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ISRO-IISc की टीम ने मंगल और चांद की मिट्टी के लिए बैक्टीरिया युक्त ईंटों का नमूना किया तैयार

नई विधि मंगल और चांद पर निर्माण के लिए ईंटें बनाने के एक टिकाऊ तरीके की धारणा का सबूत है, जिसमें वहां की सतह की मिट्टी का इस्तेमाल किया जा सकता है. ये स्टडी 14 अप्रैल को प्लॉस वन में प्रकाशित हुई.

फोटो: ट्विटर/@iiscbangalore

बेंगलुरू: भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) बेंगलुरू के शोधकर्ताओं की एक टीम ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के साथ मिलकर मंगल और चांद की मिट्टी से बनी ईंटों का एक नमूना तैयार किया है, जिसमें बैक्टीरिया, निकिल क्लोराइड, ग्वार गम और यूरिया का इस्तेमाल किया गया है.

नई विधि मंगल और चांद के मूल स्थान पर निर्माण के लिए ईंटें बनाने के एक टिकाऊ तरीके की धारणा का सबूत दिखाती है, जिसमें वहां उपलब्ध मिट्टी का इस्तेमाल किया जा सकता है, जिसे रेगोलिथ कहा जाता है. ये रिसर्च 14 अप्रैल को प्लॉस वन पत्रिका में प्रकाशित हुई.

मंगल की मिट्टी के लिए एक मानक सामग्री पर स्टडी की गई, जो रिसर्च के लिए उसका अनुकरण करती है. इसे मार्स सॉयल सिमुलेंट कहा जाता है और ये फ्लोरिडा से खरीदी गई. चांद की मिट्टी के लिए एक ल्यूनर सॉयल सिमुलेंट इस्तेमाल किया गया, जिसका निर्माण इसरो ने किया.

ईंट के लिए तैयार किया गया मिश्रण एक गारा सा होता है, जो संबंधित सॉयल सिमुलेंट और ग्वार गम से बना होता है. ग्वार गम फाइबर ग्वार बीन से निकाला जाता है, जो मूल रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाता है. इस गम और निकेल क्लोराइड कोबेक्टीरियम Sporosarcina pasteurii के साथ मिलाया जाता है, जिससे जैविक रूप से तैयार इन ईंटों की मजबूती बढ़ जाती है.

आईआईएससी की ओर से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया कि इस नई विधि का फायदा ये है कि इससे ईंटों की छिद्रिलता कम हो जाती है, जिसके लिए छिद्रों में बैक्टीरिया का रिसाव किया जाता है और खनिज युक्त प्रोटींस से ईंट को एक जगह बांधा जाता है.

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अलौकिक मिट्टी की विशेषताओं और क्षमताओं पर शोध कार्य लगातार बढ़ रहा है. पहले पता लगाया गया था कि मंगल की मिट्टी में क्षमता है कि वो उच्च दबाव में मजबूती के साथ जम जाती है, जिससे मजबूत ईंटें बन जाती हैं. आईआईएससी की रिसर्च टीम ने पहले चांद की बनावटी मिट्टी पर इसी तरह के प्रयोग किए हैं लेकिन अब जाकर ही वो पहली बार, ढलाई योग्य ईंटें बनाने में सफल हो पाई है.


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माइक्रोबियल प्रेरित कैल्साइट वर्षा

जैवखनिजीकरण वो प्रक्रिया है जिससे कोई जिंदा जीव पाचन के जरिए खनिज पैदा करता है, जैसे कि शेल्स, हड्डी, दांत और दूसरी कठोर संरचनाएं. ईंट के नमूने को मजबूती देने के लिए इसी प्रक्रिया का इस्तेमाल किया गया है.

माइक्रोबियल प्रेरित कैल्साइट वर्षा या एमआईसीपी एक जैवखनिजीकरण प्रक्रिया है, जिसके नतीजे में बैक्टीरिया से कैल्शियम कार्बोनेट पैदा होता है. प्रयोगात्मक सेटअप्स में नियंत्रित रसायनिक प्रतिक्रियाओं से अनुकूल पर्यावरण की स्थिति पैदा की जाती है. इस मामले में पानी की मौजूदगी में यूरिया को अलग किया जाता है.

टीम ने पाया कि प्रतिक्रिया में निकेल आयन्स के गाढ़ेपन को बदलने से ये प्रक्रिया बढ़ जाती है.

जैवखनिजीकरण के नतीजे में दोनों प्रकार की मिट्टियों से बनी ईंटों की संरचनात्मक ताकत और टिकाऊपन दोनों में इजाफा हो जाता है.

चांद की ईंटों के पिछले तरीके को मंगल की मिट्टी पर लागू करना चुनौती भरा साबित हुआ, चूंकि मंगल की मिट्टी आयरन ऑक्साइड से भरपूर है, जिसने बैक्टीरिया को बढ़ने से रोक दिया. साथ में जारी प्रेस विज्ञप्ति में लेखकों ने समझाया कि निकेल क्लोराइड को मिलाने से ये समस्या हल हो गई.


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ईंटों को बांधने वाले एजेंट्स

जमीन पर ईंटों को एक साथ जोड़ने के लिए बांधने वाले एजेंट्स का इस्तेमाल किया जाता है. शोध से ये तो पता चल गया है कि मंगल की मिट्टी को अपेक्षाकृत आसानी से दबाया जा सकता है लेकिन चांद की मिट्टी के साथ ऐसा नहीं है.

ग्वार गम का निर्माण सामग्री के लिए एक बंधक के तौर पर पहले भी अध्ययन किया जा चुका है क्योंकि इसके अंदर मिट्टी के कणों के साथ बहुत मजबूती के साथ चिपकने की क्षमता होती है. शोधकर्ताओं ने पाया कि मिट्टी के दोनों सिमुलेंट्स के साथ निकेल क्लोराइड और ग्वार गम दोनों के मिलाने से मटीरियल की दबाव की शक्ति बढ़ जाती है.

शोधकर्ताओं ने ये भी देखा कि निकेल के मिलाने से ईंट के प्रदर्शन में सुधार हुआ, चाहे ग्वार गम मिलाई या नहीं मिलाई. टीम अब ईंट पर मंगल के वातावरण और कम गुरुत्वाकर्षण के प्रभावों का विश्लेषण करने की योजना बना रही है और ये भी देखेगी कि ऐसी परिस्थितियों में बैक्टीरिया कैसे बढ़ते हैं.

इसके अलावा मंगल की मिट्टी में परक्लोरेट्स भी बहुत होते हैं- जो ऑक्सीजन तथा क्लोराइड से बने कंपाउंड्स होते हैं और इंसानों के लिए बहुत विषैले होते हैं. हालिया अध्ययनों से संकेत मिला है कि अगर उसका अल्ट्रावायोलेट रेडिएशन से संपर्क हो जाए तो मंगल की सतह पर मौजूद परक्लोरेट्स का स्तर बैक्टीरिया के लिए भी विषैला हो सकता है, इसलिए इंसानी बस्तियों के लिए ऐसी ईंटों को सुरक्षित बनाना, भविष्य के अंतरिक्ष मिशंस में मटीरियल्स इंजीनियरों के लिए एक चुनौती है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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