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चचेरे भाई ने कर्ज लिया लेकिन वापस नहीं कर सका? रिकवरी एजेंट्स की मनमानी से आप भी सुरक्षित नहीं

ऐसे हजारों लोग हैं जो ऋण वसूली एजेंटों की धमकियों और उत्पीड़न से परेशान हैं. बीते सालों में एक क्लिक पर पैसे की पेशकश करने वाले तत्काल ऋण ऐप्स की संख्या भी बढ़ती जा रही है.

चित्रण: रमनदीप कौर/दिप्रिंट

नई दिल्ली: गुजरात के बड़ौदा जिले के रहने वाले इकरम खान पठान इस महीने परिवार में एक शादी में शामिल होने के लिए सऊदी अरब से भारत वापस आए थे. हालाांकि, जो खुशी का अवसर होना था, वह ऋण वसूली एजेंटों के हाथों तुरंत आघात में बदल गया.

19 नवंबर को पठान और उसका छोटा भाई समीर अपने चचेरे भाई की बाइक पर सवार होकर बड़ौदा से 70 किमी दूर आनंद जिले में शादी में जा रहे थे. यात्रा के बीच में अचानक तीन लोगों ने उन पर हमला बोल दिया, जिन्होंने समीर को पीटना शुरू कर दिया.

यह कोई डकैती नहीं थी. यह एक संदेश था. पता चला कि तीनों व्यक्ति ऋण वसूली एजेंट थे.

हालांकि, पारिवारिक संबंधों को छोड़कर, पठान और समीर का उस ऋण से कोई संबंध नहीं था. उनके चचेरे भाई ने कुछ साल पहले दोपहिया वाहन खरीदने के लिए आईडीएफसी बैंक से 19 प्रतिशत ब्याज दर पर ऋण लिया था, लेकिन पिछले कुछ महीनों से किश्तें नहीं चुका पा रहे थे.

पठान ने दिप्रिंट को बताया, “मेरा चचेरा भाई एक कैफे में काम करता था, लेकिन वह बंद हो गया और उसकी नौकरी चली गई. यही कारण है कि वह ऋण चुका नहीं पा रहा था.” उन्होंने कहा, “तीन रिकवरी एजेंटों ने हमें सड़क पर घेर लिया और हमें पीटना और धमकाना शुरू कर दिया. यह पूरी गुंडागर्दी है.”

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पठान ने कहा कि उन्होंने घटना की शिकायत गुजरात के मुख्यमंत्री कार्यालय से की है, लेकिन उनका परिवार डरा हुआ है.

पठान की तरह, देश में ऐसे हजारों लोग हैं जो ऋण वसूली एजेंटों की धमकियों और उत्पीड़न से परेशान हैं. एक क्लिक पर पैसा देने वाले तत्काल ऋण ऐप्स की संख्या बढ़ने से समस्या और बढ़ गई है.

ज्यादातर मामलों में ऋण छोटे होते हैं – लगभग 10,000 रुपये से 50,000 रुपये तक. लेकिन ब्याज की दरें 40 प्रतिशत तक होती हैं.

उत्पीड़न का मुद्दा पिछले कुछ महीनों में इतनी बड़ी चिंता के रूप में उभरा है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस साल की शुरुआत में लोकसभा में इस खतरे को संबोधित किया था.

सीतारमण ने जुलाई में लोकसभा में कहा, ”मैंने कुछ बैंकों द्वारा ऋण भुगतान को लेकर कितनी बेरहमी से कार्रवाई की है, इसकी शिकायतें सुनी हैं.”

उन्होंने कहा था, “सरकार ने सभी सार्वजनिक और निजी बैंकों को निर्देश दिया है कि जब ऋण भुगतान की प्रक्रिया की बात आती है तो कठोर कदम नहीं उठाए जाने चाहिए और उन्हें इस मामले में मानवता और संवेदनशीलता को ध्यान में रखना चाहिए.”

जून में, मद्रास हाई कोर्ट ने कहा था कि बैंकों द्वारा नियुक्त निजी वसूली एजेंटों के जबरदस्ती तरीके स्वीकार्य नहीं हैं और “एजेंटों द्वारा किसी भी बाहुबल का प्रयोग नहीं किया जा सकता है”.

हालांकि, बैंकिंग क्षेत्र के अधिकारी या तो यह कहकर अपना बचाव करते हैं कि उनका ऋण वसूली एजेंटों के कार्यों से कोई लेना-देना नहीं है या इस बात पर ज़ोर देकर कि वे रिज़र्व बैंक के निर्देशों का पालन करते हैं.

गुजरात में आईडीएफसी बैंक के ऋण वसूली विभाग के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “लोग समय पर ऋण नहीं चुकाते हैं.”

उन्होंने कहा, ”इसके कारण बैंक की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए) बढ़ती जा रही हैं. इसीलिए लोगों को रिकवरी के लिए भेजा जाता है.”

दिप्रिंट को पता चला है कि रिकवरी एजेंट सीधे आईडीएफसी बैंक द्वारा नहीं भेजे गए थे, बल्कि एक तीसरे पक्ष द्वारा भेजे गए थे जो गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों को कम करने के तरीके तलाशने के लिए नियुक्त किए गए थे. दिप्रिंट ने फोन पर टिप्पणी के लिए आईडीएफसी बैंक से संपर्क किया है और प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.

पहले उद्धृत अधिकारी ने कहा कि रिकवरी एजेंट ग्राहकों के साथ दुर्व्यवहार नहीं करते हैं.

अधिकारी ने कहा, “आरबीआई और बैंक के शीर्ष प्रबंधन के दिशानिर्देश हैं कि ग्राहकों के साथ जबरदस्ती नहीं की जानी चाहिए.” “हालांकि, अगर कोई मामला हमारे पास आता है तो हम उसकी जांच करते हैं.”

दिल्ली में एक निजी बैंक के ऋण वसूली विभाग में काम करने वाले एक कर्मचारी ने कहा कि बैंक तीसरे पक्ष के माध्यम से वसूली एजेंटों को काम पर रखता है.

उन्होंने कहा, “बैंक उन्हें सीधे नौकरी पर नहीं रख सकता क्योंकि इससे बैंक की प्रतिष्ठा कम होती है.”


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आरबीआई ने लिया संज्ञान

आरबीआई के पास ऋण वसूली एजेंटों के व्यवहार पर निश्चित रूप से नियम हैं, जिनका नवीनतम संस्करण अक्टूबर 2022 में जारी किया गया था.

नियमों के तहत, ऋण देने वाली संस्थाओं को यह सुनिश्चित करना है कि उनके एजेंट “अपने ऋण वसूली प्रयासों में किसी भी व्यक्ति के खिलाफ मौखिक या शारीरिक, किसी भी प्रकार की धमकी या उत्पीड़न का सहारा न लें”.

‘क्या न करें’ की सूची लंबी है, जिसमें शामिल हैं: सार्वजनिक रूप से अपमानित करने या देनदार के परिवार के सदस्यों और दोस्तों की गोपनीयता में हस्तक्षेप करने के इरादे से कोई कार्रवाई नहीं करना, अनुचित संदेश भेजना, धमकी भरे कॉल करना, लगातार उधारकर्ता को कॉल करना, कर्ज लेने वाले को सुबह 8 बजे से पहले और शाम 7 बजे के बाद फोन करना और कर्ज वसूलने के लिए गलत और भ्रामक बयान देना.

बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) से जुड़े रिकवरी एजेंटों द्वारा किए जा रहे उत्पीड़न को रोकने के लिए आरबीआई ने पिछले कुछ वर्षों में कई सर्कुलर भी जारी किए हैं.

इस साल मार्च में आरबीआई ने ऋण वसूली एजेंटों पर कुछ निर्देशों का पालन नहीं करने के लिए आरबीएल बैंक पर 2.27 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था.

इस महीने की शुरुआत में आरबीआई ने एक्सिस बैंक पर 90.92 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था क्योंकि वह कुछ बकायादारों के साथ रिकवरी एजेंटों का उचित व्यवहार सुनिश्चित करने में विफल रहा था.

आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास की फाइल फोटो | फोटोः रॉयटर्स

आरबीआई ने कोटक महिंद्रा बैंक, अर्ली सैलरी सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड, एलएंडटी फाइनेंस लिमिटेड, आरबीएल बैंक और क्रेजीबी सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड पर ऋण वसूली एजेंटों के व्यवहार, उधारकर्ताओं पर दंडात्मक ब्याज से अधिक वसूलने और आउटसोर्सिंग गतिविधियों के ऑडिट में विफल रहने से संबंधित अपराधों के लिए जुर्माना लगाया है.

अर्थशास्त्री और बैंकिंग विशेषज्ञ शरद कोहली ने दिप्रिंट को बताया, “जब बैंकों ने देखा कि लोग कर्ज़ नहीं चुका रहे हैं, तो उन्होंने एजेंटों को नियुक्त करना शुरू कर दिया क्योंकि उन्हें डर था कि लोग कर्ज़ नहीं चुकाएंगे.” “सभी बैंकों ने इसे अपनाया.”

कोहली ने कहा, “इस तरह के जबरदस्ती के तरीकों को रोका जाना चाहिए” लेकिन यह भी कहा कि जिम्मेदारी उधारकर्ताओं पर भी है, जिन्हें समय पर अपना ऋण चुकाना चाहिए और ऐसी स्थिति उत्पन्न होने से रोकना चाहिए.

17 नवंबर को केंद्रीय बैंक ने एक अधिसूचना जारी की जिसका उद्देश्य असुरक्षित ऋणों की वृद्धि पर अंकुश लगाना था.

हालांकि यह जाहिर तौर पर वित्तीय प्रणाली को एनपीए और खराब ऋण में वृद्धि से बचाने के लिए था. दिप्रिंट को पता चला है कि एक अन्य कारण ऋण वसूली एजेंटों के दुर्व्यवहार में चिंताजनक वृद्धि भी थी.

अक्टूबर में मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक में आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने “मजबूत जोखिम प्रबंधन और मजबूत अंडरराइटिंग मानकों” की आवश्यकता पर बल देते हुए उपभोक्ता ऋण के कुछ घटकों में उच्च वृद्धि की ओर इशारा किया.

हालांकि, आरबीआई के प्रयासों के बावजूद, केंद्रीय बैंक के आंकड़ों के अनुसार, सितंबर 2022 और 2023 के बीच बकाया असुरक्षित व्यक्तिगत ऋण में 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई.

इस बीच, ऋण वसूली एजेंटों द्वारा किए गए उत्पीड़न के बारे में सोशल मीडिया पर शिकायतें रोज ही आती हैं. एक्स (पूर्व में ट्विटर) से लेकर फेसबुक तक लोग लगातार बैंकों को टैग कर इसकी शिकायत कर रहे हैं.


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‘बार-बार कॉल करना, मानसिक उत्पीड़न’

उत्तर प्रदेश के आगरा में रहने वाले दिहाड़ी मजदूर अरविंद राजपूत इन दिनों अपना फोन बंद रखते हैं. दो क्रेडिट कार्ड, एक पर्सनल लोन और तीन ऐप्स से उन पर 1 लाख रुपये का कर्ज है.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि दो महीने पहले टाइफाइड संक्रमण के कारण वह काम करने में असमर्थ हो गए और वे किश्तें चुका नहीं पाए. उन्होंने कहा कि कॉल तब से बंद नहीं हुई हैं.

राजपूत ने बताया, “हर 5 मिनट में मुझे रिकवरी एजेंटों से पैसे मांगने के लिए फोन आते हैं. वे कहते हैं ‘क्या ये तेरे बाप का पैसा है, अपनी किडनी बेच या जेवर बेच, लेकिन पैसे वापस कर‘.

चित्रण: सोहम सेन/दिप्रिंट

राजपूत ने दावा किया कि ऋण देने वाले ऐप्स ने उनके सभी फोन संपर्कों तक पहुंच बनाई और कॉल करने वालों ने उनके दोस्तों और रिश्तेदारों को भी नहीं बख्शा. “वे मुझे मेरी संपर्क सूची की तस्वीरें भेजते हैं और मुझे धमकी देते हैं. पड़ोसियों और मित्रों के बीच मेरा सम्मान खत्म हो चुका है. ये एजेंट उन्हें हर समय फोन करते हैं और पैसे मांगते हैं.”

टिप्पणी के लिए संपर्क किए जाने पर, मोबिक्विक के गुरुग्राम कार्यालय में ऋण संग्रह विभाग के एक कर्मचारी – उन ऐप्स में से एक, जिनका राजपूत पर पैसा बकाया है – ने कहा कि ऋण वसूली के लिए कंपनी द्वारा अलग-अलग लोगों को काम पर रखा जाता है.

फिर भी, कर्मचारी ने यह मानने से इनकार कर दिया कि उनके रिकवरी एजेंट ग्राहकों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं.

पिछले कुछ वर्षों में भारत में डिजिटल ऋण देने में काफी वृद्धि हुई है. आरबीआई वर्किंग ग्रुप की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, 2017 और 2020 के बीच डिजिटल ऋण में 12 गुना से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई.

भारतीय रुपया | प्रतीकात्मक छवि | पिक्साबे

साइबर विशेषज्ञ अभय चावला ने कहा कि ऋण के साथ प्रौद्योगिकी का अभिसरण (कन्वर्जेंस) कई चुनौतियां लेकर आया है. उन्होंने कहा, “लोग सुविधा तो देखते हैं लेकिन तकनीक के खतरे नहीं देखते.” “लोन ऐप्स लोगों की पूरी संपर्क सूची पढ़ते हैं और फिर रिकवरी एजेंट उन्हें धमकाते हैं.”

कुछ त्वरित ऋण ऐप्स अनुरोध स्वीकृत करने से पहले उधारकर्ताओं से एक सेल्फी की भी मांग करते हैं. भुगतान में देरी होने पर रिकवरी एजेंट उनकी तस्वीरों के साथ छेड़छाड़ कर पैसे लेने वाले व्यक्ति के दोस्तों और रिश्तेदारों को भेजकर धमकी देते हैं.

चावला ने कहा कि डिजिटल मीडिया की कोई भौगोलिक सीमा नहीं है, जिससे विनियमन बहुत मुश्किल हो जाता है.

उन्होंने कहा, “भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में प्रौद्योगिकी के संबंध में कोई अपेक्षित सशक्तिकरण नहीं है.” “हर नई तकनीक में एक फिसलन भरी ढलान होती है और इसके दुरुपयोग के लिए जवाबदेही तय करना बहुत महत्वपूर्ण है.”

रिकवरी एजेंटों के दुर्व्यवहार की खबरों पर चावला ने कहा, “एक बार जब कोई चीज शुरू होती है, तो वह मिसाल बन जाती है.”

प्रीडेटरी ऐप्स से उत्पन्न खतरे को रोकने के लिए कई प्रयास किए गए हैं.

फरवरी में, सरकार ने धोखाधड़ी और जबरन वसूली सहित अपराधों के लिए दर्जनों ऋण ऐप्स को ब्लॉक कर दिया. आरबीआई ने कई एनबीएफसी के पंजीकरण रद्द कर दिए हैं, और गूगल प्ले ने ऐसे ऐप्स के लिए और अधिक कठोर आवश्यकताएं निर्धारित की हैं और इस साल अपने ऐप स्टोर से 3,500 ऋण ऐप्स भी हटा दिए हैं.


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‘समस्या का हल’

रिकवरी एजेंट्स का सेट-अप एक कॉल सेंटर की तरह है, जहां दर्जनों लोग कॉल करने के लिए एक बड़े हॉल में बैठते हैं, जबकि अन्य लोग बाहर फील्ड में जाते हैं.

दिल्ली में एक निजी बैंक के ऋण वसूली विभाग में काम करने वाले एक कर्मचारी ने बताया, “इन लोगों को 10,000-12,000 रुपये प्रति माह के वेतन पर काम पर रखा जाता है. लोगों के घरों में जाने वाले रिकवरी एजेंट आमतौर पर मुस्टंडे होते हैं.’

वित्तीय संपत्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्निर्माण और सुरक्षा हित प्रवर्तन अधिनियम, 2002 (सरफेसी), बैंकों को उधारकर्ताओं की संपत्ति को कब्जे में लेकर और उसे नीलाम करके एनपीए बन चुके पैसे की वसूली करने का कानूनी अधिकार देता है.

जब छोटी रकम की बात आती है तो बैंक आमतौर पर रिकवरी एजेंटों की ओर रुख करते हैं.

पब्लिक सेक्टर इंडियन ओवरसीज बैंक द्वारा हायर की गई एजेंसी एके जैन एसोसिएट्स के मालिक आदेश जैन ने दिप्रिंट को बताया,, “बड़े ऋणों के मामले में, पूरे मामले को सरफेसी अधिनियम के तहत नियंत्रित किया जाता है, लेकिन छोटे ऋणों के मामले में बैंक अक्सर रिकवरी एजेंटों की मदद लेते हैं.”

दिल्ली में रहने वाले कुणाल कुमार, जिन्होंने ऋण से परेशान लोगों की मदद करने के अपने प्रयासों के कारण सोशल मीडिया पर लोकप्रियता हासिल की है, ने कहा कि वसूली एजेंटों का सामना करने के लिए कई उधारकर्ता व्हाट्सएप के माध्यम से उनसे संपर्क करते हैं. कुमार अक्सर ऐसे मामलों में लोगों की मदद करते हैं.

कुमार ने कहा, “कुछ समय पहले दिल्ली के अलीपुर में एक व्यक्ति के घर पर पांच लोग सुबह-सुबह पहुंचते थे और रात 10 बजे लौटते थे. उन्होंने मुझसे संपर्क किया, फिर मैं उनके घर गया और एजेंटों से बात की और मामले को सुलझाया.”

कुमार का अपना अनुभव भी काफी खराब रहा है. दो साल पहले उन्होंने 3 लाख रुपये का कर्ज लिया था लेकिन जब 80,000 रुपये चुकाने के बाद उन्होंने खुद को आगे भुगतान करने में असमर्थ पाया तो रिकवरी एजेंट्स की तरफ से फोन आने शुरू हो गए.

कुमार ने बताया, “मुझ पर इतना दबाव था कि मैंने अपना फोन दो महीने तक बंद रखा. भले ही मैं एक आईटी विशेषज्ञ हूं, फिर भी मैं यह सब सहन नहीं कर सका और खुद को संभालने में काफी समय लगा.”

कुमार ने कहा कि दूसरों की मदद करने के लिए अपने अनुभव का इस्तेमाल करने का फैसला किया. उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि, एजेंटों के साथ अपनी बातचीत में, वह कानून का हवाला देते हैं, उन्हें बताते हैं कि बकाया भुगतान न करने से निपटने का कानूनी तरीका क्या है और उत्पीड़न कैसे अवैध है.

उन्होंने कहा, “जब आप उन्हें यह सब बताते हैं तो वे खुद ही चले जाते हैं.”

कुमार यह मानने वाले अकेले नहीं हैं कि कर्जदारों के बीच अपने अधिकारों के बारे में जागरूकता इस खतरे से निपटने में मदद कर सकती है.

सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाई कोर्ट के वकील शुभम कुमार ने कहा कि बैंक रिकवरी एजेंटों के दुर्व्यवहार के संबंध में कोई अलग कानूनी प्रावधान नहीं है. उन्होंने कहा, “लोग आईपीसी की धाराओं के तहत उनके खिलाफ मामला दर्ज कर सकते हैं और मानहानि का मामला भी दर्ज कर मुआवजे का दावा भी कर सकते हैं.”

शुभम ने कहा कि लोग सोचते हैं कि रिकवरी एजेंटों को धमकी देने का अधिकार है, इसलिए वे उनके खिलाफ कुछ नहीं कहते हैं. उन्होंने कहा, “लोग पुलिस में शिकायत करने से बचते हैं क्योंकि वे बुनियादी कानूनों और अधिकारों को नहीं जानते हैं और वे मामले में फंसकर अपना पैसा बर्बाद नहीं करना चाहते.”

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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