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‘कैसे मानें सब कुछ सामान्य है?’ पाक दिन पर श्रीनगर के जामिया मस्जिद के बंद रहने से लोगों में गुस्सा

शब-ए-कद्र की रात और रमजान के आखिरी शुक्रवार जुमा-उल-विदा की नमाज की इजाजत नहीं दी गई. पिछले ढाई साल में ज्यादातर समय तक बंद रहने के बाद 1 मार्च को यह मस्जिद फिर से खोली गई थी

जामिया मस्जिद Jamia Masjid
जामिया मस्जिद के बाहर शुक्रवार को जुमात-उल-विदा के दिन एक महिला | फोटो: प्रवीण जैन | दिप्रिंट

श्रीनगर: श्रीनगर के नौहट्टा स्थित ऐतिहासिक जामिया मस्जिद को गुरुवार रात कानून-व्यवस्था के हालात और लोगों की नाराजगी का हवाला देते हुए एक बार फिर से बंद कर दिया गया. शब-ए-क़द्र और जुमात-उल-विदा के पाक मौकों पर नमाज़ अदा किए जाने से रोके जाने की वजह से स्थानीय निवासियों ने घाटी में ‘सामान्य स्थिति’ होने के प्रशासन के दावों पर सवाल खड़े किए.

एक ओर शब-ए-क़द्र (इबादत की रात) को इस्लामी कैलेंडर की सबसे पवित्र रात माना जाता है और आम तौर पर जहां गुरुवार की रात में यह नमाज़ अदा की जाती है, वहीं जुमा-उल-विदा रमज़ान के पाक महीने का आखिरी शुक्रवार होता है, जब जामिया मस्जिद में नमाज अदा करने के लिए घाटी भर से दो लाख से भी ज्यादा लोग जमा होते हैं.

अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के बाद और फिर पिछले दो सालों से जारी कोविड प्रोटोकॉल की वजह से, पिछले ढाई वर्षों से यह मस्जिद ज्यादातर समय बंद रही थी और इस 1 मार्च की फिर से खोला गया था.

इस इलाके के एक सामान बेचनेवाले ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम पिछले तीन सालों से जामिया मस्जिद में शब-ए-क़द्र और जुमात-उल-विदा की नमाज़ अदा नहीं कर पाए हैं. यह वह वक्त होता है जब सब एक साथ आते हैं, और इस साल हम यहां नमाज अदा करने को लेकर बहुत उत्साहित और उम्मीद से भरे थे. यहां लगभग 1 से 2 लाख लोग नमाज अदा करने आते हैं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यहां हमारी सारी मुरादें पूरी होती हैं.‘

उन्होंने सवाल किया, ‘अगर केंद्र शासित प्रदेश का प्रशासन यह दावा कर रहा है कि यहां सब कुछ ठीक-ठाक है, स्थिति एकदम सामान्य है, तो फिर लोगों को उनके नमाज अदा करने के हक़ से महरूम क्यों किया जा रहा है.’

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एक अन्य स्थानीय निवासी ने कहा, ‘जामिया मस्जिद की अहमियत इस बात से है कि हमें यहां नमाज अदा करने में सुकून मिलता है. यहां अल्लाह हमारी मुराद पूरी करता है. यह एक ऐसा त्योहार है जब सब मिल कर जश्न मनाते हैं. अब, हमें या तो घरों के अंदर रहने के लिए या फिर छोटी मस्जिदों में जत्थों में नमाज पढ़ने के लिए मजबूर किया जाता है. वे कैसे कहते हैं कि हालात एकदम से ठीक है? जाहिर तौर पर हमारे लिए यह सामान्य नहीं है. अगर हालात ठीक हैं उन्हें तो मस्जिद के दरवाजे खोल देने चाहिए.’

उन्होंने कहा, ‘यहां तो कोई विरोध भी नहीं कर सकता. जो कोई भी ऐसा करेगा उस पर पब्लिक सिक्योरिटी एक्ट या गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर दिया जाएगा. इसलिए कोई आवाज नहीं उठाएगा.’

श्रीनगर में शुक्रवार को जामिया मस्जिद के बंद दरवाजे | फोटो: प्रवीण जैन | दिप्रिंट

इस बीच, दिप्रिंट के साथ बात करते हुए, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की नेता और जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा कि सरकार ‘कश्मीर के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को चिथड़े उड़ा रही है’.

वे कहती हैं, ‘यह पहली बार नहीं है जब कश्मीर को निशाना बनाया जा रहा है. मस्जिदों पर ताले लगा कर लोगों को उनके बाहर रखा जा रहा है, उन्हें नमाज अदा करने की भी इजाजत नहीं है. देखिए पूरे भारत भर में क्या हो रहा है? लाउडस्पीकर बंद किए जा रहे हैं. जम्मू-कश्मीर में तो वे इससे भी एक कदम आगे जा रहे हैं.’

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि मस्जिद को बंद करने का निर्णय ‘तात्कालिक रूप से लिया गया’था, क्योंकि उन्हें ‘मस्जिद के अंदर गतिविधियों’ के बारे ‘विश्वसनीय ख़ुफ़िया जानकारी’ मिली थी.

इस अधिकारी ने कहा, ‘हमें बहुत ही विश्वसनीय जानकारी मिली थी कि जिस दिन यहां बहुत सारे लोग इकट्ठा होंगे, उसी दिन कुछ होगा और इसलिए एहतियात के तौर पर, हमने मस्जिद को बंद कर दिया. इलाके में आतंकियों की गतिविधियों के बारे में खुफिया जानकारी मिली थी. हम नहीं चाहते थे कि कोई अप्रिय घटना घटे.‘


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‘इस सब से बचा जा सकता था’

दिप्रिंट से बात करते हुए, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की केंद्रीय समिति के सदस्य और पीपुल्स अलायंस फॉर गुप्कर डिक्लेरेशन (पीएजीडी) के प्रवक्ता एम.वाई. तारिगामी ने इस कदम को ‘बर्दाश्त न किया जा सकने वाला’ कहा.

उन्होंने कहा कि इसे ‘बखूबी टाला जा सकता था’ और यहां के लोगों और उलेमाओं से सलाह-मशविरे के साथ पूरी सुरक्षा के साथ शांतिपूर्वक नमाज अदा की जा सकती थी.

उन्होंने पूछा, ‘क्या सरकार इसी तरह से सामान्य हालात का ‘प्रचार करने’ की कोशिश कर रही है?’ उनका कहना था, ‘उन्हें जमीन पर आना चाहिए और देखना चाहिए कि लोग कितने नाराज हैं. क्या इसी तरह वे इस दायरे को पाटने और स्थानीय लोगों का दिल जीतने की उम्मीद करते हैं? मुझे नहीं लगता कि जामिया मस्जिद पर कभी भी इस तरह का क्लैंप डाउन (सख्त बर्ताव) हुआ था.’

शब-ए-कद्र गुरुवार की रात बंद जामिया मस्जिद के बाहर एक सुरक्षाकर्मी | फोटो: प्रवीण जैन | दिप्रिंट

तारिगामी ने यह भी कहा कि पुलिस कानून और व्यवस्था को बहुत अच्छी तरह से संभाल सकती थी.

उन्होंने सवाल किया, ‘लोग इस मस्जिद के साथ भावनात्मक रूप से जुड़े हुए हैं. यह कानून-व्यवस्था का नहीं बल्कि इच्छाशक्ति का सवाल है. अगर सुरक्षा बल नमाज अदा करने के लिए जाने वाले लोगों की सुरक्षा नहीं कर सकते, तो फिर बड़े-बड़े दावे क्यों किए जा रहे है? किसी जगह को सिर्फ इसलिए बंद कर देना क्योंकि आप इस बारे में सुनिश्चित नहीं हैं कि लोगों की रक्षा कैसे की जाए, कोई समाधान तो नहीं है. वे कब तक ऐसा करते रहेंगे?’

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी संवाददाताओं से बात करते हुए कहा कि जामिया मस्जिद को बंद करने का आदेश घाटी में ‘असामान्य हालात’ की तरफ इशारा करता है.

अब्दुल्ला ने कहा, ‘अगर यहां हालात सामान्य हैं तो सरकार नमाज पर पाबंदी क्यों लगा रही है? यह एक असामान्य हालात का सुबूत है. अपनी बातों से नहीं तो पर अपनी कार्रवाई से सरकार साबित कर रही है कि कश्मीर में हालात सामान्य होने से कोसों दूर हैं.’

उन्होंने कहा, ‘यह या तो कृत्रिम रूप से बनाई गई ‘सामान्य स्थिति; है, या फिर अधिकारी देश भर में एक नैरेटिव को फ़ैलाने के लिए ‘सामान्य स्थिति’ की हवा बनाने के मकसद से लोगों को दबा रहे हैं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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