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मोहन भागवत ने राम मंदिर के निर्माण को लेकर दिए संकेत, कहा- ‘राम का काम तो होगा ही’

आरएसएस प्रमुख मोहन भगवत ने कहा कि राम का काम तो करना ही पड़ेगा. हम लोगों को राम का काम करना है और हम इसे करके रहेंगे. यह हमारा काम है.

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मोहन भागवत एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए, फाइल फोटो

उदयपुर: लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की ज़बरदस्त जीत के बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने संकेत दिए हैं कि अयोध्या मंदिर निर्माण कार्य में जल्द ही उतरने जा रहा है.

उन्होंने कहा कि राम का काम तो करना ही पड़ेगा. ‘हम लोगों को राम का काम करना है और हम इसे करके रहेंगे. यह हमारा काम है. राम हम सभी के अंदर हैं. इसलिए यह सभी हम सभी को मिलकर करना है.’

‘अगर हम यह काम किसी और को दे देते हैं. तब भी हमें उस पर आंख रखने की ज़रूरत है. भागवत राजस्थान में एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि लोगों को चौंकन्ना, शांति से लेकिन एक्टिव और मज़बूत बने रहने की ज़रूरत हैं.’

आरएसएस प्रमुख का यह बयान भाजपा को प्राप्त मज़बूत जनादेश के साथ दूसरे कार्यकाल के लिए सत्ता में आने और 303 सीटें जितने के तीन दिन बाद आया है.

भाजपा के वैचारिक गुरु आरएसएस ने बार-बार अयोध्या में विवादित भूमि पर राम मंदिर के निर्माण का आह्वान किया है.

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उन्होंने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार से मंदिर निर्माण के लिए अध्यादेश लाने की मांग की है. लेकिन अयोध्या में ज़मीन दशकों से विवादित रही है. हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोगों ने इस पर अपना अधिकार जताया है.

भाजपा ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में कहा कि वह ‘संविधान के ढांचे के भीतर संभावनाओं का पता लगाएगी और राम मंदिर के निर्माण में तेज़ी लाने के लिए आवश्यक कदम उठाएगी’.

हालांकि, भागवत ने रविवार को कहा ‘अगर हम इसे किसी और को सौंप देते हैं. तो उस व्यक्ति की हमें निगरानी करने की आवश्यकता होगी. राम का काम किया जाना है और यह किया जाएगा’.

आरएसएस प्रमुख ने इस लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में काम करने वाली संस्थाओं की बेहतरी के लिए काम करने के महत्व को भी बताया. यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.

मार्च में अदालत ने मध्यस्थों के एक पैनल को नियुक्त किया. जिसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस एफ.एम.आई. कलीफुल्ला ने की और सभी हितधारकों से मिलने और विवादास्पद मुद्दे पर एक सौहार्दपूर्ण समाधान की संभावना का पता लगाने के लिए आठ सप्ताह का समय दिया था.

पैनल ने 10 मई को रिपोर्ट सौंपी और इस संबंध सुप्रीम कोर्ट में फैसला लेने की उम्मीद है.

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