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न जॉब, न सामाजिक सुरक्षा; अफगानिस्तान से आए 350 सिख शरणार्थियों को कनाडा के वीज़ा का इंतजार

आम आदमी पार्टी (आप) के राज्यसभा सांसद विक्रमजीत सिंह साहनी के मुताबिक, भारत में शरण लेने वाले करीब 120 अफगान सिख कनाडा जा चुके हैं, और करीब 17 अमेरिका गए हैं.

अगस्त में दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर अफगानिस्तान से आए सिख । एएनआई

नई दिल्ली: गुरप्रीत साहनी (बदला नाम) पिछले साल अगस्त में दिल्ली पहुंचे. वह 30 अफगान सिखों के उस जत्थे में शामिल थे, जिन्हें काबुल के सबसे बड़े गुरुद्वारों में से एक पर आतंकी हमले के दो महीने बाद वहां से निकाला गया था. हमले में दो लोगों की मौत हो गई थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तब इन लोगों को बकायदा पत्र लिखा था और हमले की निंदा की थी. और, इसके साथ ही उनके भारत आने का रास्ता बना.

हालांकि, छह महीने बीतने और ई-वीजा समाप्त होने के बाद 51 वर्षीय साहनी अफगानिस्तान लौटने को तैयार हैं.

तिलक नगर में अपने 3-बीएचके अपार्टमेंट में चाय की चुस्कियां लेते और खिड़की से बाहर देखते हुए साहनी ने दिप्रिंट को बताया, ‘अगर मुझे अगले कुछ महीनों में कनाडा का वीजा नहीं मिला तो काबुल लौट जाऊंगा और वहीं नौकरी की तलाश करूंगा. नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) की प्रक्रिया कोई विकल्प नहीं लगती है.’

नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए), 2019, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में उत्पीड़न के शिकार धार्मिक अल्पसंख्यकों—हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों या ईसाइयों के लिए नागरिकता की राह खोलता है. हालांकि, यह केवल उन लोगों के लिए है जो 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए थे. इसलिए, हाल में तालिबान के कब्जे के बाद अफगानिस्तान से भागे अफगान सिख इस कानून के तहत भारतीय नागरिकता हासिल करने में सक्षम नहीं हैं.

साहनी ने बताया कि दिसंबर 2022 में सभी ई-वीजा की अवधि समाप्त हो जाने के बाद, उन्हें अपने छह बच्चों, पत्नी और भाभी के भरण-पोषण में बहुत मुश्किल हो रही थी. वह भारत पहुंचे उन करीब 350 अफगान सिखों में से एक हैं, जो कनाडा के लिए वीजा का इंतजार कर रहे हैं.

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आम आदमी पार्टी (आप) के राज्यसभा सांसद विक्रमजीत सिंह साहनी के मुताबिक, भारत में शरण लेने वाले करीब 120 अफगान सिख कनाडा जा चुके हैं, और करीब 17 अमेरिका गए हैं.

भारत में शरणार्थियों की मदद करने वाले साहनी ने कहा कि कनाडा पहुंचे लोग एक कार्यक्रम का हिस्सा हैं, जिसके तहत कनाडा सरकार घर का किराया भरने के लिए घर के वयस्कों को एक साल के लिए 1.2 लाख रुपये (2,000 डॉलर) का मासिक स्टाइपेंड देती है.


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साहनी दिल्ली में दो गुरुद्वारों के प्रमुखों के साथ मिलकर भारत में शरणार्थियों की मदद करते रहे हैं. दो दशकों से अधिक समय से भारत में रह रहे 57 वर्षीय अफगान सिख चबोल सिंह शरणार्थियों के मामले में प्रमुख कोऑर्डिनेटर की भूमिका निभाते हैं.

दो दशकों से दिल्ली में रह रहे 57 साल के अफगान सिख चाबोल सिंह, जो कि कनाडा में शरणार्थियों की यात्रा में सहायता कर रहे । दिप्रिंट

सीएए के तहत नागरिकता का विकल्प नहीं

अभी आठ अफगान सिख अफगानिस्तान में हैं और भारत के लिए ई-वीजा मांग रहे हैं. यह आंकड़ा करीब 500 अफगान सिखों की तुलना में बेहद कम है, जो 15 अगस्त 2021 से पहले वहां रह रहे थे, जब तालिबान ने सत्ता में वापसी की और धार्मिक अल्पसंख्यकों को उत्पीड़न शिकार होना पड़ा.

कनाडा के वीजा का इंतजार कर रहे करीब 350 लोगों को साहनी की तरफ से आर्थिक सहायता भी मुहैया कराई जा रही है. आप सांसद ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैं उनके घर का किराया, खाने और अन्य सुविधाओं का भुगतान अपने निजी फंड से कर रहा हूं. दिल्ली के गुरुद्वारों में बच्चों को पढ़ाया भी जा रहा है.

यह पूछे जाने पर कि केंद्र सरकार शरणार्थियों को कोई वित्तीय सहायता क्यों नहीं दे रही है, उन्होंने कहा, ‘मैं उस पर टिप्पणी नहीं कर सकता. लेकिन मैंने बार-बार कहा है कि सीएए के तहत अफगान सिख भारतीय नागरिकता के सबसे भरोसेमंद दावेदार हैं, लेकिन कानून के कुछ मानदंडों में ढील देने की जरूरत है.’

कनाडा पहली पसंद

इस रिपोर्टर से बात करने वाले अधिकांश अफगान सिख परिवारों ने कहा कि वे भारत में रहने के बजाय कनाडा जाना पसंद करेंगे. उन्होंने एक विकसित देश में रहने के प्रति आकर्षित होने को लेकर भी बात की, जो बड़ी संख्या में पंजाबियों का ठिकाना भी है.

1992 के अफगान गृहयुद्ध के दौरान भागकर आए और दो दशक से अधिक समय से भारत में रहने वाले चबोल सिंह ने कहा कि उन्हें 1993 में भारत में शरणार्थी का दर्जा मिला था. उन्होंने बताया, ‘2003 में मुझे यूएनएचसीआर (भारत में मिशन) से मासिक वित्तीय सहायता मिल रही थी. लेकिन अब भारत आने वाले शरणार्थियों के पास वह विकल्प भी नहीं है. अगर वे कनाडा में बेहतर जीवन तलाश सकते हैं तो वे यहां क्यों रहेंगे?’

भारत आम तौर पर अफगान सिखों के लिए एक ऐसी जगह रहा है जहां किसी भी संकट के समय वो शरण ले सकते हैं. 70 के दशक के दौरान अफगानिस्तान में सोवियत के दखल के बाद कई जत्थे भागकर यहां आए, फिर 1992-1996 में गृह युद्ध के दौरान और फिर 1996-2001 में जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर शासन किया, तब भी कई अफगान सिखों ने भारत आना बेहतर समझा. जुलाई 2018 के बाद भी कई लोग भागकर आए जब जलालाबाद शहर में एक आत्मघाती बम विस्फोट में कम से कम 19 लोग मारे गए, जिनमें अधिकांश सिख थे.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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