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विधि आयोग ने राजद्रोह कानून को जरूरी बताया, संशोधन की कुछ सिफारिशें की

आयोग ने यह भी कहा है कि सिर्फ इसलिए कि यह कानून 'औपनिवेशिक' काल का है, इसे खत्म करने का 'वाजिब आधार' नहीं है.

प्रतीकात्मक तस्वीर | विकीमीडिया कॉमन्स

नई दिल्ली : शासन व्यवस्था में राजद्रोह कानून को बनाए का रखने समर्थन करते हुए भारत के विधि आयोग ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124ए को ‘आंतरिक सुरक्षा खतरों’ और देश के खिलाफ अपराधों को रोकने के लिहाज से बनाए रखने की जरूरत है, हालांकि, प्रावधानों में कुछ संशोधन पेश किए जा सकते हैं.

विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में प्रारंभिक जांच अनिवार्य होने, प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों और सजा में संशोधन समेत प्रावधान में संशोधन के संबंध में कुछ सिफारिशें भी की हैं.

आयोग ने कानून मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट दी है, जिसमें कहा गया है कि भारत के आंतरिक सुरक्षा को लेकर खतरे हैं, और नागरिकों की सुरक्षा केवल तभी सुनिश्चित की जा सकती है जब राज्य की सुरक्षा सुनिश्चित हो. इसमें आगे कहा गया है कि सोशल मीडिया भारत के खिलाफ कट्टरता फैलाने और सरकार को नफरत की गिरफ्त में लाने में ‘अधिक प्रसार’ की भूमिका निभा रहा है, कई दफा तो विदेशी ताकतों की मदद भी कर रहा है. इन सब की वजह से धारा 124ए का होना और भी जरूरी है.

अनुच्छेद 19(2) के तहत राजद्रोह को ‘उचित प्रतिबंध’ (रीजनेबल रिस्ट्रिक्शंस) बताते हुए विधि आयोग ने इशारा किया कि सुप्रीम कोर्ट ने धारा 124ए की संवैधानिकता पर विचार करते हुए यह व्यवस्था दी है कि जिस प्रतिबंध को लागू करने की इसमें मांग की गई थी वह एक ‘रीजनेबल रिस्ट्रिक्शन’ हैं, लिहाजा यह कानून ‘संवैधानिक’ है.

इसमें कहा गया है, ‘यूएपीए और एनएसए जैसे कानून खास हैं जो राज्य के प्रति होने वाले अपराधों को रोकना की कोशिश हैं. राजद्रोह कानून, कानून द्वारा, लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकार के हिंसक, अवैध व असंवैधानिक तख्तापलट को रोकना चाहता है.’

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आयोग ने यह भी कहा है कि सिर्फ इसलिए कि यह कानून ‘औपनिवेशिक’ काल का है, इसे खत्म करने का ‘वाजिब आधार’ नहीं है.

इसमें कहा गया है, ‘अगर राजद्रोह को औपनिवेशिक युग का कानून माना जाए तो इसके आधार पर फिर तो भारतीय कानूनी प्रणाली का पूरा ढांचा ही औपनिवेशिक विरासत का है. तथ्य केवल यह है कि यह मूलत: औपनिवेशिक है, जो कि इसे वास्तव में खत्म किए जाने के लिए मान्य नहीं हो सकता.’

इसमें आगे कहा गया है कि हर देश को अपनी ‘खुद की वास्तविकताओं’ से जूझना पड़ता है और राजद्रोह कानून सिर्फ इसलिए ‘नहीं खत्म किया जाना चाहिए’ कि बाकी देशों ने ऐसा किया है.

आयोग ने अपनी सिफारिशों में कहा, ‘राजद्रोह कानून की व्याख्या, समझ और इस्तेमाल में अधिक स्पष्टता लाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के केदार नाथ फैसले को अपनाया जा सकता है. राजद्रोह के लिए प्राथमिकी दर्ज करने के आदेश से पहले पुलिस अधिकारी सबूत के लिए केंद्र द्वारा मॉडल दिशानिर्देश को अपना सकते हैं.’

इस रिपोर्ट में आगे कहा गया है, ‘राजद्रोह के लिए सजा से संबंधित प्रावधान को अधिनियम के पैमाने और गंभीरता के अनुसार अधिक मौका देने के लिए संशोधित किया जाना चाहिए. कानून में संशोधन करने के लिए हिंसा या सार्वजनिक अव्यवस्था को भड़काने की प्रवृत्ति को शामिल किया जाना चाहिए.’

संवैधानिक रूप से आईपीसी की धारा 124ए को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई थी. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को भरोसा दिया था कि वह 124ए की फिर से समीक्षा कर रहा है और कोर्ट ऐसा करने में अपना कीमती समय न गंवाए. और उसी के अनुसार 11 मई, 2022 को पारित आदेश को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और सभी राज्यों की सरकारों को धारा 124ए से जुड़ी सभी जांचों को रद्द करते वक्त कोई भी एफआईआर दर्ज करने और कठोर कदम उठाने से बचने का निर्देश दिया था. इसके अलावा, इसने यह भी निर्देश दिया कि सभी लंबित मुकदमों, अपीलों और कार्यवाहियों को आस्थगित रखा जाए.


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