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खान मार्केट गैंग: सत्ता के दलालों का अड्डा या उससे कहीं अधिक है यह बाज़ार

चुनाव प्रचार अभियान के आखिर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बड़ा बयान देते हुए कहा था कि उनकी छवि 'खान मार्केट गैंग' या 'लुटियंस दिल्ली' ने नहीं गढ़ी है.

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खान मार्केट (प्रतीकात्मक तस्वीर)। फोटो:दिप्रिंट

नई दिल्ली: आम चुनाव 2019 के चुनाव प्रचार अभियान के आखिर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बड़ा बयान देते हुए कहा था कि उनकी छवि ‘खान मार्केट गैंग’ या ‘लुटियंस दिल्ली’ ने नहीं गढ़ी है, बल्कि 45 साल के कठिन परिश्रम से उनकी यह छवि बनी है जिसे कोई बिगाड़ नहीं सकता है. इस बयान ने नई तरह की बहस को जन्म दे दिया है.

विपक्ष पर निशाना साधते हुए उन्होंने एक अखबार को दिए साक्षात्कार के दौरान छह बार इस बात को लेकर तंज कसा था. माना जा रहा है कि पीएम के इस बयान का दूरगामी प्रभाव पड़ा. इससे न सिर्फ उनकी ‘कामदार’ की छवि की परिपुष्टि हुई. बल्कि उनको दिल्ली के संभ्रांत गलियारे से अलग एक बाहरी के तौर पर स्थापित किया. माना यह भी जा रहा है कि सर्वोच्च पद के लिए उनके चुने जाने में इसका बड़ा योगदान रहा. इसके इतर जहां इस बयान के बाद पूरा देश दो भागों में बंटता नजर आया.

अब जब खान मार्केट को लेकर इतनी बातें हों चुकी है ऐसे में जरूरी है कि वहां के लोग क्या कहते हैं यह जानें. नौकरशाहों, नीति-नियंताओं और राजनयिकों के बंगलो और अपार्टमेंट्स के बीच स्थित खान मार्केट में काफी भीड़-भाड़ बनी रहती है जहां शहर के धनाढ्य लोग अक्सर पहुंचते हैं.

अंतर्राष्ट्रीय ब्रांडों के अनेक रिटेल आउटलेट, रेस्तरांओं और शराबखानों से सुसज्जित यह बाजार अंग्रेजी बोलने वाले संभ्रांत ग्राहकों का ठिकाना बन गया है. शानो-शौकत वाले विदेशी खान-पान और महंगी शराब का लुत्फ उठाते हुए वे यहां देश के अतीत, वर्तमान और भविष्य से लेकर भगवा ब्रिगेड की नफरत तक के विषयों पर चर्चा करते हैं.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने उनके इस बयान का जवाब देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नफरत को लेकर चुनाव लड़ रहे हैं. जिससे बड़ा राजनीतिक विवाद पैदा हुआ. हालांकि, बाजार के संरक्षक और दुकानदारों का मानना है कि प्रधानमंत्री का तंज उनके ऊपर नहीं था, बल्कि उन्होंने यह बात उन थोड़े लोगों के लिए कही थी. जो महानता के गलियारे में सत्ता का दलाल होने का दावा करते हैं.

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किताब की सबसे पुरानी दुकान फकीर चंद एंड संस की प्रोपराइटर ममता बाम्ही ने कहा, ‘हमारा बाजार उन्मुक्त स्थान है और सबके लिए खुला है.’ वह चार मालिकों में से एक हैं और उनका आवास दुकान के ही ऊपरी तल पर है. जबकि अन्य लोग दूसरी जगह जा चुके हैं.

खान मार्केट ट्रेडर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट संजीव मेहरा भी इस बात से सहमत हैं.

उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री अनायास कोई टिप्पणी नहीं कर सकते हैं. कई लोग ऐसे हैं जो यहां अक्सर आते हैं और अश्लील प्रलाप में लिप्त रहते हैं और सत्ता के गलियारे में अपनी ताकत का बेइंतहा दावा करते हैं. प्रधानमंत्री ने अवश्य इसके बारे में सुना होगा जिस पर उनकी प्रतिक्रिया आई है.’

हालांकि, सबने मार्केट का नाम बदलकर वाल्मीकि मार्केट किए जाने का विरोध किया है. उनका कहना है कि मसले को अनावश्यक काफी ज्यादा तूल दिया जा रहा है.

खान मार्केट वेलफेयर एसोसिएशन के प्रेसिडेंट आशु टंडन ने कहा, ‘बाजार का नाम बदलने का कोई मतलब नहीं है. खान मार्केट की विशाल विरासत है और यह अपने नाम से दुनियाभर में जाना जाता है. नाम बदलना बाजार को उसकी छवि से वंचित करने के समान है. हम इस तरह के किसी कदम का सख्त विरोध करते हैं.’

खान मार्केट का निर्माण मूल रूप में पाकिस्तानी शरणार्थियों के आवास के लिए किया गया था. जहां आज खान मार्केट है वहां देश का विभाजन होने के बाद पेशावर से भारत आए लोगों को सरकार ने 1950 में यहां जगह आवंटित किया था.

(आईएएनएस के इनपुट्स के साथ)

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