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एलएसी की रक्षा में पैनापन लाने के लिए भारतीय सेना देशी लद्दाखी कुत्तों को ऑपरेशनल रोल के लिए प्रशिक्षित कर रही है

लद्दाख में देशी नस्लों में बखरवाल, आम बोलचाल में गद्दी कुत्ता कहा जाता है, स्थानीय जंगली कुत्ते और दुर्लभ तिब्बती मास्टिफ (एक प्रकार का बड़ा कुत्ता) है.

भाखरवाल कुत्ते की नस्ल जिसे प्रशिक्षित की किया जा रहा है | विकिमीडिया कॉमन्स

नई दिल्ली: भारतीय सेना लद्दाख के कई देशी कुत्तों को विभिन्न ऑपरेशनल रोल के लिए प्रशिक्षित कर रही है क्योंकि पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर स्थिति चीन के साथ जारी गतिरोध के बीच तनावपूर्ण बनी हुई है. दिप्रिंट को जानकारी मिली है.

लद्दाख में देशी नस्लों में मुख्य रूप से बखरवाल कुत्ता, आम बोलचाल में गद्दी कुत्ता, तिब्बती मास्टिफ (एक प्रकार का बड़ा कुत्ता) कहा जाता है, जो कि ज्यादातर सीमावर्ती क्षेत्रों में पाए जाते हैं और स्थानीय जंगली कुत्ते भी शामिल हैं. बकरवाल को तिब्बती मास्टिफ का वंशज है.

सेना के एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया कि ‘लद्दाख के मूल कुत्तों को स्थानीय रूप से प्रशिक्षित किया जाता है और विभिन्न कार्यों के लिए इसका इस्तेमाल आवश्यक आधार पर किया जाता है.’

सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि प्रशिक्षित होने पर स्थानीय बखरवाल कुत्ते किसी भी घुसपैठ के मामले में पहरेदार और अन्य लोगों को सचेत करने के लिए सैन्य चौकियों पर अच्छे रक्षक कुत्ते के रूप में कार्य कर सकते हैं.

अधिकारी ने कहा, ‘प्रशिक्षण पर, उन्हें लद्दाख के बर्फीले ऊंचे स्थानों पर स्लेज डॉग के रूप में भी रखा जा सकता है.’ अधिकारी ने कहा कि स्थानीय जंगली कुत्तों को किसी खास एरिया का पता लगाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है  और प्रशिक्षण दिया जा सकता है क्योंकि उनके पास ‘बहुत अच्छी सूंघने की शक्तियां’ हैं.

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मूल कुत्ते की नस्लें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के केंद्र में हैं. अपने मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ में लोगों से भारतीय नस्लों के कुत्तों को अपनाने का आग्रह किया था. यदि लोगों ने पालतू जानवर के रूप में रखने की योजना बनाई है तो और कहा था कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद भी ऐसे कुत्ते पर अनुसंधान कर रही है.

उन्होंने कहा, ‘मुझे बताया गया है कि भारतीय नस्ल के कुत्ते बहुत अच्छे और सक्षम होते हैं. भारतीय नस्लों में, मुधोल हाउंड और हिमाचली हाउंड के कुत्ते हैं. मोदी ने कहा था कि कई स्थानीय नस्लों जैसे मुधोल हाउंड, हिमाचली हाउंड, राजपालयम, कन्नी, चिप्पीपराई और कंबाई ‘बहुत अच्छे और सक्षम’ हैं.

उन्होंने विशेष रूप से सोफी, एक कॉकर स्पैनियल, और विदा, एक लैब्राडोर का उल्लेख किया था, जो कि आतंकवाद-रोधी अभियानों में शामिल थे और उन्हें इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस समारोह के दौरान थल सेना प्रमुख(सीओएएस) से सम्मानित किया गया था.


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लद्दाख में कुत्तों द्वारा निभाई गई भूमिकाएं – हिमस्खलन, माइन डिटेक्शन

सेना के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि सुरक्षा बल के पास लद्दाख में विस्फोटक और खदान का पता लगाने के लिए कुत्ते हैं और उन्हें आगे के क्षेत्रों में संचार के सुरक्षित लेन के लिए आवश्यक होने पर तैनात किया जाता है.

हालांकि, सूत्रों ने स्पष्ट किया कि लद्दाख क्षेत्र में तैनात कैनाइन मुख्य रूप से हिमस्खलन बचाव अभियान (एआरओ) कुत्ते हैं और विभिन्न खोज और बचाव कार्यों के अभिन्न अंग हैं.

सेना के एक सूत्र ने कहा, ‘सूंघने की शक्ति के कारण, एआरओ कुत्ते जल्दी से 20-30 फीट बर्फ में दबे पीड़ितों का पता लगा सकते हैं. आपदाओं के दौरान, इन मूक योद्धाओं को विश्वसनीय बचतकर्ताओं के रूप में देखा जाता है.’

एक अधिकारी ने कहा, ‘मुख्य रूप से लैब्राडोर और जर्मन शेफर्ड लद्दाख में अपने मोटे कोट के लिए मौसम की स्थिति के कारण तैनात किए जाते हैं.’

अधिकारी ने कहा, ‘अब तक, लद्दाख में आर्मी डॉग यूनिट के आर्मी डॉग और आर्मी डॉग ट्रेनर्स को खोज और बचाव मिशन में उनके योगदान के लिए 10 सीओएएस और 07 जीओसी-इन-सी प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया गया है.

पहाड़ के कुत्तों की बात करते हुए पशु अधिकार कार्यकर्ता गौरी मौलेखी ने दिप्रिंट को बताया जैसे कि लद्दाखी नस्लों कि उनमें से अधिकांश अधिक ऊंचाई पर आसानी से बच जाते हैं. वे मजबूत हैं और ठंड को झेल जाते हैं. वे मनुष्यों के साथ दोस्ताना होते हैं.’

उन्होंने कहा, हालांकि अगर उन्हें गर्म जलवायु में या मैदानी इलाकों में रखा जाता है, तो वे बहुत परेशान होते हैं और स्वास्थ्य समस्याएं पैदा होती हैं, जो घातक हो सकती हैं.’

‘सेना के कुत्ते’

भारतीय सेना आठ अलग-अलग आवश्यकताओं के लिए कुत्तों को तैनात करती है- ट्रैक, गार्ड, खदान का पता लगाने, विस्फोटक का पता लगाने, पैदल सेना की गश्त, एओआर, खोज और बचाव, हमला और मादक पहचान के लिए है.

सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि कुत्तों को ऑपरेशन की सफलता मिली है और विभिन्न काउंटर विद्रोह और आतंकवाद के ऑपरेशन में बल के गुणक के रूप में काम करते हैं. उन्होंने हिमस्खलन, भूकंप और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के दौरान भी जान बचाई है.

सेना के आंकड़ों के अनुसार, जुलाई 2019 से बल के कुत्तों ने कम से कम 53 ऑपरेशन सफलताओं में योगदान दिया है. इनमें आईईडी और विस्फोटक की बरामदगी के 30 उदाहरण शामिल हैं, पांच उदाहरण जहां उन्होंने आतंकवादियों को ट्रैक किया और पहचाना, 14 उदाहरण जहां वे हथियारों, गोला-बारूद जैसी स्टोर को पकड़ने में योगदान दिया और चार उदाहरण जहां उन्होंने जीवित व्यक्तियों के बचाव में योगदान दिया.

इन कुत्तों के लिए बांग्लादेश, म्यांमार और कंबोडिया दक्षिण अफ्रीका, नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका, बांग्लादेश और सेशेल्स जैसे अनुकूल विदेशी देशों से भी मांग बढ़ रही है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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