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‘आत्मरक्षा की ट्रेनिंग, रात-दिन पहरा’- विभाजन के समय RSS ने क्या भूमिका निभाई

ब्रिटिश राज से भारत की स्वतंत्रता के साथ-साथ विभाजन की विभीषिका के भी 75 वर्ष पूरे हो रहे हैं.

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विभाजन के दौरान रिफ्यूजी ट्रेन की तस्वीर । कॉमन्स

भारत में स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव  जोर-शोर से मनाया जा रहा है. इस सबके बीच यह भी याद रखना होगा कि ब्रिटिश राज से भारत की स्वतंत्रता के साथ-साथ विभाजन की विभीषिका के भी 75 वर्ष पूरे हो रहे हैं. ऐसे में आवश्यक है कि पीछे मुड़कर इतिहास को देखें जिसके बारे में चर्चा करने को लेकर हम अक्सर असहज हो जाते हैं. इसी इतिहास से सीखना भी होगा ताकि पिछली गलतियां दोहराई न जाएं.

इसी इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय विभाजन के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की भूमिका भी है. इस बारे में ए.एन. बाली की पुस्तक ‘नाउ इट कैन बी टोल्ड ‘ में एक खासी लंबी टिप्पणी है.

बाली उस समय लाहौर में थे तथा पंजाब विश्वविद्यालय में एक अकादमिक थे. उन्होंने अपने सामने जो हुआ उसका आंखों देखा हाल इस अंग्रेजी किताब में लिखा जो 1949 में पहली बार प्रकाशित हुई.

कुछ वर्ष पहले ही इस पुस्तक की संभवत: एक अंतिम प्रति किसी शोधकर्ता को मिली और इसे हाल ही में दोबारा प्रकाशित किया गया है.


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पंजाब में आरएसएस

प्रोफेसर बाली आपबीती पर आधारित किताब में लिखते हैं, ‘ऐसी कठिन घड़ी में ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ ने, जो निस्वार्थ हिंदू युवकों का संगठन था, उनकी रक्षा की. उसने प्रांत के हर नगर के हर मोहल्ले में हिंदू और सिख महिलाओं तथा बच्चों को निकालने का बीड़ा उठाया. उन्हें संकटपूर्ण क्षेत्रों से हटाकर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया. उन्होंने उनके लिए खाने पीने, चिकित्सा सहायता और कपड़ों का प्रबंध किया तथा उनकी देखभाल की. संस्थानों की रक्षा के लिए दलों का गठन किया. विभिन्न नगरों में अग्निशामक दल बनाए गए.’

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‘विस्थापित हिंदू और सिखों को सुरक्षित ले जाने के लिए लॉरियों का प्रबंध किया गया. ट्रेनों पर सुरक्षा दल तैनात किए गए. हिंदू और सिख बस्तियों में रात-दिन का पहरा लगाया गया. लोगों को आत्मरक्षा का पाठ पढ़ाया गया.’

प्रोफेसर बाली ने लिखा, ‘जब विभाजन की पूर्व संध्या पर स्थिति बड़ी गंभीर हो गई, विधि और व्यवस्था भंग हो गई, या यों कहा जाए कि उसका उपयोग हिंदुओं और सिखों के दमन के लिए ही किया गया, तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनेक लोगों ने आग्नेयास्त्रों को भी चलाने में अपनी अद्भुत क्षमता दिखाई. यह तो जैसे को तैसा, ‘शठे शाठ्यं समाचरेत ‘ का पालन था…’

‘इन नवयुवकों ने पीड़ित हिंदू और सिख जनों का प्रारंभ से अंत तक साथ दिया. वे सबसे पहले उनके पास पहुंचे और सबसे बाद में पश्चिमी पंजाब उन्होंने छोड़ा.’

बाली ने लिखा, ‘अनुशासन, शारीरिक क्षमता और निस्वार्थ भावना के बल पर संकट मोल लेकर उन्होंने पंजाब के लोगों की रक्षा की. उस समय समूचा प्रांत धू-धू कर धधक रहा था. कांग्रेसी नेता सामने टिक नहीं पा रहे थे. गवर्नर जनरल अपने हठ पर अड़ा हुआ था और शांति एवं व्यवस्था हेतु और कड़े उपाय करने के उनके प्रस्ताव पर ध्यान नहीं दे रहा था.’

अंत में बाली लिखते हैं, ‘पश्चिमी पाकिस्तान से आए शरणार्थी भारत में चाहे जहां भी रह रहे हो, एक स्वर से यही कहेंगे कि वे सच्चे मानव संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम आभारी हैं. जब सब ने उनका साथ छोड़ दिया था, ऐसे समय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने ही उनका साथ दिया.’


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केएम मुंशी ने संघ को सराहा

2 अक्टूबर 1949 के जालंधर से प्रकाशित ‘आकाशवाणी’ साप्ताहिक के पृष्ठ छह-सात पर संविधान सभा के सदस्य तथा भारतीय विद्याभवन के संस्थापक व मूर्धन्य विद्वान कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी का एक प्रेस वक्तव्य छपा है.

इस वक्तव्य में मुंशी ने संघ के स्वयंसेवकों की प्रशंसा करते हुए कहा, ‘देश विभाजन के दिनों में संघ के नवयुवकों ने पंजाब और सिंध में अतुलनीय वीरता प्रकट की. उन नवयुवकों ने आतताई मुसलमानों का सामना करके हज़ारों स्त्रियों और बच्चों का मान और जीवन बचाया. अनेक नवयुवक इस कर्तव्य पालन में काम आए.’


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‘आपका संगठन न होता तो हमारी रक्षा नहीं हो पाती’

संघ के दूसरे सरसंघचालक एमएस गोलवलकर उपाख्य ‘गुरुजी’ ने अपने एक लेख में, जो मराठी के मासिक प्रकाशन ‘पुरुषार्थ’ में छपा था, अपना एक संस्मरण बताते हुए विभाजन काल के दौरान संघर्ष के बारे में कैसी जनभावना थी, उस पर प्रकाश डाला है.

उन्होंने इस लेख में लिखा, ‘उन दिनों संघ के स्वयंसेवकों ने अलौकिक शौर्य व बुद्धिमता प्रकट कर अनेक परिवारों की रक्षा की. उन्हें इस ओर लाए, माताओं की रक्षा की. सब काम इस प्रकार किया गया कि सभी लोग उनके प्रति धन्यवाद व आभार प्रकट करने लगे. उस समय परिस्थितियों का निरीक्षण करने तथा स्वयंसेवकों को उत्साहित करने के लिए कुछ दिन अमृतसर में रहा.’

‘शिविरों में मैंने चक्कर लगाया तब मुझे ऐसे व्यक्ति आकर मिले जो आज बड़े पदों पर आसीन हैं. उन्होंने प्रत्यक्ष मेरे चरण में माथा टेका और कहा कि आपका संगठन न होता तो हमारी रक्षा नहीं हो पाती. हमारे बाल बच्चे, स्त्रियां सुरक्षित नहीं रहती.’

उन्होंने लिखा, ‘सेना के अधिकारी मिले, वे भी आदरपूर्वक स्वयंसेवकों तथा उनके अदम्य साहस का उल्लेख करते हुए कहते हैं, इन्हें तुमने क्या और कैसी शिक्षा दी है? इतने साहसी व सूरमा कैसे बन जाते हैं? इस प्रकार चारों ओर संघ की प्रशंसा हो रही थी.’

(इस आलेख में संदर्भ व स्त्रोतों के लिए माणिकचंद्र वाजपेयी व श्रीधर पराडकर लिखित पुस्तक ‘ज्योति जल निज प्राण की ‘ से शोध सामग्री ली गई है)

(लेखक दिल्ली स्थित थिंक टैंक विचार विनिमय केंद्र में शोध निदेशक हैं. उन्होंने आरएसएस पर दो पुस्तकें लिखी हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


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