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पहाड़-मैदान की राजनीति में फंसा एनआईटी उत्तराखंड, छात्रों का गुस्सा दिल्ली तक पहुंचा

2009 में स्थापित हुए एनआईटी उत्तराखंड को अभी तक एक स्थायी कैंपस नहीं मिला है जिसकी वजह से वहां के छात्र परेशानी से जूझ रहे हैं.

NIT students on protest
दिल्ली के जंतर मंतर में विरोध प्रकट करते एनआईटी उत्तराखंड के छात्र | सूत्र

नई दिल्ली: लगभग नौ सालों से अस्थायी कैंपस में गुज़ारा कर रहे एनआईटी उत्तराखंड के छात्रों का संघर्ष अब दिल्ली आ पहुंचा है. छात्रों ने आरोप लगाया है कि राजनीतिक फायदे के लिए पौड़ी गढ़वाल ज़िले के श्रीनगर में स्थित एनआईटी उत्तराखंड का मामला जस का तस बना हुआ है.

मंगलवार को दिल्ली के जंतर-मंतर पर एनआईटी उत्तराखंड के छात्रों ने रोष प्रदर्शन भी किया और ये भी बताया कि यदि उनकी मांगें नहीं सुनी जाती तो वे अनशन करेंगे.

क्या है मामला

2009 में स्थापित हुए एनआईटी उत्तराखंड को पौड़ी गढ़वाल के एक दुर्गम इलाके में अस्थायी कैंपस दिया गया है. इसके स्थायी कैंपस के लिए ज़मीन भी चुनी गयी, लेकिन भूकंप प्रभावित क्षेत्र होने के कारण यह कैंपस वहां नहीं बन सका. फ़िलहाल कैंपस दो ब्लॉक में बंटा हुआ है. एक ब्लॉक में हॉस्टल हैं और क्लासें लगती हैं और दूसरे ब्लॉक में प्रशासन व लैब्स (प्रयोगशालाएं) हैं. इन दोनों ब्लॉकों के बीच है राष्ट्रीय मार्ग 58. विद्यार्थियों को कक्षा से लैब में जाने के लिए राष्ट्रीय मार्ग से गुज़रना पड़ता है. छात्रों के सुरक्षित न महसूस करने के पीछे ये एक बड़ा कारण है.

आपको बता दें कि इसी साल अक्टूबर में दो छात्राएं इसी राष्ट्रीय मार्ग को पार करते वक़्त दुर्घटना का शिकार हो गयीं जिसमें से बीटेक तीसरे वर्ष की नीलम मीणा नाम की छात्रा को इतनी गंभीर छोटे आईं कि अब उनके शरीर का निचला हिस्सा पैरेलाइस हो गया है. इस दुर्घटना के बाद छात्रों ने अपनी क्लास का बहिष्कार किया और स्थायी कैंपस की मांग ज़्यादा तेज़ हो गयी.

परमानेंट कैंपस मुश्किल क्यों

दिल्ली विरोध करने पहुंचे छात्र प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि राजनीतिक फायदे के लिए वहां के स्थानीय सांसद और विधायक इस एनआईटी को अपने निर्वाचन क्षेत्र से बाहर नहीं जाने देना चाहते.

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एमटेक पास करने वाले अभिषेक पांडे कहते हैं, ‘स्थानीय विधायक धन सिंह रावत अपने राजनीतिक अभिमान के चलते इस कैंपस को कहीं और शिफ्ट नहीं होने देना चाहते. वे इस कैंपस को पहाड़ बनाम मैदान का मुद्दा बना कर राजनीति कर रहे हैं. उन्होंने हमसे कहा है कि श्रीनगर में ही आप 40 एकड़ के मैदानी इलाके में कैंपस बनवा कर काम चला लीजिए. पर ऐसा नहीं चल सकता. हमें एनआईटी में मेडिकल सुविधाएं, खेल कूद की सुविधा, हॉस्टल, अच्छी लैब्स और भी बहुत कुछ चाहिए.’

विद्यार्थियों ने इसके लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय को भी लिखा, मंत्रालय ने छात्रों को स्थायी कैंपस पर निर्णय लेने का आश्वासन दिया. मंत्रालय ने नीलम के साथ घटी दुर्घटना पर दुःख जताया लेकिन यह भी कहा कि इस घटना का एक स्थायी कैंपस की मांग से कोई लेना देना नहीं है.

मंत्रालय द्वारा भेजे गए ईमेल की प्रति दिप्रिंट के पास है और उसके अनुसार, मंत्रालय ने फैसला किया है कि जल्द ही ऋषिकेश स्थित इंडियन ड्रग्स एंड फार्मास्युटिकल लिमिटेड (आइडीपीएल) में इस कैंपस को शिफ्ट कर दिया जाएगा. 20 नवम्बर को भारत सरकार के फार्मा सचिव और उत्तराखंड के मुख्य सचिव इस मामले पर बातचीत करेंगे ताकि आने वाले तीन महीनों में इस योजना का बंदोबस्त हो जाए.

एनआईटी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि स्थानीय विधायक ने उन्हें श्रीनगर में ही ज़मीन दिलवाने की कोशिश तो की, लेकिन स्थानीय लोग इस बात से बहुत खफा हुए और उनकी ज़िद के आगे यह कदम लेना मुश्किल पड़ गया.

अधिकारी ने यह भी बताया कि एनआईटी के आसपास रेलवे स्टेशन, एयरपोर्ट और इंडस्ट्री होनी चाहिए ताकि वहां तक एक्सपर्ट्स और छात्रों का पहुंचना दुर्गम न हो, लेकिन, उत्तराखंड के इस एनआईटी के आसपास ऐसा कुछ भी नहीं है, नतीजन एनआईटी के छात्रों को न ही कोई अच्छा इंडस्ट्रियल एक्सपोज़र मिल पा रहा है, न ही नामी गिरामी कम्पनियां यहां नौकरियां देने आ पा रही हैं.

संदीप मल्होत्रा, बीटेक फाइनल ईयर के छात्र ने बताया कि स्थानीय लोगों के फायदे के कारण भी सरकार इस एनआईटी को शिफ्ट नहीं करना चाहती. उन्होंने कहा, ‘जब मंत्रालय ने शिफ्ट करने की बात कही, तो उन स्थानीय लोगों ने, जिनको इस एनआईटी के श्रीनगर में होने से फायदा पहुंचता है- जिनके घर हम किराये पर लेते हैं या खाना खाते हैं- स्थानीय लोगों को भड़का कर एक जुलूस भी निकाला और पहाड़ के विकास के नाम का झांसा देकर इसे राजनीतिक मुद्दा बनाया.’

कौन सी मुश्किलों का सामना करते हैं छात्र

बीटेक फाइनल ईयर के छात्र हैदर अली के अनुसार, दुर्गम इलाके में होने की वजह से इस एनआईटी में काफी दिक्कतें झेलनी पड़ती हैं.

अली ने कहा, ‘चूंकि यह कैंपस एक दूर दराज इलाके में है, इसलिए यहां कोई बड़ी कंपनी नौकरी देने नहीं आती. हमें एक ऐसी जगह पर कैंपस चाहिए जहां हमें कॉर्पोरेट और टेक्निकल एक्सपोज़र मिले और कंपनियां भी प्लेसमेंट के लिए आएं. फैकल्टी में भी सुधार की ज़रूरत है. आईआईटी रुड़की से फैकल्टी तो आती है लेकिन वह भी एक महीने से ज़्यादा नहीं रुक पाती क्योंकि यहां पर रिसर्च को लेकर कोई प्रावधान नहीं है.’

दुर्गम इलाके में होने के साथ-साथ वहां इस इलाके में कोई एडवांस्ड मेडिकल सुविधा नहीं है. नीलम मीणा का मामला बताते हुए विनय स्वामी ने कहा, ‘न तो यहां कोई मेडिकल सुविधा है, और न ही इमरजेंसी पड़ने पर कोई हवाई एम्बुलेंस. मीणा को सड़क मार्ग से अस्पताल ले जाया गया जिससे देर हुई और उनके शरीर में ब्लड क्लॉट कर गया. यहीं पास में ढंग की मेडिकल सुविधा होती, तो शायद उनको इतनी क्षति न पहुंचती.’

स्थानीय विधायक धन सिंह रावत और आइडीपीएल के अधिकारियों से दिप्रिंट ने संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन व्यस्तता के कारण उनके बयान प्राप्त नहीं हो सके. इस रिपोर्ट को उनके बयान आने के बाद अपडेट कर दिया जाएगा.

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