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भारत में ChatGPT से इतर और दिक्कतें, इंजीनियरिंग में प्रशिक्षित मैनपावर की ज़रूरत: IIT मद्रास के निदेशक

वी कामाकोटि ने कहा, आईआईटी मद्रास ने उन क्षेत्रों की पहचान की है जिनमें नए युग के पाठ्यक्रम भारत के विकास में सहायता करेंगे. उन्होंने आईआईटी में हाल ही में हुई आत्महत्याओं के बारे में भी बात की कि वे छात्रों की इससे निपटने में कैसे मदद कर रहे हैं.

वी. कामाकोटि, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास, चेन्नई के निदेशक | फोटो: आईआईटी-मद्रास
वी. कामाकोटि, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास, चेन्नई के निदेशक | फोटो: आईआईटी-मद्रास

नई दिल्ली: सिस्टम थिंकिंग एप्रोच के साथ इंजीनियरिंग के हर क्षेत्र में प्रशिक्षित मैनपावर की भारत की ज़रूरत पर जोर देते हुए, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास के निदेशक, वी. कामाकोटि ने दिप्रिंट को दिए एक विशेष इंटरव्यू में कहा कि देश को इस बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है कि चैटजीपीटी जैसी फैंसी कम्प्यूटेशन (संगणनाएं) कंपनियां क्या पसंद करती हैं. उन्होंने कहा कि भारत में कई अन्य मुद्दे हैं जिनसे पहले निपटने की ज़रूरत है.

उन्होंने कहा, “चैटजीपीटी की तुलना में भारत में हल करने के लिए कई और समस्याएं हैं. कम्प्यूटेशन दो प्रकार के होते हैं, एक फैंसी और दूसरा वास्तविक दुनिया की समस्याओं को हल करने के लिए कम्प्यूटेशन.”

कामाकोटि का बयान OpenAI के सीईओ सैम ऑल्टमैन द्वारा इस महीने की शुरुआत में भारतीय उद्योग के नेताओं के साथ बातचीत के दौरान की गई टिप्पणी के बाद आया है, जहां उन्होंने कहा था कि भारतीय कंपनियों के लिए एआई की बात करना उनके साथ प्रतिस्पर्धा करना निराशाजनक था.

कामाकोटि ने कहा, “दूसरों को क्या कहना है भूल जाइए”. “मैं उस बारे में बात कर रहा हूं जिसकी भारत को असल में ज़रूरत है. आज भारत को इंजिनियरिंग के हर क्षेत्र में सिस्टम थिंकिंग एप्रोच के साथ प्रशिक्षित मैनपावर की ज़रूरत है. मेरे पास बहुत सारी बुनियादी ढांचा परियोजनाएं हैं, एवियोनिक्स पर इतनी सारी परियोजनाएं हैं, स्वास्थ्य और चिकित्सा विज्ञान पर इतनी सारी परियोजनाएं हैं. हमारे पास शिक्षा के मानकों में सुधार करने के लिए बहुत कुछ है. हमारे सकल नामांकन अनुपात को 50 तक पहुंचने की ज़रूरत है.”

IIT मद्रास के निदेशक ने कहा कि उन्होंने इसके बजाय उन क्षेत्रों की पहचान की है जिनमें नए-पुराने पाठ्यक्रम अधिक समस्या-समाधान अनुप्रयोग पाए जाएंगे और भारत को अपने विकास पथ में आगे बढ़ने में सहायता करेंगे.

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उन्होंने कहा, “हमने उन पाठ्यक्रमों की पहचान की है जिनमें भारत को अधिक मैनपावर की ज़रूरत है. यदि हमें किसी संगठन के जोखिम प्रबंधन का आकलन करने की आवश्यकता है, तो हमें डेटा साइंस की दरकार होगी. यदि हम यांत्रिक तरीके से किसी इंजन का निवारक रखरखाव करना चाहते हैं, तो हमें वहां डेटा साइंस की ज़रूरत है. यही कारण है कि हमने डेटा साइंस को एक ऐसे कोर्स के रूप में चुना है जिसकी देश को ज़रूरत है और हमने डेटा साइंस में बीएससी का एक कोर्स भी शुरू किया है. वर्तमान में हमारे पास इस पाठ्यक्रम में 19,000 से अधिक भारतीय नामांकित हैं.”

कामाकोटि ने इस बारे में भी विस्तार से बात की कि कैसे आईआईटी भारतीय सीमाओं से परे तकनीकी क्षेत्र में तकनीकी शिक्षा के अपने दायरे का विस्तार कर रहे हैं. तंज़ानिया में आईआईटी कैंपस, जो मद्रास कैंपस का एक्सटेंशन होगा, अक्टूबर 2023 तक चालू होने वाला है. दिप्रिंट से इस बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, “तीन कारकों के आधार पर तंज़ानिया को एक स्थान के रूप में चुना गया था. पहला, उन्हें हमारी सहायता की ज़रूरत है, दूसरा, उनकी सरकार को हमारा समर्थन करना चाहिए, तीसरा, उनकी बुनियादी शिक्षा प्रणाली मजबूत होनी चाहिए.”

उन्होंने कहा, “तंज़ानिया कैंपस अक्टूबर 2023 में काम करना शुरू कर देगा. एक नए परिसर के रूप में, हम वहां नई और रोमांचक चीजें करना चाहते हैं. सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण, हम वहां डेटा साइंस पर भी एक कोर्स शुरू कर रहे हैं. हम इस पाठ्यक्रम में लगभग 200-300 छात्रों के नामांकन की उम्मीद कर रहे हैं. साइबर सुरक्षा में पाठ्यक्रमों की वैश्विक आवश्यकता की पहचान करते हुए, हम साइबर भौतिक प्रणालियों में एम.टेक भी शुरू कर रहे हैं.”

तंज़ानिया के छात्रों को तकनीकी ज्ञान और शिक्षण विशेषज्ञता से लैस करने के लिए, उन्हें पीएचडी करने के लिए आईआईटी मद्रास कैंपस में भी आमंत्रित किया जाएगा. उन्होंने कहा, “हम स्थानीय छात्रों को पीएचडी की डिग्री हासिल करने के लिए मद्रास आने के लिए प्रोत्साहित करेंगे ताकि वे वापस जाकर तंज़ानिया कैंपस में शिक्षक बन सकें.”

IIT मद्रास भी तंज़ानिया कैंपस को “आत्मनिर्भर” बनाने का लक्ष्य लेकर चल रहा है.

उन्होंने कहा कि वे तंज़ानिय परिसर में उच्च शिक्षा के लिए नामांकन के लिए बड़े पैमाने पर उद्योग की भागीदारी और महाद्वीप के अन्य अफ्रीकी देशों के छात्रों की उम्मीद कर रहे हैं.


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IIT राष्ट्रीय मान्यता प्रयास का समर्थन करते हैं

प्रोफेसर कामाकोटि ने यह भी बताया कि कैसे देश में आईआईटी इस बात पर आम राय रखते हैं कि उन्हें राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (एनएएसी) की केंद्रीकृत मान्यता प्रणाली का हिस्सा बनना चाहिए.

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के अलावा, जो संस्थानों को मान्यता प्रदान करता है वो है, NAAC, जो मूल्यांकन करता है और पांच साल की अवधि में उच्च शिक्षा संस्थानों का ग्रेडेड एक्रेडिटेशन करता है. वर्तमान में, IIT अपनी आंतरिक सहकर्मी समीक्षा करते हैं, जिसमें इनमें से कोई भी एजेंसी शामिल नहीं होती है.

अप्रैल में आयोजित IIT काउंसिल – सभी IIT के शासी निकाय की एक बैठक में, IIT के NAAC का हिस्सा बनने के विषय पर चर्चा की गई.

इस पर बात करते हुए, प्रोफेसर कामकोटि ने कहा, “मान्यता हमें हमारे काम की एक तृतीय-पक्ष समीक्षा देती है और हमें यह बताती है कि क्या सुधार किया जा सकता है. इसलिए, देश में सभी तकनीकी विभागों के लिए एक ही मान्यता मायने रखती है और महत्वपूर्ण है. यही कारण है कि हर कोई इस बात से सहमत है कि इस तरह की एकल पार्टी प्रत्यायन प्रणाली की आवश्यकता है. हालांकि, IIT अपने विभागों को अधिक स्वायत्तता देते हैं, यही वजह है कि सामान्य मान्यता प्रक्रिया आईआईटी में नहीं आ सकती है.”

उन्होंने कहा कि चूंकि आईआईटी में अन्य विश्वविद्यालयों की तुलना में कार्य करने की एक अलग शैली है, इसलिए उनके लिए मान्यता के मानदंड देश के अन्य तकनीकी संस्थानों की तुलना में भिन्न होंगे.

मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान दें

दिप्रिंट के साथ अपनी बातचीत में कामाकोटि ने हाल ही में आईआईटी में छात्र आत्महत्याओं की बढ़ती घटनाओं का भी ज़िक्र किया और कैंपस में चल रही पहलों के बारे में बताया. आईआईटी मद्रास में पिछले सात महीनों में पांच छात्रों ने आत्महत्या की है. उन्होंने कहा कि चेन्नई का कैंपस “सबसे अधिक प्रभावित” होने के कारण छात्रों की चिंताओं को दूर करने के लिए कई मानसिक स्वास्थ्य पहलों को यहां तेज़ी से लागू किया गया है.

उन्होंने कहा, “चार प्रमुख कारण हैं जिन्हें हमने अपने छात्र सर्वेक्षणों के माध्यम से पहचाना है—इनमें व्यक्तिगत मुद्दे, स्वास्थ्य मुद्दे, प्रतिस्पर्धा और वित्तीय मुद्दे शामिल हैं. इसलिए, हमारे छात्रों को इस तनाव से निपटने के तरीकों से लैस करने की ज़रूरत है.”

कोविड ने साथियों के बीच इस तनाव और प्रतिस्पर्धा को कैसे बढ़ाया, इस पर जोर देते हुए उन्होंने कहा, “कोविड से पहले छात्र एक साथ आ सकते थे और एक दूसरे से व्यवस्थित रूप से सीख सकते थे, लेकिन महामारी के दौरान छात्र कैंपस नहीं आ सके. जब छात्र वापस लौटे, तो उन्होंने पाया कि उनके कुछ साथियों ने अतिरिक्त मूल्य वर्धित पाठ्यक्रम ले लिए थे या घर पर अतिरिक्त कौशल हासिल कर लिया था, जिससे उन्हें इंटर्नशिप हासिल करने में मदद मिली. इस अहसास ने पीछे छूट जाने की भावना पैदा की और छात्रों पर दबाव बढ़ा दिया.”

छात्रों को इससे निपटने में मदद करने के लिए, संस्थान ने अब “बी हैप्पी” नामक एक पोर्टल स्थापित किया है, जो छात्रों को मानसिक स्वास्थ्य परामर्श के लिए नामांकन करने के लिए प्रोत्साहित करता है और छात्र-प्रोफेसर के बीच बातचीत की व्यवस्था करता है.

इस बारे में बोलते हुए, निदेशक ने कहा, “हमने इस मुद्दे को हल करने के लिए कई उपाय किए हैं और एक समयबद्ध शिकायत-निवारण तंत्र बनया है. अब हमारे पास श्रोता हैं जो जरूरत पड़ने पर छात्रों की दिक्कतों को सुनेंगे. संरचित ‘कुशल बैठकें’ हैं जहां छात्र फैकल्टी के साथ बातचीत करते हैं. अब हमारे पास सलाहकारों का एक स्वतंत्र समूह भी है.”

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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