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भारतीय निजी कंपनी ने तोड़ी चीन की 8 साल पुरानी मोनोपली, नेपाली सेना को गोला-बारूद की आपूर्ति शुरू की

पूर्व में नेपाली सेना भारत से गोला-बारूद आयात करती थी, लेकिन भारत निर्मित इंसास राइफलों की जगह कोरियाई और अमेरिकी एम4, एम16 और अन्य नाटो राइफलों का इस्तेमाल शुरू करने के बाद उसने ऐसा करना बंद कर दिया था.

फोटो- विशेष व्यवस्था द्वारा

नई दिल्ली: नेपाल में चीन की आठ साल पुरानी मोनोपली को तोड़कर एक भारतीय निजी कंपनी ने नेपाली सेना के लिए गोला-बारूद की आपूर्ति शुरू की है. दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक, गवर्नमेंट-टू-गवर्नमेंट कांट्रैक्ट के तहत भारतीय कंपनी को नेपाली सेना की असॉल्ट राइफलों के लिए 20 लाख 5.56×45 मिमी राउंड की आपूर्ति करनी है.

रक्षा एवं सुरक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्रों ने बताया कि बेंगलुरू स्थित एसएसएस डिफेंस ने गुणवत्ता के आधार पर यह कांट्रैक्ट जीता जिसके लिए चीन की तरफ से भारी-भरकम बोली लगाई गई थी.

पूर्व में नेपाली सेना भारत से गोला-बारूद आयात करती थी, लेकिन भारत निर्मित इंसास राइफलों की जगह कोरियाई और अमेरिकी एम4, एम16 और अन्य नाटो राइफलों का इस्तेमाल शुरू करने के बाद उसने ऐसा करना बंद कर दिया था.

गौरतलब है कि 2005 में माओवादियों के साथ एक भीषण मुठभेड़ में 43 नेपाली सैनिकों के शहीद होने के बाद उसके प्रवक्ता ने राइफलों को घटिया किस्म की बताया था और साथ ही दावा किया था कि अगर उन्हें बेहतर हथियार मिलते तो सैन्य ऑपरेशन सफल रहा होता.

भारतीय और नेपाली सेना के बीच रिश्तों को एक लंबा इतिहास रहा है. भारतीय सेना में करीब 35,000 नेपाली गोरखा सेवारत हैं, वहीं हिमालयी राष्ट्र में 1.3 लाख से अधिक ऐसे पूर्व सैनिक भी हैं जिन्हें भारत में अपनी सैन्य सेवाओं के लिए पूर्ण पेंशन मिल रही है.

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अनुमानित तौर पर नेपाली गोरखाओं को अकेले भारतीय सेना की तरफ से जिनता वेतन और पेंशन मिलती है, वो इस हिमालयी राष्ट्र के वार्षिक सैन्य बजट से कहीं अधिक है.

कांट्रैक्ट और क्या है इसकी अहमियत

गोला-बारूद की आपूर्ति संबंधी कांट्रैक्ट के बारे में बात करते हुए सूत्रों ने बताया कि इसकी आपूर्ति शुरू हो चुकी है और अगले साल के शुरू तक पूरी हो जाएगी.

एसएसएस डिफेंस के आंध्र प्रदेश स्थित कारखाने में इस गोला-बारूद का निर्माण किया जा रहा है.

भारतीय कंपनी की तरफ से देश में गोला-बारूद का यह उत्पादन ब्राजील की कंपनी सीबीसी डिफेंस के साथ संयुक्त उपक्रम के तहत किया जा रहा है, जो सैन्य गोला-बारूद के उत्पादन के मामले में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी है.

सीबीसी डिफेंस भारतीय सशस्त्र बलों के लिए एक आपूर्तिकर्ता कंपनी रही है और उसने भारतीय सेना को छोटे कैलिबर की आपूर्ति के लिए एक कांट्रैक्ट भी कर रखा है.

नेपाल के साथ कांट्रैक्ट की अहमियत बताते हुए सूत्रों ने बताया कि पिछले आठ सालों से वहां की सेना ने कोई भी भारतीय रक्षा उपकरण या गोला-बारूद नहीं खरीदा था.

एक सूत्र ने बताया, ‘नेपाली सेना ने बाकायदा पत्र भेजकर कहा था कि हमारी कंपनियां इसके लिए बोली लगाएं. चीन से भी बोली आमंत्रित की गई थी. फिर नेपाली सेना ने मूल्यांकन प्रक्रिया के बाद एसएसएस डिफेंस का चयन किया. इस सौदे के लिए कांट्रैक्ट दोनों देशों की सरकारों के बीच किया गया.’

सूत्रों ने कहा कि य़ह कांट्रैक्ट भारत के बढ़ते रक्षा उद्योग और भारतीय रक्षा उपकरणों की निर्यात क्षमता का एक और उदाहरण है.

भारत का रक्षा निर्यात

भारत चालू वित्त वर्ष में अपना रक्षा निर्यात अब तक सबसे अधिक होने की उम्मीद कर रहा है जो कि पहले छह महीनों में ही 8,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया था.

भारत का रक्षा निर्यात वित्तीय वर्ष 2021-2022 में रिकॉर्ड 13,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया था, जो कि 2014 के मुकाबले लगभग आठ गुना ज्यादा रहा.

2020 में नरेंद्र मोदी सरकार ने 2025 तक एयरोस्पेस, और रक्षा उपकरणों और सेवाओं का निर्यात लक्ष्य 35,000 करोड़ रुपये (5 बिलियन डॉलर) निर्धारित किया था. यह 2025 तक रक्षा विनिर्माण में 1.75 लाख करोड़ रुपये (25 बिलियन डॉलर) का टर्नओवर करने के निर्धारित लक्ष्य का ही हिस्सा है, जिसे सरकार पूरा करने की कोशिश कर रही है.

पिछले साल अक्टूबर में एसएसएस डिफेंस ने भारतीय विशेष बलों की एक यूनिट के साथ कांट्रैक्ट के मामले में इजरायली रक्षा कंपनी फैब डिफेंस, जिसे जहाल नाम से भी जाना जाता है, को पीछे छोड़ दिया था जिसके तहत सीमित संख्या में क्लाश्निकोव राइफल्स को अपग्रेड किया जाना था.

यह पहली भारतीय कंपनी है जो सेना में इस्तेमाल होने वाली एके47 और ड्रैगानोव मार्समैन राइफल्स के लिए अपग्रेड किट की पूरी रेंज लाई और कार्बाइन और स्निपर्स सहित खुद ही डिजाइन और निर्मित किए जा रहे छोटे हथियारों की भी एक रेंज के साथ सामने है.

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