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कदम तो उठाए लेकिन फंड की जरूरत—पंजाब ने SC में कहा, पराली जलाने के मामले में गेंद केंद्र के पाले में है

पंजाब चाहता है कि केंद्र किसानों को धान की पराली जलाने रोकने और इस भूसे को मिट्टी के साथ ही मिलाने के लिए 100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से प्रोत्साहन राशि प्रदान करे. राज्य ने विविधीकरण योजनाओं की जानकारी भी दी.

पराली जलाने की फाइल फोटोः भाषा

नई दिल्ली: पंजाब सरकार ने राज्य में पराली जलाने की घटनाओं को लेकर गेंद केंद्र के पाले में डाल दी है.

राज्य की तरफ से बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर एक हलफनामे में किसानों को धान की पराली जलाने से हतोत्साहित करने के उसके ‘ईमानदार प्रयासों’ की पूरी जानकारी दी गई.

हालांकि, इसमें कहा गया है कि ऐसे उपायों के लिए केंद्र से वित्तीय सहायता की जरूरत पड़ती है, जिसके लिए राज्य शीर्ष कोर्ट के ‘दखल’ का ‘अनुरोध’ करता है. पराली जलाने की घटनाओं में कमी, उन्हें रोकने और प्रतिबंधित करने के लिए पंजाब ने जिन ‘महत्वपूर्ण पहलुओं’ पर अदालत के हस्तक्षेप का आग्रह किया है, वे फसलों के विविधीकरण और राज्य में 300 मेगावाट बायोमास बिजली परियोजनाओं को स्थापित करने के लिए 1,500 करोड़ रुपये के व्यवहार्यता अंतर वाले वित्त पोषण से संबंधित हैं.

इसके अलावा, राज्य सरकार यह भी चाहती है कि धान की पराली को मिट्टी के साथ ही मिलाने और उसे जलाने से रोकने के लिए केंद्र की तरफ से किसानों को 100 रुपये प्रति क्विंटल की प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाए.

दिप्रिंट को मिले हलफनामे के मुताबिक, ‘राज्य सरकार ने फसलों के विविधीकरण, फसल अवशेषों के इन-सीटू और एक्स-सीटू प्रबंधन और पराली जलाने पर प्रतिबंध और नियंत्रण के लिए कड़े उपायों जैसे हरसंभव कदम उठाए हैं और उठा भी रही हैं. पंजाब के सभी संबंधित विभाग पराली जलाने के कारणों पर काबू पाने और उन्हें नियंत्रित करने के लिए गंभीर और ठोस प्रयास कर रहे हैं, लेकिन वित्तीय सीमाएं हैं, यही वजह है कि राज्य बार-बार केंद्र सरकार से वित्तीय सहायता देने का अनुरोध कर रहा है.’

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यद्यपि यह दस्तावेज चीफ जस्टिस एन.वी. रमना की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष रखा गया था, जो दिल्ली की बिगड़ी वायु गुणवत्ता से संबंधित एक मामले की सुनवाई कर रही थी, लेकिन इस पर चर्चा नहीं हुई.

दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक सुधारने के लिए केंद्र और राज्यों के एक बार फिर तत्काल कोई ठोस कदम उठाने में विफल रहने से नाराज पीठ ने दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और पंजाब को प्रदूषण की समस्याओं पर बेहतर समन्वय, अनुसंधान और उनके समाधान के लिए गठित एक वैधानिक आयोग की तरफ से जारी दिशानिर्देशों का पालन करने का निर्देश दिया.


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‘पराली जलाने की घटनाएं घटी’

पंजाब ने अपने हलफनामे में कहा है कि 2021 में पराली जलाने की घटनाएं घटकर 62,863 रह गईं, जो 2020 में 75,442 थीं. राज्य के निरंतर प्रयासों से पिछले एक सप्ताह में पराली जलाने की घटनाओं में काफी कमी आई है.

हलफनामे के मुताबिक 9 नवंबर को 5,079 घटनाएं हुई थीं, लेकिन 15 नवंबर को अदालत में मामले की सुनवाई के बाद 1,761 घटनाएं ही हुई हैं.

धान की फसल काटे जाने के बाद जलाए गए खेतों के क्षेत्रफल में भी गिरावट आई है. 9 नवंबर तक कटाई का रकबा 28.15 लाख हेक्टेयर था, जबकि जलाए गए खेत का क्षेत्र 10.34 लाख हेक्टेयर था, यानी धान की खेती वाले कुल रकबे की 36.73 प्रतिशत भूमि पर पराली जलाई गई थी.

2020 में जले खेत का क्षेत्रफल 15.22 लाख हेक्टेयर था, जो उस 27.71 लाख हेक्टेयर भूमि के कुल रकबे का 54.92 फीसदी था, जिस पर धान की कटाई की गई थी. राज्य ने शीर्ष कोर्ट को बताया कि खेत में आग लगाने पर किसानों पर लगाए गए पर्यावरणीय हर्जाने की कुल राशि 2.62 करोड़ रुपये से अधिक है.

पंजाब सरकार ने अपने हलफनामे में धान की खेती को घटाने के लिए फसलों के विविधीकरण की दिशा में किए गए प्रयासों का ब्योरा भी दिया है.

हालांकि, इसमें जोड़ा है कि यदि केंद्र किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर मक्का और कपास की फसल की खरीद में राज्य की सहायता करे तो फसल विविधीकरण को आगे भी जारी रखना और प्रभावी बनाना संभव होगा.

इसने गैर-बासमती धान की फसल वाले लगभग 10 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को अन्य वैकल्पिक फसलों के विविधीकरण में इस्तेमाल करने के लिए भी केंद्र की सहायता मांगी है.


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फसल विविधीकरण योजना

योजना के मुताबिक, पंजाब मक्के की खेती को मौजूदा 1.09 लाख हेक्टेयर से बढ़ाकर 3.02 लाख हेक्टेयर करना चाहता है; इसके अलावा कपास क्षेत्र 2.68 लाख हेक्टेयर से 6.30 लाख हेक्टेयर तक; बासमती की खेती 5.14 से 7.50 लाख हेक्टेयर तक बढ़ाना चाहता है. वह एक लाख हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र को फल, कृषि वानिकी और सब्जी की खेती के तहत लाना चाहता है.

पंजाब का दावा है कि राज्य में धान की खेती 2020 में 31.49 लाख हेक्टेयर की तुलना में घटकर इस साल 29.61 लाख हेक्टेयर हो गई है. हलफनामे में कहा गया है कि धान के पुआल के उत्पादन में भी कमी आई है जो 2020 में 20.05 लाख हेक्टेयर से गिरकर 2021 में 18.74 लाख हेक्टेयर रह गया है.

पंजाब ने वायु गुणवत्ता आयोग के ढांचे की रूपरेखा के आधार पर पराली जलाने से रोकने की अपनी कार्य योजना प्रस्तुत की है.

राज्य में पराली जलाने के दुष्परिणामों और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बारे में लोगों को जानकारी देने के लिए 8,700 से अधिक नोडल अधिकारी ग्राम प्रतिनिधियों के संपर्क में हैं.

इन-साइट प्रबंधन योजना के तहत राज्य ने पिछले तीन वर्षों के दौरान 76,626 फसल अवशेषों के प्रबंधन के लिए इस्तेमाल की जाने वाली मशीनें प्रदान की हैं.

हलफनामे के मुताबिक, 2021 में 31,970 मशीनों के लिए 10,297 आवेदकों को मंजूरी दी गई, जिनमें से 6,208 आवेदकों ने अब तक 10,024 मशीनें खरीदी हैं. सहकारी समितियों, पंचायतों की तरीफ से छोटे एवं सीमांत किसानों को किराये के आधार पर मशीनें उपलब्ध कराई जाती हैं.

राज्य ने इन मशीनों के बारे में जानकारी रखने और उनका अधिकतम इस्तेमाल सुनिश्चित करने के लिए आई-खेत एप भी लॉन्च किया है. हालांकि, राज्य ने कहा कि अभी और मशीनों की जरूरत है. हालांकि 70,000 मशीनें खरीदने का लक्ष्य रखा गया है लेकिन वह केंद्रीय योजना के तहत उपलब्ध धनराशि से केवल 30,000 मशीनें ही खरीद पाएगा.

एक्स-सीटू प्रबंधन पर राज्य ने बताया कि उसने धान के भूसे के उपयोग के लिए बिजली परियोजनाएं स्थापित करने की दिशा में कदम उठाए हैं.

हलफनामे के मुताबिक, ‘धान के पुआल को उद्योगों की बॉयलर भट्टियों में ईंधन के तौर पर इस्तेमाल करने को बढ़ावा दिया जा रहा है. अभी तीन लाख टन धान के पुआल को बॉयलर भट्टियों में ईंधन के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है और चालू वर्ष में पांच लाख टन धान के पुआल के उपयोग का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.’

पंजाब ने राज्य में 300 मेगावाट की बायोमास बिजली परियोजनाओं को बिल्ड, ऑपरेट और ओन करो के आधार पर स्थापित करने का प्रस्ताव भी किया है, जो केंद्र की तरफ से 1,500 करोड़ रुपये की व्यवहार्यता अंतर वित्त पोषण सहायता पर निर्भर है.

राज्य का दावा है कि धान की भूसी को मिट्टी के साथ ही मिलाने की प्रक्रिया में किसान को प्रति हेक्टेयर लगभग 3,000-4,000 रुपये का अतिरिक्त खर्च वहन करना पड़ता है. पंजाब ने अपने हलफनामे में कोर्ट को बताया कि पर्यावरण सुरक्षा के लिए पराली जलाने को एकदम शून्य पर लाने के लिए राज्य ने केंद्र से अनुरोध किया है कि वह किसानों को एमएसपी से ऊपर 100 रुपये प्रति क्विंटल की लागत से मुआवजा दे. इस पर अभी तक केंद्र की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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