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बच्चों को केमिकल या हार्मोनल इंजेक्शन देना अब होगा गैर जमानती अपराध

'अगर कोई बालिग व्यक्ति किसी बच्चे की तरह नकल करते हुए यौन आचरण वाला कोई एक्ट भी करता है तो उसे भी चाइल्ड पॉर्नोग्राफी के तहत ही दंडनीय माना जाएगा.'

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प्रतीकात्मक तस्वीर,फाइल फोटो

नई दिल्ली: पिछले हफ्ते संसद में बच्चों के खिलाफ बाल यौन अपराध संरक्षण (पॉक्सो) कानून में हुए संसोधन के बाद महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने चाइल्ड पॉर्नोग्राफी की परिभाषा का विस्तार किया है. मंत्रालय द्वारा दी गई परिभाषा के अनुसार, अब डिजिटल या कंप्यूटर से तैयार की गई बच्चों की कोई भी अश्लील तस्वीर या कन्टेंट, चाइल्ड पॉर्नोग्राफी के तहत आएगी. साथ ही केमिकल या हार्मोनल इंजेक्शन देकर बच्चों को यौन रूप से जल्दी परिपक्व बनाना भी गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा गया है.

इस बिल के पास होने के बाद पॉक्सो अधिनियम के तहत चाइल्ड पॉर्नोग्राफी को एक दंडनीय अपराध माना जाएगा. चाइल्ड पॉर्नोग्राफी की परिभाषा में मंत्रालय ने बच्चों के अश्लील कार्टून और एनीमेटेड तस्वीरों को भी दंडनीय अपराध कहा है. इस नए कानून के मुताबिक, ‘अगर कोई बालिग व्यक्ति किसी बच्चे की तरह नकल करते हुए यौन आचरण वाला कोई एक्ट भी करता है तो उसे भी चाइल्ड पॉर्नोग्राफी के तहत ही दंडनीय माना जाएगा.’

मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि इस सिलसिले में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो को बच्चों के प्रति यौन अपराध के मामलों के आंकड़ों को नए तरीकों के साथ इकट्ठा करने के लिए भी कहा है.

कड़ी सजा का प्रावधान 

मंत्रालय के मुताबिक, ‘इस कानून जेंडर न्यूट्रल रखा गया है यानी कि लड़का और लड़की के भेद को खत्म कर दिया गया है. बच्चों के साथ दुष्कर्म या उसका प्रयास करने वाले को दोषी को मौत की सजा या फिर उम्रकैद या मृत्यु तक जेल में रहने की सजा का प्रावधान किया गया है.’

अगर कोई अपने पास चाइल्ड पॉर्नोग्राफी से जुड़ी कोई सामग्री रखता है तो पहली बार उसे 5 हजार जुर्माना भरना पड़ सकता है. अगर वो उसे फैलाने के उद्देश्य से अपने पास संग्रह करता है तो उसे 3-5 साल की जेल के साथ साथ जुर्माना भी भरना पड़ सकता है. प्रमाण या साक्ष्य के तौर पर इस तरह के कंटेंट को रखने की छूट दी गई है.

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बच्चों को हार्मोनल इंजेक्शन देना अब गैर जमानती अपराध

किसी बच्चे को उसकी उम्र से अधिक बड़ा और परिपक्व बनाने के लिए हार्मोन या रसायनिक इंजेक्शन देता पाया जाता है तो ऐसे मामले में भी कम से कम 5 साल की सजा का प्रावधान रखा गया है. इस केस में 7 साल की सजा हो सकती है और साथ ही जुर्माना भी. ऐसे मामलों में पॉक्सो अधिनियम के सेक्शन 10 के तहत कार्रवाई की जाएगी. साथ ही इसे गैर जमानती अपराध की श्रेणी मे रखा गया है.

7,000 करोड़ के फंड से बनाए जाएंगे 1023 फास्ट ट्रैक कोर्ट

इस मामले में गृह मंत्रालय, कानून मंत्रालय और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय मिल कर काम कर रहे हैं साथ ही इस फंड के वितरण से लेकर प्रोग्राम बनाने से लेकर मॉनिटर करेंगे. 7,000 करोड़ के फंड में राज्य और केंद्र सरकार मिलकर काम करेगी. केंद्र सरकार इसमें 474 करोड़ रुपए भेजेगी. प्रत्येक कोर्ट पर 75 लाख रुपये खर्च किए जाएंगे.

फास्ट ट्रैक कोर्ट्स के बंटवारे को लेकर मंत्रालय का कहना है कि ये पॉक्सो के लंबित मामलों पर निर्भर करेगा. उदाहरण के तौर पर अगर दिल्ली में पॉक्सो के मामले सबसे ज्यादा लंबित हैं तो इस परियोजना के तरह दिल्ली में बनने फास्ट ट्रैक कोर्ट्स की संख्या भी ज्यादा होगी.

मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि निर्भया फंड से इस नए कानून के तहत 2019-2020 वित्तीय वर्ष में  देश में 1023 फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाए जाएंगे. 18 राज्य इसमें शामिल हुए हैं. इस परियोजना का उद्देश्य पॉक्सो मामलों में लंबित पड़े लगभग कम करना है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार पॉक्सो एक्ट के तहत लगभग 90,000 मामले लंबित हैं.

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