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भीमा कोरेगांव मामले में ‘नए सबूत’ के साथ गौतम नवलखा, हनी बाबू और चार अन्य को आरोपी बनाने की तैयारी में NIA

पहले ही तैयार किए जा चुके आरोपपत्र में कहा गया कि आरोपी ‘नक्सलियों के शहरी सहयोगियों के तौर पर’ काम कर रहे थे.

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पुणे शहर के निकट कोरेगांव भीमा विजय स्तंभ की 201वीं वर्षगांठ पर पहुंचे लोग। फाइल फोटो: पीटीआई

नई दिल्ली: राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा इस साल जनवरी में भीमा कोरेगांव मामले की जांच अपने हाथ में लिए जाने के करीब आठ महीने बाद यह एजेंसी ‘नए साक्ष्य’ के साथ केस में एक आरोपपत्र दायर कर सकती है. दिप्रिंट को मिली जानकारी में यह बात सामने आई है.

चार्जशीट में जिन लोगों का नाम होगा उनमें एक्टिविस्ट गौतम नवलखा, गोवा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के प्रोफेसर आनंद तेलतुंबडे, दिल्ली विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर हनी बाबू और कबीर कला मंच के तीन कलाकार- सागर गोरखे, रमेश गाइछोर और उनकी पत्नी ज्योति जगताप शामिल हैं.

गाइछोर, जगताप और गोरखे को सितंबर के शुरू में गिरफ्तार किया गया था जबकि तेलतुंबडे और नवलखा ने इस साल अप्रैल में एनआईए के सामने आत्मसमर्पण किया था. बाबू को इसी साल जुलाई में गिरफ्तार किया गया था.

इन सभी के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं के अलावा कड़े गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया गया है.

एनआईए के एक सूत्र के मुताबिक, आरोपपत्र में कहा गया है कि आरोपी ‘नक्सलियों के शहरी सहयोगी के तौर पर’ काम कर रहे थे.

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यद्यपि एनआईए के आरोपपत्र में छह लोगों का नाम है लेकिन इसमें सामाजिक अधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज, जो 2018 से न्यायिक हिरासत में हैं, एक्टिविस्ट वर्नोन गोंसाल्विस, अरुण फरेरा, प्रोफेसर शोमा सेन और अन्य को छोड़ दिया गया है. भारद्वाज के खिलाफ पुणे पुलिस ने इसी साल जनवरी में चार्जशीट दायर की थी.

भारद्वाज और वरवारा राव को 26 अगस्त 2018 को गोंसाल्विस और फरेरा के साथ गिरफ्तार किया गया था, वहीं सेन को 6 जून 2018 को हिरासत में लिया गया था.

भारद्वाज, राव और सेन पर भीमा कोरेगांव जंग के 200 साल पूरे होने के मौके पर 31 दिसंबर 2017 को आयोजित एल्गार परिषद नाम के एक कार्यक्रम के दौरान भड़काऊ भाषण देकर दंगे भड़काने का आरोप लगाया गया है.

नवंबर 2018 में पुणे पुलिस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रचने को लेकर एक्टिविस्ट रोना विल्सन के खिलाफ एक चार्जशीट दायर की थी. इसमें एक्टिविस्ट सुधीर धवले और महेश राउत, नागपुर के वकील सुरेंद्र गाडलिंग और प्रोफेसर सेन का नाम भी शामिल किया गया था.

पुणे पुलिस ने इस साल जनवरी में भारद्वाज और फरार माओवादी नेता गणपति सहित पांच लोगों के खिलाफ एक विशेष यूएपीए अदालत में पूरक आरोपपत्र दायर किया था.


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‘नए साक्ष्य साजिश का खुलासा करते हैं’

एनआईए सूत्र के अनुसार, आरोपपत्र में एल्गार परिषद के आयोजन से पहले और बाद की ‘पूरी साजिश के साक्ष्यों’ को आधार बनाया गया है जो पुणे पुलिस के पास नहीं थे.

सूत्र ने कहा, ‘हमारे पास इसका सबूत है कि बैठक कैसे आयोजित की गई थी, कैसे हिंसा फैलाने की साजिश रची गई थी. हमने ऑन रिकॉर्ड तकनीकी साक्ष्य, दस्तावेज और मौखिक साक्ष्य जुटाए हैं जो यह बताते हैं कि यह सब एक साजिश के तहत हुआ.’

सूत्र ने कहा, ‘हमने पुणे पुलिस की तरफ से फूलप्रूफ चार्जशीट तैयार करने में रह गई खामियों को भी दूर कर दिया है.’

क्या है पूरा मामला

8 जनवरी 2018 को पुणे में रहने वाले तुषार दामगुडे की तरफ से दायर एक शिकायत में गोरखे, गाइछोर, जगताप और कबीर कला मंच के दीपक ढेंगले और दलित अधिकार समूह रिपब्लिकन पैंथर्स के हर्षाली पोतदार और सुधीर धवले पर एल्गार परिषद कार्यक्रम में कथित तौर पर उत्तेजक भाषण देकर सांप्रदायिक तनाव पैदा करने का आरोप लगाया गया.

इस पर इन कार्यकर्ताओं के खिलाफ कथित भड़काऊ भाषण देने के मामले में एक प्राथमिकी दर्ज की गई.

जून 2018 में पांच एक्टिविस्ट- गाडलिंग, सेन, राउत, धवले और विल्सन- को पुणे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और उन पर यूएपीए के तहत आरोप लगाए. इसके बाद भारद्वाज और राव सहित चार अन्य कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया.

उसी साल नवंबर में इन एक्टिविस्ट और 10 अन्य पर प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की साजिश रचने और देश और महाराष्ट्र राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ने और आतंकवाद के कथित कृत्यों को लेकर आरोप लगाए गए.

पुणे पुलिस की तरफ से इस मामले में 19 आरोपियों के खिलाफ आरोपपत्र का मसौदा पुणे की एक विशेष यूएपीए अदालत में दायर किया गया था.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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