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ब्लैकमेल, धोखाधड़ी, रंगदारी, षड्यंत्र– जिस झारखंड ‘संपादक’ का SC ने पक्ष लिया वो 34 मामलों में वांटेड

16 जून की रात पुलिस ने न्यूज़11 भारत के प्रमुख अरूप चटर्जी को उनके बेडरूम से हिरासत में ले लिया. उनके खिलाफ झारखंड, बंगाल, मुंबई और दिल्ली में मामले दायर किए गए हैं.

अरूप चटर्जी | चित्रण: प्रज्ञा घोष

धनबाद/रांची: ‘किसी पत्रकार से सलूक करने का ये कोई तरीका नहीं है. ये पूरी अराजकता है’. झारखंड स्थित एक टीवी चैनल न्यूज़11 के प्रमुख अरूप चटर्जी के बारे में ये कहना था सुप्रीम कोर्ट के जज डीवाई चंद्रचूड़ का, जिसे धनबाद पुलिस ने जुलाई में आधी रात के समय उनके बेडरूम से निकालकर गिरफ्तार कर लिया था. 29 अगस्त को कोर्ट ने फैसला किया कि वो चटर्जी को हाई कोर्ट द्वारा दी गई जमानत के आदेश में हस्तक्षेप नहीं करेगी.

लेकिन उधर धनबाद में चटर्जी को उसकी ‘पत्रकारिता’ के लिए कम और उन अवैध गतिविधियों के लिए ज़्यादा जाना जाता है, जिनमें वो कथित रूप से लिप्त था. उनके चैनल ने ये टैगलाइन अपनाई थी ‘सच है तो दिखेगा ’ लेकिन पुलिस का दावा है कि अपने लक्ष्यों को ब्लैकमेल करने के लिए वो उन्हें ‘फर्ज़ी’ खबर के खतरे से डराता था.

धनबाद पुलिस अधीक्षक अमर कुमार पाण्डेय ने दिप्रिंट को बताया, ‘जबरन पैसा वसूलने के लिए अरूप चटर्जी फर्ज़ी खबरों का सहारा लेता था. वो निजी व्यक्तियों के खिलाफ फर्ज़ी प्रोमो चलाकर उन्हें ब्लैकमेल करता था. हमने केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से अनुरोध किया है कि न्यूज़11 भारत की जांच करें और अगर वो किसी लाइसेंस के बिना खबरें प्रसारित करते हुए पाया जाए, तो चैनल को बंद कर दें’.

जुलाई में, झारखंड हाई कोर्ट ने चटर्जी को जमानत दे दी थी, जब उसकी पत्नी बेबी ने, जो न्यूज़11 भारत में एक डायरेक्टर है, दावा किया था कि उसे भ्रष्टाचार के बारे में एक खबर प्रसारित करने पर अवैध तरीके से गिरफ्तार किया गया था. उस जमानत आदेश के खिलाफ झारखंड सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि चटर्जी एक ‘पत्रकार’ है कोई ‘आतंकवादी’ नहीं.

लेकिन चटर्जी की ये राहत ज़्यादा समय नहीं रही. फिलहाल दूसरे मामलों की वजह से वो सलाखों के पीछे है.

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अभी तक, उसके खिलाफ कम से कम 34 पुलिस शिकायतें पूरे झारखंड तथा पश्चिम बंगाल, मुंबई और दिल्ली तक में दर्ज की गई हैं, जो रंगदारी और ब्लैकमेल से लेकर आपराधिक षड्यंत्र और धोखाधड़ी तक के अपराधों के लिए हैं.

यहां तक कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) भी करोड़ों रुपए के एक चिटफंड केस में उसकी कथित भूमिका की जांच कर रहा है, जो केयर विज़न कही जाने वाली एक कंपनी से जुड़ा है, जहां वो 2012 तक एक प्रबंध निदेशक रहा था.

रांची में एक वरिष्ठ सीबीआई अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि चटर्जी बड़ी धन वापसी का प्रलोभन देकर निवेशकों को धोखा देने का संदिग्ध था. सीबीआई इस मामले में पहले ही जुलाई में उससे पूछताछ कर चुकी थी और अब वो आगे पूछताछ के लिए उसका रिमांड मांग रही है.

अरूप के वकील शाहनवाज़ मलिक, जिन्होंने रांची में हाई कोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की, ने दिप्रिंट से कहा कि उनके पास ‘इस समय (उनके) मुवक्किल की ओर से कोई भी बयान देने के निर्देश नहीं हैं’.

लेकिन उन्होंने आगे कहा कि हालांकि चटर्जी को राकेश ओझा मामले में अंतरिम ज़मानत दे दी गई थी लेकिन तीन और मामलों में वो अभी न्यायिक हिरासत में ही है. एक ज़मानत अर्ज़ी की सुनवाई 7 सितंबर को होनी है, जबकि अन्य याचिकाएं आने वाले हफ्तों में सुनी जाएंगी.

तो, अरूप चटर्जी आखिर है कौन- ‘अन्याय का शिकार एक पत्रकार’ या कोई जालसाज़ जिसने अपराध करने के लिए अपने चैनल का इस्तेमाल किया? उसकी गिरफ्तारी आखिरकार कैसे हुई और वो अभी भी मुसीबत में क्यों है?


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‘ब्लैकमेल’ बनाम ‘भ्रष्टाचार को उजागर करना’

16 जून की रात धनबाद से एक पुलिस टीम मदगुल हैबिटेट पहुंची, जो झारखंड की राजधानी रांची में एक महंगा अपार्टमेंट परिसर है और उसने अरूप चटर्जी को उसके बेडरूम से हिरासत में ले लिया.

रांची स्थित मदगुल हैबिटेट जहां से पुलिस ने अरूप चटर्जी को गिरफ्तार किया | फोटो: श्रेयसी डे

पुलिसकर्मी रंगदारी की एक शिकायत पर कार्रवाई कर रहे थे, जिसे धनबाद के गोविंदपुर पुलिस स्टेशन में कोयला व्यापारी राकेश ओझा ने दर्ज कराया था. राकेश ने मीडिया कर्मियों को बताया कि उसे न्यूज़11 चैनल द्वारा ‘फर्ज़ी खबरों’ के जरिए ‘प्रताड़ित’ किया जा रहा था और उसे धमकियां भी मिल रहीं थीं.

अरूप चटर्जी ने कथित रूप से एक खबर चलाई थी जिसमें दावा किया गया था कि ओझा ने, जो पूर्व बिहार डीजीपी गुप्तेश्वर पाण्डेय का दामाद था, कथित तौर पर कोयले की तस्करी की थी. ओझा ने उन सब मैसेजेज़ और रिकॉर्डेड फोन कॉल्स को स्टोर करके रखा था, जो कथित तौर पर अरूप चटर्जी की ओर से थी और जिन्हें उसने बाद में सबूत के तौर पर पेश कर दिया.

ओझा की ये भी मांग थी कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और आयकर विभाग उन ‘शेल कंपनियों’ की जांच करें, जो चटर्जी के समाचार चैनल को वित्त-पोषित कर रही हैं.

गिरफ्तारी के बाद जब उसे पुलिस वाहन में ले जाया जा रहा था, तो चटर्जी ने स्थानीय रिपोर्टरों से कहा कि उसे धनबाद में 2,000 करोड़ रुपए के कोयला घोटाले को बेनकाब करने की कोशिश के लिए सताया जा रहा है और वो ‘सच्चाई’ को सामने लाता रहेगा.

इस बीच बेबी चटर्जी ने झारखंड हाई कोर्ट से कहा कि उसके पति को ‘झूठा फंसाया’ जा रहा है और धनबाद पुलिस ने ‘(ऊंची हस्तियों) के कहने पर लोकतंत्र के एक स्तंभ का मुंह बंद कर दिया था’.

20 जुलाई को कोर्ट ने ‘पत्रकार’ को जमानत दे दी लेकिन एक दिन के भीतर उसे पुटकी पुलिस स्टेशन में दर्ज चार साल पुराने धोखाधड़ी, विश्वासघात और आपराधिक षड्यंत्र के एक मामले में फिर से गिरफ्तार कर लिया गया.

इस केस को 2018 में लोयाबाद निवासी मनोज पंडित ने दर्ज कराया था, जिसने अब खत्म हो गई केयर विज़न कंपनियों के एजेंट के रूप में काम किया था, जिनका मालिक कथित रूप से अरूप चटर्जी था और जो चिंट फंड का धंधा करती थीं.


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‘कोई लाइसेंस नहीं’, ‘BJP नेताओं’ का नाम लेता था

एक कथित मीडिया शख्सियत के तौर पर देखें, तो झारखंड निवासी अरूप चटर्जी के बारे में सार्वजनिक तौर पर ज़्यादा जानकारी नहीं है कि उसने एक पत्रकार का चोगा कैसे पहन लिया.

सिर्फ इतनी जानकारी है कि 2012 तक वो केयर विज़न कंपनियों के प्रबंध निदेशकों में से एक था.

वो मीडिया इलेवन प्रा. लि. नामक एक कंपनी का भी डायरेक्टर है, जो न्यूज़11 भारत की मालिक है- वो चैनल जो 2007 में स्थापित किया गया था और जिसका मुख्यालय रांची में है.

न्यूज़11 भारत का दावा है कि उसके लिंक्डइन प्रोफाइल में करीब 200 कर्मचारी हैं, उसके फेसबुक पेज पर करीब 2.4 लाख फॉलोअर्स हैं और यूट्यूब पर 1.96 लाख सब्सक्राइबर्स हैं.

चैनल की कवरेज में स्थानीय घटनाओं की रिपोर्टिंग होती है और उसके प्राइम टाइम शोज़ में कलई खोलने और जांच रिपोर्ट्स होती है. यूट्यूब चैनल पर इसकी एक सबसे लेकप्रिय रिपोर्ट, जिसके 30 लाख व्यूज़ थे, 2019 में जमशेदपुर के एक शराबी युवक के बारे में थी.

सबसे हाल में, इसने कवर किया कि गिरफ्तार आईएएस अधिकारी पूजा सिंघल के परिवार ने किस तरह, कथित तौर पर सरकारी मंजूरी के बिना रांची में पल्स अस्पताल बना लिया था. इस रिपोर्ट को यूट्यूब पर करीब एक हज़ार लोगों ने देखा. चैनल राजनीतिक घटनाक्रमों और उनके निहितार्थों पर भी व्यापक रूप से खबरें करता है. पिछले सप्ताह प्रदेश विधानसभा के बारे में एक खबर के फेसबुक पर करीब 1,400 व्यूज़ मिले थे.

2013 में अपने समाचार चैनल पर एक इंटरव्यू में चटर्जी ने बड़े न्यूज़ चैनलों में काम करने के अपने अनुभव के बारे में बात की थी कि किस तरह उसके मन में हमेशा ‘ताकत से टकराने’ की इच्छा रहती थी. बिल्कुल किसी जिहादी पत्रकार की तरह बोलते हुए उसने कहा कि वो सत्ता के सामने सच बोलने के प्रति समर्पित था, भले कोई भी ताकतें उसके पीछे लग जाएं- चैनल की टैगलाइन देखिए, ‘सच है तो दिखेगा’.

पुलिस का आरोप है कि अभी तक चैनल के पास कोई वैध लाइसेंस नहीं देखा गया है.

मामले की जांच कर रहे एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि जांच के दौरान अपने चैनल की कानूनी वैधता को साबित करने के लिए अरूप चटर्जी अभी तक कोई लाइसेंस नहीं दिखा पाया है. उन्होंने कहा, ‘अभी तक वो न्यूज़11 भारत के अपलिंक और डाउनलिंक लाइसेंस नहीं दिखा पाया है. वो एक फर्ज़ी पत्रकार है और अपनी योग्यता साबित करने के लिए उसके पास कोई डिग्री नहीं है’.

रांची स्थित न्यूज़11 भारत का दफ्तर | फोटो: श्रेयसी डे

झारखंड पुलिस ने चल रही तफतीश में रांची में चटर्जी के आवास और न्यूज़11 भारत के ऑफिस पर छापा मारा है. धनबाद (ग्रामीण) एसपी रेशमा ने बताया, ‘हमने इलेक्ट्रॉनिक सबूत, वीडियो रिकॉर्डिंग्स और सीसीटीवी फुटेज बरामद की है, जिनकी फिलहाल जांच की जा रही है’.

एक वरिष्ठ सीबीआई अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि जांच के दौरान चटर्जी ‘केंद्रीय बीजेपी नेताओं के नाम’ ले रहा था. सीबीआई अधिकारी ने आगे कहा कि चटर्जी ने जब न्यूज़11 शुरू किया, तो उसके पास प्रसारण के लिए लाइसेंस नहीं था.

बेबी चटर्जी से बात करने के लिए दिप्रिंट की टीम रांची में अरूप चटर्जी के फ्लैट पर गई. उनके बेटे ने दरवाज़ा खोला और कहा कि वो घर पर नहीं थीं.

लेकिन चार लोगों ने, जो ड्राइंग रूम में बैठे थे और न्यूज़11 कर्मचारी होने का दावा कर रहे थे, कहा कि मामला ‘संवेदनशील’ है और उन्हें मीडिया से बात न करने की कानूनी सलाह दी गई है.

उनमें से एक व्यक्ति ने कहा, ’10 दिन इंतज़ार कीजिए, अरूप को ज़मानत मिल जाने के बाद हम सबसे बात करेंगे, लेकिन अभी नहीं’.


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‘मेरा पैसा डूब गया’

पिछले कुछ हफ्तों में चटर्जी के खिलाफ पुराने और नए मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है.

जब दिप्रिंट की टीम गोविंदपुर पुलिस स्टेशन पहुंची, तो जांच अधिकारी दीपक झा वहां मौजूद नहीं थे. उन्होंने स्टेशन पर एक दूसरे अधिकारी के जरिए संदेश भिजवाया कि ‘मैं अरूप चटर्जी के एक मामले में एक नोटिस की तामील के लिए रांची में हूं’.

रांची स्थित गोविंदपुर पुलिस स्टेशन | फोटो: श्रेयसी डे

धनबाद एसपी अमर कुमार पाण्डेय ने दिप्रिंट को बताया कि चटर्जी के खिलाफ दर्ज 34 मामलों में 22 कोर्ट शिकायतें हैं, जो झारखंड में रांची, कोडरमा और नई दिल्ली तथा मुंबई में दायर की गई हैं. उन्होंने कहा, ‘अभी तक चटर्जी के खिलाफ पांच चार्जशीट्स दायर की जा चुकी हैं, जिनमें से एक पश्चिम बंगाल के नॉर्थ 24 परगना में है’.

जुलाई में, पूर्व धनबाद जिला बोर्ड अध्यक्ष रॉबिन गोराई ने चटर्जी के खिलाफ कालूबाथन पुलिस थाने में एक एफआईआर दर्ज कराई, जिसमें उन्होंने चटर्जी पर अपनी पिछली कंपनी केयर विज़न की एक स्कीम के जरिए, उनसे 10 लाख रुपए ठगने का आरोप लगाया.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा कि अरूप चटर्जी से उनका वास्ता एक दशक पहले पड़ा था लेकिन वो केस दायर करने का साहस तभी जुटा पाए, जब टीवी चैनल हेड को गिरफ्तार कर लिया गया था.

गोराई ने कहा, ‘2012 में मैंने अरूप चटर्जी को उसकी कंपनी केयर विज़न के लिए 10 लाख रुपए का एक चेक दिया. पांच महीने बाद मुझे बताया गया कि कंपनी बंद हो गई है. मेरा पैसा डूब गया था. वो मेरे एक करीबी दोस्त के साथ मेरे घर आया था, इसलिए जब उसने मुझे अपनी कंपनी के बारे में बताया और मुझसे बांड्स खरीदने के लिए कहा, तो मैंने उसपर यकीन कर लिया’.

बलिया पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी पवन कुमार चौधरी ने पुष्टि की, उसी केयर विज़न स्कीम के बारे में उसके थाने में एक दूसरी एफआईआर, अमतल पंचायत प्रमुख संजय कुमार की ओर से दर्ज कराई गई थी. कुमार ने दावा किया था कि उसने अरूप चटर्जी की निवेश स्कीम में 7.1 लाख रुपए गंवा दिए थे.

फिर एक आठ साल पुराना केस है जो एक ऑटोमोबाइल शोरूम के मालिक ने दायर किया था, जिसके लिए बैंक मोर पुलिस ने एक प्रोडक्शन वारंट जारी किया है.

2014 में अरूप चटर्जी ने कथित रूप से धनबाद के क्लासिक ऑटोमोबाइल्स से एक सफारी कार ली थी और उसके मालिक राजेंद्र प्रसाद को आश्वासन दिया था कि वो जल्द ही पैसा भेज देगा. कथित रूप से वो भुगतान कभी नहीं हुआ.

दिप्रिंट की टीम शास्त्री नगर में प्रसाद के घर पहुंची लेकिन वो वहां मौजूद नहीं थे. उनकी पत्नी सुनीता ने, जो कोलकाता में थीं, कहा कि वो बाद में टिप्पणी देंगी लेकिन इस खबर के छपने तक उनका जवाब नहीं आया.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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