होम देश शिकार की पूरी व्यवस्था के बिना जंगल में चीतों को नहीं छोड़ा...

शिकार की पूरी व्यवस्था के बिना जंगल में चीतों को नहीं छोड़ा जाएगा, पैनल ने एक्शन प्लान को बताया अधूरा

स्टीयरिंग कमेटी का कहना है कि जब तक शिकार की संख्या 35 जानवर प्रति वर्ग किमी और आदर्श रूप से 50 प्रति वर्ग किमी न हो, तब तक उन्हें बड़े बाड़े से जंगल में नहीं छोड़ा जाएगा.

मध्य प्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान के एक बाड़े के अंदर दक्षिण अफ्रीका से लाए गए चीते की फ़ाइल फ़ोटो | पीटीआई

भोपाल : मध्य प्रदेश में चीतों की फिर से मौजूदगी की निगरानी करने वाली स्टीयरिंग कमेटी ने कहा है कि कई चीतों की मौत के बाद जंगल से उन्हें फिर से बाड़ों में वापस लाया गया है, इन्हें अब तब तक जंगल में नहीं छोड़ा जाएगा “जब तक कि शिकार की संख्या उचित स्तर पर नहीं हो जाती.” दिप्रिंट द्वारा प्राप्त एक आधिकारिक दस्तावेज़ से यह जानकारी पता चली है.

अफ्रीका के सबसे तेज़ दौड़ने वाले इस जानवर को लाने से पहले, विशेषज्ञों ने कुनो नेशनल पार्क में संभवतः अपर्याप्त शिकार की कमी पर चिंता जताई थी, यह क्षेत्र लगभग 70 साल पहले भारत से गायब हुई प्रजातियों के लिए पहचाना गया था.

जंगल में छोड़े जाने के बाद, इन चीतों के मवेशियों का शिकार करने या शिकार की तलाश में मनुष्यों के साथ किसी तरह के कोई संघर्ष मामला दर्ज नहीं किया गया. अभी तक दर्ज वयस्क चीतों की छह मौतों में से तीन की मौत सेप्टीसीमिया से हुई है, जबकि अन्य तीन की मौत किडनी की बीमारियों और मैटिंग (सेक्स) के दौरान लगी चोटों समेत अन्य कारणों से हुई है.

राजेश गोपाल की अध्यक्षता वाली 11 सदस्यीय समिति ने 27 अक्टूबर की मीटिंग में कहा था, “चीतों को बड़े बाड़े से तब तक जंगल में नहीं छोड़ा जाएगा जब तक कि शिकार की आबादी 35 जानवर प्रति वर्ग किमी और आदर्श रूप से 50 प्रति वर्ग किमी न हो जाए.”

भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) को शिकार की संख्या का नए सिरे से आकलन करने को कहा गया है. डब्ल्यूआईआई के वैज्ञानिक क़मर क़ुरैशी और इसके पूर्व निदेशक पी.आर. सिन्हा प्रोजेक्ट चीता के कार्यान्वयन की देखरेख के लिए केंद्र द्वारा नियुक्त पैनल के विशेषज्ञ सदस्यों में से हैं.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

डब्ल्यूआईआई की रिपोर्ट अगले सप्ताह आने की उम्मीद है और चीतों के छोड़े जाने पर फैसला दिसंबर में होने की संभावना है.

तीन चीता शावकों की मौत के बाद मई में बनी स्टीयरिंग कमेटी ने यह भी पाया कि चीता एक्शन प्लान का एक दस्तावेज जो ट्रांसलोकेशन प्रोजेक्ट और इसको लेकर भारत की तैयारियों पर प्रकाश डालता है, जो अपर्याप्त थी और इसे फिर से करने की जरूरत थी. शीतकालीन कोट (सर्दी में नई बनने वाली मोटी खाल) बनते समय सेप्टीसीमिया से तीन चीतों की मौत के बाद कार्य योजना को रिवाइज किया जा रहा है.

अक्टूबर में हुई पिछली बैठक में, पैनल के सदस्यों ने कहा कि चीता एक्शन प्लान लैंडस्केप मैनेजमेंट प्लान को पर्याप्त रूप से समझने में नाकाम रहा, क्योंकि इसमें न तो घास के मैदानों के नक्शे थे और न ही उनकी जगह या वहन क्षमता थी.

चीता स्टीयरिंग कमेटी के अध्यक्ष डॉ. राजेश गोपाल ने दिप्रिंट को बताया, “न तो दक्षिण अफ्रीका के चीता विशेषज्ञ और न ही भारत के विशेषज्ञ जानवरों की सर्कैडियन लय में बदलाव के कारण उन पर पड़ने वाले प्रभाव की कल्पना करने में सक्षम थे. चीतों को हैंडल करने की प्रत्येक कार्य योजना में सबक के आधार पर मिड-टर्म संशोधन और सुधार की जरूरत होती है और हम वही करेंगे.”

प्रोजेक्ट चीता की शुरुआत 17 सितंबर 2022 को, नामीबिया से कुनो में लाए गए आठ चीतों के साथ हुई थी. इसके बाद फरवरी में दक्षिण अफ्रीका से लाए गए 12 और चीतों को छोड़ा गया था.

प्रसिद्ध वन्यजीव संरक्षणवादी वाल्मीक थापर ने परियोजना की व्यवहार्यता पर सवाल उठाया और तर्क दिया कि इसे, कुनो में शिकार के बेस और लैंडस्केप दोनों बिंदुओं के लिहाज से नुकसान हुआ है.

थापर ने दिप्रिंट को बताया, “एक साल हो गया है, और अभी तक वे जानवर को जंगल में नहीं छोड़ पाए हैं. यह पूरी तरह से कई मिलियन डॉलर की विफल परियोजना है, जिसे गोपनीयता के नाम पर छिपाया गया है और किसी को भी जानवर के पास जाने की अनुमति नहीं है. यह शुरू से ही एक अव्यवहार्य परियोजना रही है. यह सिर्फ कुनो में शिकार के आधार के बारे में नहीं है, बल्कि लैंडस्केप को लेकर भी है. जो भी चीते बचे हैं उनके जीवित रहने का एकमात्र रास्ता यही है कि उन्हें बाड़े में रखा जाए और लोगों को उन्हें देखने की अनुमति दी जाए. पूरे प्रोजेक्ट को तुरंत बंद करने की जरूरत है. हमें कब एहसास होगा कि यह फेल हो गया है? आप ऐसी कोई चीज़ नहीं ढो सकते जो नाकाम हो गई हो.”


यह भी पढ़ें : सुप्रीम कोर्ट ने AAP नेता सत्येंद्र जैन की अंतरिम जमानत को 4 दिसंबर तक बढ़ाया


चीतों के कारण ख़त्म हो रहा शिकार?

कुनो नेशनल पार्क को चीतों की संख्या फिर से बढ़ाने के लिए चुना गया था, क्योंकि विशेषज्ञों ने पाया कि मध्य भारत में सर्वेक्षण किए गए 10 स्थलों में से यह उनके लिए सबसे उपयुक्त निवास स्थान और सबसे ज्याद शिकार वाला बेस था.

चीता एक्शन प्लान में कहा गया है, “पार्क के भीतर से गांवों के स्थानांतरण के बाद कम हुए मानव दबाव के साथ कुनो में अभी 21 चीतों के रहने की क्षमता है. वहन क्षमता के अनुमान के आधार पर, कुनो के लैंडस्केप में 3200 वर्ग किमी से अधिक क्षेत्र को कवर करने वाला संभावित चीता निवास स्थान रिइस्टोरिंग उपायों और वैज्ञानिक प्रबंधन के साथ 36 चीतों के लिए शिकार का बेस दे सकता है, जिससे यह शिकार की उपलब्धता के मामले में चीता के लिए सबसे उपयुक्त लैंडस्केप्स में से एक बन जाएगा.”

इसमें कहा गया है, “कुनो में चीतल के 38.48 प्रति वर्ग किमी की मौजूदगी के लिहाज से यह सबसे प्रचुर मात्रा में जंगली शिकार थे, जो कि जनसंख्या के लिहाज से और सभी संभावित चीता शिकार प्रजातियों के लिहाज से यह 51.58 प्रति वर्ग किमी था.”

मध्य प्रदेश वन विभाग के अधिकारियों ने कहा कि बाघों की गणना के दौरान डब्ल्यूआईआई की रिपोर्ट में इसकी फिर से पुष्टि की गई है, जिसमें कुनो की दो रेंजों में प्रति वर्ग किमी में 70 चीतल होने का सुझाव दिया गया था.

इन निष्कर्षों के बावजूद, पैनल ने डब्ल्यूआईआई को चीतों को जंगल में फिर से छोड़े जाने को लेकर निर्णय लेने से पहले पशु घनत्व का फिर से मूल्यांकन करने के लिए एक नये अध्ययन का काम सौंपा है.

डॉ. गोपाल ने कहा, “यह सही है कि इन रिपोर्टों ने कुनो नेशनल पार्क में पर्याप्त पशु घनत्व की ओर इशारा किया है, लेकिन कुनो के दौरे के दौरान, हमें छर्रों या जानवरों के देखे जाने के पर्याप्त निशान नहीं मिले, जो कि ऐसे अधिक पशु घनत्व के साथ आम होना चाहिए.”

पैनल प्रमुख ने कहा कि ऐसे कई मौके हैं जहां जानवरों की झूठी अनुपस्थिति या मौजूदगी दर्ज की गई है, साथ ही यह भी कहा कि चीतों को जंगल में छोड़ने से पहले जानवरों के संख्या घनत्व के बारे में सुनिश्चित होना बेहतर है.

पैनल के सदस्यों के अनुसार, तेंदुओं के प्रसार को लेकर शिकार की कमी को भी देखा जा रहा है. उन्होंने बताया कि कुनो में तेंदुए की आबादी में वृद्धि, शिकार के घनत्व का कम होना, एक संभावित कारण हो सकता है.


यह भी पढे़ं : ‘राजनीति में किसी भी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता’, राजस्थान के CM पद पर बोले केंद्रीय मंत्री शेखावत


उन्होंने कहा, चीता एक्शन प्लान में कहा गया था कि कुनो में तेंदुओं की एक बड़ी संख्या थी, जिससे उनका घनत्व प्रति 100 वर्ग किमी में लगभग 9 तेंदुओं का था. “यदि पर्याप्त शिकार आधार और अन्य संसाधन उपलब्ध हों तो चीते और तेंदुए एक साथ रह सकते हैं. शिकार का बेस फिर बढ़ाने, शेरों को फिर से लाने और भविष्य में बाघों द्वारा कोलनाइजेशन दोनों, कुनो के लैंडस्केप की व्यवहार्य संभावनाएं हैं.”

उन्होंने कहा, वन विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि बाघों की गणना के दौरान तेंदुओं का डेटा सारणीबद्ध किया गया था, लेकिन रिपोर्ट अभी तक जारी नहीं की गई है. “कहा जाता है कि कुनो में तेंदुओं की संख्या प्रति 100 वर्ग किमी में 90 तेंदुओं तक बढ़ गई है. हालांकि, सटीक संख्या का इंतजार है.”

इस बीच, पैनल प्रमुख ने कहा कि अगर शिकार का आधार पर्याप्त नहीं हो तो चीतों का छोड़ा जाना प्रभावित होगा.

डॉ. गोपाल ने दिप्रिंट को बताया, “तब चीतों को छोड़ा जाना रोक दिया जाएगा. पर्याप्त शिकार घनत्व बेस के बिना चीतों को जंगल में छोड़ने में मदद नहीं मिलती है.”

वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, शिकार आधार की फिर से पूर्ति करने में कई साल लग सकते हैं. “शिकार घनत्व स्वाभाविक रूप से प्रति वर्ष 1.5 प्रतिशत की दर से बढ़ता है.”

अधिकारी ने कहा, “इसे ध्यान में रखते हुए, शिकार घनत्व को उम्मीद के स्तर तक पहुंचने में लगभग एक दशक का समय लगेगा. और यह वृद्धि भी अनुकूल वातावरण को ध्यान में रखकर ही होगी.”

स्टीयरिंग कमेटी अब ‘चीता एक्शन प्लान’ के रिवीजन की दिशा में काम कर रही है, जो लैंडस्केप प्रबंधन की अवधारणा पर ध्यान देगी. यह पहलू वन्यजी संरक्षण के प्रयासों के लिए संरक्षित वन भूमि से कहीं आगे के क्षेत्रों के प्रबंधन पर फोकस करेगा.

ऐसा इसलिए है क्योंकि जंगली जानवरों के सीमांकित (तय की गई सीमा) वन क्षेत्रों से आगे बढ़ने और अन्य क्षेत्रीय और रेवेन्यू डिवीजन्स से गुजरने की उम्मीद है. उदाहरण के लिए, चीता ‘पवन’ को पन्ना के पूर्वी हिस्से में उत्तर प्रदेश में ललितपुर और झांसी की ओर बढ़ते हुए देखा गया था. पार्क से करीब 300 किलोमीटर दूर जाकर इसे ट्रैंकुलाइज किया गया और वापस लाया गया. ‘आशा’ को अशोकनगर जिले के चंदेरी की ओर जाते देखा गया. दोनों को मार्च में छोड़ा गया.

एक अधिकारी ने बताया, “लैंडस्केप प्रबंधन की अवधारणा, संरक्षण प्रयासों की दिशा में स्वाभाविक प्रगति है क्योंकि हर बार जब कोई जानवर जंगली क्षेत्र से बाहर जाता है, तो उसे ट्रैंकुलाइज नहीं किया जा सकता और वापस नहीं लाया जा सकता.”

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढे़ं : डीके शिवकुमार के खिलाफ CBI जांच वापस लेने के कर्नाटक सरकार के फैसले पर BJP, JDS ने उठाया सवाल


 

Exit mobile version