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IPS में नाराज़गी, अधिकांश DG-पैनल में शामिल अधिकारी पोस्टिंग के इंतजार में, जबकि कुछ के पास अतिरिक्त प्रभार

आईपीएस अधिकारियों ने इसे 'निराशाजनक' बताया कि 'सरकार कुछ अधिकारियों को रिटायरमेंट के बाद एक्सटेंशन देती रहती है तो कुछ को अतिरिक्त पद का भार सौंपा दिया जाता है. जबकि एक दर्जन से ज्यादा अधिकारी डीजी पद पर प्रोन्नति के इंतजार में हैं.

नॉर्थ ब्लॉक, जिसमें गृह मंत्रालय का कार्यालय है | विकिपीडिया

नई दिल्ली: मौजूदा समय में जहां एक तरफ महत्वपूर्ण सरकारी एजेंसियों के महानिदेशक (डीजी) बनने योग्य अधिकांश आईपीएस अधिकारी अपनी पोस्टिंग के इंतजार में हैं. वहीं दूसरी ओर नौ अधिकारी रिटायरमेंट के बाद भी एक्सटेंशन मिलने पर अपने पदों पर बने हुए हैं  या फिर केंद्रीय और राज्य के एक से अधिक संगठनों के डीजी के पद पर तैनात हैं.

केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक डीजी बनने योग्य अधिकारियों की सूची (जो पिछले साल फरवरी तक की है) में 28 अधिकारियों के नाम शामिल हैं. इसमें 24 आईपीएस अधिकारी 1988 के बैच के हैं.

इसके अलावा  राज्यों की ‘ऑफर लिस्ट’ में भी तीन अधिकारियों के नाम प्रस्तावित हैं, जिन्हें केंद्रीय प्रतिनियुक्ति की ओर से महानिदेशक नियुक्त किया जा सकता है. और ऐसी नियुक्ति संबंधित राज्य सरकारों के अनुमोदन के बाद ही की जाती है.

फिलहाल इनमें से अधिकांश अधिकारी विशेष महानिदेशक या विशेष निदेशक के रूप में कार्य कर रहे हैं. केंद्रीय या राज्य संगठनों में पद के हिसाब से देखें तो डीजी की तुलना में इन पदों को कमतर करके आंका जाता है.

केंद्र सरकार में खाली पदों की सूची के मुताबिक केंद्र में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए), राष्ट्रीय पुलिस अकादमी (एनपीए) और सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) में डीजी स्तर के तीन रिक्त पद हैं. यह लिस्ट एमएचए वेबसाइट पर भी मिल जाएगी.

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हालांकि, इन पदों को वर्तमान में कई अधिकारियों ने अतिरिक्त प्रभार के तौर पर संभाला हुआ है.

केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के डीजी के पास एनआईए डीजी का अतिरिक्त प्रभार है, तो वहीं राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल के महानिदेशक ने एनपीए निदेशक (एक डीजी-रैंक वाला पद) का कार्यभार भी संभाला हुआ है. भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आई टी बी पी) के पास एसएसबी का भी प्रभार है.

प्रस्ताव और वेकेंसी लिस्ट, दोनों को आखिरी बार 29 अप्रैल को अपडेट किया गया था, जबकि डीजी बनने योग्य अधिकारियों की संभावित सूची फरवरी 2021 में जारी की गई थी.

नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से बात करते हुए, एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी ने कहा कि यह काफी ‘निराशाजनक’ है. ‘सरकार कुछ अधिकारियों को सेवानिवृत्ति के बाद भी एक्सटेंशन दे देती है, जबकि कुछ अधिकारियों को अतिरिक्त प्रभार सौंपा हुआ है. लेकिन एक दर्जन से ज्यादा अधिकारी डीजी के रूप में अपनी पोस्टिंग का इंतजार कर रहे हैं.’

अधिकारी ने कहा, ‘ इसमें कई साल लग जाते हैं.’ वह आगे कहते हैं, ‘उदाहरण के तौर पर पिछले साल 180 अधिकारियों के एक बैच से लगभग 24 को महानिदेशक के रूप में सूचीबद्ध किया गया था. इधर राज्य और केंद्रीय एजेंसियों में भी ऐसी कुछ ही स्थिति है. कई अधिकारी बिना डीजी-रैंक का पद प्राप्त किए ही रिटायर हो गए.’

दिप्रिंट ने इस मामले पर टिप्पणी के लिए मेल और मैसेज के जरिए गृह मंत्रालय के प्रवक्ता से संपर्क करने की कोशिश की थी, लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.

केंद्रीय प्रतिनियुक्ति की ओर से नियुक्त एक दूसरे आईपीएस अधिकारी ने कहा कि आईपीएस कैडर को देखने वाले एमएचए के पास ‘ परंपरागत रूप से कभी भी कैडर को मैनेज करने के लिए एक आईपीएस अधिकारी नहीं रहा, जो सर्विस में भ्रम और अराजकता पैदा करता है.’

अधिकारी ने कहा, ‘ कैडर संभालने वाले हर में विभाग में अधिकारियों की पदोन्नति को लेकर स्थिति कुछ ऐसी ही है. अब चाहे वो कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) हो, जो आईएएस कैडर को संभालता है, या वन और पर्यावरण मंत्रालय जिसके पास आईएफओएस (भारतीय वन सेवा) कैडर का जिम्मेदारी है.


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कुछ को एक्सटेंशन, तो कुछ को अतिरिक्त प्रभार

फरवरी 2021 में डीजी के रूप में पैनल में शामिल 24 आईपीएस अधिकारियों में से दो गुजरात कैडर के हैं.

उनमें से एक प्रवीण सिन्हा, मई 2021 में अंतरिम सीबीआई निदेशक बने और बाद में इंटरपोल कार्यकारी समिति में एक प्रतिनिधि के रूप में चुने गए. यह एक डीजी के समान रैंक वाली पोस्टिंग हैं.

दूसरे अतुल करवाल हैं. वह एनडीआरएफ डीजी के पद पर कार्यरत हैं और इन्हें एनपीए का अतिरिक्त प्रभार भी सौंपा हुआ है.

1984 के बैच के राकेश अस्थाना को जुलाई 2021 में उनकी रिटायरमेंट से कुछ दिन पहले एक इंटर-कैडर- गुजरात से अरुणाचल प्रदेश-गोवा-मिजोरम और केंद्र शासित प्रदेश कैडर तक प्रतिनियुक्ति दी गई और उन्हें एक साल का एक्सटेंशन देते हुए दिल्ली पुलिस कमिश्नर नियुक्त कर दिया गया.

उन्होंने नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो (बीसीएएस) और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के महानिदेशक के रूप में भी काम किया है.

तमिलनाडु कैडर के 1988 बैच के आईपीएस अधिकारी संजय अरोड़ा वर्तमान में एसएसबी के अतिरिक्त प्रभार के साथ आईटीबीपी के महानिदेशक के रूप में कार्यरत हैं. पश्चिम बंगाल कैडर के 1986 बैच के अधिकारी कुलदीप सिंह, एनआईए के अतिरिक्त प्रभार के साथ सीआरपीएफ के महानिदेशक के रूप में कार्य करते हैं.

पंजाब कैडर के 1984 बैच के अधिकारी सामंत कुमार गोयल रॉ के प्रमुख हैं. उन्हें पिछले साल ही एक साल का विस्तार मिला था. असम-मेघालय कैडर से उनके बैचमेट, अरविंद कुमार, इंटेलिजेंस ब्यूरो के निदेशक हैं और उन्हें भी इसी तरह का एक्सटेंशन मिला हुआ है.

कुछ ऐसे अन्य अधिकारी भी हैं जो एक्सटेंशन पर होते हुए भी अतिरिक्त प्रभार संभाले हुए हैं.


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‘गैर-कानूनी तो नहीं है लेकिन स्वाभाविक भी नहीं है.’

इस तरह की नियुक्ति या पद्दोनति में समस्या क्या है? इस पर ऊपर उद्धृत पहले आईपीएस अधिकारी ने कहा कि यह ‘किसको क्या मिलता है. ये इसके बारे में नहीं है बल्कि सवाल निष्पक्षता को लेकर है.’

अधिकारी ने कहा, ‘एक पद पर लंबे समय तक बने रहने की यह व्यवस्था इस शासनकाल (मोदी सरकार) के दौरान ही सामने आई है. सरकार के पास स्पष्ट रूप से अपने पसंद के अधिकारी हैं’  वह आगे कहते हैं, ‘यह प्रणाली निश्चित रूप से एक अधिकारी की निष्पक्षता को प्रभावित करती है.’

एक तीसरे आईपीएस अधिकारी ने कहा कि इसमें ‘कानूनी तौर पर कुछ भी गलत नहीं है’ क्योंकि सरकार ने कुछ अधिकारियों को इस तरह का सेवा विस्तार देने के लिए नियमों (भारतीय प्रशासनिक सेवा संवर्ग नियम) में संशोधन किया है.

अधिकारी ने कहा, ‘लेकिन यह निश्चित रूप से अखिल भारतीय सेवा के मूल स्वभाव को आहत करता है. नियमों में काफी हद तक बदलाव किए गए हैं. इन नियमों के तहत एक विशेष कैडर अधिकारी को उनके रिटायरमेंट से कुछ दिन पहले इंटर-कैडर प्रतिनियुक्ति के लिए मंजूरी मिल जाती है और फिर उन्हें एक्सटेंशन दे दिया जाता है.’

वह कहते हैं, ‘लेकिन  हम इनके खिलाफ कैट (केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण) भी नहीं जा सकते, क्योंकि ये कानूनी तौर पर गलत नहीं हैं. सरकार नीतियों और नियमों में बदलाव कर सकती है.’

2014 में अनुसंधान और विश्लेषण विंग (रॉ) के विमानन विंग एआरसी के प्रमुख के रूप में सेवानिवृत्त हुए आईपीएस अधिकारी अमिताभ माथुर ने कहा कि रॉ या इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) जैसी खुफिया एजेंसियों में सेवारत अधिकारियों के लिए एक्सटेंशन ‘स्वीकार्य हैं’

हालांकि उनके मुताबिक, एक अधिकारी को महत्वपूर्ण संगठनों का अतिरिक्त प्रभार देना एक सरकार द्वारा अपने कैडरों के लिए किया गया सबसे ‘अनुचित’ कार्य है.

उन्होंने कहा, ‘आईबी या रॉ में किसी अधिकारी को एक्सटेंशन देने के बहुत से कारण होते है, इसलिए इसे सिर्फ पक्षपात बताना ठीक नहीं है. लेकिन एक विशेष अधिकारी को बनाए रखने के लिए नियमों में संशोधन करना अनुचित है’  वह आगे कहते हैं, ‘और सबसे अनुचित बात एक ही अधिकारी को सीआरपीएफ और एनआईए जैसे महत्वपूर्ण संगठनों का प्रभार देना है.’

माथुर ने कहा कि एक अधिकारी के लिए इतनी जिम्मेदारी संभालना आसान नहीं होता है.

उन्होंने सवाल किया, ‘एनआईए सभी संवेदनशील मामलों की जांच करने वाली प्रमुख एजेंसी है, जबकि सीआरपीएफ देश का सबसे बड़ा अर्धसैनिक बल है. एक अधिकारी लगभग एक साल से दोनों संगठनों को कैसे संभाल रहा है, जबकि उसके साथी या योग्य जूनियर कतार में इंतजार कर रहे हैं?’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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