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‘हज संविधान के तहत संरक्षित’—दिल्ली HC ने आयोजकों के प्रमाण पत्र, कोटा के सरकारी निलंबन पर लगाई रोक

अपनी याचिका में कई हज समूह आयोजकों—सरकार द्वारा अनुमोदित समूह टूर ऑपरेटर जो तीर्थ यात्रा का आयोजन करते हैं, ने दावा किया कि पात्र पाए जाने के बावजूद उनके प्रमाणपत्र और कोटा निलंबित किए गए थे.

प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

नई दिल्ली: यह कहते हुए कि हज यात्रा संविधान के अनुच्छेद-25 के तहत संरक्षित धार्मिक प्रथाओं के अंतर्गत आती है, दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को कई हज समूह आयोजकों (एचजीओ)—सरकार द्वारा अनुमोदित टूर ऑपरेटर्स जो तीर्थ यात्रा का आयोजन करते हैं, के लिए पंजीकरण प्रमाणपत्र और कोटा निलंबित करने के मोदी सरकार के फैसले पर रोक लगा दी.

न्यायमूर्ति चंद्र धारी सिंह ने कहा, “हज यात्रा और उसमें शामिल कार्यक्रम धार्मिक प्रथा के दायरे में आते हैं, जो भारत के संविधान द्वारा संरक्षित है.” संविधान का अनुच्छेद-25 सभी नागरिकों को अंतःकरण की स्वतंत्रता, धर्म को मानने, पूजा करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता देता है.

अदालत 13 से अधिक एचजीओ द्वारा आवेदनों के एक बैच पर सुनवाई कर रही थी जिसमें, उनके पंजीकरण प्रमाणपत्र और कोटा को निलंबित करने के सरकार के फैसले को चुनौती दी गई थी.

केंद्र सरकार ने 25 मई को हज 2023 के लिए ‘हज कोटा के आवंटन की समेकित सूची’ के जरिए से इन एचजीओ के पंजीकरण प्रमाणपत्र और कोटा को निलंबित किया था और उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया था.

मई में केंद्र सरकार द्वारा जारी की गई सूची में कहा गया है कि कुछ एचजीओ के लिए “पंजीकरण प्रमाणपत्र और कोटा (कार्यवाही को अंतिम रूप देने तक) स्थगित रखा गया था” और ये कदम “डिफॉल्ट” की शिकायतों के बाद उठाया गया था.

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याचिकाकर्ताओं ने कहा कि यह इस तथ्य के बावजूद हुआ कि उन्हें 18 मई को पंजीकरण प्रमाण पत्र और कोटा आवंटन जारी किया गया था.

अपने आदेश में अदालत ने स्पष्ट किया कि इस स्तर पर, यह मुख्य रूप से उन तीर्थयात्रियों से संबंधित था जो हज यात्रा पर जाने का इरादा रखते हैं और इसके लिए उन्होंने अग्रिम भुगतान भी किया है. अदालत ने कहा, “हज यात्रा केवल एक छुट्टी नहीं, बल्कि धर्म और आस्था जताने का एक माध्यम है जो उनका एक मौलिक अधिकार है. यह अदालत, तीर्थयात्रियों के अधिकारों की रक्षक होने के नाते, इस संबंध में आवश्यक कदम उठाएगी.”

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उन्होंने पात्र पाए जाने के बाद तीर्थयात्रियों की ओर से पहले ही बुकिंग कर ली थी और उनके प्रमाणपत्रों और कोटा को निलंबित करने के फैसले ने न केवल आयोजकों के अधिकारों का उल्लंघन किया, बल्कि तीर्थयात्रियों के अधिकारों का भी उल्लंघन किया.

अपनी ओर से केंद्र सरकार ने कहा, कुछ आयोजकों के पंजीकरण को “उनके जानबूझकर गलत बयानी और मंत्रालय (अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय) को तथ्यों की गलत रिपोर्टिंग के कारण स्थगित रखा गया, जिसके आधार पर वे पहले एचजीओ के रूप में पंजीकृत थे.”


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हज यात्रा

अपने फैसले में अदालत ने कहा कि हज यात्रा सालाना हज़ारों भारतीय मुसलमानों द्वारा की जाती है और ऐसा करने में उनकी मदद करने के लिए हर साल भारत और सऊदी अरब के बीच एक द्विपक्षीय संधि की जाती है. इस संधि के अनुसार, भारत को कुछ तीर्थयात्रियों का कोटा आवंटित किया जाता है.

तीर्थयात्रा भारत से या तो भारतीय हज समिति या हज समूह के आयोजकों के माध्यम से की जा सकती है.

अपनी वर्तमान नीति के तहत, केंद्र सरकार कुछ निजी ऑपरेटरों या ट्रैवल एजेंटों को एचजीओ के रूप में पंजीकृत करती है. इन पंजीकृत एचजीओ को फिर सीटों की कुल संख्या से कोटा आवंटित किया जाता है. ये आयोजक आमतौर पर तीर्थयात्रियों के लिए टूर ऑपरेटर के रूप में कार्य करते हैं और उन्हें एक पूरा पैकेज प्रदान करते हैं—इसमें भारत के विभिन्न स्थानों से सऊदी अरब तक की उनकी यात्रा और वापसी, सऊदी अरब में उनके भोजन और रहने आदि की व्यवस्था को शामिल किया जाता है और यहां तक कि फॉर्म में विदेशी मुद्रा (सऊदी रियाल) के साथ भी उनकी मदद करता है.

आयोजकों के माध्यम से सीमित संख्या में तीर्थयात्री ही हज यात्रा कर सकते हैं. हज समिति भारत में हज यात्रियों की बड़ी संख्या के लिए यात्रा का आयोजन करती है.

हज 2023 के लिए भारत और सऊदी अरब के बीच एक समझौते के अनुसार, 1,75,025 तीर्थयात्रियों (भारतीय हज समिति के लिए 1,40,000 तीर्थयात्री और हज समूह के आयोजकों के लिए 35,025 तीर्थयात्री) का कोटा भारत को आवंटित किया गया है.


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‘तीर्थयात्रियों को परेशानी नहीं होनी चाहिए’

याचिकाकर्ताओं ने अदालत को बताया कि यदि उनके पंजीकरण प्रमाण पत्र और कोटा बहाल नहीं किए गए, तो जिन तीर्थयात्रियों ने उनके माध्यम से पैकेज बुक किए थे, वे ज़िंदगी में एक बार मिलने वाले अवसर को खो देंगे.

इस बीच केंद्र सरकार ने कहा कि जब मंत्रालय के अधिकारियों की एक टीम ने इन आयोजकों के परिसर का दौरा किया तो मंत्रालय को “तथ्यों की भारी गलत प्रस्तुति” मिलने के बाद कई पंजीकरणों पर रोक लगा दी गई.

सरकार के तर्कों के बावजूद, अदालत ने कहा कि यह प्रथम दृष्टया राय है, हालांकि, पंजीकरण प्रमाणपत्र और कोटा जारी करने के लिए प्रतिबंध और शर्तें लगाई जा सकती हैं, लेकिन ये “उन तीर्थयात्रियों के खिलाफ नहीं होनी चाहिए, जिन्होंने नेकनीयती से तीर्थ यात्रा करने के लिए एचजीओ (याचिकाकर्ताओं) के साथ पंजीकरण कराया है.”

अदालत के अनुसार, ऐसा करने से वर्तमान हज नीति का उद्देश्य विफल हो जाएगा और संविधान के अनुच्छेद-25 का उल्लंघन होगा. यह देखा गया, “धार्मिक स्वतंत्रता आधुनिक भारतीय गणराज्य के संस्थापक पिताओं की दृष्टि के अनुरूप संविधान के तहत गारंटीकृत और निहित सबसे पोषित अधिकारों में से एक है.”

आवेदनों को स्वीकार करते हुए, अदालत ने याचिकाकर्ता आयोजकों के पंजीकरण प्रमाणपत्र और कोटा को रोकने के सरकार के फैसले पर रोक लगा दी. हालांकि, यह भी कहा कि सरकार कथित चूक की अपनी जांच को जारी रख सकती है.

लेकिन, अदालत ने केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि कथित चूक से प्रभावित तीर्थयात्रियों को परेशानी न हो और वे बिना किसी बाधा के तीर्थ यात्रा करने में सक्षम हों.

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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