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गुरुग्राम हिंसा: साजिद और बिल्लाराम ने सांप्रदायिकता को नकारा, देश को दिया भाईचारे का संदेश

दिप्रिंट ने इस घटना की रिपोर्टिंग की थी और बताया था कि ये मामला सांप्रदायिक ना होकर क्रोध में की गई मार-पीट की घटना है. कल दिप्रिंट ने फिर भूपसिंहनगर जाकर पीड़ित पक्ष और गांववालों से बात की.

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साजिद के घर के बाहर बैठे साजिद और बिल्लाराम. (फोटो- ज्योति यादव)

नई दिल्ली: गुरुग्राम हिंसा के मामले पर सांप्रदायिकता की सारी अटकलों को विराम लग गया है. दोनों पक्षों ने नफरती दौर में असामान्य सहिष्णुता का परिचय देते हुएसांप्रदायिक लड़ाईहोने की बात से इंकार करते हुए सुलह की तरफ कदम बढ़ा लिया है और कहा है कि भाईचारे की अदालत से बड़ी कोई अदालत नहीं होती.

गौरतलब है कि पिछले दिनों गुरुग्राम के भोंडसी के भूपसिंहनगर इलाके में होली के दिन एक घर की छत पर चढ़कर भयानक तरीके से मारपीट करते लड़कों का वीडियो वायरल हुआ था. मारने वाले लड़के स्थानीय गुज्जर समुदाय के थे और पीड़ित पक्ष मुस्लिम था. इस वीडियो के वायरल होते ही चारों ओर माहौल बन गया कि देश में सोशल मीडिया पर चल रहे हिंदूमुसलमान नफरत को यहां वास्तविकता में फैलाया जा रहा है.

दिप्रिंट ने इस घटना की रिपोर्टिंग की थी और बताया था कि ये मामला सांप्रदायिक ना होकर क्रोध में की गई मारपीट की घटना है. गुरुवार को एकबार फिर दिप्रिंट की टीम भूपसिंहनगर पहुंची और पीड़ित पक्ष तथा गांववालों से बात की.

साजिदकहीं कोई हिंदूमुसलमान मामला नहीं, हम आपस में सुलझा लेंगे

साजिद ने बताया, ‘ये रोड रेज की घटना जैसी है. किसी के साथ भी हो सकती थी. इसमें हिंदूमुसलमान की कोई बात नहीं है. होली के दिन इस घटना का घटित होना महज़ एक संयोग है, इसके बाद मेरा व्यापार प्रभावित ज़रूर हुआ है. लेकिन मैं इसकी भरपाई कर लूंगा. मुझे किसी से कोई पैसा नहीं चाहिए. मीडिया और नेताओं ने इसे हिंदूमुसलमान का मामला बना दिया.’

साजिद की पत्नी समीना ने बताया, ‘वो वीडियो हमारी लड़की दानिस्ता ने शूट कर ली थी पर ये रिश्तेदारों को दिखाने के लिए था. किसी तरह से ये वीडियो वायरल हो गया और मामला हमारे हाथ से निकल गया. हम इसे भाईचारे से ही सुलटा लेते, लेकिन इसके वायरल होते ही ये हिंदूमुसलमान का मुद्दा बनाया जाने लगा.’

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साजिद और समीना दोनों ने कहा, ‘अब ये वीडियो कई सालों तक फर्जी घटनाओं में चलाया जाएगा और लोग कहते रहेंगे कि मुसलमान पीटे जा रहे हैं. इस वीडियो का गलत इस्तेमाल करके लोग हमेशा सांप्रदायिकता फैलाने की कोशिश करेंगे. हम इससे खुश नहीं हैं.’

समीना ने ये भी जोड़ा, ‘मारपीट करने आए लोगों में से किसी एक ने कहा था पाकिस्तान जाओ. पर इसका मतलब ये नहीं था कि पूरा गांव कह रहा है. और किसी ने नहीं कहा. हमने भी एक ही आदमी की बात की. लेकिन मामला ऐसा बन गया कि हमारी बात ही कोई नहीं सुन रहा था. पाकिस्तान जाओ की बात को ही मुख्य मुद्दा बना दिया. इसमें हमारी गलती नहीं है.’

वो आगे कहती हैं, ‘पिछले दिनों आंधी आई थी तो घर पर लगा तिरंगा उड़ गया था. अगर मीडिया चाहे तो इसे भी अपने हिसाब से लिख देगी.’

समीना और उनके बच्चे. (फोटो- ज्योति यादव)

साजिद ने ये भी कहा कि बहुत जल्द सारे पक्ष मिलकर देश के नाम भाईचारे का एक संदेश देंगे.

नयागांव के लोगों ने अपनी गलती मानी, पर मामले के सांप्रदायिक होने से साफ इंकार किया

गांववालों ने अपनी गलती मानी है और बुजुर्गों ने कहा, ‘ ऐसी घटना नहीं होनी चाहिए थी. कोई किसी के घर में घुस के कैसे मार सकता है. पर ये मामला सांप्रदायिक नहीं था. हमने तो शुरू से ही इस मामले को सुलटाने की कोशिश की थी. मीडिया की रिपोर्ट्स के बाद गांव के कुछ लोगों ने आवेग में आकर हिंदूमुसलमान टाइप की बातें कर दीं. ऐसा किसी का इरादा नहीं था. यहां बहुत सारे मुसलमान और बहुत जगहों के लोग रहते हैं.’ गांव में काफी सन्नाटा भी फैला हुआ था. क्योंकि पुलिस चौदह लड़कों को जेल में डाल चुकी है और उनकी जमानत भी नहीं हो रही

दोनों पक्षों में मध्यस्थता कराने वाले बिल्लाराम और कृष्ण ने कहा साजिद ने ‘बड़ा दिल दिखाया’

इस मामले में मुख्य भूमिका रही नयागांव के बिल्लाराम और उनके साले कृष्ण की. कृष्ण की जानपहचान साजिद के रिश्तेदारों की है. कृष्ण हरियाणा के रेवाड़ी के हैं और वो मामला आते ही तत्पर हो गये थे. बिल्लाराम ने बताया, ‘ गांव के परिवेश में मामला आपसी सुलह से ही निपटाया जाता है, क्योंकि इसका कोई अंत नहीं है. पुलिस में जाने से पहले हम हज़ार बार सोचते हैं, क्योंकि एक बार मामला चला गया तो चला गया. नेता और मौकापरस्त लोग आग में घी डालकर चले जाएंगे, आप पिसते रह जाएंगे.’

‘हम लोग तो उसी दिन से तत्पर हो गये थे. ये बिल्कुल गलत था कि शराब पीकर लोगों ने मारपीट की शुरुआत की और इसे इतना बड़ा बना दिया. लेकिन ऐसा नहीं था कि ये सांप्रदायिक मामला था. ये अकस्मात हुई घटना थी. लड़कों का जो ग्रुप मारपीट करने गया, उनमें भी आपस में कई बार बनती नहीं है. ये भी हो सकता था कि वो आपस में ही भिड़ जाते और मारपीट कर लेते. शराब चौपट कर देती है. पर साजिद ने बड़ा दिल दिखाया. हमारी बात सुनते ही तैयार हो गयेवहीं बड़े अफसरों ने गांववालों को समझाया कि आप माफी मांगकर अपनी गलती मानिए, क्योंकि आपकी गलती है.’

बिल्लाराम ने एक और महत्वपूर्ण बात कही, ‘इस एरिया में साक्षरता नहीं है. इसकी वजह से लड़के तुरंत ही आवेग में जाते हैं. करियर के बारे में सोचते ही नहीं. अब फौज में भी नहीं जा रहे. वरना केस लगने का डर रहता था.’

बिल्लाराम. (फोटो- ज्योति यादव)

ठीक ऐसा ही हाल साजिद के घर का भी है. उनके छह बच्चे हैं. सबसे बड़ा लड़का समीर ओपन स्कूल से बारहवीं कर रहा है. वह अभी से पापा की दुकान संभालता है. क्योंकि पापा काफी दिन से बीमार चल रहे हैं. इस मामले की वजह से समीर परीक्षा भी नहीं दे सका और  उसका एक पेपर भी छूट गया है.

पर साजिद की आर्थिक स्थिति डावांडोल हो गई है. उनके घरवालों का कहना था, ‘आर्थिक स्थिति की वजह से हमें ये जगह छोड़नी पड़ सकती है. क्योंकि हमारे घर पर लोन भी है और व्यापार ठीक से चल नहीं रहा. पर इसका मतलब ये नहीं है कि हिंदूमुसलमान मामले की वजह से घर छोड़ रहे हैं.’

पांच लाख का नुकसान हो गया इस दौरान. तीन बाइक भी तोड़ दी गई थीं. साजिद का परिवार यूपी के बागपत के एक गांव से है. काम की तलाश में दिल्ली के संगमविहार के पास तिगड़ी आए जहां उनके रिश्तेदार रहते हैं. फिर भीड़ की वजह से गुरुग्राम की तरफ निकल आए.’

राजनीतिक पार्टियों पर उठे सवाल

समीना ने बताया कि वो और साजिद चार दिन पहले सोनिया गांधी से मुलाकात करने दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम भी गए थे. आम आदमी ने भी शुरुआत में सक्रियता दिखाई. वहीं, भाजपा के कार्यकर्ताओं ने चक्कर लगाए. समीना का कहना है कि सबको वोट बटोरने हैं, आर्थिक मदद कोई नहीं करता. गांववालों का भी कहना है कि राजनीतिक पार्टियों को इस मामले में अब कोई फायदा नहीं दिख रहा है.

समीना और साजिद ने बताया कि पिछली बार विधानसभा में केजरीवाल को वोट दिया था और लोकसभा में नरेंद्र मोदी को. इस बार के वोट के बारे में सोचा नहीं है.

सबसे बुरी हालत 21 दिनों से वहां बैठे पुलिसवालों की है

21 दिनों से वहां पर पुलिसवाले बैठे हुए हैं. प्लास्टिक कुर्सियां रखी हुई हैं. एक खाट है और पुलिस की वैन है. पेप्सी की बॉटल्स रखी हुई थीं. ना पेशाब, पॉटी करने की जगह ना खाने-पीने का ही कोई ठिकाना. पूरे दिन पेड़ के नीचे बैठे रहते हैं. अब तो लू भी चलने लगी है.

21 दिन से तैनात पुलिसवाले. (फोटो- ज्योति यादव)

पुलिसवालों ने हंसते हुए बताया कि लोग चाय तो दे देते हैं. पर ड्यूटी है तो बैठना ही पड़ेगा. यहां से कोई कहीं जा नहीं सकता.

पुलिसवाले वहीं पर जैसेतैसे सोते भी हैं. एक मारपीट की घटना ने इन 4 पुलिसवालों को वॉरजोन में ला दिया है. जैसे सैनिक युद्ध में खानेपीने की दिक्कतों में बैठे रहते हैं, वैसे ही पुलिसवाले यहां अपनी ड्यूटी कर रहे हैं. जब तक ये मामला पूर तरह खत्म नहीं हो जाता, इनको वहां ऐसे ही बैठना पड़ेगा.

इस मामले को लेकर आस-पास के लोगों का कहना है कि अच्छी बात है सुलह हो गई लेकिन ऊपर से जैसा लग रहा है वैसा नहीं है. मुआवजे के तौर पर कुछ तो दिया ही गया है. दबाव बनाने की भी कोशिशि की गई है. हो सकता है मीडिया से छुपाने की कोशिश की जा रही हो.

इस घटनाक्रम की पूरी रिपोर्ट आप यहां पढ़ सकते हैं- ग्राउंड रिपोर्ट: गुरुग्राम में सांप्रदायिकता का इस्तेमाल ‘गुंडई’ करने वाले लड़कों को बचाने के लिए हो रहा है

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