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भारत ने जलवायु संबंधी प्रतिबद्धताओं में की वृद्धि : विशेषज्ञ

नयी दिल्ली, चार अगस्त (भाषा) भारत ने महामारी के बाद ऐसे परिदृश्य में अपनी जलवायु महत्वाकांक्षाओं को बढ़ाया है जब विश्व में जलवायु परिवर्तन को लेकर कम कार्रवाई होती दिख रही है और इस पहल की सराहना की जाने की आवश्यकता है। विशेषज्ञों ने पेरिस समझौते के तहत देश के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अद्यतन योगदान (एनडीसी) का स्वागत करते हुए यह बात कही।

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को भारत के अद्यतन एनडीसी को मंजूरी दी, जिसमें ग्लासगो सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से किए गए दो वादों को शामिल किया गया है। इनमें एक वादा 2030 तक 2005 के स्तर से अपने सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 45 प्रतिशत तक कम करने और 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन-आधारित ऊर्जा संसाधनों से लगभग 50 प्रतिशत संचयी विद्युत शक्ति की स्थापित क्षमता प्राप्त करना शामिल है।

पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि एनडीसी में शामिल दो लक्ष्य पिछले साल ग्लासगो सम्मेलन में किए गए अन्य वादों के साथ जुड़े हुए हैं। इनमें 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता और उस वर्ष तक कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन तक की कमी करना भी शामिल है।

एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ”अद्यतन की गई एनडीसी में पहले से ही 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन-आधारित संसाधनों से 50 प्रतिशत संचयी विद्युत शक्ति प्राप्त करना शामिल है। यह 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए किया जा रहा है। इसी तरह, उत्सर्जन तीव्रता में कमी के लक्ष्य को एक और 10 प्रतिशत (पहले 35 प्रतिशत से अब 45 प्रतिशत तक) बढ़ाने का निर्णय से एक और लक्ष्य हासिल होगा और वह है 2030 तक सीओ2 उत्सर्जन को एक अरब टन तक कम करना।”

अधिकारी ने कहा, ”नेट-जीरो कार्बन उत्सर्जन को एनडीसी में शामिल करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह 2070 का लक्ष्य है और ये लक्ष्य उस दिशा में एक कदम हैं। हालांकि, यह भारत के ‘दीर्घकालिक उत्सर्जन रणनीति’ दस्तावेज़ का हिस्सा हो सकता है, जिसे आगामी सीओपी द्वारा प्रस्तुत किया जाना है।”

द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टीईआरआई) की प्रतिष्ठित फेलो आरआर रश्मि ने कहा कि भारत द्वारा अपने एनडीसी को अद्यतन करने का निर्णय प्रधानमंत्री की ग्लासगो घोषणाओं के अनुरूप है। उन्होंने कहा कि यह सतत विकास को चर्चा के केंद्र में रखते हुए महत्वाकांक्षा को बढ़ाता है।

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा कि भारत ने ऐसे समय में महत्वपूर्ण कार्रवाई की है जब दुनिया में जलवायु परिवर्तन पर कम कार्रवाई होती दिख रही है।

उन्होंने कहा, ”लेकिन हम इस बात को लेकर निराश हैं कि भारत ने कहा है कि हमारे पास 2030 तक 50 प्रतिशत स्थापित गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता होगी, इसके बजाय भारत ने ग्लासगो में कहा था कि हम 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा से बिजली की 50 प्रतिशत आवश्यकताओं को पूरा करेंगे। यह निराशाजनक है क्योंकि हम पहले से ही लगभग 40 प्रतिशत (गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित स्रोतों से बिजली उत्पादन क्षमता) हासिल कर चुके हैं।”

भाषा जोहेब माधव

माधव

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