होम देश भारत में अफीम की फ़सल सूख रही है, लेकिन तोतों की मौज...

भारत में अफीम की फ़सल सूख रही है, लेकिन तोतों की मौज हो गई है

पोस्त के किसानों का कहना है कि फसल के सूखने के कारण उनके उत्पाद का वज़न घट रहा है, जिससे अफीम की खेती का उनका लाइसेंस रद्द हो सकता है.

राजस्थान का एक पॉपी फार्म/ फोटो:विशेष व्यवस्था के तहत

नई दिल्ली: देशभर में पोस्त के किसान इन दिनों कई तरह से परेशान हैं.

एक तो लॉकडाउन के कारण वो सरकार के नार्कोटिक्स विभाग को अपनी फसल नहीं बेंच पा रहे हैं- जोकि नार्कोटिक्स ड्रग्स एवं साइकोट्रॉपिक सब्सटेंसेज़ एक्ट के अंतर्गत अनिवार्य है.

हर साल अप्रैल में, नार्कोटिक्स विभाग किसानों से अफीम ख़रीदता है. लेकिन इस बार लॉकडाउन के कारण एक महीने से अधिक समय से, अफीम किसानों के घरों में पड़ी है.

दूसरी बात जो ज़्यादा अहम है, वो ये कि किसानों को चिंता है कि अफीम को लम्बे समय तक घरों या गोदामों में रखने से उसकी क्वालिटी ख़राब हो सकती है, जिससे उसका नेट वज़न घट सकता है. मध्य प्रदेश और राजस्थान में पोस्त के किसानों ने दिप्रिंट को बताया कि इसकी वजह से वो अपना लाइसेंस गंवा सकते हैं.


यह भी पढ़ें: लॉकडाउन से बिहार के किसानों के छूट रहे हैं पसीने, पेड़ों पर लीची लदी व्यापारी नदारद- सरकारी योजनाएं हैं नाकाफी


लाइसेंसिंग पॉलिसी के अनुसार, अफीम उत्पाद का नेट वज़न, अगर लाइसेंस देते समय सरकार द्वारा तय किए गए, प्रति हेक्टेयर मानक से कम हो, तो किसान का अफीम की खेती का लाइसेंस रद्द किया जा सकता है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

पॉलिसी में कहा गया है कि केवल वही किसान लाइसेंस के पात्र होंगे, जो प्रति हेक्टेयर कम से कम 53 किलोग्राम अफीम उत्पाद मध्यप्रदेश और राजस्थान में, और कम से कम 45 किलोग्राम उत्तर प्रदेश में बेंचेंगे. पोस्त उगाने वाले किसानों को लाइसेंस देने के लिए, सरकार ने उपज की यही न्यूनतम सीमा तय की है.

एमपी में 9 में से सिर्फ 2 अफीम फैक्ट्रियां चालू

मध्य प्रदेश के मंदसौर ज़िले के पोस्त किसान मनोहर लाल ने दिप्रिंट को बताया, ‘पोस्त की फसल हमारे घरों में पड़ी सूख रही है. अफीम का वज़न घट रहा है, और किसानों को डर है कि उनका अफीम लाइसेंस रद्द किया जा सकता है. उसकी क्वालिटी और मात्रा दोनों को बचाए रखने के लिए, हमें हर रोज़ उसपर निगाह रखनी होती है. अपने उत्पाद की सुरक्षा सुनिश्चित करना भी एक चिंता का विषय है.’

लाल ने बताया कि हर साल 20 अप्रैल तक, नार्कोटिक्स विभाग अफीम की तोल का काम पूरा कर लेता था, लेकिन लॉकडाउन के कारण अभी तक ये काम नहीं हुआ है.

मंदसौर सब-ज़ोन के नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के एक अधिकारी ने, अपना नाम न बताने की शर्त पर, दिप्रिंट को बताया कि मध्य प्रदेश में इस समय, अफीम व एल्कलॉयड की, नौ में से केवल दो फैक्ट्रियां काम कर रही हैं

इसके अलावा, लॉकडाउन के चलते अधिकतर सिक्योरिटी गार्ड्स, जो उत्पादन प्रक्रिया और प्रोसेस की हुई अफीम की तस्करी पर नज़र रखते थे, काम पर नहीं आ रहे हैं.

अधिकारी के अनुसार, ‘अगर फैक्ट्री चलाने के लिए पर्याप्त संख्या में सुरक्षाकर्मी नहीं होंगे, तो किसानों से ख़रीदारी का कोई मतलब नहीं है. इसके अलावा सरकार ने अभी तक हमारे लिए, अफीम ख़रीदारी का कोई आदेश भी जारी नहीं किया है.’

कोई मुआवज़ा नहीं

अफगानिस्तान और म्यांनमार के साथ ही भारत, वैध रूप से अफीम खरीदने वाले दुनिया के सबसे बड़े देशों में से एक है.

अफीम का इस्तेमाल मॉर्फीन, कोडीन और थेबेन जैसी दवाएं बनाने में भी किया जाता है. अफीम के ये अधिकतर उत्पाद या तो देश में ही इस्तेमाल कर लिए जाते हैं, या दवाओं में प्रयोग होने के लिए, विदेशों को निर्यात कर दिए जाते हैं.

मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में, एक लाख से अधिक किसान पोस्त की खेती करते हैं.

अधिकतर किसानों ने बताया कि अफीम की फसल की कटाई, एक महीना पहले ही पूरी हो गई थी.

राजस्थान में, झालावाड़, भीलवाड़ा, उदयपुर, कोटा, चित्तौड़गढ़ और प्रतापगढ़ ज़िलों में अफीम की खेती होती है. केंद्र और प्रदेश सरकार दोनों की उदासीनता के चलते, राजस्थान के अफीम किसान पहले ही पोस्त की खेती छोड़ने की सोच रहे हैं.

चित्तौड़गढ़ ज़िले में अफीम के एक किसान रामनारायण बिजारनिया ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमें अभी तक इस साल बेमौसम मूसलाधार बारिश से हुए नुक़सान का मुआवज़ा नहीं मिला है, जिसमें पोस्त की कलियां ख़राब हो गईं थीं, और जिसका हमारी फसल की उपज पर असर पड़ेगा. सूबे की सरकार ने अभी तक हमारे खेतों में हुए नुक़सान का आंकलन भी नहीं किया है.’

बिजारनिया ने ये भी कहा कि विपरीत हालात के बावजूद, सूबे के किसान इस साल भी अफीम की अच्छी उपज लेने में कामयाब रहे हैं, लेकिन अब केंद्र सरकार उसकी ख़रीद नहीं कर रही है.

प्रतापगढ़ से पोस्त के एक किसान अविनाश चंद मीना की शिकायत थी, कि सरकार ने अफीम ख़रीद के दाम कम रखे हैं.

उन्होंने बताया, ‘हमें एक किलोग्राम अफीम के एक हज़ार रुपए मिलते हैं, जबकि काले बाज़ार में इसकी क़ीमत 50 हज़ार रुपए प्रति किलोग्राम है. दूसरी फसलों के मुक़ाबले अफीम की खेती में, जोखिम और मेहनत दोनों अधिक होती हैं। इसलिए हमें कम से कम 10 हज़ार रुपए प्रति किलोग्राम मिलने चाहिएं, लेकिन ये सरकार तो पुराने दाम पर भी हमारा उत्पाद नहीं ख़रीद रही.’


यह भी पढ़ें: ‘जंगलराज की अनुमति नहीं दे सकते’ – आरएसएस के संगठन ने यूपी-एमपी में श्रम कानूनों में बदलाव को कोविड से बड़ा खतरा बताया


अफीम के आदी तोतों ने मचाई तबाही

पोस्त के किसानों के सामने अफीम उत्पाद की ख़रीद में हो रही देरी ही एकमात्र समस्या नहीं है. अफीम के आदी हो चुके तोतों ने उनकी मुसीबत और बढ़ाई हुई है.

किसानों की शिकायत है कि अफीम के आदी तोते, बारी बारी से उनकी फसल को नुक़सान पहुंचाते हैं, बावजूद इसके कि उन्हें भगाने के बहुत प्रयास किए जाते हैं. पोस्त की फसल के अलावा, अंदर अफीम तक पहुंचने के लिए ये तोते, पोस्त के बीज की फली को भी उधेड़ डालते हैं.

मध्यप्रदेश के नीमच से पोस्त के एक किसान गोपाल साहू ने बताया, ‘पोस्त की एक फली से 30-35 ग्राम अफीम निकलती है, जिसे कटाई के सीज़न में तोतों के बड़े बड़े समूह तबाह कर देते हैं, उनमें के कुछ तो फली को ही लेकर उड़ जाते हैं.’

साहू ने ये भी कहा कि इन तोतों को अफीम की लत पड़ गई है. ये दिन में 30-40 बार खेतों पर वापस आते हैं. फलियों को पकाने के लिए हम उन्हें चीरा लगाते हैं, जिससे उनमें से मॉरफीन रिसने लगता है. ये तोते उस मॉरफीन को चूस लेते हैं.

उन्होंने बताया कि किसान कई साल से अधिकारियों से इन तोतों के बारे में शिकायत कर रहे हैं, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

Exit mobile version