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यूपी में कैसे छोटे दल बन रहे भाजपा की ‘बड़ी टेंशन’

इन दिनों यूपी में कई ऐसे दल हैं जो भाजपा के लिए सिरदर्द बने हुए हैं.

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कार्यक्रम में हिस्सा लेते हुए भाजपा के नेता । सुमित कुमार

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में एक तरफ सपा-बसपा गठबंधन और प्रियंका की एंट्री ने भाजपा की राह मुश्किल कर दी है तो दूसरी ओर छोटे दलों ने भी बड़ी टेंशन दे रखी है. अभी तक सहयोगी दल सुभासपा के मुखिया ओम प्रकाश राजभर तो आए दिन सरकार की नाक में दम किए ही रहते थे अब अपना दल भी ‘पराया’ होता दिख रहा है.

पराया होता अपना दल

अपना दल की नेता व सांसद अनुप्रिया पटेल ने साफ कर दिया है कि उन्होंने बीजेपी को 20 फरवरी तक का अल्टीमेटम दिया था. अब सारे विकल्प खुले हैं. सूत्रों की मानें तो अपना दल कांग्रेस के संपर्क में भी है. भाजपा पर उपेक्षापूर्ण रवैये का आरोप लगाने के साथ ही गठबंधन पर निर्णायक फैसला लेने के लिए आगामी 28 फरवरी को लखनऊ में इसके लिए राष्ट्रीय और प्रदेश पदाधिकरियों की बैठक बुलाई गई है.

इसमें यह तय किया जाएगा कि आम चुनाव में अपना दल भाजपा के साथ रहेगा या दूसरा रास्ता चुनेगा.

2014 लोकसभा चुनाव में अपना दल से दो सांसद चुनकर आए थे. एक प्रतापगढ़ से कुंवर हरिवंश सिंह और दूसरी अनुप्रिया पटेल. इसके बाद अपना दल का विभाजन हो गया. 2017 यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपना दल (एस) के साथ गठबंधन किया था. इस गठबंधन में अपना दल को 11 सीटें मिली थीं और पार्टी 9 सीटें जीत गई थी. ऐसे में अपना दल इस बार लोकसभा चुनाव के लिए ज्यादा सीटों की मांग रख दी जिस पर मामला फंसता दिख रहा है.

राजभर हैं कि मानते नहीं

सुहेलदेव भारतीय समाज (सुभासपा) के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर तो प्रदेश सरकार में मंत्री बनने के कुछ हफ्तों के भीतर सवाल उठान लगे. उन्होंने कई बार गठबंधन तोड़ने की धमकी भी दी. हाल ही में उन्होंने कहा है कि उनके लिए समाजवादी पार्टी (एसपी) और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) सहित अन्य दलों से तालमेल का विकल्प खुला है.

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राजभर तो यहां तक कहते हैं कि उनकी बातचीत शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से लेकर राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) नेता तेजस्वी यादव, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, एसपी प्रमुख अखिलेश यादव और बीएसपी सुप्रीमो मायावती सभी से हो रही है. हाल ही में डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा राजभर को मनाने उनके घर भी गए थे. इसके बाद राजभर की अमित शाह से भी मुलाकात हुई. ऐसा लगा कि वह अब मान जाएंगे लेकिन उन्होंने फिर सभी विकल्प खुले रहने का बयान दे दिया.

कई और दलों का स्टैंड नहीं क्लियर

यूपी में शिवपाल की प्रसपा, राजाभैया की जनसत्ता दल, निषाद पार्टी, पीस पार्टी, शिवसेना समेत कुछ अन्य छोटे दल भी चुनावी मैदान में उतरेंगे. इनमें से फिलहाल भाजपा की बात किसी से बनती नहीं दिख रही. वहीं दूसरी ओर कांग्रेस नेता लगातार छोटे दलों के संपर्क में हैं. कुछ सीटों पर इनका काफी प्रभाव भी है. वहां पर ये दल भाजपा की राह मुश्किल करने का दम रखते हैं.

भाजपा के मीडिया पैनलिस्ट दिलीप श्रीवास्तव का कहना है कि भाजपा अपने सभी सहयोगी दलों का सम्मान करती है. चाहे अपना दल हो या सुभासपा सबको भाजपा ने पूरा समर्थन किया है. पार्टी का शीर्ष नेतृत्व इनसे संपर्क में है और जल्द ही सब एक साथ एक मंच पर दिखेंगे. दोनों ही दल अभी हमारे गठबंधन का हिस्सा हैं और हमें उम्मीद है कि वे हमारे साथ रहेंगे भी.

लखनऊ विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर कविराज मानते हैं कि यूपी की राजनीति में छोटे दलों को इग्नोर नहीं किया जा सकता. टीवी चैनल व सोशल मीडिया पर भले ही इनकी हाईफाई ब्रांडिंग न दिखती हो लेकिन कई जिलों में इनका प्रभाव है. निषाद पार्टी का ही उदाहरण ले लिया जाए तो देखें कैसे सपा-बसपा गठबंधन की मदद से सीएम योगी का गढ़ माने जाने वाली गोरखपुर सीट पर भाजपा को धूल चटा दी थी.

इसी तरह अनुप्रिया पटेल की अपना दल(एस), ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा पूर्वी उत्तर प्रदेश की कुछ सीटों पर काफी प्रभावशाली हैं. वहीं शिवपाल यादव की प्रसपा का भी फिरोजाबाद व उसके आस-पास के जिलों में प्रभाव देखने को मिल सकता है. इसके अलावा राजा भैया की जनसत्ता दल प्रतापगढ़ व उसके आसपास की कुछ लोकसभा सीट पर अहम हैं. ये सभी दल अपने -अपने प्रभावी क्षेत्रों में किंग मेकर भी बन सकते हैं और किसी भी बड़े दल का खेल बिगाड़ भी सकते हैं. ऐसे में भाजपा के लिए छोटे दलों का साथ न रहना खतरे की घंटी बनता जा रहा है. ये सभी दल अगर विपक्ष के साथ जाते हैं तो भाजपा का कुछ सीटों पर बड़ा नुकसान कर सकते हैं.

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