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पत्रकार-लेखक राहुल पंडिता का दावा- बताई गई थी ड्रोन्स से ख़तरे की बात लेकिन सोती रही सरकार

2019 हमले पर अपनी नई किताब,लवर ब्वॉय ऑफ बहावलपुर: हाउ द पुलवामा केस वॉज़ क्रैक्ड के बारे में बात करते हुए, राहुल पंडिता आईएएफ स्टेशन पर ड्रोन हमले की चर्चा करते हैं.

लेखक-पत्रकार राहुल पंडिता की फाइल फोटो | ट्विटर @rahulpandita

नई दिल्ली: जम्मू में पाकिस्तान से ड्रग्स, हथियार और गोला-बारूद लाने वाले ड्रोन्स ‘काफी समय से चिंता का विषय’ रहे हैं, लेकिन केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) ‘इस ख़तरे को लेकर सोता रहा और महीनों तक उसने इस बारे में कुछ नहीं किया’, इसके बावजूद कि उसे ख़तरे के बारे में सूचित किया गया था, ये कहना है पत्रकार और लेखक राहुल पंडिता का.

पंडिता, जिनकी ताज़ा किताब, लवर ब्वॉय ऑफ बहावलपुर: हाउ द पुलवामा केस वॉज़ क्रैक्ड में 2019 हमले की जांच का विवरण दिया गया है, जिसमें 40 सीआरपीएफ जवानों मारे गए थे, पिछले हफ्ते जम्मू एयरफोर्स स्टेशन पर हुए ड्रोन हमले के संदर्भ में दिप्रिंट से बात कर रहे थे.

ड्रोन हमले में जिसमें महत्वपूर्ण रक्षा परिसर में विस्फोटक गिराए गए थे, दो वायुसेना कर्मी घायल हुए थे. पंडिता- एक कश्मीरी पंडित जो किशोरावस्था में आतंकवाद के चरम पर, 1990 में अपने परिवार के साथ घाटी से भाग आए थे, तनावग्रस्त इलाक़े की एक बड़ी आवाज़ बनकर उभरे हैं. उनकी नई किताब में चर्चा की गई है कि पुलवामा हमले की जांच कर रही राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को किस तरह पहले एक के बाद नाकामियां हाथ लगीं, उसके बाद कहीं जाकर आख़िर में वो केस को सुलझाने में सफल हुई. इसमें ये विवरण भी दिया गया है कि किस तरह पुलवामा मास्टरमाइंड 200 किलो आरडीएक्स के साथ भारतीय इलाक़े में घुसा और किस तरह हमले की योजना बनाई गई.

अपने इंटरव्यू में पंडिता ने कहा कि अपनी किताब के लिए रिसर्च करने के दौरान उन्हें अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर ड्रोन्स के इस्तेमाल के बारे में पता चला.

उन्होंने कहा, ‘मैंने अपनी किताब लिखने की प्रक्रिया में जम्मू के अंतर्राष्ट्रीय बॉर्डर का दौरा किया. मैं सांबा गया जहां घुसपैठियों द्वारा खोदी गई कुछ सुरंगों का पता चला था और देखा कि ड्रोन्स का इस्तेमाल, जो कभी-कभी पंजाब में खालिस्तानी चरमपंथियों के बचे हुए लोगों के सहयोग से होता था, एक गंभीर चिंता बनता जा रहा था’.

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उन्होंने आगे कहा, ‘अथॉरिटीज़ इसे लेकर बेहद चिंतित थीं और वो नई दिल्ली को अपनी चिंताओं से अवगत कराने की कोशिश करती रही हैं, लेकिन वो (गृह मंत्रालय) ‘इस ख़तरे को लेकर सोते रहे और महीनों तक उन्होंने इस बारे में कुछ नहीं किया’ उन्होंने ये भी कहा, ‘ये ख़तरा कोई नई बात नहीं है और कुछ समय से बना हुआ है’.


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‘इस ख़तरे से निपटने के लिए भारत के पास कोई टेक्नॉलजी नहीं है’

पंडिता के अनुसार, चिंता की बात ये है कि अभी तक ड्रोन्स सिर्फ हथियार और ड्रग्स लाने का काम कर रहे थे, लेकिन उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के पास अब ऐसी टेक्नॉलजी है कि वो ड्रोन्स को विस्फोटकों से लैस कर सकता है, जिसके काफी नुक़सान पहुंचाने की संभावना रहती है. उन्होंने आगे कहा कि भारत के पास फिलहाल ऐसी कोई टेक्नॉलजी नहीं है कि वो इस ख़तरे का मुक़ाबला कर सके.

उन्होंने कहा, ‘बेहद चिंताजनक बात ये है कि पाकिस्तान ने अब ये क्षमता विकसित कर ली है कि वो इसके (ड्रोन्स) साथ विस्फोटक रख सकते हैं. वो इन्हें किसी भी सैन्य ठिकाने या नागरिक क्षेत्र में जहां वो हमला करना चाहें भेज सकते हैं. और फिलहाल हमारे पास ऐसी कोई टेक्नॉलजी नहीं है जो इस ख़तरे का मुक़ाबला कर सके’.

पंडिता ने कहा, ‘अब समय है कि अथॉरिटीज़ नींद से जागें और आने वाले महीनों में इसे भारत के लिए एक बहुत शक्तिशाली और महत्वपूर्ण ख़तरे के रूप में देखें’.

उन्होंने आगे कहा, ‘हमें याद रखना चाहिए कि तालिबान ने भी अफगानिस्तान के अंदर अपने निशानों पर हमला करने के लिए इसे बहुत प्रभावी ढंग से इस्तेमाल किया है. और ये बस कुछ समय की बात है कि कुछ बड़ी घटना हो सकती है’.

‘पाकिस्तान सीज़फायर को लेकर कभी गंभीर नहीं रहा’

जम्मू ड्रोन हमला ऐसे समय हुआ जब भारत-पाक सीमा पर स्थिति कुछ हद तक शांतिपूर्ण थी और इस फरवरी में दोनों देश सहमत हो गए थे कि वो 2003 के सीज़फायर समझौते का कड़ाई से पालन करेंगे.

सीज़फायर के संदर्भ में ड्रोन हमले के बारे में बात करते हुए पंडिता ने कहा कि पाकिस्तान ऐसी किसी पहल को लेकर कभी गंभीर नहीं रहा है.

उन्होंने कहा, ‘सीज़फायर का मतलब वास्तव में ये होता है कि आपको दूसरे पक्ष के प्रति, किसी भी तरह की आतंकी गतिविधि या आक्रमण को रोक देना होता है. हो सकता है कि सीमाओं पर गोलीबारी रुक गई हो लेकिन बॉर्डर पर इस ड्रोन गतिविधि के साथ ये एक गंभीर ख़तरा बन गया है’.

उन्होंने आगे कहा, ‘कश्मीर में जैश नेतृत्व (पाकिस्तान-स्थित जैश-ए-मोहम्मद) की अनुमति के बिना कोई हमला नहीं हुआ है, जिसकी पाकिस्तान आईएसआई के साथ मिली-भगत है. ये हमले लगातार जारी है. हाल ही के एक हमले में एक पुलिस अधिकारी और उसके पूरे परिवार का सफाया कर दिया गया. ये चुनौती बनी हुई है’. वो पिछले हफ्ते के उस हमले का ज़िक्र किया जिसमें दहशतगर्दों ने जेएंडके के एक स्पेशल पुलिस अफसर के घर में घुसकर उसकी, उसकी पत्नी और उसकी बेटी की गोली मारकर हत्या कर दी.

पंडिता कह कहना था कि इस ख़तरे से निपटने के लिए भारत को जागरूक रहते हुए कार्रवाई करनी होगी.

उन्होंने कहा, ‘भारत को जागते रहना है और नए ख़तरे के प्रति जागरूक रहना है, जिसमें आतंकी संगठन पाकिस्तान में बैठकर ताज़ा-तरीन उन्नत तकनीक का इस्तेमाल करते हुए कार्रवाई कर सकते हैं. भारत को ड्रोन्स जैसी नई उन्नत तकनीक का मुकाबला करना होगा और उसके लिए अगला बड़ा सरदर्द यही रहने वाला है’.

‘प्रेमी लड़का’

पुलवामा जांच-पड़ताल के बारे में बात करते हुए पंडिता ने कहा कि उन्होंने इसके बारे में एक किताब लिखने का फैसला किया क्योंकि ये केस एक ‘दिलचस्प पहेली’ था.

उन्होंने आगे कहा, ‘शुरू में कोई सुराग़ नहीं थे और जांच में नाकामी हाथ लगती रही, लेकिन फिर बाद में केस के रहस्य से पर्दा उठा. एक कहानीकार के तौर पर बहुत ही दिलचस्प है कि ये केस कैसे खुलकर सामने आया. ये कड़ी मेहनत और भाग्य का मिला-जुला असर है’.

‘जैसे कोई दैवीय शक्ति चाहती थी कि जांचकर्त्ताओं के हाथ ये सुराग़ लग जाएं’.

किताब में उल्लेख किया गया है कि कैसे मुठभेड़ की जगह से बरामद हुआ एक क्षतिग्रस्त मोबाइल फोन, जो मालख़ाने (मालख़ाना वो होता है जहां पुलिस/क़ानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा ज़ब्त केस से जुड़ा सामान रखा जाता है) में पड़ा हुआ था, एक अहम सुराग़ साबित हुआ जिससे आख़िरकार केस को सुलझाया जा सका.

पंडिता ने कहा, ‘क्षतिग्रस्त फोन एक मुठभेड़ के बाद बरामद किया गया था, जिसे तकनीकी सहायता से खोला गया. जब फोन को खोला गया तो उसमें मुख्य अपराधियों का अपने मास्टरमाइंड के साथ एक फोटो था जिनके चेहरे सिल्वर एक्सप्लोसिव से पुते हुए थे, और ये एक बड़ी खोज थी’.

किताब के शीर्षक में जिस ‘प्रेमी लड़के’ का ज़िक्र किया गया है, वो उमर फारूक था जो जैश संस्थापक मसूद अज़हर का भतीजा था और केस में एक अहम अभियुक्त है. ये पूछने पर कि उन्होंने फारूक को ‘लवर ब्वॉय’ क्यों कहा पंडिता ने कहा कि ‘लवर ब्वॉय वो होता है जिसकी कई प्रेमिकाएं होती हैं, और जो किसी एक प्रेमिका के प्रति वफादार नहीं होता. इस शीर्षक के साथ मैंने फारूक जैसे लोगों की बेरहमी और जोड़-तोड़ की ताक़त पर विचार करने की कोशिश की है’.

फारूक को पुलवामा हमले के एक महीने बाद एक मुठभेड़ में मार दिया गया था.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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