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भारत की तेल आयात निर्भरता 2027-28 तक ‘80% से ऊपर’ हो जाएगी, मोदी ने इसे 10% कम करने का लक्ष्य रखा था

घरेलू उत्पादन में गिरावट बढ़ती मांग और तेल की बढ़ती कीमतों के संयोजन का मतलब है कि भारत का तेल आयात बिल तीन वर्षों में लगभग दोगुना हो गया है.

प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने गुरुवार को संसद को बताया कि भारत तेल आयात पर अपनी निर्भरता को मौजूदा 78.6 प्रतिशत से बढ़ाकर 80 प्रतिशत से ऊपर करने के लिए तैयार है. यह 2022 तक तेल पर भारत की आयात निर्भरता में 10 प्रतिशत की कटौती करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2015 के आह्वान के विपरीत है.

गुरुवार को लोकसभा में जवाबों की सीरीज़ में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस राज्य मंत्री रामेश्वर तेली ने ये जानकारी दी जिससे पता चला कि न केवल भारत की तेल आयात निर्भरता बढ़ने वाली है, बल्कि भारत तेल आयात पर जो राशि खर्च करता है वो भी पिछले तीन वर्षों में लगभग दोगुनी हो गई है, जबकि घरेलू तेल उत्पादन पिछले पांच वर्षों से गिर रहा है.

मोदी ने मार्च 2015 में घरेलू तेल कंपनियों को अपना उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया था और 2022 तक भारत के तेल आयात को 10 प्रतिशत अंक घटाकर लगभग 66-67 प्रतिशत और 2030 तक 50 प्रतिशत अंक कम करने का लक्ष्य रखा था.

तेली ने एक लिखित जवाब में संसद को बताया, “वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान देश की तेल और तेल समकक्ष गैस आयात निर्भरता 78.6 प्रतिशत (अनंतिम) है, जो 2027-28 तक बढ़कर 80 प्रतिशत से ऊपर होने की उम्मीद है.”

उन्होंने कहा, यह अनुमान उपभोग और घरेलू उत्पादन में वृद्धि के विभिन्न आकलन और धारणाओं पर आधारित है.

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हालांकि, यह उम्मीद की जा रही थी कि अर्थव्यवस्था बढ़ने के साथ-साथ भारत की तेल आवश्यकताएं बढ़ेंगी, अब तक कोशिश घरेलू उत्पादन बढ़ाने और पेट्रोल – और इसलिए तेल – की आवश्यकता को कम करने के लिए पेट्रोल के साथ इथेनॉल के मिश्रण जैसी अन्य तकनीकों का उपयोग करने का भी रहा है.

तेली ने आगे कहा, “सरकार ने तेल और गैस के घरेलू उत्पादन को बढ़ाने, ऊर्जा दक्षता और संरक्षण उपायों को बढ़ावा देने, मांग प्रतिस्थापन पर जोर देने, जैव ईंधन और अन्य वैकल्पिक ईंधन/नवीकरणीय पदार्थों को बढ़ावा देने, ईवी चार्जिंग सुविधाओं और रिफाइनरी प्रक्रिया में सुधार करने और काउंटी की निर्भरता आयातित कच्चे तेल पर कम करने के लिए पांच-स्तरीय रणनीति अपनाई है.”

तेली द्वारा एक अन्य उत्तर में उपलब्ध कराए गए डेटा से पता चलता है कि भारत कम से कम इन पांच पहलुओं में से पहले में विफल रहा है — घरेलू उत्पादन बढ़ाना.

जहां 2018-19 में भारत ने 34.2 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) कच्चे तेल का उत्पादन किया, वहीं 2022-23 में यह लगातार गिरकर 29.2 एमएमटी हो गया है. साथ ही भारत की बढ़ती मांग और तेल की कीमत में वृद्धि को ध्यान में रखते हुए, तेल आयात पर खर्च की जाने वाली राशि आसमान छू गई है.

तेली के तीसरे उत्तर से पता चला कि भारत ने 2022-23 में तेल आयात पर 157.6 बिलियन डॉलर खर्च किए, जबकि पिछले वर्ष यह 120.7 बिलियन डॉलर था और महामारी प्रभावित वर्ष 2020-21 में केवल 62.2 बिलियन डॉलर खर्च हुआ.

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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