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कार्यपालिका नियुक्तियों में प्रधान न्यायाधीश को शामिल करने के मुद्दे पर विधि विशेषज्ञों की राय अलग-अलग

उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी | एएनआई
इसरो वैज्ञानिक एन. वलारमथी | ट्विटर/@DrPVVenkitakri1

नयी दिल्ली, 15 फरवरी (भाषा) भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) को कार्यपालिका नियुक्तियों में शामिल किया जाना चाहिए या नहीं, इस मुद्दे पर विधि विशेषज्ञों ने शनिवार को अपनी अलग-अलग राय व्यक्त की। कुछ का कहना है कि सीजेआई की भागीदारी प्रक्रिया में निष्पक्षता लाती है, जबकि अन्य की राय थी कि उन्हें ऐसी चयन समितियों में नहीं होना चाहिए।

ये विचार उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा शुक्रवार को इस बात पर आश्चर्य जताए जाने के बाद आए हैं कि सीजेआई, ‘वैधानिक निर्देश’ के बावजूद, सीबीआई निदेशक जैसी कार्यपालिक नियुक्तियों में कैसे शामिल हो सकते हैं। उपराष्ट्रपति ने कहा कि ऐसे मानदंडों पर ‘फिर से विचार’ करने का समय आ गया है।

जहां संवैधानिक मामलों के प्रख्यात विशेषज्ञ और वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि प्रधान न्यायाधीश को सीबीआई निदेशक की नियुक्ति और अन्य कार्यपालिका नियुक्तियों से संबंधित चयन समिति का हिस्सा नहीं होना चाहिए, वहीं वरिष्ठ अधिवक्ता शोएब आलम ने कहा कि ऐसी नियुक्तियों में सीजेआई की भागीदारी से केवल लाभ होता है।

वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि चूंकि 2023 के कानून के तहत मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से संबंधित मामला, जो सीजेआई को चयन समिति से बाहर रखता है, उच्चतम न्यायालय में लंबित है, इसलिए उपराष्ट्रपति को ऐसा बयान नहीं देना चाहिए था।

एक अन्य वरिष्ठ अधिवक्ता मोहित माथुर ने कहा कि चयन प्रक्रिया में सीजेआई को शामिल करना इसे स्वतंत्र और निष्पक्ष रखने के लिए था, ऐसे में उपराष्ट्रपति को ऐसा बयान नहीं देना चाहिए था।

द्विवेदी ने कहा, ‘‘न्यायपालिका को कार्यपालिका और विधायिका से अलग होने और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा न्यायिक समीक्षा शक्तियों का प्रयोग करने के मद्देनजर, प्रधान न्यायाधीश को सीबीआई निदेशक और अन्य कार्यकारी नियुक्तियों से संबंधित चयन समिति का हिस्सा नहीं होना चाहिए। हालांकि, अगर न्यायिक न्यायाधिकरणों में नियुक्तियां होती हैं तो वे इसका हिस्सा हो सकते हैं।’’

आलम ने कहा, ‘‘प्रधान न्यायाधीश की भागीदारी से प्रमुख पदों के चयन में निष्पक्षता आती है।’’ उन्होंने कहा कि हमारे जैसे लोकतंत्र में, ऐसी नियुक्तियों में प्रधान न्यायाधीश की भागीदारी से लाभ मिलता है।

शंकरनारायणन ने कहा, ‘‘चूंकि मामला न्यायालय में विचाराधीन है, इसलिए न तो उपराष्ट्रपति और न ही मुझे इस पर टिप्पणी करनी चाहिए। उन्हें बेहतर जानकारी होनी चाहिए।’’

माथुर ने कहा कि सीबीआई निदेशक के चयन की प्रक्रिया में प्रधान न्यायाधीश के साथ प्रधानमंत्री भी शामिल होते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘ये संवैधानिक पद हैं और मुझे नहीं लगता कि संवैधानिक पदों पर किसी तरह की उंगली उठाई जानी चाहिए।’’

माथुर ने कहा कि उपराष्ट्रपति ऐसा पद है जो सभी पार्टी या सरकारी रुख से परे होना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘राष्ट्रपति की तरह ही उपराष्ट्रपति को भी सभी तरह के पूर्वाग्रहों से ऊपर रहना चाहिए। उन्हें (उपराष्ट्रपति को) इस तरह का बयान नहीं देना चाहिए था।’’ भोपाल स्थित राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी में बोलते हुए धनखड़ ने शुक्रवार को कहा था कि उनके विचार में ‘मूल ढांचे के सिद्धांत’ का बहुत ही ‘विवादास्पद न्यायशास्त्रीय आधार’ है।

शीर्ष अदालत 2023 के कानून के तहत मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के खिलाफ याचिकाओं पर 19 फरवरी को सुनवाई करने वाली है।

भाषा संतोष माधव

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