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ममता के दक्षिण बंगाल के गढ़ को भेदने में BJP के लिए अहम है माटुआ लेकिन CAA पर टिका है समर्थन

30 जनवरी को गृह मंत्री अमित शाह, ठाकुरनगर में माटुआ समुदाय को संबोधित करेंगे जहां समुदाय के नेता अपेक्षा कर रहे हैं कि वो नागरिकता संशोधन अधिनियम की समय सीमा पर विस्तार से प्रकाश डालेंगे.

पश्चिम बंगाल में भाजपा समर्थक | एएनआई

ठाकुरनगर: पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना ज़िले में हाबरा और बनगांव साउथ चुनाव क्षेत्रों से होकर ठाकुरनगर जाने वाली सड़क पर बहुत सारी भीड़भाड़ वाली बस्तियां हैं, जो अधिकतर अनियमित शर्णार्थी कॉलोनियां और बाज़ार हैं.

लेकिन ये शहर, जो हिंदू अल्पसंख्यक समुदाय माटुआ का मुख्यालय है, बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस के बीच लड़ाई का मैदान रहा है.

अगले दो हफ्ते तक, ठाकुरगंज में बीजेपी की ओर से बड़ी जनसभाएं होंगी, जो माटुआ लोगों के अहम वोट आकर्षित करने की होड़ में लगी है, जो देश बंटवारे के समय शर्णार्थियों के तौर पर यहां आए थे.

चुनावी तौर पर महत्वपूर्ण होने के अलावा, माटुआ समुदाय पिछले कई वर्षों में प्रदेश की राजनीति का हिस्सा भी रहा है. फिलहाल, इसमें एक बीजेपी खेमा है और एक तृणमूल खेमा. बीजेपी खेमे की, जो समुदाय का एक अच्छा बड़ा हिस्सा है, कि एक बुनियादी मांग है- नागरिकता.

30 जनवरी को गृह मंत्री अमित शाह, ठाकुरनगर में माटुआ समूह को संबोधित करेंगे जिसका आयोजन माटुआ महासंघ की ओर से, ठाकुरनगर मंदिर परिसर में किया जा रहा है. शाह को संगठन ने आमंत्रित किया था जिसे अपेक्षा है कि वो नागरिकता संशोधन अधिनियम को अमलीजामा पहनाने की ‘समय सीमा’ पर प्रकाश डालेंगे.

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समुदाय के नेताओं के अनुसार, अगर शाह ने समुदाय के लिए ‘कुछ मुनासिब’ नहीं कहा तो बीजेपी दक्षिण बंगाल में दो दर्जन से अधिक सीटें गंवा सकती है.


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पश्चिम बंगाल में चुनावी रूप से अहम

पश्चिम बंगाल की पूरी आबादी में माटुआ समुदाय के सदस्यों की संख्या लगभग 2 करोड़ (20 प्रतिशत) है और ये पांच ज़िलों में फैले हुए हैं- उत्तर 24 परगना, नादिया, हावड़ा और दीनजपुर (उत्तर व दक्षिण).

दक्षिण बंगाल के उत्तर 24 परगना, नादिया और हावड़ा के कुछ हिस्सों के कम से कम 30 चुनाव क्षेत्रों में माटुआ समुदाय कुल आबादी का 40-50 प्रतिशत से अधिक है.

151 सीटों के साथ दक्षिण बंगाल, हालांकि पारंपरिक रूप से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का गढ़ रहा है लेकिन 2019 लोकसभा चुनावों में बीजेपी, सीएए लागू करने के अपने वादे के साथ, यहां उत्तर 24 परगना ज़िले में सेंध लगाने में कामयाब हो गई थी. इस ज़िले में 33 विधानसभा सीटें हैं और 2016 में इनमें से 27 ममता बनर्जी की झोली में गईं थीं.

2019 के आम चुनावों में वो सभी 12 विधानसभा क्षेत्रों में बीजेपी से परास्त हो गईं. इनमें से चार- बागड़ा, बनगांव उत्तर, बनगांव दक्षिण और गायघाट- एससी सीटें हैं जिनमें 80 प्रतिशत आबादी माटुआ है. ये समुदाय और सात सीटों पर भी अहम है. इस तरह, माटुआ लोग उत्तर 24 परगना की एक दर्जन से अधिक सीटों पर महत्वपूर्ण हैं इसलिए बीजेपी के लिए उनकी बहुत अहमियत है.

माटुआ समुदाय का एक और दक्षिण बंगाल ज़िले- नादिया में भी बहुत प्रभाव है. 2019 में ज़िले की 17 में से 6 विधानसभा सीटों पर आगे रहीं थीं जबकि बाकी सभी में बीजेपी अच्छे खासे अंतर से आगे रही थी. 17 में से 5 सीटें एससी के लिए आरक्षित हैं.

स्थानीय नेताओं ने दिप्रिंट से कहा कि ‘सीएए का टोकन कार्यान्वयन’ भी बीजेपी को उत्तर 24 परगना और नादिया ज़िले में कई सीटें जिता सकता है.

ठाकुरनगर का माटुआ मंदिर | फोटो: मधुपर्णा दास | दिप्रिंट

परिवार, राजनीति और टीएमसी-बीजेपी टकराव

ठाकुरनगर, जो कोलकाता से 75 किलोमीटर दूर है और भारत-बांग्लादेश सीमा से सिर्फ 20 किलोमीटर दूर है, माटुआ समुदाय का गढ़ है.

ठाकुर बाड़ी परिसर में एक बड़ा मंदिर, एक स्कूल, एक अच्छे से रखा हुआ तालाब, एक विशाल कम्यूनिटी सेंटर, संस्थापक ठाकुर परिवार के तीन शानदार आवास और स्वर्गीय माटुआ कुलमाता बीनापाणी देवी का एक छोटा सा एक-मंज़िला घर, जिन्हें ‘बरो मां ’ भी कहा जाता है.

वैष्णव हिंदुओं के एक पंथ माटुआ समाज के लोग, बंटवारे के बाद भारत आए थे. पिता-पुत्र जोड़ी हरि चंद और गुरु चंद ठाकुर जिन्होंने पंथ को स्थापित किया और बसाया- के वंशजों ने आमतौर से सत्ताधारी पार्टी का समर्थन किया है.

माटुआ समाज के गैर-राजनीतिक संगठन की निष्ठा, पारंपरिक रूप से सत्ता में बैठी पार्टी के हिसाब से बदलती रही है.

बीनापति के पति पीआर ठाकुर, कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता और विधायक थे, जब उसका बंगाल में राज था. बाद में, 1970 के दशक में पंथ ने भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) को समर्थन देना शुरू कर दिया.

2009 के बाद से, ममता बनर्जी ने इस पंथ के लोगों के बीच अपना समर्थन जुटाना शुरू कर दिया. बनर्जी ने बरो मां के साथ एक निजी रिश्ता बना लिया और महासंघ की स्वैच्छिक सदस्यता ले ली जिसके अब पांच लाख से अधिक सक्रिय सदस्य हैं.

2011 में जब ममता सत्ता में आईं, तो बरो मां के बेटों- कपिल कृष्ण और मंजुल कृष्ण को अहम पद दिए गए. कपिल सांसद बन गए जबकि मंजुल को ममता के मंत्रिमंडल में जगह मिल गई. कपिल की मौत के बाद, उनकी पत्नी ममता बाला ठाकुर, 2015 में उपचुनाव जीतकर सांसद बन गईं. इस बीच मंजुल ने कैबिनेट और तृणमूल को छोड़ दिया.

अब इस पंथ के भीतर दो धड़े हैं. तृणमूल धड़ा जिसकी अगुवाई ममता बाला ठाकुर करती हैं और बीजेपी धड़ा जिसके अगुआ मंजुल के बेटे शांतनु हैं जो बीजेपी में आकर 2019 में बनगांव सीट से अपनी चाची को हराकर सांसद बन गए.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पिछले साल चुनावों से पहले बरो मां से मिलने आए थे. मार्च 2019 में उनकी मौत हो गई.

ठाकुरनगर में दिवंगत बरो मां का घर | फोटो: मधुपर्णा दास | दिप्रिंट

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‘हम भारत के रोहिंग्या नहीं बनना चाहते’

ठाकुरनगर को जाने वाली सड़क पर जगह-जगह बीजेपी के झंडे लगे हुए थे, जबकि शहर में स्थित ममता बाला ठाकुर का चार-मंज़िला कार्यालय एवं आवास बंद पड़ा था और वहां सन्नाटा छाया था.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘मैं इलाज के लिए कोलकाता में हूं. लेकिन हम अपना काम कर रहे हैं, माटुआ लोग दीदी के साथ हैं’. लेकिन परिसर के आसपास तृणमूल के कोई झंडे या लोग जमा नहीं थे.

एक वरिष्ठ तृणमूल नेता ने, जो नाम नहीं बताना चाहते थे, कहा, ‘दीदी सीधे उन तक पहुंच रही हैं. बरो मां की मौत के बाद उनके बेटों ने जो बीजेपी नेता हैं, संघ को राजनीतिक बना दिया है’.

और इस समर्थन को बीजेपी सिर्फ इस वजह से जुटा पाई है कि वो नागरिकता देने का मायावी वादा करती आई है.

राजनीतिक विश्लेषक बिश्वनाथ चक्रबर्ती ने दिप्रिंट से कहा, ‘सीएए की घोषणा के बाद से माटुआ लोग बीजेपी की ओर आकर्षित हो रहे हैं. वो किसी भी कीमत पर नागरिकता चाहते हैं. अभी ये देखा जाना बाकी है कि अगर बीजेपी चुनावों से पहले सीएए को लागू नहीं कर पाती तो उनकी प्रतिक्रिया क्या रहेगी’.

बीजेपी सांसद शांतनु के बड़े भाई सुब्रत ठाकुर ने दिप्रिंट से कहा, ‘सियासत के नाम पर हमारे साथ दशकों से धोखा किया जाता रहा है. लियाकत-नेहरू समझौते से लेकर राजीव गांधी की अवैध प्रवासी नीतियों और अब 2003 के कानून तक, हर बार बांग्लादेश से आए हिंदू प्रवासियों का भविष्य अधर में लटक जाता है. हमारी भावी पीढ़ियां सत्ताधारी व्यवस्था की सनक के सहारे नहीं रह सकतीं’. सुब्रत माटुआ महासंघ के संघाधिपति भी हैं.

उन्होंने आगे कहा, ‘हम भारत के रोहिंग्या नहीं बनना चाहते. वो दशकों से वहां रह रहे थे. एक दिन अचानक सेना ने उन्हें वहां से भगा दिया. हमें सबसे पहले नागरिकता चाहिए. इस मांग के साथ कोई समझौता नहीं हो सकता’.

इसी मांग की गूंज पूरे शहर में सुनाई पड़ती है.

महासंघ के एक वरिष्ठ सदस्य मिथु बिस्वास ने कहा, ‘हमारे पास मताधिकार हैं लेकिन अपनी नागरिकता साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है. 2003 में सरकार ने कहा कि 1971 के बाद भारत में दाखिल हुए लोगों को भारतीय होने के नाते अपनी वंशावली को साबित करना होगा. हम सत्तारूढ़ पार्टी की दया पर रहते हैं’.

भाजपा सांसद शांतनु ठाकुर के बड़े भाई सुब्रत ठाकुर | फोटो: मधुपर्णा दास | दिप्रिंट

‘सीएए, एक झूठा एजेंडा’

इस बीच, तृणमूल अपना ध्यान बीजेपी के सीएए के ‘झूठे एजेंडे’ को बेनकाब करने में लगा रही है.

बनगांव दक्षिण से दो बार के तृणमूल विधायक सुरजीत बिस्वास ने दिप्रिंट से कहा, ‘चुनाव आयोग कहता है कि केवल नागरिक वोट दे सकते हैं, माटुआ लोगों के पास मताधिकार हैं. इसलिए वो नागरिक हैं. दीदी भी यही बात कह रही हैं. ये बीजेपी का झूठा एजेंडा है जो माटुआ लोगों को गुमराह कर रही है और सीएए के नाम पर सांप्रदायिक तनाव को हवा दे रही है. सीएए के नाम पर उन्होंने सभी सीमावर्ती चुनाव क्षेत्रों का ध्रुवीकरण कर दिया है’.

तृणमूल के ज़िला पर्यवेक्षक निर्मल घोष ने भी कहा, ‘दो साल गुज़र गए हैं, जब उन्होंने सीएए का वादा किया था. कोविड ने सरकार को कानून बनाने से नहीं रोका. वो लोगों को मूर्ख बना रहे हैं’.

लेकिन, चुनावी सीज़न के बीच में ठाकुरनगर विधानसभा चुनाव क्षेत्र- गायघाट के स्थानीय तृणमूल विधायक, पुतिन बिहारी रे मौके से नदारद हैं.

बिस्वास ने कहा, ‘वो एक रिटायर्ड नौकरशाह हैं, वो अपने चुनाव क्षेत्र में ज़्यादा नहीं आते’.

लेकिन बीजेपी नेताओं का दावा है कि उत्तर 24 परगना और नादिया ज़िलों में उनकी पार्टी को बढ़त हासिल है.

बीजेपी के बनगांव अध्यक्ष मानसपति देब ने कहा, ‘अगर माटुआ हमारे साथ रहते हैं, तो हम इन दो ज़िलों में ज़्यादा सीटें जीतने की अपेक्षा कर रहे हैं. अमित शाह जी की मीटिंग हमारे लिए अहम है’.

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