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‘हिंदू नफरत, लव जिहाद, भाई-भतीजावाद’- इंदौर के कॉलेज में ABVP का विरोध झेलते मुस्लिम प्रोफेसर

एक दिसंबर को ABVP ने एक मुस्लिम लेखक की किताब के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया. इसके बाद यह कॉलेज के प्रोफेसरों के खिलाफ 'हिंदूफोबिया' और 'लव जिहाद' के आरोपों में बदल गया.

इंदौर के गवर्नमेंट न्यू लॉ कॉलेज में खड़ी कुछ छात्राएं | सुकृति वत्स | दिप्रिंट

इंदौर: इंदौर में शासकीय नवीन विधि महाविद्यालय (न्यू गवर्नमेंट लॉ कॉलेज) में एक भयानक सन्नाटा पसरा हुआ है.

10 दिन हो गए हैं. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने कॉलेज की लाइब्रेरी में एक ‘हिंदूफोबिक’ किताब होने का दावा किया था. उनके इन आरोपों के चलते शिक्षकों को निलंबित कर दिया गया और पुलिस मामला भी दर्ज किया गया. कोई नहीं जानता कि इस शांत से दिखने वाले लॉ कॉलेज में स्थिति कैसे तेजी से बदलती चली गई.

एक दिसंबर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की छात्र शाखा एबीवीपी ने कॉलेज की लाइब्रेरी में एक रेफरेंस किताब के खिलाफ विरोध में प्रदर्शन करना शुरू किया था. इस विवाद की जड़ में डॉ. फरहत खान की लिखी दो किताबें थीं- ‘कलेक्टिव वायलेंस एंड क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम’ और ‘वीमेन एंड क्रिमिनल लॉ’

एबीवीपी ने दावा किया कि इन किताबों में ‘हिंदू विरोधी’ बातें लिखी हुई हैं.

लेकिन किताबों के खिलाफ आरोपों के रूप में शुरू हुआ यह सिलसिला, जल्दी ही कॉलेज के मुस्लिम प्रोफेसरों के खिलाफ ‘हिंदू नफरत’, ‘लव जिहाद’ और ‘भारत विरोधी प्रचार’ के आरोपों में बदल गया. पांच संकाय सदस्यों को निलंबित कर दिया गया. कॉलेज के प्रिंसिपल इनामुल रहमान ने 3 दिसंबर को विवाद पर इस्तीफा दे दिया. लेकिन बाद में उन्हें भी निलंबित कर दिया गया.

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राज्य सरकार की ओर से आरोपों की जांच के आदेश देने के बाद ये सारा घटनाक्रम हुआ है.

सात सदस्यीय टीम की जांच रिपोर्ट के आधार पर कॉलेज के प्राचार्य डॉ इनामुल रहमान और सहायक प्रोफेसर डॉ मिर्जा बेग को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है. उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव ने गुरुवार को एक ट्वीट में कहा, ‘कॉलेज में नियुक्त तीन गेस्ट प्रोफेसरों को भी हटा दिया गया है.’

इंदौर में गवर्नमेंट न्यू लॉ कॉलेज का सुनसान गलियारा | सुकृति वत्स | दिप्रिंट

इसके अलावा एबीवीपी की एफआईआर पर पुलिस जांच भी चल रही है.

छात्रसंघ का दावा है कि यह कोई अचानक होने वाली घटना नहीं है. उनका विरोध कॉलेज के ‘मुस्लिम प्रोफेसरों’ के खिलाफ तीन साल से चल रहा था और सबूत सामने आने पर ये कार्यवाही की गई है.

कॉलेज की एबीवीपी इकाई के अध्यक्ष दीपेंद्र सिंह ठाकुर ने दिप्रिंट को बताया, ‘15 फैकल्टी मेंबर्स में से नौ मुस्लिम हैं. ये मुस्लिम प्रोफेसर अपनी व्यक्तिगत राय जैसे कश्मीर, भारतीय सेना और अनुच्छेद 370 पर विचारों को कक्षाओं में ला रहे थे, जिन्हें निष्पक्ष माना जाता है.’

आरोपों की जांच कर रहे भंवरकुआं पुलिस स्टेशन के स्टेशन हाउस ऑफिसर शशिकांत चौरसिया ने कहा कि पुलिस अब विभागीय जांच की रिपोर्ट का इंतजार कर रही है. इसे वे अपना मामला बनाने के लिए सबूत के तौर पर इस्तेमाल करेंगे.

इस बीच किताब के प्रकाशक अमर लॉ पब्लिकेशन ने इससे दूरी बना ली है.

दिप्रिंट ने डॉ. फरहत खान से संपर्क किया लेकिन उन्होंने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.

दिप्रिंट ने भी रहमान और बेग से उनकी प्रतिक्रिया लेने के लिए संपर्क करने की कोशिश की थी लेकिन उनके फोन स्विच ऑफ थे. उनकी तरफ से जवाब मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.


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क्या हैं आरोप

3 दिसंबर को  राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव ने आरोपों की जांच के लिए सात सदस्यीय जांच पैनल की घोषणा की थी.

लेकिन जैसे-जैसे विरोध बढ़ता गया, छह प्रोफेसरों – अमिक खोकर, मिर्जा मोजिज़ बेग, फ़िरोज़ अहमद मीर, सोहेल अहमद वानी, मिलिंद कुमार गौतम और पूर्णिमा भिसे को पांच दिनों के लिए निलंबित कर दिया गया.

उसी दिन कॉलेज के एलएलएम छात्र और इंदौर संभाग के पूर्व एबीवीपी सचिव लकी अहलावत की शिकायत के आधार पर प्राथमिकी दर्ज की गई थी. एफआईआर में रहमान के अलावा बेग, लेखक खान और अमर लॉ पब्लिकेशन पर ‘राष्ट्र के प्रति घृणा’ फैलाने और ‘दुश्मनी को बढ़ावा देने और धार्मिक भावनाओं को आहत करने’ का आरोप लगाया गया है. हालांकि, यह अभी भी साफ नहीं है कि आरोप लगाने के लिए शिकायत में किस सबूत का इस्तेमाल किया गया है.

अहलावत ने दिप्रिंट को बताया कि एबीवीपी तीन साल से ‘सबूत इकट्ठा’ कर रही थी.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘विरोध एकदम से सामने नहीं आया है. यह तीन साल के लंबे निष्कर्षों का परिणाम है, जहां हमने प्रिंसिपल और प्रोफेसरों के खिलाफ सबूत एकत्र किए और सभी आरोपों और मांगों की एक रिपोर्ट बनाई और कॉलेज में इसकी प्रतियां वितरित करते हुए उन्हें दिखाया.’

वह जिस ‘रिपोर्ट’ की बात कर रहे हैं, वह 14 पन्नों की एक बुकलेट है, जिसमें खान की किताब ‘कलेक्टिव वॉयलेंस एंड क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम’ के हाइलाइट किए गए ‘हिंदू-विरोधी पैराग्राफ’ की तस्वीरें हैं.

इंदौर के गवर्नमेंट न्यू लॉ कॉलेज के छात्र | सुकृति वत्स | दिप्रिंट

लेकिन लिस्ट में सिर्फ खान की किताब में ‘अपमानजनक’ कंटेंट ही नहीं है, इसमें प्रोफेसरों के खिलाफ लगाए गए अन्य आरोप भी शामिल हैं – अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बयानों से लेकर, केंद्र सरकार की नई शिक्षा नीति की उनकी आलोचना. एक आरोप तो यह भी है कि मुस्लिम प्रोफेसरों ने रात में छात्राओं को ‘पब और डिस्को’ में ‘आमंत्रित’ किया था.

बुकलेट में यह भी बताया गया है कि कॉलेज में भाई-भतीजावाद फैला हुआ है. उन्होंने आरोप लगाया कि सभी नौ मुस्लिम प्रोफेसर एक-दूसरे के जानकार हैं.

हिंदी में लिखी इस बुकलेट में दावा किया गया है ‘अब तक इस तरह की गतिविधियां सिर्फ जेएनयू में आम थीं, लेकिन यह जहर अब यहां भी फैल रहा है और आपसी संघर्ष का माहौल बनाया जा रहा है.’

कॉलेज के एबीवीपी अध्यक्ष ठाकुर ने दिप्रिंट को बताया – यह सिर्फ किताब नहीं है जो समस्या थी, यह ‘दुश्मनी का पूरा इकोसिस्टम’ रहा है.

रहमान और बेग को विभागीय जांच के बाद तत्काल प्रभाव से ‘निलंबित’ कर दिया गया है, अभी तक आधिकारिक रूप से जीएनएलसी के कार्यवाहक प्रिंसिपल नरेंद्र देव को सूचित नहीं किया गया है, जिन्हें रहमान के इस्तीफा देने के दो दिन बाद 5 दिसंबर को नियुक्त किया गया था.

देव 30 साल से कॉलेज में हैं. उन्होंने  ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैं 23 नवंबर से 3 दिसंबर तक छुट्टी पर था. मुझे 5 दिसंबर से कार्यवाहक प्रिंसिपल का पद संभालने के लिए कहा गया था. उसके बाद से कोई हंगामा नहीं हुआ है.’

आरोपों की जांच करने वाली समिति के सदस्य मथुरा प्रसाद ने दिप्रिंट को बताया कि पैनल ने अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप दी है और इसका निष्कर्ष ‘आदरणीय मंत्री मोहन यादव जी’ को बता दिया गया है. उन्होंने जांच की बारीकियों के बारे में कुछ भी बताने से इंकार कर दिया.

उन्होंने कहा, ‘मैं यह नहीं कह सकता कि आधिकारिक दस्तावेज कब जारी/उपलब्ध कराया जाएगा क्योंकि यह अब उनके अधिकार क्षेत्र में है.’

यह भी स्पष्ट नहीं है कि निलंबन से अधिकारियों का क्या मतलब है, खासकर तब, जब रहमान ने आधिकारिक रूप से निलंबित होने से पहले ही अपना इस्तीफा दे दिया था.


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‘हर किसी को निशाना बनाया जा रहा है’

कॉलेज में इस तरह की घटनाओं ने फैकल्टी और छात्रों दोनों को हैरान कर दिया है.

परीक्षाएं नजदीक आने के कारण कैंपस में छात्र-छात्राओं की संख्या कम हो गई है. कई फैकल्टी मेंबर्स भी छुट्टी पर चले गए हैं.

एलएलबी के एक छात्र अभिनव सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘मुझे नहीं पता कि यह अचानक से क्यों शुरू हो गया. एबीवीपी के छात्रों का मानना था कि जिन किताबों पर सवाल उठ रहे हैं, उन्हें जानबूझकर लाइब्रेरी में रखा गया है. लेकिन मेरी याद में यह 2019 से पहले से है, जब वर्तमान प्रिंसिपल आए थे. लेकिन यह कभी मसला नहीं बना. ऐसी कई किताबें हैं, जो हमेशा सीआरपीसी और आईपीसी के पाठ्यक्रम से संबंधित नहीं होती हैं, जिन्हें सिर्फ सप्लीमेंट्री नॉलेज के लिए पढ़ा जाता है.’

कुछ संकाय सदस्य अभी भी कॉलेज शिफ्ट में सवालों को लेकर घबराए हुए हैं.

एक फैकल्टी मेंबर ने अपना नाम नहीं बताने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘हम किसी भी चीज़ के बारे में नहीं बोलेंगे, हर कोई निशाने पर है’ उन्होंने कहा कि निलंबन का सामना करने वाले चार प्रोफेसर कॉलेज में 10 से ज्यादा सालों से काम कर रहे थे, ‘मैंने कभी ये नहीं सोचा था कि यहां ऐसा कुछ होगा.  यह काफी अच्छा कॉलेज था और अब यह शापित हो गया है.’

एक अन्य फैकल्टी सदस्य ने दिप्रिंट को बताया कि प्रिंसिपल, रहमान, ‘एक अच्छे आदमी’ हैं और जांच रिपोर्ट की संभावना फैकल्टी के खिलाफ बहस करने वाले लोगों के ‘असंतुलित अनुपात’ के कारण है.

उन्होंने कहा, ‘मैं उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानती हूं. वह एक अच्छे इंसान हैं और पूरे राज्य में सबसे अच्छे कानूनी विद्वानों में से एक हैं.’

जो हुआ उसका कोई गवाह नहीं हैं. लेकिन कई छात्र इस बात से सहमत थे कि ABVP जो कह रही है उसमें ‘कुछ सच्चाई’ तो होगी ही.

कॉलेज के एक छात्र आर्यन वर्मा ने कहा, ‘नौ मुस्लिम प्रोफेसर हैं. समस्या यह नहीं है कि वे मुसलमान हैं बल्कि यह है कि वे अपने ही धर्म के लोगों को बढ़ावा दे रहे थे’ वह आगे कहते हैं, ‘मैंने सुना है कि अमिक खोखर सर प्रिंसिपल के भतीजे थे. इन लोगों को ये नौकरियां उनके कानूनी ज्ञान की वजह से नहीं बल्कि भाई-भतीजावाद की वजह से मिली हैं. मुझे यकीन है कि इस तरह के और भी मामले होंगे वरना इतने सारे मुस्लिम प्रोफेसर क्यों होते.’

यहां तक कि एक मुस्लिम छात्र नौशीन शेख का भी मानना था कि एबीवीपी के तर्कों में कुछ दम हो सकता है.

उन्होंने कहा, ‘मैं फैसले से सहमत या असहमत नहीं हूं. लेकिन जो दावा किया गया है अगर वह सच साबित हुआ है कि एक धर्म को दूसरे की कीमत पर श्रेष्ठ कहा जा रहा है, तो यह बहुत गलत है और यह एक न्यायोचित फैसला है.’

लेकिन ऊपर उद्धृत एक संकाय सदस्य का मानना है कि छात्र अब डर के कारण एबीवीपी के तर्कों से सहमत हो रहे हैं.

फैकल्टी मेंबर ने कहा, ‘शुरुआत में सिर्फ ABVP के छात्रों ने विरोध किया था. (अब) स्थिति ऐसी है कि छात्रों को उनसे सहमत होना पड़ रहा है.’

हिन्दू स्त्रियां ‘काम पूर्ति का साधन’ , मुस्लिम महिलाएं स्वतंत्रता से वंचित

पुस्तक पर विवाद के जवाब में रहमान ने दावा किया कि जब उन्हें प्रधानाध्यापक नियुक्त किया गया था, ये किताब उससे पहले से लाइब्रेरी में थी.

उन्होंने पहले मीडिया को बताया था, ‘कलेक्टिव वायलेंस एंड क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम’ नाम का एक कोर्स है. लेकिन इस कोर्स के लिए कोई निर्धारित पाठ्यक्रम नहीं है, छात्र इस विषय पर कोई भी किताब चुन सकते हैं … मुझे अगस्त 2019 में प्रिंसिपल नियुक्त किया गया था. और यह विशेष किताब 2014 से कॉलेज की लाइब्रेरी में है.’

उधर प्रकाशक ने दावा किया कि उन्होंने किताब की सिर्फ 750-1000 प्रतियां ही छापी हैं, जिसे आमतौर पर एलएलएम छात्र एक संदर्भ के रूप में इस्तेमाल करते हैं. और इतनी कम किताबों को वे वापस नहीं ले सकते थे. लेकिन उन्होंने लेखक को प्रशासन से माफी मांगने के लिए कहा.

बुकलेट में हाइलाइट किए गए ‘आपत्तिजनक अंशों’ पर एक नजर डालने से पता चलता है कि लेखक, फरहत खान, हिंदू समाज के महिलाओं के साथ किए जाने वाले व्यवहार के आलोचक थे.

दिप्रिंट द्वारा देखे गए एक अंश में, लेखक ने दावा किया कि हिंदू महिलाएं पुरुष-प्रधान दुनिया में ‘काम पूर्ति का साधन’ थी और हर धार्मिक ग्रंथ बताता हैं कि वे कैसे पुरुषों के अधीन थी.

हालांकि ये लेखक इस्लामिक दुनिया के लिए भी उतना ही बड़ा आलोचक है.

दिप्रिंट ने किताबों के जिन हिस्सों को पढ़ा, उसमें में से एक में लिखा था, ‘इस्लामी कानून महिलाओं के सम्मान पर बहुत जोर देता है, लेकिन वास्तव में, उनके पास सामाजिक, वित्तीय और धार्मिक स्वायत्तता/अधिकारों का अभाव है.’

अहलावत ने दिप्रिंट को बताया कि वह ख़ान की दूसरी किताब, ‘वीमेन एंड क्रिमिनल लॉ’ के ख़िलाफ़ एफ़आईआर में और भी नाम जोड़ने पर विचार कर रहे हैं.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘यह एक राष्ट्रीय मुद्दा है. ‘मैं उसी लेखक की दूसरी पुस्तक के प्रकाशक ‘सेंट्रल लॉ पब्लिकेशंस’ के खिलाफ प्राथमिकी में एक और नाम जोड़ने की योजना बना रहा हूं. यह किताब रहमान के कार्यकाल में लाइब्रेरी में रखी गई थी.’

हालांकि एसएचओ चौरसिया ने कहा कि फिलहाल जांच सिर्फ एक किताब तक ही सीमित है.

पुलिस ने लेखक की पुणे में गिरफ्तारी की खबरों का खंडन करते हुए कहा कि उन्हें सिर्फ आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत नोटिस दिया गया है और जांच में सहयोग करने के लिए कहा गया है.

(अनुवाद: संघप्रिया मौर्य | संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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