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अफगानिस्तान पर परिषद के प्रस्ताव में उल्लेखित मुद्दों पर कोई प्रगति नहीं दिखी: जयशंकर

नयी दिल्ली, 23 फरवरी (भाषा) विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा है कि आतंकवादी गतिविधियों के लिए अफगानिस्तान की धरती के इस्तेमाल के बारे में अंतरराष्ट्रीय समुदाय की आशंका अभी भी एक ‘‘गहरी चिंता’’ बनी हुई है क्योंकि स्थिति में सुधार का संकेत देने के लिए कोई विश्वसनीय जानकारी नहीं है।

जयशंकर ने यह भी कहा कि गत अगस्त में वैश्विक निकाय की भारत की अध्यक्षता के दौरान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव में उठाए गए मुद्दों और चिंताओं पर ज्यादा प्रगति नहीं देखी गई है।

मंगलवार को पेरिस में एक विचार मंच में एक संवाद सत्र में, जयशंकर ने क्वाड की तर्ज पर रूस, चीन, पाकिस्तान और ईरान के बीच गठबंधन की अटकलों को भी खारिज कर दिया। उन्होंने कहा, ‘‘जरूरी नहीं कि चार कोने एक ज्यामिति बनायें।’’

जयशंकर से पाकिस्तान के साथ रूस के हालिया राजनयिक जुड़ाव, चीन और रूस के साथ ईरान के संबंधों के साथ-साथ रूसी और चीनी राष्ट्रपतियों के बीच हालिया शिखर वार्ता के बारे में पूछा गया था।

जयशंकर ने कहा कि गठबंधन को आकार देने के लिए क्वाड सदस्य देशों के नेतृत्व के स्तर पर बहुत अधिक प्रणालीगत बातचीत और प्रतिबद्धताओं की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा कि सामूहिक बातचीत मात्र से अपने आप कुछ नहीं होता ।

पिछले साल सैन्य तख्तापलट के बाद म्यांमा की स्थिति पर, जयशंकर ने कहा कि भारत उस देश में लोकतांत्रिक ताकतों के लगातार समर्थन में रहा है।

अफगानिस्तान के हालात पर एक सवाल के जवाब में जयशंकर ने कहा कि भारत ही नहीं अंतरराष्ट्रीय समुदाय को उस देश में विदेशी लड़ाकों और आतंकवादी संगठनों की मौजूदगी को लेकर चिंता है। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि बहुत सारे देश अफगानिस्तान में यह देखने के लिए बहुत सावधानी से नजर बनाये हुए हैं कि तालिबान के शासन के बाद, क्या कोई बदलाव हुआ है?’’

उन्होंने कहा, ‘‘अफगान धरती के इस्तेमाल के बारे में चिंता (आतंकवादी गतिविधियों के लिए), मुझे लगता है कि यह अभी भी एक बहुत ही गहरी चिंता है।’’

यह पूछे जाने पर कि तालिबान का समर्थन किए बिना अफगान लोगों की मदद करने में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को क्या दुविधा का सामना करना पड़ रहा है, जयशंकर ने इसे एक बहुत ही जटिल मुद्दा बताया।

उन्होंने कहा, ‘‘ये वास्तव में अंतरराष्ट्रीय संबंधों की दुविधाएं हैं जहां उन कठिन विकल्पों में से चयन करना आसान नहीं है। क्या आप तालिबान जैसे संगठन के प्रति अपनी बेचैनी या विरोध को उन लोगों को समर्थन देने के अपने रास्ते में आने देते हैं जो बहुत ज्यादा पीड़ित हैं?’’ हालांकि, उन्होंने कहा कि अफगान लोगों की मदद के लिए रास्ते तलाशे जाने चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘लब्बोलुआब यह है कि हमें लोगों की मदद करने के लिए एक रणनीति तैयार करनी होगी और यह तय करना होगा कि हम शासन के साथ क्या करते हैं।’’

इस संदर्भ में, जयशंकर ने कहा कि अफगानिस्तान में ‘व्यावहारिकता और यथार्थवाद’ का आग्रह करने वाले कई देशों का म्यांमा के बारे में बहुत अलग दृष्टिकोण है। उन्होंने कहा कि कई मामलों में, अफगानिस्तान के बारे में चिंताएं अफगानिस्तान से यूरोप आने वाले शरणार्थियों के डर से प्रेरित हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘हमें अफगान लोगों की मदद करने के तरीके खोजने चाहिए। हमें यह इस तरह से करना चाहिए जिससे हम तालिबान और वहां के शासन के अपने आकलन के साथ सहज हों।’’

जयशंकर ने अफगानिस्तान पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव (यूएनएससीआर) 2593 का भी जिक्र किया। वैश्विक निकाय की भारत की अध्यक्षता में 30 अगस्त को अपनाए गए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव में अफगानिस्तान में मानवाधिकारों को बनाए रखने की आवश्यकता के बारे में बात की गई थी। इसमें मांग की गई थी कि अफगान क्षेत्र का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए नहीं किया जाए और संकट का बातचीत के जरिए राजनीतिक समाधान निकाला जाए। उन्होंने कहा, ‘‘हमने इस पर पिछले कुछ महीनों में अधिक प्रगति नहीं देखी है।’’

विदेश मंत्री ने कहा कि भारत ने काबुल के मुख्य अस्पताल को दवाएं मुहैया कराई हैं।

भाषा अमित नरेश

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