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हरियाणा सरकार की 10,000 मज़दूरों की इज़रायल भेजने की योजना को लेकर विपक्ष क्यों हमलावर है?

भारत और इज़रायल ने मई में श्रमिकों पर समझौते पर हस्ताक्षर किए और हरियाणा सरकार निगम ने पिछले सप्ताह इन पदों के लिए विज्ञापन किया. जहां सरकार का कहना है कि वह युवाओं को नौकरी ढूंढने में मदद करने की कोशिश कर रही है, वहीं पूर्व सीएम हुड्डा ने इसकी आलोचना की है.

प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो: ANI

गुरुग्राम: हरियाणा सरकार के 10,000 कंस्ट्रक्शन मजदूरों को इज़रायल भेजने के कदम से राज्य में एक नया राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है. विपक्षी नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा ने मजदूरों को एक “युद्ध प्रभावित” देश में भेजने की सरकार की योजना के लिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाली खट्टर सरकार की जमकर आलोचना की है. हुड्डा का कहना है कि उन्हें एक ऐसे देश में भेजा जा रहा है जहां से कुछ दिन पहले ही दूसरे देशों ने अपने नागरिकों को निकाला है.

राज्य सरकार ने आलोचना को यह कहते हुए खारिज कर दिया है कि वह युवाओं को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोजगार खोजने में मदद करने का प्रयास कर रही है और इस पहल का उद्देश्य मजदूरों को विदेश में नौकरी लेने के लिए सुरक्षित यात्रा में मदद करना है.

यह कदम मई में इज़रायली विदेश मंत्री एली कोहेन की नई दिल्ली यात्रा के बाद भारत और इज़रायल के बीच एक समझौते के बाद उठाया गया है. दोनों देश इस बात पर सहमत हुए थे कि 42,000 भारतीय मजदूरों – 34,000 कंस्ट्रक्शन मजदूरों और 8,000 नर्सों – को काम के लिए इज़रायल जाने की अनुमति दी जाएगी.

इजराइल के प्रधानमंत्री कार्यालय के अनुसार, मंगलवार को इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ टेलीफोन पर बातचीत की, जहां दोनों नेताओं ने भारतीय मजदूरों के आगमन को आगे बढ़ाने पर चर्चा की. हालांकि, भारत के विदेश मंत्रालय ने यह भी कहा है कि सरकार ने फिलिस्तीनी मजदूरों की जगह लेने वाले भारतीय मजदूरों पर इज़रायल के साथ कोई चर्चा नहीं की है.

2007 से गाजा पट्टी पर नियंत्रण रखने वाले फिलिस्तीनी आतंकवादी समूह हमास के साथ चल रहे संघर्ष के कारण इज़रायल को कंस्ट्रक्शन मजदूरों की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है. 7 अक्टूबर को, हमास ने इज़राइल पर बड़े पैमाने पर रॉकेट और जमीनी हमला किया, जिसका इज़रायल ने भी जवाब दिया. गाजा स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, जारी लड़ाई में अब तक 20,000 से अधिक फिलिस्तीनियों की मौत हो गई है.

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युद्ध के बीच, इज़रायल ने कथित तौर पर हजारों फिलिस्तीनियों के वर्क परमिट रद्द कर दिए हैं और हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर सरकार इसे राज्य से मजदूरों को इज़रायल भेजने के अवसर के रूप में इस्तेमाल करना चाहती है.

हरियाणा कौशल रोज़गार निगम (एचकेआरएन), जो सरकारी संस्थाओं को मजदूरों उपलब्ध करने के लिए राज्य सरकार द्वारा स्थापित एक निगम है, ने इज़रायल में श्रमिकों के लिए 10,000 पदों का विज्ञापन दिया है. इनमें 3,000 पद शटरिंग बढ़ई, 3,000 पद लोहा मोड़ने वाले मजदूर, 2,000 पद टाइल्स लगाने वाले और 2,000 पलस्तर करने वाले मजदूरों के हैं.

विज्ञापन के अनुसार, जिन मजदूरों के पास फ्रेमवर्क/शटरिंग बढ़ई या लोहे को मोड़ने, टाइलें लगाने और पलस्तर करने का कौशल है, उन्हें 1.55 लाख रुपये से अधिक का मासिक वेतन दिया जाएगा और अनुबंध की अवधि 63 महीने से अधिक नहीं होगी.

इन पदों के लिए 15 दिसंबर को विज्ञापन जारी किए गए थे और आवेदन की अंतिम तिथि 20 दिसंबर थी.

हुडा बनाम सरकार

बुधवार को एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा ने युद्ध प्रभावित क्षेत्र में मजदूरों को भेजने के फैसले की जमकर आलोचना की.

उन्होंने कहा, “बीजेपी-जेजेपी सरकार हरियाणा के युवाओं को युद्ध प्रभावित क्षेत्र इज़रायल में क्यों भेजना चाहती है? ये वही इजरायल है जहां हमास के साथ युद्ध चल रहा है. अभी कुछ दिन पहले ही कई देशों ने अपने नागरिकों को वहां से सुरक्षित निकाला था.”

उन्होंने दुबई में बाउंसर की नौकरी के लिए सरकार के आवेदन आमंत्रण का भी जिक्र किया और कहा कि सरकार ने बेरोजगार लोगों को खाड़ी देशों में भेजने की नीति बनाई है.

हुड्डा ने कहा, “इन खाड़ी देशों में मजदूरों के खिलाफ शोषण और अत्याचार के हजारों मामले सामने आए हैं. इन देशों में, मजदूरों के पास कोई अधिकार नहीं है और उन पर अमानवीय अत्याचार होते रहते हैं.”

उन्होंने मौजूदा सरकार पर हरियाणा के निवासियों को पलायन के लिए मजबूर करने और हरियाणा के बाहर के लोगों को उच्च पदों पर भर्ती करने का आरोप लगाया.

हुड्डा ने कहा, “सरकार ने हाल ही में सात ब्लॉक विकास और पंचायत अधिकारियों (बीडीपीओ) की भर्ती की है, जिनमें से चार राज्य के बाहर से हैं. यह इस सरकार की हरियाणा विरोधी मानसिकता को दर्शाता है. क्या यह सरकार हरियाणा के लोगों को उच्च पदों पर नियुक्ति के लायक नहीं समझती?” 

उन्होंने आगे पूछा, “लगभग हर भर्ती में स्थानीय युवाओं के साथ खिलवाड़ क्यों किया जा रहा है? कई बड़े पद दूसरे राज्यों के लोगों से भरे जा रहे हैं. आखिर क्यों?” 

इस बीच, उनके आरोपों को खारिज करते हुए, हरियाणा सरकार के मीडिया सचिव प्रवीण अत्रे ने सोमवार को दिप्रिंट को बताया कि मुख्यमंत्री खट्टर राज्य में युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करने के अलावा उन्हें विदेशों में भी नौकरी दिलाने का प्रयास कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि इस उद्देश्य के लिए सीएम ने सरकार में विदेशी सहयोग विभाग की स्थापना की है और इसके लिए एक पूर्णकालिक सलाहकार भी रखा है.

अत्रे ने कहा, “मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व वाली हरियाणा सरकार का उद्देश्य हमारे युवाओं को राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोजगार के सभी अवसर प्रदान करना है.”


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‘नौकरियां दिलाने के लिए कई तरह से काम कर रहे हैं’

हरियाणा के मुख्यमंत्री के विदेश सहयोग विभाग के सलाहकार पवन कुमार चौधरी के अनुसार, राज्य सरकार युवाओं को उनकी योग्यता के अनुसार विदेश में नौकरी दिलाने में मदद करने के लिए कई चैनलों के माध्यम से काम कर रही है.

मंगलवार को दिप्रिंट से बात करते हुए उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को राष्ट्रीय कौशल विकास परिषद (एनएसडीसी) से विदेशों में रिक्तियों का विवरण मिलता है और बाउंसर, स्टाफ नर्स और कंस्ट्रक्शन मजदूरों के लिए रिक्तियां भी एनएसडीसी द्वारा दी गई हैं.

चौधरी ने कहा कि एचकेआरएन द्वारा इज़रायल के लिए घोषित कंस्ट्रक्शन मजदूरों की रिक्तियां एनएसडीसी द्वारा विशेष रूप से हरियाणा को आवंटित की गई हैं.

उन्होंने कहा, “हमारे मुख्यमंत्री का मानना ​​है कि राज्य सरकार के प्रयासों के बिना भी, युवा विदेशों में नौकरियों के लिए आवेदन करते हैं और उन्हें मिलता भी है. लेकिन इस प्रक्रिया में, उनमें से कई बेईमान लोगों का शिकार हो जाते हैं जो उन्हें गधा मार्ग (उचित वीजा और यात्रा दस्तावेजों के बिना अवैध तरीके) के माध्यम से विदेश भेजने की पेशकश करते हैं.”

चौधरी ने इस बात पर जोर दिया कि कई लोगों को पैसे का धोखा मिलता है और कुछ को अपनी जान गंवानी पड़ती है. उन्होंने आगे कहा, “यह इस पहलू को ध्यान में रखते हुए है कि सीएम ने सरकार द्वारा सुचारू प्रक्रिया के माध्यम से युवाओं को नौकरी पाने और अपने रोजगार के देश में सुरक्षित रूप से यात्रा करने की सुविधा प्रदान करने के लिए इस पहल को शुरू करने का निर्णय लिया.”

हालांकि, रिक्यूरमेंट एक्टिविस्ट श्वेता ढुल इससे आश्वस्त नहीं हैं. उनके अनुसार, यह कदम केवल यह बताता है कि हरियाणा सरकार ने स्वीकार कर लिया है कि “वह राज्य के भीतर अपने युवाओं के लिए नौकरियां देने में सक्षम नहीं है”.

उन्होंने कहा कि एचकेआरएन की वेबसाइट का दावा है कि इसे हरियाणा में सभी सरकारी संस्थाओं को संविदात्मक जनशक्ति प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया है, और यह हरियाणा में संविदात्मक जनशक्ति प्रदान करने के लिए अधिकृत एजेंसी के रूप में कार्य करेगी. उन्होंने आगे कहा, “अब, यह आश्चर्यजनक है कि एचकेआरएन इज़रायल, यूके और दुबई के लिए रिक्तियों का विज्ञापन दे रहा है.”

श्वेता ढुल ने दिप्रिंट से कहा, “इसेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आंकड़ों के अनुसार, हरियाणा में जनवरी में 37.4 प्रतिशत बेरोजगारी दर देखी. उस समय हरियाणा सरकार ने आंकड़ों का खंडन किया था, लेकिन जिस तरह से वे अब अपने लोगों को इज़रायल जैसे युद्धग्रस्त देश में भेज रहे हैं, सरकार को एहसास हुआ होगा कि वह राज्य में अपने युवाओं को नौकरियां नहीं दे सकती है.” 

कंस्ट्रक्शन मजदूरों के लिए पात्रता और उन्हें मिलने वाला लाभ

विज्ञापन के अनुसार, इज़रायल में कंस्ट्रक्शन मजदूर के रूप में नौकरी के लिए उम्मीदवारों की आयु 25 से 45 वर्ष के बीच होनी चाहिए. साथ ही 10वीं कक्षा उत्तीर्ण होनी चाहिए और संबंधित कौशल में तीन साल का अनुभव होना चाहिए.

उन्हें वेतन के रूप में प्रति माह 6,100 शेकेल (एनआईएस) – लगभग 1,37,260 रुपये और विशेष जमा निधि के रूप में एनआईएस 734 (16,380 रुपये) का भुगतान किया जाएगा.

बैंक जमा में प्रत्येक कर्मचारी के लिए अर्जित विशेष जमा निधि का भुगतान कर्मचारी को करों और बैंक शुल्क की कटौती के बाद अर्जित ब्याज के साथ किया जाएगा, जब वे अपनी कानूनी वीज़ा अवधि पूरी होने के बाद स्थायी रूप से इज़रायल छोड़ देंगे.

विज्ञापन में कहा गया है कि कंस्ट्रक्शन मजदूरों के लिए कार्य दिवस एक महीने में 26 दिन और 236 घंटे होंगे – यानी उन्हें प्रतिदिन लगभग नौ घंटे काम करना होगा.

जो उन्हें काम देंगे उन्हें ही उनके लिए घर की व्यवस्था करनी होगी. इसके लिए स्थान और सीमा के आधार पर, वेतन से एनआईएस 278.94 से 449.82 तक की राशि काट ली जाएगी.

इसके अलावा चिकित्सा बीमा के लिए कर्मियों के वेतन से एनआईएस 134.46 की कटौती की जायेगी. कंपनी के मानदंडों के अनुसार ओवरटाइम की अनुमति दी जाएगी, जबकि इज़रायली श्रम कानूनों के अनुसार छुट्टी के लाभ की अनुमति दी जाएगी.

विज्ञापन में कहा गया है कि पहला वीज़ा और वर्क परमिट कैलेंडर वर्ष के अंत तक वैध होगा और इसे एक बार में एक साल से लेकर अधिकतम 63 महीने तक की अतिरिक्त अवधि के लिए बढ़ाया जा सकता है.

(संपादन : ऋषभ राज)

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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