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आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत बोले-कृषि केवल धन कमाने का साधन नहीं, यह हमारे लिए धर्म है

कोटा में संघ कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा कि अब समय पूरी तरह उनके साथ है जिसका उपयोग उन्हें संगठन विस्तार के अलावा बड़े एजेंडे पूरे करने में करना चाहिए.

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आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, फाइल फोटो | सूरज सिंह बिष्ट, दिप्रिंट

नई दिल्ली : आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने मोदी सरकार के विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध पर सीधे टिप्पणी किए बिना मंगलवार को इस पर जोर दिया कि भारत में कृषि केवल धन कमाने वाला व्यापार नहीं है, बल्कि यह मूल्य आधारित और पारंपरिक साधन है.

कोटा में मंगलवार को आरएसएस से जुड़े भारतीय मजदूर संघ के नेता दत्तोपंत ठेंगडी के जन्मशती समारोह के समापन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए भागवत ने भारतीय किसान संघ (आरएसएस के कृषि इकाई) के गठन में ठेंगडी के योगदान को याद किया और कहा, ‘कृषि केवल लोगों का पेट पालने और व्यापार करने का साधन नहीं है, कृषि हमारे लिए एक धर्म है.’

उन्होंने कहा, ‘हमारे प्राचीन ग्रंथों में इसे देवी लक्ष्मी से जोड़ा गया है. कई ऐसे उद्धरण हैं जो समृद्धि को कृषि से जोड़ते हैं. यह हमारी संस्कृति और संस्कार से जुड़ी है, यह सिर्फ रोजगार का एक अवसर नहीं है. पश्चिम में यह अर्थव्यवस्था से जुड़ी है और वे कृषि अर्थव्यवस्था की बात कहते हैं. मैं ऐसा नहीं कहता कि यह गलत है, लेकिन यह एक तथ्य है कि उन्होंने संसाधनों, पारिस्थितिकी का दोहन किया है, लेकिन हमें कृषि को जीवनशैली के तौर पर स्थापित करना होगा, तभी कृषि समृद्ध हो पाएगी.’


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‘कोविड ने साबित किया कि दुनिया के पास कोई दर्शन नहीं’

भागवत ने कहा कि कोविड ने साबित कर दिया है कि दुनिया के पास कोई दर्शन नहीं है और सभी देश भारत की ओर नजरें टिकाए हुए हैं.

उन्होंने कहा, ‘पहले यह धारणा थी कि पश्चिम में सब कुछ अच्छा है. हमारे पूरे दर्शन का उपहास किया गया. लेकिन अब यह साबित हो गया है कि दुनिया के पास कोई वैकल्पिक दर्शन नहीं है। भारत का एक अलग दर्शन है, जिसे बताए जाने की जरूरत है. हमारे पास दुनिया का नेतृत्व करने वाला दर्शन है.’

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उन्होंने आगे कहा, ‘हमारे देश में कृषि 10,000 साल प्राचीन है. हमने इसका अभ्यास किया, संरक्षण किया. जैविक खेती की हमारी अवधारणा एक हजार साल पुरानी है, जिसे दुनिया अब अपना रही है.’

गौ-आधारित कृषि, जो आरएसएस की तरफ से देशभर के कई गांवों में अमल में लाए जा रहे विचारों में से एक है, पर जोर देते हुए भागवत ने कहा, ‘यह एक रास्ता है और अब सरकार भी खेती के हमारे पारंपरिक तरीकों को पहचान रही है. इससे पारिस्थितिकी और पृथ्वी दोनों को बचाया जा सकता है.’

भागवत ने जोड़ा, ‘भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद भी गौ-आधारित कृषि को बढ़ावा देने के लिए हमारी सराहना कर रही है जबकि 50 साल पहले सरकार ने इसे खारिज कर दिया था जब संघ कार्यकर्ताओं ने इसका प्रस्ताव रखा था.’


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‘फसल जीन में परिवर्तन स्वीकार्य नहीं’

भागवत ने आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) फसल शब्द का इस्तेमाल किए बिना कहा कि किसानों की आय बढ़ाने के तमाम तरीके हैं और उन्हें अपनाया जाना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘लेकिन यह पता नहीं है कि कृषि फसलों के जीन में परिवर्तन का नतीजा क्या होता है. हम जीन में ऐसे बदलाव स्वीकार नहीं करेंगे, जिसके लिए कई वैज्ञानिक दबाव डाल रहे हैं. जब विज्ञान जीन में परिवर्तन के सभी उत्तर नहीं जानता है, तो फिर हम इसे अपनाने का फैसला कैसे कर सकते हैं? राजनेता लोकलुभावने फैसले लेते हैं, विज्ञान वर्तमान को देखता है, लेकिन यह किसानों को ही तय करना है कि उनके लिए क्या अच्छा है.’

आरएसएस से जुड़ा स्वदेशी जागरण मंच लगातार बीटी बैंगन परीक्षणों का विरोध कर रहा है क्योंकि उसका कहना है कि यह राष्ट्रीय हितों के खिलाफ है.

संगठन ने तो पिछले महीने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से यह कहते हुए छह राज्यों में बीटी बैंगन परीक्षणों को रोकने का आग्रह किया था कि जीएम फसलें व्यापार सुरक्षा को नुकसान पहुंचा सकती हैं और बाजार पर बहुराष्ट्रीय निगमों का एकाधिकार बढ़ सकता है.

‘समय संघ के पक्ष में है’

किसान संघ के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए भागवत ने यह कहते हुए उन्हें उत्साहित कर दिया कि समय अब उनके पक्ष में है.

हालांकि, उन्होंने आरएसएस कार्यकर्ताओं को आगाह करते हुए यह भी कहा कि उनके प्रयास केवल संगठन और उससे जुड़े संगठनों के विस्तार तक ही सीमित नहीं होने चाहिए, बल्कि उनका उद्देश्य बड़े एजेंडों को पूरा करना भी होना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘हमें बड़े काम करने होंगे और हमें दत्तोपंत ठेंगडी की तरह जमीन से भी जुड़े रहना चाहिए. हमें हमेशा यह याद रखना होगा कि हम कैसे हजारों आरएसएस कार्यकर्ताओं के परिश्रम के बलबूते यहां तक पहुंचे हैं.’


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