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दिल्ली HC तय करे कि क्या खुफिया, सुरक्षा संगठन RTI के दायरे में आते हैं: SC

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट को सबसे पहले संगठन या विभाग पर आरटीआई अधिनियम लागू होने के संबंध में फैसला करना चाहिए था.

सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया, फाइल फोटो (मनीषा मोंडल/दिप्रिंट)
सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया, फाइल फोटो (मनीषा मोंडल/दिप्रिंट)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के खुफिया और सुरक्षा संगठनों पर राइट टू इंफ़ोर्मेशन (आरटीआई) कानून लागू होने या न होने को लेकर अपना फैसला देने का दिल्ली हाई कोर्ट को निर्देश दिया है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठता और पदोन्नति के संदर्भ में एक कर्मचारी को जानकारी उपलब्ध कराने का एक विभाग को निर्देश देने संबंधी उसका आदेश खारिज कर दिया है.

जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस ए एस बोपन्ना की बेंच ने कहा कि हाई कोर्ट ने सरकारी विभाग की उस आपत्ति पर निर्णय लिए बिना निर्देश दिया कि उस (विभाग) पर आरटीआई कानून लागू नहीं होता है.


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बेंच ने कहा, ‘विभाग की ओर से यह महत्तवपूर्ण सवाल उठाया गया था कि आरटीआई अधिनियम इस संगठन/विभाग पर लागू नहीं होता है. इसके बावजूद इस आपत्ति का निर्णय किए बिना हाई कोर्ट ने अपीलकर्ता को आरटीआई अधिनियम के तहत मांगे गए दस्तावेज प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है. यह क्रम को उलट-पुलटने जैसा है.’

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट को सबसे पहले संगठन या विभाग पर आरटीआई अधिनियम लागू होने के संबंध में फैसला करना चाहिए था.

बेंच ने आदेश में कहा है, ‘हम हाई कोर्ट को निर्देश देते हैं कि वह पहले अपीलकर्ता संगठन/विभाग पर आरटीआई अधिनियम के लागू होने के मुद्दे को लेकर फैसला करे और उसके बाद स्थगन आवेदन/एलपीए पर फैसला करे. इसका निर्धारण आठ सप्ताह की अवधि के भीतर किया जाएगा.’

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सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट के 2018 के फैसले के खिलाफ केंद्र द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें विभाग को 15 दिनों के अंदर कर्मचारी को जानकारी देने का निर्देश दिया गया था.

केंद्र की ओर से पेश हुए वकील ने हाई कोर्ट को बताया था कि जिस विभाग से सूचना मांगी गई है उसे आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 24(1) के तहत छूट दी गई है, इसलिए सीआईसी का आदेश गैर-कानूनी और आरटीआई अधिनियम की धारा 24 के प्रावधानों के उलट है.

आरटीआई अधिनियम की धारा 24 कुछ खुफिया और सुरक्षा संगठनों को ‘भ्रष्टाचार और मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोपों से संबंधित’ जानकारी को छोड़कर पारदर्शिता कानून के दायरे से छूट देती है.

हाई कोर्ट ने कहा था कि चूंकि कर्मचारी वरिष्ठता के संबंध में पूर्वाग्रहों का सामना कर रहा था, उसने ऊपर उल्लिखित जानकारी मांगी. उसने यह भी कहा कि जानकारी न तो खुफिया जानकारी है, न ही सुरक्षा संबंधी और न ही याचिकाकर्ता संगठन की गोपनीयता को प्रभावित करती है.

हाई कोर्ट ने कहा था, ‘याचिकाकर्ता से प्रतिवादी द्वारा मांगी गई जानकारी अधिनियम की धारा 24 के तहत नहीं आती है.’


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