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गुजरात हाईकोर्ट ने कहा- पॉक्सो एक्ट को लेकर जागरूकता फैलाएं, नए लड़के ‘बिना अंजाम को समझे’ अपराधी बन रहे

गुजरात उच्च न्यायालय ने कहा कि बच्चों और कॉलेज के छात्रों के बीच 'कानूनी जागरूकता के रूप में' सही जानकारी देने की जरूरत है.

गुजरात हाईकोर्ट, प्रतीकात्मक तस्वीर | कॉमन्स

नई दिल्ली: गुजरात हाईकोर्ट ने रज्य के अधिकारियों को यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने वाले (पॉक्सो) एक्ट 2012 को लेकर बच्चों और कालेज छात्रों के बीच जागरूकता फैलाने का काम करें.

अदालत ने इस सप्ताह के शुरुआत में (29 जून) को कहा था कि युवा लड़के कानून के साथ ‘अपने कृत्यों के परिणामों को महसूस किए बिना’ पॉक्सो एक्ट से खुद को अलग पाते हैं.’

जस्टिस सोनिया गोकानी और एन.वी. अंजारिया की पीठ ने कहा कि लड़के, ‘लापरवाह दृष्टिकोण के साथ युवा उन्माद से प्रेरित हैं’, ऐसे काम करते हैं जो अंततः उन्हें एक्ट के तहत ‘अपराधी’ बनाते हैं.

उच्च न्यायालय 16 वर्षीय लड़की के पिता की तरफ से दायर एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जो 20 वर्षीय युवक के साथ कथित रूप से भाग गई थी. जबकि लड़की का पता लगा लिया गया, लेकिन युवक का पता नहीं चल पाया है. उस पर पॉक्सो एक्ट का चार्ज लगाया गया है.

पीठ ने कहा, ‘हम भी यह जानकर हैरान हैं कि हालांकि वह नाबालिग है पर भागने के लिए उसने उसे चुना जो खुद भी नाबालिग है, खुद को कानूनों के जाल में फंसा रही है, खासकर पॉक्सो अधिनियम के तहत.’

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अदालत ने कहा, ‘बच्चों और कॉलेज के छात्रों के बीच ‘कानूनी जागरूकता के रूप में’ सही तरह की समझ देने की जरूरत है. पीठ ने कहा कि यह समाज को उन युवा लड़कों की बचाने में मदद करता है जो कानून की समझ न होने के कारण गंभीर मामलों में अपराधी बन जाते हैं.

जिला पुलिस अधीक्षक (एसपी), जहां मामला हुआ था, ने पीठ को आश्वासन दिया कि वह पॉक्सो अधिनियम के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए मानव तस्करी विरोधी सेल और जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण के साथ बात करेंगे.


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लड़की को संरक्षण गृह भेजा गया

अधिवक्ता दर्शन ए. दवे के माध्यम से दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में कहा गया है कि गुजरात के मेहसाणा जिले की लड़की इस साल 17 जनवरी को लापता हो गई थी.

दवे ने दिप्रिंट को बताया कि उसके माता-पिता को 20 साल के युवक के साथ उसके फरार होने का शक था. चूंकि वह नाबालिग थी, इसलिए उसके पिता ने 30 जनवरी को उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जिसमें लड़की के अपहरण किए जाने का आरोप लगाया था.

आखिर में उसके युवक के रिश्तेदारों के घर होने का पता चला था और 29 जून को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अदालत में पेश की गई.

लड़की ने पीठ से कहा था कि वह अपने माता-पिता के साथ नहीं रहना चाहती.

अदालत ने कहा था कि नाबालिग होने के कारण ‘उसकी इच्छा की कोई प्रासंगिकता नहीं होगी.’ यह दावा किया कि उसे अपने माता-पिता के साथ रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. उसने अदालत को यह भी बताया कि उसके माता-पिता ने 18 साल की होने से पहले उसकी शादी करने की कोशिश की थी.

लिहाजा अदालत ने अधिकारियों को उसे संरक्षण गृह भेजने का निर्देश दिया. इसने एसपी से उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करने और उसे काउंसलिंग के लिए भेजने के लिए कहा ताकि उसे ‘आगे की पढ़ाई करने और बेहतर भविष्य के लिए अपने जीवन की बेहतरी के लिए प्रेरित किया जा सके.’

माता-पिता को वचन देने के लिए भी कहा गया है कि वे 18 साल की होने से पहले उसकी सगाई का कोई प्रयास नहीं करेंगे.

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