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जलाशयों का स्तर घटने के साथ उर्वरक भंडार में कमी रबी सीजन की बुवाई पर पड़ सकती है भारी

बारिश कम होने से प्रमुख कृषि प्रधान राज्यों में जलाशयों का जल स्तर गिर गया है. वहीं, वैश्विक स्तर पर बढ़ती उर्वरक की कीमतों के कारण आयात में गिरावट आई है.

बुआई करते किसान | फाइल फोटो

नई दिल्ली: इस वर्ष कम बारिश होने से जलाशयों का स्तर कम रहना अक्टूबर-नवंबर से शुरू होने वाले रबी की बुवाई के सीजन पर प्रतिकूल असर डाल सकता है.

देश में यूरिया के बाद सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली खाद डि-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) और अन्य प्रमुख उर्वरकों के भंडार में कमी से यह संकट और भी बढ़ सकता है.

देशभर के विभिन्न हिस्सों में कम मानसूनी वर्षा के कारण उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, पंजाब, महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे प्रमुख कृषि प्रधान राज्यों में जलाशयों का स्तर गिर गया है.

वहीं, महामारी के कारण ग्लोबल सप्लाई और लॉजिस्टिक चेन पर पड़े असर के कारण उर्वरकों की कमी हो गई है. इससे दुनियाभर में उर्वरक की कीमतें भी बढ़ी हैं.

रिपोर्टों के अनुसार, वैश्विक कीमतों में वृद्धि के कारण भारत ने अपना आयात घटा दिया है, जिससे देश में उर्वरक भंडार में और कमी आई है.

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इस संकट से उन राज्यों में रबी फसलों की बुवाई पर प्रतिकूल असर पड़ने का खतरा है जो बड़े पैमाने पर मिट्टी की नमी और जलाशयों में पानी की उपलब्धता पर निर्भर हैं.

देशभर में खरीफ फसलों का रकबा पहले ही घट जाने के बीच रबी फसलों की संभावनाओं को संकट उत्पन्न हो गया है.

जलाशयों का स्तर चिंताजनक

9 सितंबर के जारी जलाशय भंडारण बुलेटिन के मुताबिक, देशभर में 130 जलाशयों में उपलब्ध भंडारण पिछले वर्ष इसी अवधि के दौरान उपलब्ध भंडार का सिर्फ 81 प्रतिशत और पिछले 10 वर्षों के औसत भंडारण का 94 प्रतिशत है.

यह स्थिति गंभीर है क्योंकि दक्षिण को छोड़कर देश के लगभग सभी क्षेत्रों में जलाशयों का स्तर पिछले साल के स्तर से नीचे है और पिछले 10 वर्षों के औसत भंडारण से कम है.

बुलेटिन के मुताबिक, ओडिशा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात जैसे कृषि प्रधान राज्यों में इस साल सामान्य बारिश में 20 प्रतिशत से अधिक की गिरावट देखी गई है. खासकर गुजरात और सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थिति ज्यादा विकट है, जहां क्रमशः 43 फीसदी और 35 फीसदी की कमी आई है.

पंजाब जैसे सबसे ज्यादा कृषि उत्पादन वाले राज्यों, जो गेहूं का सबसे बड़ा उत्पादक है, में 25 प्रतिशत की कमी आई है.

उर्वरक की कमी

डीएपी उर्वरक की कमी से यह संकट और गहरा गया है.

उर्वरक विभाग के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, डीएपी की सबसे ज्यादा कमी—करीब 24 प्रतिशत—मध्य प्रदेश में दर्ज की गई है. मध्यप्रदेश एक ऐसा राज्य है जो न केवल रबी खाद्यान्न गेहूं का प्रमुख उत्पादक है, बल्कि प्रमुख रबी दालों और तिलहन जैसे चना और सरसों के उत्पादन में भी आगे है.

 

उर्वरक की कमी महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में भी गंभीर है, जहां जरूरत की तुलना में डीएपी की उपलब्धता 20 प्रतिशत तक कम है.

इसके अलावा, यूपी, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और झारखंड जैसे कई राज्यों में म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी) की कमी है. उत्तर प्रदेश जैसे प्रमुख कृषि राज्यों में रबी की बुवाई से पहले एमओपी में लगभग 12 प्रतिशत की कमी देखी गई है.

देश के कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर की चपेट में होने के कारण रबी फसलों, जिसमें प्रमुख दलहन और तिलहन फसलें जैसे चना और सरसों शामिल हैं, में इस साल पहले से ही महंगाई का खासा असर नजर आ रहा है. सरसों के तेल की कीमतें 200 रुपये प्रति लीटर से अधिक हो चुकी हैं, वहीं विभिन्न दालों की कीमतों में भी तेजी देखी गई है. यही वजह है कि सरकार को इन्हें महामारी से राहत के लिए अपनी मुफ्त राशन योजना से उन्हें वापस लेना पड़ा है.

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