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लोहरदग्गा के साहू – 300 करोड़ रुपये से अधिक की जब्ती, 6 भाई, उनकी कंपनियां और कांग्रेस से लिंक पर एक नजर

धीरज साहू और उनके परिवार को जानने वाले रांची के लगभग सभी राजनेता इस बात से सहमत हैं कि आईटी टीमों द्वारा जब्त की गई धनराशि उनके समृद्ध पारिवारिक व्यवसाय को देखते हुए 'अप्रत्याशित' नहीं थी.

रांची में रेडियम रोड पर स्थित महलनुमा सुशीला निकेतन | मयंक कुमार | दिप्रिंट

रांची: रांची में रेडियम रोड पर, 5 किमी के दायरे में महलनुमा सुशीला निकेतन सबसे अलग दिखता है. बंगला शानदार है, इसकी चारदीवारी विशाल है और यह बेहद शांत है. यह सन्नाटा 6 दिसंबर को तब टूटा जब मीडिया का हुजूम किसी भी समय आयकर (आई-टी) टीम के छापे की उम्मीद में यहां आया.

कांग्रेस के राज्यसभा सांसद धीरज साहू की मां सुशीला देवी के नाम पर, झारखंड के लोहरदग्गा के प्रभावशाली परिवार के घर पर आखिरकार झारखंड के शराब कारोबारी की कथित गलत तरीके से कमाई गई संपत्ति के संबंध में आयकर विभाग की तलाशी हुई.

पड़ोसियों और कम से कम एक दर्जन कांग्रेस के राज्य नेताओं ने याद करते हुए बताया कि यह घर कांग्रेस नेता और धीरज के पिता बलदेव साहू ने लगभग 50 साल पहले बनाया था और सभी बेटे और पोते अपने पत्नियों के साथ अक्सर आते हैं और यहीं रहते हैं.

एक 70 वर्षीय पड़ोसी ने कहा कि रांची और लोहरदग्गा में साहू के घरों से कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता, न ही आयकर अधिकारी खाली हाथ लौटेंगे.

ओडिशा में साहू परिवार की संपत्तियों से करोड़ों रुपये की ज़ब्ती की तस्वीरें टेलीविजन स्क्रीन पर आने पर रांची के रेडियम रोड के आसपास रहने वाले राजनेताओं और व्यापारियों के मन में शायद ही कोई आश्चर्य का भाव हो.

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इस मामले में दिप्रिंट ने धीरज साहू से बात करने की कोशिश की लेकिन फोन कॉल और मैसेज किसी का भी जवाब हमें नहीं मिला.

कैसा है परिवार और क्या है बिज़नेस

कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं और साहू परिवार के करीबी दोस्तों ने दिप्रिंट को बताया कि बलदेव साहू और सुशीला देवी के छह बेटे और पांच बेटियां थीं और उनके सभी बेटे उनके पारिवारिक व्यवसायों में शामिल हो गए.

छह बेटों में दो बार रांची के सांसद रहे शिव प्रसाद साहू सबसे बड़े थे जबकि धीरज साहू सबसे छोटे हैं. नंदलाल साहू, उदय शंकर प्रसाद, गोपाल साहू और किशोर साहू ने बाकी काम किया. केवल तीन भाई – उदय, गोपाल और धीरज – अब जीवित हैं.

उदय ओडिशा में परिवार संचालित बौध डिस्टिलरी के अध्यक्ष हैं जो भारतीय निर्मित विदेशी शराब (आईएमएफएल) के निर्माण के लिए स्पिरिट का उत्पादन करती है. गोपाल ने 2019 के आम चुनाव में हज़ारीबाग़ से मौजूदा बीजेपी सांसद जयंत सिन्हा के खिलाफ कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन लगभग 5 लाख वोटों से हार गए. धीरज 2009 से झारखंड से राज्यसभा सदस्य हैं.

साहुओं के एक पारिवारिक मित्र (फैमिली फ्रेंड) ने कहा कि साहू बंधुओं के सभी बच्चे किसी न किसी तरह से पारिवारिक व्यवसाय में शामिल हो गए हैं.

शिव प्रसाद के बेटे संजय और राहुल साहू क्रमशः पारिवारिक फर्म्स किशोर प्रसाद बिजय प्रसाद लिमिटेड और क्वालिटी बॉटलर्स के निदेशक हैं.

नंदलाल के बेटे दुर्गेश साहू अन्य व्यवसायों के अलावा रांची में एक मैरिज हॉल भी चलाते हैं. साहू परिवार के मित्र के अनुसार, बौध डिस्टिलरी और बलदेव साहू इन्फ्रा के निदेशक उदय के बेटे अमित हैं. अमित रांची में परिवार के निजी अस्पताल का प्रबंधन भी करते हैं.

साहू परिवार के फैमिली फ्रेंड्स के मुताबिक, मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल 2012 में रांची के अल्बर्ट एक्का चौक पर खोला गया था | मयंक कुमार | दिप्रिंट

किशोर के दो बेटे रोहित और रितेश साहू हैं. पारिवारिक मित्र ने दिप्रिंट को बताया कि रोहित रांची में सफायर इंटरनेशनल स्कूल का कामकाज देखते हैं. रितेश बौध डिस्टिलरी समेत चार कंपनियों के प्रबंध निदेशक हैं.

धीरज का एक बेटा हर्षित साहू और एक बेटी है. हश्रशित बलदेव साहू इंफ्रा के निदेशक हैं.

हालांकि, साहू परिवार के मित्र को गोपाल के बच्चों के नाम याद नहीं आ सके.


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‘शिव प्रसाद सबसे राजनीतिक, उदय शंकर सच्चे उत्तराधिकारी’

एक अन्य पारिवारिक मित्र ने कहा कि शिव प्रसाद सभी साहू भाई-बहनों में “सबसे अधिक राजनीतिक” थे और वह आदिवासियों के बीच बहुत लोकप्रिय थे. उन्होंने कहा कि रांची से सांसद रहे साहू उनके बीच काफी समय बिताते थे और शराब या विदेशी शराब के बजाय देशी चावल की शराब ‘हंडिया’ का आनंद लेते थे.

साहूओं के व्यावसायिक साम्राज्य के तेजी से विस्तार और निरंतर विस्तार का श्रेय उदय साहू को देते हुए उन्होंने कहा, ‘उदय के पास बेहतरीन बिजनेस कौशल है और वह अपने पिता की तरह बिजनेस की जटिलताओं को समझते हैं.’

यदि ऊपर जिनका जिक्र किया गया है उन पारिवारिक मित्रों और झारखंड में कांग्रेस के कम से कम आधा दर्जन राजनेताओं के विवरण पर विश्वास किया जाए, तो धीरज अपने भाई-बहनों में सबसे प्रतिभाशाली नहीं हैं. उनमें से एक का कहना था कि वह थोड़ा अधिक परोपकारी थे, उन्होंने धीरज को “विनम्र, बहुत सरल” बताया और कहा कि वे अपनी पारिवारिक संपत्ति व प्रभाव का कोई दिखावा नहीं करते.

इनमें से कुछ राजनेताओं ने दिप्रिंट को बताया कि धीरज का नाम सिर्फ इसलिए सुर्खियों में रहा क्योंकि वह एक सांसद हैं और उन्होंने कहा कि उनकी संपत्ति पैतृक संपत्ति है जो उन्हें विरासत में मिली है.

कांग्रेस के एक शीर्ष नेता ने दिप्रिंट को बताया कि धीरज में अपने भाई उदय शंकर प्रसाद की तरह व्यापारिक कौशल और शिव प्रसाद साहू की तरह राजनीतिक कनेक्शन नहीं हैं. कांग्रेस नेता ने दिप्रिंट को बताया, “उनके पास बुद्धि के ‘I’ और बिजनेस के ‘B’ का अभाव है. उनका एकमात्र सौभाग्य यह है कि उनका जन्म एक संपन्न परिवार में हुआ जहां लोगों को पैसे की कमी नहीं होती है. उनकी भूमिका लोहरदग्गा ज़िले में कार्यक्रम आयोजित करने तक ही सीमित है और वह लोहरदग्गा, रांची, दिल्ली और बैंकॉक आते-जाते रहते हैं,”

चतरा से 2019 और 2014 के आम चुनावों में धीरज की हार पर प्रकाश डालते हुए, कांग्रेस नेता ने कहा कि साहू परिवार के दृढ़ समर्थन के कारण पार्टी ने उन्हें राज्यसभा का टिकट दिया.

बेशुमार दौलत के किस्से

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया कि अगर देसी शराब का रोज़ाना का कारोबार 10 करोड़ रुपये हो तो इस बात में कोई आश्चर्य नहीं होगा, उन्होंने कहा कि 300 करोड़ रुपये की ज़ब्ती की घोषणा उनके व्यवसाय की जानकारी और समझ की कमी के कारण हो रही है क्योंकि वे साहू परिवार का अतीत नहीं जानते.

इस परिवार की संपत्ति के बारे में स्वतंत्रता के पहले के दिनों से चली आ रही मनगढ़ंत कहानियां काफी संख्या में प्रचलित हैं. ऐसी कहानियां हैं कि कैसे बलदेव साहू ने एक नए नए स्वतंत्र हुए भारत के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरू के आह्वान पर अपना खजाना खोल दिया था.

एक अन्य वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने दिप्रिंट को बताया कि जब 1950 के दशक के अंत में नेहरू सरकार द्वारा हेवी इंजीनियरिंग कॉर्पोरेशन को शामिल किया गया था, तब इस क्षेत्र में बहुत अधिक होटल व्यवसाय नहीं चल रहे थे, उन्होंने कहा कि साहू परिवार के पास तब एक होटल हुआ करता था जो अभी भी रांची शहर के बीचो-बीच चल रहा है.

रांची का वह होटल जिसका मालिक साहू परिवार है | मयंक कुमार | दिप्रिंट

पारिवारिक मित्रों ने अपने दादा-दादी से सुनी वह कहानी भी दोहराई कि कैसे 1940 के दशक में बलदेव साहू अपनी बीएसए मोटरसाइकिल पर राजेंद्र प्रसाद को लोहरदग्गा से डाल्टनगंज तक लंबी यात्रा पर ले गए थे.

उन्होंने कहा, बलदेव साहू का साम्राज्य 1950 के दशक के आसपास तत्कालीन अविभाजित बिहार में देसी शराब से शुरू हुआ और फिर उन्होंने अपना कारोबार धीरे-धीरे पड़ोसी राज्य ओडिशा में बढ़ाना शुरू कर दिया.

जैसे-जैसे व्यवसाय तेजी से आगे बढ़ा और परिवार की धाक ओडिशा में इस क्षेत्र में काफी जम गई वैसे-वैसे साहुओं की युवा पीढ़ी ने विभिन्न क्षेत्रों में विविधता ला दी. 2012 में, रांची के अल्बर्ट एक्का चौक पर मल्टी-स्पेशियलिटी अस्पताल खोला गया.

परिवार ने रांची में एक निजी स्कूल भी खोला, उन्होंने बताया कि परिवार के पास झारखंड के विभिन्न ज़िलों में फैले कई छोटे व्यवसाय हैं.

रांची के लगभग सभी राजनेता जो धीरज साहू और उनके परिवार को जानते हैं, इस बात से सहमत हैं कि आईटी टीमों ने जो धनराशि ज़ब्त की है, वह उनके समृद्ध पारिवारिक व्यवसाय और ओडिशा में देसी शराब व्यवसाय में उनके प्रभुत्व को देखते हुए “अप्रत्याशित” नहीं थी.

उन्होंने इस बात पर भी सहमति जताई कि भले ही जमा की गई नकदी अवैध थी और किसी प्रकार की कर चोरी की गई हो, लेकिन पूरा का पूरा व्यापारिक साम्राज्य केवल धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार पर नहीं बना है.

हालांकि, उन्होंने स्वीकार किया कि नकदी जमा करना – और इतनी अधिक राशि – साहू बंधुओं और ओडिशा में अपना ऑपरेशन चलाने वाले लोगों की “मूर्खता” से कम नहीं है. कांग्रेस नेताओं में से एक ने टिप्पणी की कि परिवार की “अज्ञानता” के कारण आयकर छापे पड़े.

एक अन्य वरिष्ठ नेता को भरोसा था कि साहू को पैसे का स्रोत बताने में कोई समस्या नहीं होगी और उन्होंने मीडिया को आयकर विभाग के आधिकारिक बयान की प्रतीक्षा करने का सुझाव दिया. कांग्रेस नेता ने दिप्रिंट को बताया, “हमने बचपन से सुना है कि भारत के इस हिस्से में दारू भट्टी चलाने वाले लोग बोरियों में भारी मात्रा में पैसा रखते हैं. इसलिए, साहू परिवार के लिए 300 करोड़ रुपये का स्पष्टीकरण दे पाना मुश्किल नहीं होना चाहिए.”

झारखंड में कांग्रेस पार्टी को साहू के परिवार की वित्तीय मदद पर एक सवाल पर, राज्य के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि अगर साहू परिवार ने अपनी क्षमता के आधार पर आर्थिक योगदान दिया होता, तो पार्टी झारखंड में 50 विधानसभा सीटें जीतती.

राज्य पदाधिकारी ने व्यक्तिगत स्तर पर साहूओं की मदद को स्वीकार किया लेकिन यह भी कहा कि उनका वित्तीय प्रभाव और राजनीतिक प्रभाव लोहरदगा जिले तक ही सीमित था.

पारिवारिक मित्रों के अनुसार, लोहरदग्गा साहू परिवार की तीन पीढ़ियों के लिए एक केंद्रीय स्थान रखता है, जहां पोते-पोतियां और पोते समारोहों के लिए इकट्ठा होते हैं और उन्हें एक बेहतरीन यादगार बनाते हैं.

उपर्युक्त कांग्रेस पदाधिकारी ने इस विचार का समर्थन किया कि शिव प्रसाद को छोड़कर, कोई भी भाई मतदाताओं पर प्रभाव नहीं डाल सकता, जैसा कि धीरज और गोपाल की चुनावी हार से साबित भी हो गया.

‘जल, जंगल, ज़मीन से लूटा गया पैसा’

‘जल, जंगल, जमीन’ वाक्य झारखंड की पहचान है जो 2000 में बिहार से अलग होकर बना था.

झारखंड विधानसभा में विपक्ष के नेता अमर बाउरी ने आरोप लगाया कि साहू परिवार ने ‘जल, जंगल, जमीन’ बेचकर ही इतनी बड़ी संपत्ति अर्जित की है और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो)-कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की गठबंधन सरकार ने इसमें बहुत बड़ी भूमिका निभाई.

भाजपा विधायक ने कहा कि रेत माफिया, ट्रांसफर पोस्टिंग और अन्य अवैध गतिविधियों से ली गई रिश्वत को सुरक्षा के लिए धीरज साहू के व्यावसायिक परिसर में जमा किया गया था.

बाउरी ने साहू परिवार के व्यापारिक साम्राज्य से खुद को दूर करने की कांग्रेस की कार्रवाई को भी खारिज कर दिया और कहा कि राज्यसभा सांसद का पार्टी आलाकमान के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध है. उन्होंने आरोप लगाया कि साहू उनके कोषाध्यक्षों में से एक हैं जो ”बेईमानी का काम पूरी ईमानदारी से” कर रहे हैं.

बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष जय प्रकाश भाई पटेल ने दिप्रिंट से कहा कि कांग्रेस का खुद से दूरी बनाना साहुओं द्वारा किए गए पापों से हाथ धोने की कोशिश है. पटेल ने कहा कि हालांकि वह आयकर विभाग के बयान का इंतजार करेंगे, लेकिन नोटबंदी के बाद जब्त की गई नकदी की मात्रा को देखते हुए उन्हें भ्रष्टाचार का संदेह है.

इसी तरह, झारखंड भाजपा के प्रवक्ता शिव पूजन पाठक ने कहा कि 2018 में चुनावी हलफनामे में धीरज साहू द्वारा घोषित संपत्ति और देनदारियों और उनसे जुड़े परिसरों में जब्त किए गए धन के बीच बेमेल है.

उन्होंने दावा किया कि जब्त किया गया पैसा केवल साहू परिवार तक सीमित नहीं हो सकता है और यह छत्तीसगढ़ में महादेव सट्टेबाजी ऐप से रिटर्न भी हो सकता है.

“मैंने कहीं पढ़ा था कि जब ईडी झारखंड में नौकरशाहों पर छापेमारी कर रही थी, तो पैसा रांची और राज्य के अन्य हिस्सों से बाहर भेजा जा रहा था. मैं इस बात से इंकार नहीं करता कि ओडिशा में बरामद धन का कुछ हिस्सा भ्रष्टाचार का पैसा था जिसे झारखंड सरकार ने डायवर्ट किया था,” पाठक ने दिप्रिंट को बताया.

दिप्रिंट ने झारखंड कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर से संपर्क किया, जिन्होंने नकदी जब्ती के बारे में सवाल टालने की कोशिश की.

ठाकुर ने दिप्रिंट को बताया, ”मैं प्रधानमंत्री नहीं हूं कि अखबार के लेख के आधार पर कुछ भी कहूंगा. आयकर विभाग ने अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है. हमने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण को टीवी पर रिश्वत लेते देखा है और उन्हें इस अपराध के लिए सजा भी सुनाई गई थी. इससे पहले गुजरात के एक कारोबारी से 1300 करोड़ रुपये बरामद हुए थे, पीएम ने कोई ट्वीट या बयान नहीं दिया. इस पूरे मामले को केवल आयकर विभाग और साहू परिवार और उनके व्यवसाय संचालन के संदर्भ में देखा जाना चाहिए. कांग्रेस पार्टी का उनके व्यवसाय से कोई लेना-देना नहीं है,”

(संपादनः शिव पाण्डेय)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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