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वेडिंग कार्ड, ड्रोन के जरिये और समुद्री कार्गो में छिपाकर, भारत में कैसे लाया जाता है ड्रग्स

अफगानिस्तानी हेरोइन की यह खेप ईरान के बंदर अब्बास पोर्ट से देश में लाई गई थी और इसे ‘सेमी प्रॉसेस्ड टाल्क स्टोन’ बताया गया था.

नारकोटिक्स की प्रतीकात्मक फोटो । कॉमन्स

नई दिल्ली: राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) ने पिछले हफ्ते गुजरात के मुंद्रा पोर्ट से 3,000 किलोग्राम लगभग शुद्ध हेरोइन—अनुमानित कीमत 21,000 करोड़ रुपये से अधिक—जब्त की थी. इस बरामदगी को अब तक की ‘सबसे बड़ी खेप’ बताया जा रहा है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस प्रतिबंधित मादक द्रव्य की अनुमानित कीमत करीब सात करोड़ रुपये प्रति किलो है.

अफगानिस्तानी हेरोइन की यह खेप ईरान के बंदर अब्बास पोर्ट से देश में लाई गई थी और इसे ‘सेमी प्रॉसेस्ड टाल्क स्टोन’ बताया गया था.

इससे पहले, दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ ने जुलाई में पड़ोसी क्षेत्र फरीदाबाद के एक घर से 2,500 करोड़ रुपये से अधिक कीमत की लगभग 354 किलोग्राम हेरोइन जब्त की थी.

हाल में भारत लाए जाने और विभिन्न क्षेत्रों में पहुंचाए जाने के दौरान जब्त की खेपों की मात्रा ने सवालिया निशान खड़े किए हैं और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और अन्य लोगों की तरफ से इसे ‘नार्को-आतंकवाद’ तक करार दिया जा रहा है.

भारत में ड्रग्स बरामद होने की हालिया घटनाओं के मद्देनजर दिप्रिंट ने इसकी पड़ताल की कि आखिर उन्हें देश में कैसे लाया जाता है और इन्हें विभिन्न राज्यों और तस्करों तक कैसे पहुंचाया जाता है.

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भारत में मादक द्रव्यों का जाल

दिप्रिंट को मिले नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, जनवरी और जुलाई 2021 के बीच सुरक्षा और कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने 3,040 किलोग्राम हेरोइन, 4,30,264 किलोग्राम पोस्ता स्ट्रा, 3,35,052 किलोग्राम गांजा और 215 किलोग्राम एसिटिक एनहाइड्राइड (अवैध ड्रग्स हेरोइन और मेथाक्वालोन के उत्पादन में उपयोग किया जाने वाला रासायनिक एजेंट) जब्त किया है.

जब्त की गई खेपों की सूची में अफीम, मॉर्फिन, हैश, केटामाइन, कोकीन, मेथाक्वालोन, इफेड्रिन और कोडीन-बेस्ड कफ सिरप सहित अन्य नशीली दवाएं शामिल हैं.

एनसीबी के एक सूत्र ने कहा, ‘हम निश्चित तौर पर यह तो नहीं कह सकते कि हाल के वर्षों में मादक द्रव्यों की खपत बढ़ी है या नहीं, लेकिन इनका पता लगाना और जब्त कर लेना जरूर बढ़ा है.’

लगभग सभी एजेंसियों (कस्टम, डीआरआई और पुलिस) के सूत्रों का कहना है कि हेरोइन भारत में सबसे अधिक खपत और मांग वाला अवैध मादक द्रव्य है.

एनसीबी के सूत्र ने कहा, ‘गांजा, हेरोइन, थोड़ी-बहुत कोकीन, एमडीएमए (जिसे एक्स्टसी भी कहा जाता है) और अन्य फार्मा ड्रग्स ने भारत में एक बड़ा बाजार बना लिया है.’

अफीम की खेती भारत में भी की जाती है, लेकिन अफगानिस्तान का हेलमंद प्रांत सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है.

अफीम के ही एक रूप हेरोइन को मॉर्फीन से बनाया जाता है, जिसे विभिन्न अफीम पोस्त पौधों की फली से निकाला जाता है, जिनकी खेती दक्षिण-पूर्व और पश्चिम एशिया, मैक्सिको और कोलंबिया के तमाम हिस्सों में होती है. वहीं, कोकीन कोका के पौधे की पत्तियों से तैयार होती है. कोकीन और हेरोइन दोनों को इंजेक्ट किया जा सकता है, सूंघा जा सकता है या स्मोक किया जा सकता है.

भांग के पौधों से ट्राइकोम एकत्र करके और उसे निचोड़कर हशीश या हैश को तैयार किया जाता है.

मेथिलेंडियोक्सी-मेथामफेटामाइन (एमडीएमए या एक्स्टसी), एम्फेटामाइन, मेफेड्रोन (जिसे म्याऊ म्याऊ भी कहा जाता है) सिंथेटिक रिक्रिएशनल पार्टी ड्रग्स हैं जो भारत में होने वाले रेव पार्टियों में खासे लोकप्रिय हैं. इन दवाओं को गोलियों के रूप में लिया जाता है, या फिर हेरोइन और कोकीन की तरफ पाउडर के रूप में सूंघा जाता है.


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प्रतिबंधित पदार्थों को लाया कैसे जाता है

एनसीबी के एक दूसरे सूत्र ने कहा, ‘देश में ज्यादातर मादक द्रव्य अफगानिस्तान, पाकिस्तान और म्यांमार से आते हैं. पिछले कुछ सालों के दौरान रास्ते जरूर बदले हैं, लेकिन तौर-तरीके पहले के जैसे ही हैं.’

कस्टम, डीआरआई और एनसीबी के अधिकारियों के मुताबिक, इन ड्रग्स को देश में जमीन, समुद्र और हवाई मार्ग हर तरह से लाया जाता है.

एनसीबी के दूसरे सूत्र ने बताया, ‘मादक द्रव्यों को छोटे बोरों में पैक किया जाता है और सीमा पार पाकिस्तान से पंजाब की तरफ फेंक दिया जाता है. पर पिछले कुछ सालों में सीमा पर सुरक्षा और चेकिंग कई गुना बढ़ गई है, जिसके कारण तस्करों को भारी नुकसान हुआ है और ड्रग्स को जमीनी मार्ग से लाया जाना प्रभावित हुआ है.’

उन्होंने आगे कहा कि जमीनी रास्ते से तस्करी कम घटी है, दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘तस्कर भी पिछले कुछ सालों में टेक-सैवी हो गए हैं और सीमा पार से ड्रग्स भेजने के लिए ड्रोन का उपयोग किया जाने लगा है. ज्यादातर सौदे डार्क वेब पर किए जाते हैं.’

सूत्रों ने कहा कि हवाई मार्ग के जरिए ड्रग्स की तस्करी के लिए नई तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है.

एयर कस्टम के एक अधिकारी ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ‘ऐसी घटनाएं भी सामने आई हैं जब लोगों ने टैबलेट के रूप में हेरोइन और कोकीन जैसे ड्रग्स को निगल लिया और देश में आ गए. नशीले पदार्थों को बाद में ऑपरेशन द्वारा उनके शरीर से बाहर निकाला जाता है. कुछ लोग नशीले पदार्थों को अपने सामान के साथ छिपाकर ले आते हैं. वे इन्हें अपने कपड़ों, गैजेट्स और अन्य वस्तुओं के साथ सील करके ले आते हैं.’

डीआरआई के एक सूत्र ने बताया कि ‘ऐसी ही घटना में तस्करों ने शादी के कार्ड में प्लास्टिक कवर के बीच इफेड्रिन ड्रग्स छिपा दिया था. यह खेप पांच करोड़ रुपये से अधिक की थी.

हालांकि, सूत्रों का कहना है कि तस्करों के लिए देश में बड़ी मात्रा में ड्रग्स लाने के लिए समुद्री मार्ग सबसे आसान तरीका है. हाल के महीनों में जिन पोर्ट से इन्हें जब्त किया गया है, उनमें से मुंद्रा और महाराष्ट्र का न्हावा शेवा शामिल हैं.

दिल्ली पुलिस के अधिकारी ने कहा, ‘हेरोइन को अक्सर वैध निर्यात के बीच छिपाया जाता है—जिसमें टाल्क स्टोन, जिप्सम पाउडर, बासिल सीड्स आदि की बोरिया और डिब्बे शामिल होते हैं—और फिर बंदरगाहों के जरिये विभिन्न देशों में तस्करी की जाती है.’

इस साल के शुरू में कोविड लॉकडाउन के दौरान अंतरराष्ट्रीय उड़ानों और आवाजाही पर अन्य प्रतिबंधों के कारण इनकी तस्करी प्रभावित हुई थी. एनसीबी के एक सूत्र ने कहा, ‘देश में नशीली दवाओं की तस्करी कोविड के कारण लॉकडाउन के दौरान घट गई थी क्योंकि उड़ानें निलंबित थी और देशभर में बंद था, और आवाजाही प्रतिबंधित थी. इसलिए बड़ी मात्रा में ड्रग्स नहीं लाया जा सका.’

सूत्रों ने बताया कि एक बार नजर में आए बिना ये ड्रग्स देश में पहुंच जाते हैं तो इन्हें तैयार करने के लिए मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और अन्य राज्यों में अस्थायी कारखानों में ले जाया जाता है.

दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी ने बताया, ‘पूरे कार्टेल को ट्रैक करना और किंगपिन का पता लगाना बहुत मुश्किल होता है, क्योंकि पूरी चेन में अधिकांश बेरोजगार युवा शामिल हैं, जिन्हें गिरफ्तार करने पर भी कोई खास जानकारी नहीं मिल पाती, क्योंकि उन्हें पूरे ऑपरेशन के बारे में कोई जानकारी होती ही नहीं या फिर बहुत कम पता होता है. पहले की तरह अब इन्हें एक से दूसरी जगह पहुंचाने के लिए चोरी की कारों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. बल्कि वे सेकेंड हैंड कार खरीदते हैं और दो ऑपरेटरों के बीच संपर्क भी बहुत सीमित है, इसलिए उन्हें अक्सर यह पता नहीं चलता कि पूरा रैकेट कौन चला रहा है.’

ऊपर उद्धृत अधिकारियों ने इस बात से सहमति जताई कि नशीली दवाओं का कारोबार इनकी लत के शिकार लोगों द्वारा अन्य अपराधों को अंजाम देने की घटनाएं बढ़ाते हैं, जो कई बार काफी गंभीर भी हो सकते हैं. नशे के लती लोग अपनी तलब पूरी करने के लिए खुद पेडलर या वितरक बन जाते हैं या इसे बनाने की प्रक्रिया में भी शामिल हो जाते हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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