानक विदेशी कैसे हो गया?’

एनआरसी प्रक्रिया

सनाउल्लाह का मामला व्यवस्था के भीतर की विसंगतियों को उजागर करता है. जो असम में ‘अवैध अप्रवासियों’ की पहचान करती है. राज्य एनआरसी को अपडेट कर रहा है. सुप्रीम कोर्ट-निगरानी उस प्रक्रिया की तैयारी में है. जिसका उद्देश्य उन प्रवासियों की पहचान करना है. जो 1971 के बाद अवैध रूप से देश में प्रवेश कर गए थे.

राज्य में लंबे समय से चली आ रही, एनआरसी की प्रक्रिया 1985 असम समझौते का भी हिस्सा थी. लोग चिंतित हैं कि वे अपने सीमित संसाधनों से वंचित रह जाएंगे, संजातीय असमिया ने राज्य में बिदेसियों ‘(बाहरी व्यक्ति) के लिए गहरी नाराजगी जताई है.

‘एनआरसी प्रक्रिया बहुत अच्छी बात है. यह निश्चित रूप से होना चाहिए. सनाउल्लाह ने कहा कि हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि सभी भारतीयों का इस सूची में नाम हो और इसमें किसी विदेशी का नाम शामिल न करें.’

हालांकि, इस पूर्व सैनिक को जल्द राहत मिलने की संभावना नहीं है. सनाउल्लाह ने कहा, ‘मुझे उम्मीद है कि किसी भी भारतीय को उस अनुभव से गुजरना न पड़े जिससे मैं गुजरा था.

उन्होंने पूछा, ‘मैं अब जमानत पर बाहर हो सकता हूं, लेकिन मैं कैसे खुश रह सकता हूं? एक गैरकानूनी अप्रवासी होने का आरोप लगने के कारण कोई भी व्यक्ति किसी डिटेंशन कैंप में समय बिताया हो वो खुश कैसे हो सकता है?’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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