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न बिजली, न पानी, थोड़ा-बहुत राशन—बाढ़ के तीन दिन बाद भी ग्राउंड जीरो का चमोली से संपर्क कटा हुआ है

उत्तराखंड में रविवार सुबह अचानक आई बाढ़ के कारण पेंग और लगभग एक दर्जन अन्य गांव चमोली के बाकी हिस्सों से कट गए हैं.

उत्तराखंड के चमोली जिले के रैनी गांव के पास तबाह हुए जलविद्युत संयंत्र का एक दृश्य। | फोटो- सूरज सिंह बिष्ट / ThePrint

चमोली: ‘यहां पर एकदम बम फटने जैसी कोई आवाज हुई थी’—उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित पेंग गांव के लोग रविवार को रोन्ती चोटी के पास हिमस्खलन होने की घटना के शुरुआती क्षणों को कुछ इसी तरह याद करते हैं.

देखते-देखते कुछ ही मिनटों में यह मलबा ऋषि गंगा और धौलीगंगा नदियों पर छा गया, दो बिजली संयंत्रों को नुकसान पहुंचा. एक पुल ढह गया और इसके कारण सैकड़ों लोग इसके नीचे दब गए.

सोशल मीडिया पर सर्कुलेट हो रहे एक वीडियो में गांव को लोगों को मैदान में एकत्र होते देखा जा सकता है. वीडियों में नजर आ रही दो पहाड़ियों वाले बैकग्राउंड के बीच खड़ी एक बुजुर्ग महिला को यह कहते सुना जा सकता है. ‘हम अपने खेतों की ओर गए थे, जहां हमने एक बम धमाके जैसा कुछ सुना. जब हम ऊपर गांव में पहुंचे तो देखा पहाड़ों से तेजी से पानी निकल रहा है.’

अचानक आई बाढ़ ने पेंग के साथ-साथ करीब दर्जन भर अन्य गांवों को भी चमोली के बाकी हिस्सों से काट दिया है, जिससे वहां बिजली और पानी की आपूर्ति भी बाधित हो गई है. तीन दिनों से स्थिति जस की तस बनी हुई है.

आपदा के बाद गांवों में अपने रिश्तेदारों से बात करने वाले लोगों का कहना है कि वहां के निवासी एकदम बेहाल हैं. फोन की बैटरी खत्म होने से कहीं बात भी नहीं कर पा रहे हैं. हालांकि, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के जवान कई किलोमीटर तक पैदल चलकर उनके लिए राशन की आपूर्ति कर रहे हैं और साथ ही गांवों तक लालटेन भी पहुंचा रहे हैं.

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रैणी गांव में ही फंसी पेंग की निवासी पुष्पा ने कहा, ‘हिमस्खलन के कारण हमारे गांव में जब चट्टान गिरी थी, तब वहां एकदम धूल-धूल हो गई थी, हमें समझ ही नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है…न तो हम वहां जा सकते हैं, न ही कोई यहां आ सकता है.’


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‘हम अब भी दहशत में हैं’

पुष्पा देवी, भगवंती और हीरा राणा रविवार सुबह अचानक आई बाढ़ के कारण अपने गांव पेंग नहीं लौट पाई हैं. तीनों आंगनवाड़ी और आशा (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) के तौर पर काम करती हैं और पोलियो अभियान का हिस्सा होने के कारण रैणी गांव आई थीं.

पुष्पा देवी ने रैणी में कहा, ‘हमें सुबह 10.30 बजे इस घटना के बारे में पता चला, हमारे गांव के लोगों ने हमें एक वीडियो भेजा था… हमारा गांव चट्टानों से घिरा हुआ है, इसलिए सभी को डर था कि पता नहीं क्या होगा.’

नदी से 200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित पेंग चक लता गांव ऋषि गंगा घाटी क्षेत्र में जलप्रलय से सबसे पहले प्रभावित होने वाले कुछ गांवों में से एक है.

अपनी पत्नी पुष्पा देवी के साथ रैणी गांव पहुंचे सुरेंद्र सिंह राणा ने बताया कि जब ‘तूफान यहां टकराया’ तो सभी ग्रामीणों को लगा कि ये पेंग को तबाह कर देगा. उन्होंने कहा, ‘हमारे गांव से लगभग 150 मीटर दूर एक चट्टान है. मेरे परिवार को लगा कि इस जगह समेत सारे गांव जलप्रलय में समा जाएंगे.’

चूंकि हिमस्खलन ने गांव के रास्तों को बाधित कर दिया था, इसलिए यहां के ग्रामीण ऊंचे इलाकों में नहीं जा पाए.

राणा ने कहा, ‘आने-जाने का कोई कोई रास्ता नहीं बचा है, सड़क संपर्क पूरी तरह कट चुका है. आज, आईटीबीपी के जवान राशन देने के लिए चार किलोमीटर तक पैदल चले, हमें बताया गया कि उन्हें लालटेन भी दी गई थी. हमारे गांव में बहुत खतरा है, गिरती चट्टानों और पेड़ों के बीच नदी तल में एक झील भी बन गई है.’

हीरा राणा ने कहा, ‘सड़कें अवरुद्ध होने के कारण पानी या बिजली भी उपलब्ध नहीं है, उनसे संपर्क करने का कोई तरीका नहीं है.’

रूद्रमा देवी अपने बेटे की एक तस्वीर दिखाती हैं, जो कि तबाह हुए रैनी के एनटीपीसी बिजली संयंत्र में काम कर रहा था. | फोटो- सूरज सिंह बिष्ट / ThePrint

‘कंपनी मेरी आंखों के सामने डूब गई’

इस बीच, जलप्रलय की शिकार बनी ऋषि गंगा जलविद्युत परियोजना से कुछ मीटर की दूरी पर स्थित रैणी गांव के लोग अब भी भरोसा नहीं कर पा रहे हैं कि उन्होंने अपनी आंखों से ऐसा भयावह मंजर देखा है. धरवण राणा ने कहा, ‘57 साल का हो गया हूं लेकिन मैंने कभी ऐसा कुछ भी नहीं देखा. हमारे बड़े-बुजुर्गों ने भी कभी ऐसी कोई घटना होते नहीं देखी है.’

पेंग के निवासियों की तरह ही धरवण ने भी पहाड़ों की चोटियों से चट्टानें गिरने की आवाज सुनी थी. उन्होंने कहा, ‘मैं अपने घर के अंदर था और जब मैंने ग्लेशियर चटककर गिरते देखा तो बाहर निकल आया.’ उनको सबसे पहले यही समझ आया कि जोर-जोर से चिल्लाकर पनबिजली परियोजना में काम करने वालो को सचेत करें.

एनडीआरएफ की टीम ने उत्तराखंड में बाढ़ से प्रभावित स्थलों में से एक पर बचाव अभियान चलाती हुई | फोटो- सूरज सिंह बिष्ट | दिप्रिंट

परियोजना स्थल पर एक बड़ा इमारत परिसर और एक पुल था जिसे नदी को पार करने के लिए बनाया गया था. तमाम श्रमिक इमारत के अंदर काम कर रहे थे, और कुछ पुल पर थे. धरवण ने कहा, ‘जलप्रलय इतनी तेजी से हुई कि वहां काम कर रहे मजदूरों को संभलने का मौका तक नहीं मिला और पूरी इमारत ढह गई.’

ग्राम प्रधान भवन राणा ने बताया, ‘कंपनी मेरी आंखों के सामने डूब गई, और उसके बाद पुल टूट गया.’ एनडीआरएफ कमांडेंट पी.के. तिवारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘कम से कम 50 लोग हाइड्रोपॉवर डैम साइट पर दब गए थे, जिनमें से चार के शव मंगलवार को बचाव अभियान के दौरान बरामद किए गए.

उन्होंने कहा, ‘आज यहां गांव में कोई भी नहीं है. हर कोई 3 किमी ऊपर चला गया है और खुले आसमान के नीचे सो रहे हैं और सिर्फ आग जलाकर उसी के सहारे रह रहे हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि यहां पर अभी कुछ भी हो सकता है.’

भवन के मुताबिक, परियोजना स्थल पर काम करने वाले एक व्यक्ति समेत यहां के करीब पांच निवासी रविवार से ही लापता हैं. अपने प्रियजनों के साथ किसी अनहोनी को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे इन ग्रामीणों को अब भी यही खतरा सता रहा है कि चट्टानें फिर धसक सकती हैं.

भवन ने कहा, ‘कल रात मैं तीन बार इसे देखने गया था और यहां पर नदी पूरी तरह ठहर चुकी थी. मैंने आईटीबीपी टीम को बताया भी कि यहां पानी पूरी तरह ठहर गया है और अन्य लोगों को भी बताया है, जिन्होंने हमें आश्वस्त किया कि कुछ भी अजीब नहीं है और पानी रात में जम जाता है. लेकिन हम जानते हैं कि नदियां इस तरह खत्म नहीं हो सकतीं.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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