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मोदी सरकार ने आखिरकार माना कि वह नहीं दे रही श्रमिक स्पेशल से जा रहे मजदूरों का किराया, राज्य दे रहे हैं

मोदी सरकार ने प्रवासी श्रमिकों के रेल किराए के भुगतान को लेकर चली आ रही अपनी भूमिका पर असमंजस के बाद सुप्रीम कोर्ट में सफाई पेश कर दी है.

Uttar Pradesh, May 25 (ANI): Migrants run to board buses to reach their native places after arriving from a special train during lockdown in Prayagraj on Monday. (ANI Photo)

नई दिल्ली: मोदी सरकार ने गुरुवार को आखिरकार यह साफ कर दिया है है कि श्रमिक एक्सप्रेस से चलने वाले श्रमिकों के लिए वह कुछ भी अदा नहीं कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट को उन्होंने कहा कि उनका बिल राज्य सरकार ही दे रही है.

बहुत सारे भ्रमों के बाद कि वास्तव में प्रवासी मजदूरों की यात्रा का बिल कौन अदा कर रहा है, अदालत में यह बयान आया है. केंद्र सरकार के कुछ बयानों से यह संकेत मिल रहा था कि केंद्र सरकार 85 फीसदी किराए का भुगतान कर रही है और शेष 15 फीसदी भुगतान राज्य सरकारें कर रहीं हैं. भाजपा के प्रवक्ता संबित पात्रा ने भी इस महीने के शुरुआत में यह दावा किया था कि मजदूरों के 85 फीसदी बिल का भुगतान केंद्र सरकार कर रही है.

कोविड -19 लॉकडाउन के बीच देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे प्रवासी मजदूरों को हो रही समस्याओं पर एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने यह सफाई पेश की है. यह वर्चुअल हियरिंग थी.

अदालत को दिए एक बयान में, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, जो केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, ने कहा कि रेलवे द्वारा आयोजित विशेष श्रमिक ट्रेनों का किराया या तो उन राज्यों की सरकारें दे रहीं हैं जहां ट्रेनें जा रहीं हैं या फिर वो राज्य सरकारें दे रहीं हैं जहां से ट्रेनें खुली हैं.

सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच जिसमें न्यायाधीश अशोक भूषण. एस के कौर और एम आर शाह शामिल थे ने कहा कि प्रवासी श्रमिकों को किराए का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं है.

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पीठ द्वारा यह पूछे जाने पर कि यह कैसे सुनिश्चित किया जा सकता है कि प्रवासी श्रमिकों को टिकट के भुगतान करने के लिए परेशान नहीं किया जा रहा है, तब मेहता ने कहा कि राज्यों को अदालत में अपनी रिपोर्ट पेश करनी चाहिए.


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‘कोई विसंगति नहीं’

श्रमिक ट्रेन वह विशेष ट्रेन हैं जो मजदूर जिन राज्यों में फंसे हुए हैं उन्हें वहां से उनके मूल राज्यों में पहुंचा रही है. ट्रेन की घोषणा केंद्र सरकार द्वारा लॉकडाउन तीन की घोषणा के एक दिन पहले 1 मई को की गई थी.

इस हंगामें की शुरुआत इस बात से हुई थी कि जब समाचार पत्रों और खबरों में रिपोर्ट्स आईं कि प्रवासी मजदूरों पर लॉकडाउन की दोहरी तिहरी मार पड़ी है, अब उन्हें ट्रेन की यात्रा के लिए भी टिकट लेनी पड़ रही है.

2 मई को रेलवे द्वारा जारी एक अधिसूचना के अनुसार, राज्य सरकारों को यात्रियों से टिकट का किराया वसूलना था और रेलवे को यह राशि सौंपनी थी.

जैसा कि इन आरोपों ने एक राजनीतिक विवाद भी पैदा किया, विपक्षी दलों, विशेष रूप से कांग्रेस ने, इस मुद्दे पर मोदी सरकार पर हमला बोला. तब केंद्र सरकार ने कहा कि वह राज्यों के साथ 85 प्रतिशत -15 प्रतिशत के आधार पर ‘लागत’ को विभाजित कर रही है।

पिछले सप्ताह, एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए, रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष वी.के. यादव ने इस दावे को दोहराया.

रेलवे मंत्रालय के एक अधिकारी ने इस विसंगति के बारे वर्णित करने हुए कहा, केंद्र सरकार ने कभी नहीं कहा था कि वह इन टिकटों की लागत का 85 प्रतिशत वहन कर रही है, लेकिन इस बात को बनाए रखा था कि इन ट्रेनों को चलाने की लागत का 85 भुगतान कर रही है. अधिकारी ने कहा, टिकट का किराया 15 फीसदी है.

अधिकारी ने कहा, ‘एक ट्रेन चलाने में कई लागत शामिल होती हैं … टिकट किराया इसका एक हिस्सा है.’ ‘सरकार ने आज अदालत को जो बताया है वह पहले की कही गई बातों के विपरीत नहीं है.ट

दिप्रिंट रेलवे मंत्रालय के एक प्रवक्ता को इन सवालों के जवाब के लिए व्हाट्सएप के माध्यम से एक टिप्पणी चाहता था, लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक कोई प्रतिक्रिया प्राप्त नहीं हुई.

एक विपक्षी शासित राज्य के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इस मुद्दे पर जिस तरह भी बयानबाजी हो रही है वह महज मामले की ‘लीपा-पोती’ करना है.

‘लंबे समय तक य़ह कहे जाने के बाद कि, वे लागत का 85 प्रतिशत वहन कर रहे हैं, कम से कम आज उन्होंने स्वीकार किया है कि वह नहीं बल्कि राज्य सरकारें ही प्रवासियों की यात्रा के लिए भुगतान कर रही हैं.’

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र सरकार और राज्यों को आदेश दिया कि वे अपने मूल शहरों में वापस जाने के इच्छुक प्रवासी कामगारों से ट्रेन किराया या बस शुल्क न लें.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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