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मोदी सरकार धारा 370 को फरवरी में ही हटाना चाहती थी, पुलवामा हमले ने इसे टाल दिया

पूर्व वित्तमंत्री अरुण जेटली, अमित शाह, सुषमा स्वराज और राजनाथ सिंह ने फरवरी में मुलाकात की थी और तय किया गया था कि लोकसभा के चुनाव से पहले धारा 370 को हटा दिया जायेगा.

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नई दिल्ली में घोषणा पत्र के विमोचन के समय पीएम नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, फाइल फोटो, प्रवीण जैन/ दिप्रिंट

नई दिल्ली:  जम्मू कश्मीर से धारा 370 को हटाने का निर्णय मोदी सरकार ने फरवरी में अपने पहले कार्यकाल ही ले लिया था. इस योजना की घोषणा लोकसभा चुनाव के पहले की जानी थी.

लेकिन, सरकार को अपनी इस योजना को टालना पड़ा क्योंकि सीआरपीएफ की टुकड़ी पर जैश-ए-मोहम्मद के आत्मघाती हमलावर ने पुलवामा में हमला किया था जिसमें 40 जवान मारे गए थे जिसके बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया था.

शीर्ष सरकारी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि पुलवामा हमले के बाद धारा 370 के विवादास्पद निर्णय को ‘किसी बेहतर समय के लिए’ फिर टाल दिया गया था.

गृह मंत्रालय के एक सूत्र ने बताया कि फरवरी में पूर्व वित्तमंत्री अरुण जेटली, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने बैठक में भाग लिया था और ये फैसला लिया गया था इसकी घोषणा चुनाव के पहले की जाये.

गृह मंत्रालय को कहा गया था कि वो बड़े फैसले की ‘तैयारी शुरू करें’, जिसमें सुरक्षा बलों को तैनात करना और कानूनी सलाहकारों से बात करना शामिल था.

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एक सूत्र ने बताया कि ‘योजना यह थी कि ये बड़ी घोषणा चुनाव के पहले की जायेगी कि धारा 370 और 35ए हटाया जा रहा है पर पुलवामा हमले के बाद प्राथमिकताए बदल गईं. सारी बात बालाकोट के सर्जिकल स्ट्राईक के इर्द-गिर्द घूमने लगी और इस घोषणा को छोड़ दिया गया.’

दिप्रिंट को पता चला है कि गृह मंत्रालय ने एक ड्राफ्ट के साथ तैयार था जो कि फरवरी में राष्ट्रपति के पास भेजा गया था. साथ ही सरकार अपनी सफाई में क्या कहेगी उसका मसौदा भी तैयार था.

सही समय का इंतज़ार

उसी सूत्र ने बताया कि ‘बस समय की बात थी. सारी तैयारी लोकसभा के चुनाव घोषणा पत्र के पहले ही कर ली गई थी.’

उन्होंने साथ ही कहा, ‘ सरकार का दृढ निश्चय था कि इसे हटाना है, सब तैयार था. वे बस सही समय का इंतज़ार कर रहे थे और इससे अच्छा समय कब हो सकता था जब संसद का सत्र चल रहा हो.’

एक दूसरे सूत्र ने कहा कि ये निर्णय तो लिया ही जाना था. सरकार ने पहले ‘न्यूनतम कदम’ उठाने की सोची थी, पहले बस धारा 35ए हटाने का फैसला लिया गया पर फिर बाद में ‘बड़ी तस्वीर’ के मद्देनजर धारा 370 को वापिस लेने का फैसला लिया.

मोदी शाह के नेतृत्व की भाजपा सरकार के भारी बहुमत से सत्ता में लौटने के बाद आर्टिकल 35ए और 370 को हटाना एक बड़ी प्राथमिकता बन गई थी.

एक तीसरे सूत्र ने बताया कि विचार ये था कि ‘इसे जल्द से जल्द किया जाये और तीन चार महीने का समय तय किया गया था.’

सूत्र ने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने ‘इसे अपनी निजी प्राथमिकता माना है.’ खासकर क्योंकि ये भाजपा के दशकों से मंत्र रहा है. भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने लगातार जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले इस प्रावधान की आलोचना की थी.

एक सूत्र ने बताया कि ‘योजना यह थी कि ये बड़ी घोषणा चुनाव के पहले की जायेगी कि धारा 370 और 35ए को हटाया जा रहा है, पर पुलवामा हमले के बाद प्राथमिकताए बदल गईं. सारी बात बालाकोट के सर्जिकल स्ट्राईक के इर्द-गिर्द घूमने लगी और इस घोषणा को छोड़ दिया गया.’

दिप्रिंट को पता चला है कि गृह मंत्रालय एक ड्राफ्ट के साथ तैयार था जो कि सोमवार को फरवरी में राष्ट्रपति के पास भेजा गया था. साथ ही सरकार अपनी सफाई में क्या कहेगी उसका मसौदा भी तैयार था.

मई में सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने इसी ध्येय को पूरा करने के लिए हर बारीक से बारीक डीटेल पर काम किया. जून के अंत में गृहमंत्री अमित शाह के सत्ता में आने के एक महीने के अंदर ही जम्मू कश्मीर की यात्रा इसी योजना की कड़ी थी, जैसे की राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की जुलाई के अंतिम सप्ताह में राज्य की यात्रा.

डोभाल की दो दिन की यात्रा की वापसी के बाद हज़ारों अर्धसैनिक बलों को वहां तैनात किया गया. पत्रकारों के समूहों को केंद्र सरकार द्वारा कश्मीर का दौरा कराया गया था.

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