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उत्तरकाशी सुरंग में फंसे 40 लोगों के बचाव अभियान को हुए पांच दिन, श्रीमिकों को भेजे गए मुरमुरे और किशमिश

श्रमिक फिलहाल 400 मीटर के बफर जोन में फंसे हुए हैं, जो रेस्क्यू टीम से लगभग 60-70 मीटर दूर चट्टानी मलबे में है. अब मुख्य चुनौती बजरी बनी हुई है जो लगातार गिर रही है.

उत्तरकाशी में ब्रह्मखाल-यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर सिल्क्यारा और डंडालगांव के बीच निर्माणाधीन सुरंग का एक हिस्सा ढह जाने के बाद बचाव अभियान जारी है | पीटीआई

नई दिल्ली: रविवार सुबह से उत्तरकाशी सुरंग के अंदर फंसे 40 श्रमिकों को बचाने के लिए कई एजेंसियां चौबीसों घंटे काम कर रही हैं. भारी ड्रिलिंग मशीनों के साथ चट्टानों में सुरंग बनाकर श्रमिकों को बाहर निकालने का लगातार प्रयास किया जा रहा है, जबकि बचावकर्मी संकटग्रस्त लोगों को अधिक टिकाऊ भोजन की आपूर्ति कर रहे हैं.

ब्रह्मखाल-यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर 4.5 किलोमीटर लंबी सिल्क्यारा से डांडागांव सुरंग के निर्माण में मदद कर रहे मजदूर रविवार सुबह अंडरपास में बड़े पत्थरों और मलबे के बीच फंसे गए थे, जिसे 96 घंटे से अधिक समय हो चुका है.

वे वर्तमान में बचाव दल से लगभग 60 से 70 मीटर दूर चट्टानी मलबे में 400 मीटर के बफर जोन में फंसे हुए हैं. बुधवार को, आपदा प्रतिक्रिया टीमों ने नव-स्थापित भारी ड्रिलिंग उपकरण या बरमा मशीनों की मदद से खुदाई की एक नई ट्रेंचलेस तकनीक पर काम करना शुरू कर दिया. अब रेस्क्यू टीम का उद्देश्य एक पाइप के लिए तीन फीट चौड़ा स्थिर मार्ग बनाना है जिसके माध्यम से फंसे हुए लोग रेंग कर बाहर निकल सकें.

बचाव दल ने सुरंग ढहने के अगले ही दिन श्रमिकों से संपर्क स्थापित किया, एक मौजूदा पाइप लाइन के माध्यम से एक कागज का नोट पहुंचाया गया था, फिर वॉकी टॉकी सेट को उसी तरह नीचे भेजा गया था. खाने के पैकेट और पानी भी पाइप के माध्यम से भेजे जा रहे हैं.

राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) के उप कमांडेंट रविशंकर बधानी ने कहा कि निकासी मार्ग बनाने के लिए बाधा उत्पन्न करने वाली बजरी में छह मीटर लंबे स्टील पाइप ड्रिल किए जा रहे हैं. बचाव अभियान के पहले दिन से ही घटनास्थल पर तैनात बधानी ने दिप्रिंट को बताया कि यह राहत की बात है कि जहां मजदूर फंसे थे, वहां बिजली और पानी उपलब्ध है. उन्होंने कहा, “हम बहुत करीब पहुंचने में सफल रहे हैं और वे लोग अब केवल 60 से 70 मीटर दूर दिख रहे हैं.”

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रविवार को सुरंग का जो हिस्सा धंस गया था और तुरंत बंद हो गया था वह लगभग 200 मीटर था.

बधानी ने कहा कि टीमें मार्ग को साफ करने के लिए भारी मशीनों पर निर्भर हैं. उन्होंने कहा, “मलबा साफ होने के बाद ही हमारी टीमें बचाव शुरू करेंगी.”

अधिकारी ने उस समय को याद किया जब उन्होंने पहली बार फंसे हुए लोगों से संपर्क स्थापित किया था. बदानी ने कहा, “वे चाहते थे कि उनके परिवार को पता चले कि वे ठीक हैं. श्रमिकों ने मुरमुरे, चना और किशमिश सहित सूखे मेवों की मांग की ताकि वे किसी तरह जीवित रह सके. हमने उन्हें बिस्किट के पैकेट में यह सब खाना डाल के भेजा है.”

एनडीआरएफ, राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (एसडीआरएफ), सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के 160 से अधिक सदस्य श्रमिकों तक पहुंचने के लिए चौबीसों घंटे काम कर रहे हैं.

मलवा और चुनौती

एनडीआरएफ के महानिदेशक अतुल करवाल ने दिप्रिंट को बताया कि वायु सेना द्वारा उपलब्ध कराए गए दो हरक्यूलिस सी-130 विमानों में अर्थ-मूविंग मशीनों को बुधवार को दिल्ली से एयरलिफ्ट किया गया था.

उन्होंने कहा, इन अत्याधुनिक मशीनों को तीन हिस्सों में घटनास्थल पर लाया गया और स्थानीय स्तर पर असेंबल किया गया, उन्होंने कहा कि ये मशीनें तेजी से एस्केप कैविटी बना सकती हैं.

करवाल ने कहा कि अब मुख्य चुनौती ढीली बजरी है जो लगातार गिरती रहती है. बरमा मशीनें, जो क्षैतिज रूप से ड्रिल करती हैं, घूमती हैं और धरती की खुदाई करती हैं. उन्होंने कहा कि ढीली बजरी भी भारी चट्टानों के साथ मिल जाती है जो रुकावट के स्तर को बढ़ा देती है.

एनडीआरएफ के एक अन्य अधिकारी ने कहा कि खुदाई अभियान के दौरान चट्टानों के टुकड़े नीचे आते रहते हैं और कभी-कभी, मार्ग के साफ हिस्से पर गिर जाते हैं, जिससे प्रयास विफल हो जाते हैं. उन्होंने कहा कि बार-बार मलबा गिरने से काम में बाधा आ रही है.

(संपादन: अलमिना खातून)
(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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