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जल्द ही जारी होंगे ऑक्सफोर्ड कोविड वैक्सीन के आंकड़े, मिल सकती है अच्छी ख़बर और टाइमलाइन

ऑक्सफोर्ड वैक्सीन विकसित कर रहे संस्थान के निदेशक के हवाले से, ख़बर में कहा गया है कि अगर सब कुछ सही रहा, तो अक्तूबर तक वैक्सीन सामने आ जाएगी.

प्रतीकात्मक तस्वीर/ लैब के अंदर की तस्वीर/Twitter | @SerumInstIndia

बेंगलुरू: बृहस्पितावार को न्यूज़ पोर्टल आईटीवी की ख़बर आने के बाद, कि पॉज़िटिव डेटा देखा गया था, और उसे जल्द ही जारी किया जाएगा, ऑक्सफोर्ड की संभावित वैक्सीन को लेकर उत्साह पैदा होने लगा है.

इसके अलावा, टेलीग्राफ ने ख़बर दी कि ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में जेनर इंस्टीट्यूट, जहां ये वैक्सीन विकसित की जा रही है, के डायरेक्टर ने कहा कि ‘सबसे अच्छी स्थिति’ में अंतिम ट्रायल्स के नतीजे अगस्त और सितंबर में आ जाएंगे, और वैक्सीन अक्तूबर में सामने आ जाएगी.

आईटीवी के राजनीतिक संपादक रॉबर्ट पेस्टन ने लिखा, ‘मैं सुन रहा हूं कि ऑक्सफोर्ड कोविड-19 वैक्सीन के बारे में, बहुत जल्द (शायद कल) एक पॉज़िटिव ख़बर सुनने को मिलेगी, जिसे एस्त्रा ज़ेनेका मदद दे रही है, और जिस पर सरकारी ख़ज़ाने से करोड़ों पाउण्ड ख़र्च किए जा रहे हैं’.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘पहला डेटा द लांसेट में छपने वाला है’.

लेकिन, रॉयटर्स की ख़बर के मुताबिक़, उसके बाद लांसेट ने सफाई दी है कि डेटा सोमवार को ही जारी किया जाएगा.

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वैक्सीन के फिलहाल यूके में फेज़ 2 और 3, और ब्राज़ील व साउथ अफ्रीका में फेज़ 3 के संयुक्त ट्रायल चल रहे हैं. लेकिन वैक्सीन विकसित करने वालों ने, अभी अपने पहले फेज़ के नतीजे जारी नहीं किए हैं- जिनसे आमतौर से अपेक्षित दुष्प्रभावों के लिए सेफ्टी चेक्स स्थापित किए जाते हैं, और ये पुष्ट किया जाता है कि क्या उससे कोई इम्यून रेस्पॉन्स पैदा हुआ है.

पेस्टन ने लिखा, ‘ऐसा दिख रहा है कि वैक्सीन उस तरह के एटीबॉडी और टी-सेल (किलर सेल) पैदा कर रही है, जिनकी रिसर्चर्स उम्मीद कर रहे हैं.’

फेज़ 2 और फेज़ 3 का जो काम चल रहा है, वो पहले से स्थापित सुरक्षा पर आधारित है.

इस वैक्सीन को फिलहाल एस्त्रा ज़ेनेका के साथ साझीदारी में, लाइसेंस लेकर निर्मित किया जा रहा है.

पुणे स्थित सेरम इंस्टीट्यूट ने भी इस वैक्सीन को, बड़े पैमाने पर भारत में बनाने की योजना का ऐलान किया था.


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ट्रायल डीटेल्स

ऑक्सफोर्ड वैक्सीन ग्रुप ने फेज़ 1 के ट्रायल्स के लिए, अप्रैल में यूके में 1,102 प्रतिभागियों की भर्ती की. वैक्सीन देने और इम्यूनाइज़ करने का काम मई में पूरा कर लिया गया, और उसके बाद से नज़र रखी जा रही है, कि किसी को बीमारी ने पकड़ा तो नहीं है.

सुरक्षा स्थापित करने के लिए पहले दौर के ट्रायल्स, धीमी गति से किए जाते हैं. कई लोगों को एक साथ टीके नहीं दिया जा सकते, और ट्रायल में भी कम लोग शरीक होते हैं.

पहले दो दिन, ट्रायल में क्रमश: सिर्फ 2 और 6 मरीज़ों को टीके दिए गए, और आगे बढ़ने से पहले पूरे दो दिन तक दोनों ग्रुप्स की निगरानी की गई. प्रतिभागियों ने तीन हफ्ते तक अपने लक्षणों का रिकॉर्ड लिखा, और उन्हें कई बार बुलाया भी गया, जिसमें उनके ख़ून की जांच भी की गई.

नैतिक कारणों से आमतौर पर लोगों को किसी वायरस के सीधे संपर्क में लाने (जिसे ह्यूमन चेलेंज ट्रायल्स कहा जाता है) पर पाबंदी है. ये स्पष्ट नहीं है कि इस महामारी की आपात स्थिति के देखते हुए, क्या ये किसी समय पर शुरू होंगे.

सुअरों में हुए प्री-क्लीनिकल ट्रायल्स में पता चला, कि एक अकेले डोज़ की अपेक्षा दो डोज़ देने से, एंटीबॉडी रेस्पॉन्स ज़्यादा बेहतर रहा.

जून के अंत में, तीसरे फेज़ का ट्रायल, जिसमें वैक्सीन के असर को परखने और निर्धारित करने के लिए, हज़ारों प्रतिभागियों को भर्ती किया जाता है, ब्राज़ील में स्वस्थ वॉलंटियर्स के साथ शुरू हो गया. इस ट्रायल के लिए 5,000 कैंडिडेट्स लिए गए.

इस बीच, यूके में 4,000 से अधिक प्रतिभागी ट्रायल से गुज़र रहे हैं, जिसमें 10,000 और प्रतिभागियों को जोड़ने की योजना है. साउथ अफ्रीका में भी एक अतिरिक्त फेज़ 3 ट्रायल शुरू हो गया है.


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वैक्सीन कैसे काम करती है

ऑक्सफोर्ड वैक्सीन को अधिकारिक तौर पर सीएचएडीओएक्सवन एनसीओवी-19 कहा जाता है, और इसका नाम एज़ेडडी1222 है.

ये एक वायरल वेक्टर वेक्सीन है, जिसमें कॉमन-कोल्ड पैदा करने वाले वायरस सीएचएडीओएक्सवन का इस्तेमाल किया जाता है. एडीनोवायरस के इस कमज़ोर किए गए रूप को, जो चिम्पैंज़ियों में संक्रमण फैलाता है, जिनेटिक रूप से तब्दील कर दिया गया है, जिससे ये इंसानों के अंदर दोहरा नहीं सकता.

इसके इलावा, एडीनोवायरसों के बहुत से स्ट्रेन्स इंसानी आबादी में पहले ही घूम रहे हैं, हालांकि इंसानों में इस ख़ास स्ट्रेन के लिए एंटीबॉडीज़ नहीं हैं.

कोविड-19 के खिलाफ काम करने के लिए, इस वैक्सीन में सार्स-सीओवी-2 वायरस के स्पाइक प्रोटीन को, सीएचएडीओएक्सवन वायरस में दाख़िल किया गया है.

डेवलपर्स का कहना है, ‘सीएचएडीओएक्सवन एनसीओवी-19 के साथ टीका लगाकर, हम उम्मीद कर रहे हैं कि शरीर स्पाइक प्रोटीन को पहचानकर, उसके जवाब में इम्यून रेस्पॉन्स विकसित कर लेगा, जिससे सार्स-सीओवी-2 वायरस इंसानी सेल्स में नहीं घुस पाएगा और संक्रमण रुक जाएगा.’

बी सेल्स और किलर टी-सेल्स के प्रोडक्शन की अटकलें, वैक्सीन के लिए अच्छी ख़बर हैं. बी सेल्स और टी सेल्स तब चालू होते हैं, जब शरीर का एडैप्टिव इम्यून रेस्पॉन्स काम करना शुरू करता है, जिससे एक ताक़तवर इम्यून रिएक्शन पैदा होता है. किलर टी सेल्स, जिन्हें साइटोटॉक्सिक टी सेल्स कहा जाता है, हमारे शऱीर के अंदर संक्रमित सेल्स को नष्ट करते हैं, और बी सेल्स शरीर में एंटीबॉडीज़ पैदा करते हैं.


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बी सेल्स और टी सेल्स मेमोरी सेल्स भी पैदा कर सकते हैं, जो वायरस को याद रखते हैं, और उससे दोबारा मिलने पर, तेज़ी के साथ एक मज़बूत इम्यून सिस्टम पैदा कर सकते हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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