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‘मेरी आवाज़ ही पहचान है’: लता मंगेशकर के गीतों में प्रेम रस, वेदना और जीवन के तमाम अनुभवों का संसार था

भारतीय संगीत आज जिस मुकाम पर है उसे वो सफलता और वैभव दिलाने में लता मंगेशकर का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. उनका जाना संगीत की दुनिया से एक महत्वपूर्ण सितारे का टूटना है.

लता मंगेशकर, फाइल फोटो | ट्विटर

भारतीय संगीत परंपरा की अद्भुत धरोहर लता मंगेशकर का रविवार को 92वें वर्ष की उम्र में मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. कोविड से संक्रमित होने के बाद उन्हें निमोनिया हो गया था जिस वजह से बीते एक महीने से वो अस्पताल में भर्ती थीं लेकिन रविवार को उन्होंने अपनी आखिरी सांसे लीं.

भारतीय संगीत आज जिस मुकाम पर है उसे वो सफलता और वैभव दिलाने में लता मंगेशकर का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. वो कई पीढ़ियों की आवाज थी और उन्होंने जीवन के हर पहलू को अपनी आवाज से जीवंत बनाया. लता मंगेशकर ने जो विरासत और परंपरा छोड़ी है वो सदियों तक याद की जाती रहेंगी.

लता मंगेशकर का जाना संगीत की दुनिया से एक महत्वपूर्ण सितारे का टूटना है. विश्वभर की संगीत बिरादरी आज दुखी है. लता दीदी न केवल भारतीय संगीत का गौरव हैं बल्कि वो अपने गीतों से हमारे जीवन का हिस्सा बन चुकी थीं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लता मंगेशकर की मृत्यु पर कहा कि उनके जाने से एक शून्य पैदा हुआ है जो कभी भरा नहीं जा सकता.


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संगीत, जीवन और लता मंगेशकर

हमारी जिंदगी में संगीत के क्या मायने हो सकते हैं- अस्थिर समय में स्थिर करने का साधन, बेताब मन को सुकून देने वाला, असमंजस की स्थिति से बाहर निकालने वाला या और कुछ. कुछ भी मानिए हर किसी की जिंदगी से संगीत जुड़ा ही है. इसके कई रूप हो सकते हैं.

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ग्रामीण क्षेत्रों में संगीत माने लोक-गीतों की समृद्धता और त्यौहारों के मौसम में गाए जाने की संस्कृति. शहरी क्षेत्रों में देखें तो सुबह ऑफिस जाते समय अपनी-अपनी गाड़ियों में बजने वाला रेडियो (एफएम) या कानों में लगे ईयरफोन के जरिए रिसते गीत. कुछ तो कारण है कि गीत-संगीत ने सब पर एक छाप छोड़ी हुई है. यह सभी के जीवन का एक हिस्सा बना हुआ है.

अपनी-अपनी क्षेत्रीयता और उपलब्धता को पीछे छोड़ते हुए संगीत प्रेंमियों के बीच चाहे वो ग्रामीण क्षेत्र से हो या शहरी क्षेत्र से, एक बात जो सामान्य है वो है- लता मंगेशकर.

लता मंगेशकर सभी क्षेत्रीयता से बढ़कर हैं और यह बात मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि उनकी मृत्यु की खबर आने से ठीक पहले ही बिहार के मैथिल क्षेत्र में जब मैं बैठा हूं, उस वक्त मेरे आसपास उनका ही एक बहुचर्चित गीत- वैष्णव जन ही बज रहा था. उस वक्त तक ये अंदाजा लगाना भी मुश्किल था कि कुछ देर बाद ही लता दीदी हमारे बीच नहीं रहेंगी.


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पीढ़ीदर पीढ़ी की गायिका

हर किसी के पास लता मंगेशकर को याद करने के अपने कारण हैं. लता पीढ़ीदर पीढ़ी की गायिका हैं. अगर एक परिवार की तीन पीढियां अभी जिंदा है तो उनमें लता को याद किया जाना सामान्य है, बाकी सबकुछ में बदलाव जरूर हो गया हो लेकिन जब पूरा परिवार सुबह या शाम जब भी संगीत सुनने के लिए इकट्ठा होता है तो लता मंगेशकर सबकी पसंदों में से होती हैं.

लेकिन एक गायिका कई पीढियों की पसंद कैसे हो सकती है. वो भी उस समय में जब तकनीक के साथ-साथ लोगों की पसंद तेजी से बदल रही है. ऐसे समय में लता कैसे सबकी पसंद बनी हुई है या आगे भी बनी रहने की संभावना रखती हैं.

लता मंगेशकर की आवाज़ बैचेन होती सांसों को ठहराव देती है, उत्साह भरे माहौल में आनंदित करती है, पीड़ा के क्षण में सुकून देती है. हजारों गाए उनके गाने जीवन की हर दशा को संगीतबद्ध करती है. जिसमें सड़क से लेकर महल में रहने वाला इंसान अपनी-अपनी पसंद से कुछ चुन सकता है.

अपने जीवन के लिए किसी और के जीवन के बिताए अनुभवों में से. लेकिन लता कभी भी इन अनुभवों पर अधिकार जमाते हुए नहीं दिखाई पड़ती. उनके गायन में एक स्वतंत्र अभिव्यक्ति है जो सुरमय गीतों को सुनने के बाद कुछ ठहर कर कुछ बोलने को कहती है. गीतों के ठहराव में प्रेम का रस है, वेदना है, खट्टे-मीठे अनुभवों का संसार है, मौज-मस्ती है, अल्हड़पन है. इसके बावजूद कहीं भी अहंकार और अहम नहीं है. यही लता मंगेशकर के होने का मतलब है और उनके गीतों का श्रोता हो जाना भी है.


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जब नेहरू ने कहा- बेटी आज तूने रुला दिया

1960 के आसपास का समय होगा जब लता मंगेशकर ने ए मेरे वतन के लोगों जरा याद करो कुर्बानी गीत गाया था. एक कार्यक्रम था जिसमें लता को ये गीत गाना था. इस कार्यक्रम में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू अपनी बिटिया इंदिरा गांधी के साथ आए थे. लता दीदी ने जब ये गीत गाया तो देश की मौजूदा स्थिति और देश प्रेम ने सबको झकझोर कर रख दिया. लता दीदी खुद कई बार बता चुकी हैं कि इस गीत को सुनने के बाद लोगों के आंखों में आंसू तक आ गए थे.

जब कार्यक्रम खत्म हुआ तो पंडित नेहरू ने लता को बुलाया. लता बताती हैं कि पंडित जी ने मुझसे कहा- बिटिया आज तो तुमने मुझे रुला दिया. घर पर कब आ रही हो चाय के लिए.


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दिलीप कुमार से ट्रेन में पहली मुलाकात

लता मंगेशकर ने अपने कई साक्षात्कारों में बताया है कि जिस समय हम लोगों ने गाना शुरू किया था वो काफी अलग दौर था. गानों की रिकार्डिंग के लिए हम लोग ट्रेन से सफर किया करते थे. एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए कोई और साधन उस समय उपलब्ध नहीं थे.

एक दिन ट्रेन में सफर करते हुए दिलीप कुमार साहब मिल गए. मेरे साथ एक शख्स थे उन्होंने उनसे मुझे मिलवाया और कहा कि ये लता है और अच्छा गाती है. तो युसुफ साहब (दिलीप कुमार) ने पूछा कि कहां से है ये लड़की. तो उन्होंने बताया कि मराठी है. दिलीप साहब ने कहा कि मराठी है तो इसका तल्लफुज कैसा होगा.

लता आगे बताती हैं कि ये बात उनके मन में गहराई से बैठ गई. उन्हें समझ आ गया कि हिंदी सिनेमा के लिए गाना है तो अपना तल्लफुज ठीक करना होगा. इसके बाद उन्होंने उर्दू सीखनी शुरू कर दी. फिर तो कई ऐसी फिल्में हैं दिलीप कुमार की जिसमें लता मंगेशकर ने उनके लिए गाने गाए हैं.

उन्होंने एक बार कहा था, ‘मेरी आवाज़ 75 फीसदी प्राकृतिक है और बाकी जो बचा वो रियाज़ और अभ्यास करने से है.’

उनकी स्वाभाविक और प्राकृतिक आवाज उनके जाने से ठहर गई, करोड़ों लोगों के संगीत सुनने की वजह खत्म हो गई, संगीतमय दुनिया से वास्ता रखने का एक कारण खत्म हो गया लेकिन उनका संगीत, उनकी विरासत, उनकी सुरीली आवाज हमारे जेहन में सदियों तक घर कर गईं और अब उसी सहारे संगीत के चाहने वाले आगे बढ़ते रहेंगे.


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