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राजकोषीय घाटे को नीचे लाने के लिए सरकार को नए सिरे से योजना बनानी होगी: आरबीआई बुलेटिन

कोरोनावायरस महामारी के कारण कम कर संग्रह, स्वास्थ्य सेवाओं पर अत्याधिक खर्च और आर्थिक गतिविधियां प्रभावित होने से केंद्र सरकार की राजकोषीय स्थिति बिगड़ने की आशंका है.

An Indian man speaks on the phone outside the Reserve Bank of India (RBI) head office in Mumbai on April 5, 2018. India's central bank on April 5 kept interest rates at a seven-year-low despite a slowdown in inflation and a recent spurt in economic growth. The Reserve Bank of India (RBI) said the benchmark repo rate -- the level at which it lends to commercial banks --- would remain unchanged at 6.0 percent. / AFP PHOTO / PUNIT PARANJPE (Photo credit should read PUNIT PARANJPE/AFP/Getty Images)
आरबीआई (फोटो: Getty Images)

मुंबई: सरकार को कोविड-19 संकट की वर्तमान स्थिति सामान्य होने पर राजकोषीय घाटा को नीचे लाने के लिये नये सिरे से योजना बनानी होगी. रिजर्व बैंक के बुलेटिन में प्रकाशित एक लेख में यह कहा गया है.

कोरोनावायरस महामारी के कारण कम कर संग्रह, स्वास्थ्य सेवाओं पर अत्याधिक खर्च और आर्थिक गतिविधियां प्रभावित होने से केंद्र सरकार की राजकोषीय स्थिति बिगड़ने की आशंका है.

लेखा महानियंत्रक के ताजा आंकड़ों के अनुसार देश का राजकोषीय घाटा 2019-20 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 4.6 प्रतिशत रहा जो सात साल का उच्च स्तर है.

सरकार ने फरवरी में पेश 2020-21 के बजट में राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3.5 प्रतिशत पर लाने का लक्षा रखा है. बजट कोविड-19 महामारी से निपटने के लिये 25 मार्च से घोषित ‘लॉकडाउन’ से दो महीने पहले पेश किया गया था.

आरबीआई के बुलेटिन में प्रकाशित लेख में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2019-20 में राजकोषीय घाटे के मोर्चे पर जो गिरावट है, उसका कारण कर राजस्व संग्रह में कमी है. यह चक्रीय और संरचनात्मक दोनों हो सकता है.

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वित्त वर्ष 2020-21 का बजटीय अनुमान 2019-20 के संशोधित अनुमान पर आधारित है. 2019-20 में संशोधित अनुमान की तुलना में पिछले वित्त वर्ष में कर राजस्व संग्रह में कमी (अस्थायी लेखा) 2020-21 के राजकोषीय गणित को बिगाड़ सकता है.

लेख में कहा गया है, ‘इस पर 2020-21 में खासकर पहली तिमाही में कोविड-19 से संबंधित वृहत आर्थिक प्रभाव का भी प्रतिकूल असर पड़ सकता है. इसको देखते हुए 2020-21 में राजकोषीय मोर्चे पर प्रयास सोच-समझकर और विवेकपूर्ण तरीके से करना होगा और साथ ही स्थिति सामान्य होने पर राजकोषीय घाटे को नीचे लाने के लिये नये सिरे से योजना बनानी होगी.’


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राजकोषीय जवाबदेही और बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) कानून के तहत सालाना लक्ष्य रखा गया है. केंद्र सरकार को राजकोषीय घाटे में हर साल जीडीपी के 0.1 प्रतिशत या उससे अधिक की कमी लानी है.

बुलेटिन में कहा गया है कि लेख को आरबीआई के आर्थिक और नीति शोध विभाग की संगीता मिश्रा, समीर रंजन बेहरा, कौशिकी सिंह और सक्षम सूद ने लिखा है.

हालांकि इसमें कहा गया है कि लेख में लेखक के अपने विचार हैं और उससे संस्थान का कुछ भी लेना-देना नहीं है.

सरकार ने 2019-20 के लिये राजकोषीय घाटे का लक्ष्य पूर्व के 3.3 प्रतिशत अनुमान से बढ़ाकर जीडीपी का 3.8 प्रतिशत कर दिया था. इसके लिये एफआरबीएम कानून में छूट उपबंध का उपयोग किया गया जो दबाव की स्थिति में राजकोषीय घाटा रूपरेखा के पालन में रियायत देता है.

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